इश्क़ होना ही था - 29 Kanha ni Meera द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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इश्क़ होना ही था - 29

** ओम नमः शिवाय **

** इश्क़ होना ही था part- 29 **

अभ तक हमने देखा की आज काम ज्यादा हों की वजह से चारो रात को बहार खाने जाने की बात करते है पर शिव और अहाना एक मीटिंग में होते है और वह उन्हें और भी लेट होने वाला था...

"चलो में बाद में फोन करती हु..."

अहाना बोलती है और फोन रख देती है...

"क्या हुआ...?"

अक्षत बोलता है...

"अरे उनकी मिटींग अभी और चलेगी और इसकी वजह से वो लोग नहीं आ पाएंगे..."

दिया बोलती है...

"चलो काम हो गया..."

अहाना फोन रखते हुए बोलती है...

"चलो अब ये बताओ क्या खाना है..."

शिव बोलता है...

"हां वैसे ही मुझे कब से भूख लगी है..."

अहाना बोलती है...

उन दोनों की आज कोई मीटिंग नहीं थी...

ये पहले से ही अक्षत और शिव ने सोचा था उसे दिया के साथ कही बहार जाना था पर वो सीधा उसे कैसे कहे इसी वजह से उसने ये आईडिया लगाया...

"तो हम भी घर ही चलते है..."

दिया बोलती है...

"नहीं अब आयी गए है तो खाना खा ही लेते है..."

अक्षत बोलता है...

"हां मुझे इसा क्यों लग रहा है की ये दोनों एकेले जाना चाहते थे इस वजह से नहीं आये..."

दिया बोलती है...

"हां वैसे इनकी मिटीग इतनी चलनी तो नहीं चाहिए...

चलो उन दोनों को अकेले डिनर करने दो..."

अक्षत बोलता है और अपने मन में ही बहोत हस्ता है....

"हां कभी कभी मुझे लगता है इसी वजह से ही अहाना यहाँ तक मुझे जॉब करके के लिए ले कर आयी है..."

दिया बोलती है...

"मतलब...?"

अक्षत जैसे उसे कुछ समज नहीं आया...

"अरे मतलब यहाँ इतनी दूर आने के लिए अहाना ने ही कहा था और वो ही चाहती थी हम यहाँ आये..."

दिया बोलती है...

"क्यों तुम यहाँ नहीं आना चाहती थी..."

अक्षत बोलता है...

"अरे ऐसा नहीं की में नहीं आना चाहती थी...

पर मम्मी पप्पा से इतना दूर..."

दिया बोलती है...

"एक तुम हो जो अपने मम्मी पप्पा से दूर नहीं होना चाहती और एक में..."

अक्षत बोलता है...

"अरे चलो अब क्या खाना है वो बताओ..."

दिया अक्षत की बात बदलने के लिए बोलती है...

वो दोनों अपना ऑडर देने लगते है...

"मुज तुमसे सोरी कहना था..."

अक्षत अचनक से ही बोलता है और दिया का दयान उसके सामने वाली टेबल में बैठे एक छोटे से बच्चे पे होता है...

"क्यू सोरी...?"

दिया बोलती है...

"उस दीन जब हम बालकनी में बैठे थे और तुम गुस्सा होके चली गई..."

अक्षत बोलता है...

"अरे में उस दिन गुस्सा नहीं थी...

बस कुछ ऐसी बाते है जिसे में अब याद नहीं करना चाहती..."

दिया बोलती है...

"तुमने ही मुझे कहा था की अब हम दोस्त है और दोस्त तो एक दूसरे से बात करते है...

और फिर मेने भी तो वही बात की थी जो सायद में कभी किसी से नहीं कहता... "

अक्षत बोलता है...

दिया जो अपनी नज़ारे ज़ुका देती है और कुछ नहीं बोलती...

"चलो कोई बात नहीं ...

पर जब तुम्हारा मन करे उस दिन मुझे तुम बताना..."

अक्षत बोलता है और दिया उसके सामने देखता है...

तभी उनका ओडर भी आ जाता है...

दोनों खाना खाने लगते है और वो दोनों कुछ नहीं बोलते....

"चलो अब चलते है..."

