Uljhan - Part - 12 books and stories free download online pdf in Hindi

उलझन - भाग - 12

अपनी बेटी निर्मला के घर आने से उसके पापा धीरज भी बहुत ख़ुश थे लेकिन उन्हें निर्मला का चेहरा थोड़ा मुरझाया हुआ लग रहा था। सुबह आरती के उठने पर धीरज ने अपनी बेचैनी उसे बताते हुए कहा, “आरती तुम्हें नहीं लगता, निर्मला मुरझाई सी, उदास लग रही है।”

“अरे नहीं ऐसा कुछ नहीं है। शुरू-शुरू में थोड़ी तबीयत गड़बड़ हो सकती है।”

“शुरू-शुरू में मतलब?”

“अरे तुम नाना बनने वाले हो।”

“अच्छा! अरे वाह यह तो बहुत ही ख़ुशी की बात है।”

उधर बुलबुल और गोविंद दोनों बहुत प्यार से जी रहे थे। एक दूसरे का साथ उन्हें बहुत पसंद था और दोनों बहुत ख़ुश भी थे।

इस ख़ुशी पर उस दिन अल्प विराम लग गया जब बुलबुल की माहवारी की तारीख निकल गई, जो कि हर माह एकदम समय पर आ जाती थी। बुलबुल तनाव में थी, यह क्या हो गया? अभी तो विवाह को दो हफ्ते ही हुए हैं। अब वह क्या करे? किससे कहे? नहीं-नहीं यह तो वह किसी से भी नहीं कह सकती। इसी तनाव और उधेड़बुन में समय निकलता जा रहा था।

उसने सोचा यहाँ उसकी एक सहेली है, उसकी मदद लेकर किसी डॉक्टर के पास चली जाती हूँ और फिर अबॉर्शन …

वह इन ख़्यालों में डूबी थी कि तभी दरवाजे पर दस्तक हुई। उसने दरवाज़ा खोला तो सामने गोविंद अपने हाथ में हनीमून के लिए दो टिकट लेकर खड़ा था। वह स्विट्जरलैंड में उनके हनीमून के लिए होटल वगैरह सब बुक कर चुका था। यह हनीमून बुलबुल के लिए बहुत बड़ा सरप्राइज था।

बुलबुल के हाथ में टिकट देते हुए गोविंद ने उसे अपनी बाँहों में भर लिया और कहा, “बुलबुल चलने की तैयारी कर लो। तुम सोच रही होगी कैसा पति मिला है, शादी के बाद हनीमून पर भी नहीं ले गया। लेकिन बैंक के कुछ ज़रूरी काम निपटाने थे बस इसीलिए देर हो गई।”

बुलबुल यूं तो इस सरप्राइज से बहुत ख़ुश हो जाती लेकिन इस समय वह तनाव, उससे उसकी सारी हँसी, ख़ुशी छीन रहा था।

फिर भी उसने किसी तरह से अपने आप को संभाला और ख़ुशी दिखाते हुए कहा, “थैंक यू गोविंद।”

अब बुलबुल के पास हनीमून पर न जाने का कोई बहाना, कोई कारण नहीं था। डॉक्टर के पास जाने का ख़्याल तो बस ख़्याल बनकर ही रह गया।

अगले दिन वह दोनों अपने हनीमून के लिए निकल गए। अब तक बुलबुल की प्रेगनेंसी को लगभग डेढ़ महीना हो चुका था और शादी को एक महीना। हनीमून पर भी वह तनाव युक्त ही रह रही थी

एक दिन गोविंद ने पूछा, “क्या हुआ बुलबुल कोई परेशानी है?”

“पता नहीं गोविंद, तबीयत ठीक नहीं लग रही है।”

गोविंद अपने प्यार से उसे ख़ुश रखने की पूरी कोशिश कर रहा था। उनका हनीमून भी हो गया।

वह जिस दिन अपने घर लौटे उसी दिन आरती का फ़ोन आया, “गोविंद बेटा अब तुम और बुलबुल दोनों कुछ दिनों के लिए यहाँ गाँव आ जाओ। यहाँ मेरी तबीयत ठीक नहीं चल रही है। निर्मला भी कुछ दिनों के लिए आई है और हमारे प्रतीक ने तो अभी तक बुलबुल, बहु रानी को देखा ही नहीं है। मैं उसे भी बुला रही हूँ।”

“ठीक है माँ हम कल ही पहुँच जाएंगे। आप अपना ख़्याल रखना। माँ एक बात पूछना था, जीजी यहाँ आई थीं तो काफ़ी उदास लग रही थीं। मुझे उनकी बहुत चिंता हो रही है, सब ठीक तो है ना?”

“अरे हाँ गोविंद, सब ठीक है, तू मामा बनने वाला है।”

“वाह माँ यह तो बहुत ख़ुशी की बात है। बस हम दोनों भी कल तक पहुँच जाएंगे, जीजू भी आ जाएंगे, सब इकट्ठे होंगे तो बहुत मज़ा आएगा। बुलबुल भी जीजू से मिल लेगी।”

रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)
स्वरचित और मौलिक
क्रमशः

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