उलझन - भाग - 18 Ratna Pandey द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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उलझन - भाग - 18

आरती अपनी बेटी और बहू के साथ मंदिर जाने के लिए निकले। रास्ते में तीनों एकदम शांत थीं, उन्हें देखकर ऐसा लग रहा था मानो उन्होंने मौन व्रत ले रखा हो। कोई किसी से ना कुछ पूछ रहा था, ना पूछने की हिम्मत थी। मंदिर ज़्यादा दूर नहीं था फिर भी उन्हें रास्ता लंबा लग रहा था।

मंदिर पहुँचते ही वहाँ दर्शन करके आरती ने एक झाड़ की तरफ़ चलने का इशारा किया जहाँ उनके सिवाय और कोई भी नहीं था। तीनों वहाँ जाकर झाड़ के नीचे बैठ गईं।

तब आरती ने चुप्पी तोड़ते हुए कहा, “देखो मैं किसी को दोष देना नहीं चाहती। जो हुआ अनजाने में ही सही पर बहुत ग़लत और बहुत ही बुरा हुआ है। गलती बुलबुल की भले ही अनजाने में ही हो लेकिन गलती तो हुई है। जानबूझकर उसने कुछ नहीं किया, यह सच है। इसका सबसे बड़ा कसूरवार प्रतीक है लेकिन आज मेरी बेटी के गर्भ में उसका बच्चा है। मैं नहीं चाहती कि मेरी बेटी का घर उजड़ जाए। उस बच्चे को उसके पिता का प्यार ना मिल पाए। बुलबुल और निर्मला मैं तोड़ने में नहीं बल्कि जोड़ने में विश्वास रखती हूँ। बुलबुल के गर्भ में भी प्रतीक का ही बच्चा है।”

बुलबुल ने यह सुनते ही सर नीचे कर लिया।

आरती ने कहा, “मैं गोविंद और बुलबुल का घर भी तोड़ना नहीं चाहती क्योंकि बुलबुल ने जिस ईमानदारी से सही समय पर यह सब हमें बता दिया; उसके लिए उसकी जितनी तारीफ की जाए कम है। वह चाहती तो गर्भपात भी करवा सकती थी और हमें यह कभी पता भी नहीं चलता। जो हो चुका है वह मिट नहीं सकता, मिटाया भी नहीं जा सकता लेकिन हाँ बिना किसी को पता चले इसका निवारण अवश्य ही किया जा सकता है।”

निर्मला ने पूछा, “कैसे माँ?”

आरती ने कहा, “बुलबुल गोविंद को जाने देना, तुम यहीं रुक जाना।”

“ठीक है माँ पर उससे क्या कहूँ …?”

“तुम कुछ नहीं कहना, मैं कहूँगी।”

निर्मला ने पूछा, “माँ फिर आगे क्या?”

“वह भी पता चल जाएगा तुम्हें, अब घर चलो।”

शाम को गोविंद ने कहा, “बुलबुल चलो पैकिंग कर लो, कल सुबह निकलना है।”

“अरे गोविंद मैं कुछ दिन बहू को हमारे साथ रखना चाहती हूँ। मेरी तबीयत भी ठीक नहीं रहती है और पता नहीं फिर कभी साथ रहने को मिले ना मिले या मैं उससे पहले ही …”

“अरे माँ ऐसा मत कहो, आपकी बहू है रखो ना उसे, जितने दिन मन करे।”

“ठीक है गोविंद, थैंक यू।”

गोविंद चला गया।

आरती के पास एक दिन प्रतीक का फ़ोन आया। उसने पूछा, “माँ मैं निर्मला को लेने कब आऊँ?”

प्रतीक का यह प्रश्न आरती को बहुत अच्छा लगा कि चलो कम से कम प्रतीक ने अपना अहं छोड़कर फ़ोन तो किया।

उन्होंने कहा, “प्रतीक निर्मला अभी सफ़र नहीं कर सकती। डॉक्टर ने उसे आराम करने के लिए कहा है। अब तो वह तुम्हारे बच्चे को लेकर ही वहाँ आ पाएगी।”

प्रतीक ने ख़ुश होते हुए कहा, “ठीक है माँ।”

कुछ दिनों के बाद आरती ने गोविंद को फ़ोन करके कहा, “गोविंद एक गुड न्यूज़ है।” लेकिन उन्होंने यह नहीं कहा कि तुम बाप बनने वाले हो।

उन्होंने कहा बुलबुल, “माँ बनने वाली है। यहाँ डॉक्टर को दिखा दिया है। उसे आराम करने की सख्त सलाह दी है इसलिए अभी तो बुलबुल को मैं वहाँ नहीं भेजूंगी। तुम जब मन करे यहाँ आकर मिल लेना।”

गोविंद की ख़ुशी का ठिकाना न था।

उसने कहा, “वाह माँ मैं पापा बनने वाला हूँ,” यह सुनते ही आरती ने फ़ोन काट दिया।

रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)
स्वरचित और मौलिक
क्रमशः