अक्षत बोलता है और दोनों वहा से निकल जाते है...

"में बताना चाहती हु..."

दिया बोलती है...

"हां..."

अक्षत बोलता है...

"कॉलेज का पहला ही दिन था...

में और भाविका थोड़े लेट हो गए थे..."

दिया बोल ही रही थी तभी अक्षत का फोन की रिंग बजती है...

अक्षत फोन देखे बिना ही कट कर देता है और दिया को आगे बोलने का इसारा करता है...

दिया आगे कुछ बोले उसे पहले ही फोन की रिंग फिरसे बजने लगती है...

" कोई जरूरी काम के लिए फोन होगा...

एक बार बात करलो..."

दिया बोलती है और अक्षत कार बाजु में खड़ी कर देता है...

"अरे ये तो मिताली है..."

अक्षत कार को बाजु में कड़ी करता है और खुश हो कर बोलता है और जल्दी से फोन उठा लेता है...

"अक्षत.... अक्षत...."

अक्षत कुछ बोले उसे पहले ही सामने से मिताली बोलती है और जोर जोर से रोने लगती है...

मिताली को इस तरह रोते देख कर दोनों गभरा जाते है...

"क्या हुआ मिताली..."

अक्षत जल्दी से बोलता है...

"नितिन..."

मिताली बोलती है...

"क्या तुम्हारा और नितिन का झगड़ा हुआ है...?"

अक्षत बोलता है...

"नितिन का एक्सीडेंट हुआ है...

तुम और शिव जल्दी से आ जाओ..."

सामने मिताली के पापा मोहन भाई उसके हाथ से फोन ले कर बोलते है...

"हां हम आ रहे है आप बस मितली को सभालिये..."

अक्षत बोलता है और सामने से फोन कट जाता है...

अक्षत जो अपनी आँखे कस के बंध कर देता है और अपने आशुओ को अपने ही आँखों में रोक लेता है...

"अक्षत बस शांत हो जाओ..."

दिया बोलती है पर वो खुद को केसे सभाल रही थी वो वही ही जानती थी...

"चलो हम जल्दी घर चलते है..."

अक्षत बोलता है और वो दोनों घर पहोच जाते है...

जैसे वो दोनों घर में जाते है तभी अहाना और शिव भी वहा आ जाते है...

जैसे ही शिव आता है अक्षत को देख कर ही समज जाता है की कुछ न कुछ तो हुआ ही है...

"अक्षत क्या हुआ है और तेरी आँखे इतनी लाल क्यों है..."

शिव बोलता है...

दिया सारी बात शिव को बताती है...

"हम अभी ही निकलते है..."

शिव बोलता है...

"में और अहाना भी साथ चलते है...

मिताली को सभालना अभी बहोत जरूरी है..."

दिया बोलती है...

"तुम दोनों पहले अपने घर में बात करलो..."

शिव बोलता है और अक्षत जो कुछ बोल ही नहीं रहा था उसे अपने साथ अपने रूम में ले कर जाता है...

थोड़ी देर में वो चारो नितिन के घर जाने के लिए निकल जाते है...

सुभे जल्दी ही वो चारो हॉस्पिटल में पहोच जाते है और सीधा ही वो मिताली क पास जाते है...

मिताली जिसकी आँखे सूज चुकी थी और इस तरह दिया को देख कर सब का दिल भी भारी हो जाता है...

मिताली सीधा भाग के अक्षत के गले लग जाती है और रोने लगती है....

पहले वो मिताली को शांत करते है फिर मिताली को अहाना और दिया सभालती है...

शिव और अक्षत दोनों जा कर मोहन भाई से मिलते है...

"नितिन कब तक ठीक होगा...?"

"ये चारो मिल कर कैसे मिताली को सभालेगे...?"

अक्षत और दिया की इस कहानी में आगे क्या होगा ये जाने के लिए बने रहिये मेरे साथ ....

इश्क़ होना ही था ....

अगर मेरी कहानी आपको पसंद आये तो मुझे कमेन्ट कर के जरूर बताना ...

इश्क़ होना ही था का part -30 आपके सामने 14 february को आ जायेगा ...

इस कहानी में जुड़ने के लिए आप सभी का सुक्रिया...