निर्मला अपने भाई गोविंद की उत्साह से भरी यह सारी बातें अपनी माँ के पास बैठे हुए सुन रही थी। वह मौन थी उसे समझ ही नहीं आ रहा था कि वह क्या कहे और क्या करे? इस समय उसे कोई रास्ता दिखाई नहीं दे रहा था कि वह इन संकटकालीन बादलों को किस तरह से साफ़ करे। वह सोच रही थी बहुत ही विकट परिस्थिति मुँह बाये खड़ी है; जब गोविंद और बुलबुल यहाँ एक दूसरे को देखेंगे तब उन्हें असलियत का पता चलेगा। उन्हें तो इस बात का एहसास ही नहीं है कि तक़दीर ने हमारे परिवार के साथ कैसा अजीब खेल खेला है। उसने इस समय सब कुछ ऊपर वाले पर छोड़कर चुप रहना ही बेहतर समझा, क्योंकि उसके पास इस सब को रोकने का कोई तरीका, कोई उपाय नहीं था।
उधर बुलबुल भी तनाव युक्त थी। गाँव जाने के लिए मना करना तो उसके बस में नहीं था। क्या कारण बताती वह न जाने का। यह सोचकर उसने चुपचाप उसके कपड़े सूटकेस में भर लिए। उसने भी सब भगवान के ऊपर छोड़ दिया।
गोविंद के बाद कमला ने प्रतीक को फ़ोन लगाया। घंटी बजते ही प्रतीक ने देखा सासू माँ का फ़ोन? उसने दो-तीन पल सोचने के बाद फ़ोन उठा लिया।
“हैलो माँ कैसी है आपकी तबीयत?”
“बेटा तबीयत तो अब अच्छी नहीं रहती इसीलिए चाह रही थी कि एक बार सब लोग इकट्ठे हो जाएँ। तुमने तो अभी हमारी बहु रानी को देखा भी नहीं है। आ जाओ ना कल छोटा-सा एक कार्यक्रम भी रखा है।”
प्रतीक ने जैसे ही अपनी मम्मी की तरफ़ देखा, उन्होंने इशारा कर दिया, हाँ बोल दे तुझे जाना ही चाहिए।
प्रतीक भी उन्हें मना नहीं कर पाया और रिश्तों की गरिमा बनाए रखने के लिए उसने कहा, “हाँ माँ मैं आ जाऊंगा।”
“बेटा निर्मला भी यहीं पास में बैठी है, लो बात कर लो,” कहते हुए आरती ने निर्मला को फ़ोन पकड़ा दिया।
निर्मला शांत थी उधर से प्रतीक ने ही पहल करते हुए पूछा, “कैसी हो निर्मला?”
निर्मला की आँखें भर आईं, गला सूखने लगा। उसने अपने आप को संभालते हुए पूछा, “माँ को क्या कहा आपने यहाँ आने के बारे में?”
निर्मला जानना चाह रही थी कि वह आ रहा है या नहीं?
प्रतीक ने कहा, “माँ को कैसे मना कर सकता हूँ, आ रहा हूँ मैं।”
“अच्छा ठीक है, बाबूजी बुला रहे हैं, मैं रखती हूँ।”
“हाँ ठीक है।”
दूसरे दिन पहले बुलबुल और गोविंद की कार आई। बुलबुल पहली बार गाँव अपने सास ससुर के घर आई थी। निर्मला और आरती ने पहले से ही गृह प्रवेश की सारी तैयारियाँ कर रखी थी। बहुत शानदार तरीके से बुलबुल का गृह प्रवेश हुआ।
उसके बाद बुलबुल ने अपने सास-ससुर के पैर छुए और निर्मला के गले लग कर पूछा, जीजी आपकी तबीयत कैसी है।
ठीक है बुलबुल।
वह सब बैठकर बातें कर रहे थे कि तभी दरवाजे पर दस्तक हुई।
निर्मला उठने लगी तो बुलबुल ने कहा, “जीजी आप बैठिए ना, मैं खोलती हूँ,” कहते हुए वह दरवाज़ा खोलने चली गई।
बुलबुल ने जैसे ही दरवाज़ा खोला, उसकी आँखें बर्फ की तरह वहाँ पर जम गईं। दरवाजे के बाहर तो प्रतीक था।
बुलबुल हैरान …! प्रतीक परेशान …!
“यह कैसे संभव है,” प्रतीक बुदबुदाया।
बुलबुल ने पूछा, “यहाँ क्यों आए हो? तुम्हें किसने यहाँ का पता दिया? मेरा पीछा छोड़ दो प्लीज।”
प्रतीक आगे कुछ भी बोले उसके पहले हालात की गंभीरता को समझते हुए निर्मला ने कहा, “आइये …”
निर्मला के आइये कहते से बुलबुल चौंक गई और मुड़कर निर्मला की तरफ़ देखने लगी।
तब तक आरती भी वहाँ आ गई। आते-आते उन्होंने कहा, “आओ दामाद जी, बस आपका ही इंतज़ार था।”
गोविंद ने आकर प्रतीक के पाँव छूते हुए पूछा, “जीजू कैसे हो आप? आपको शादी में हम सब ने बहुत मिस किया।”
प्रतीक ने गोविंद को शादी की बधाई देते हुए गले से लगा लिया।
रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)
स्वरचित और मौलिक
क्रमशः