निर्मला सोच रही थी हे भगवान यह कैसी अग्नि परीक्षा ले रहा है तू? अब क्या करूं गोविंद को सब बता दूं? नहीं-नहीं अब तो उसकी शादी हो चुकी है और गोविंद कितना ख़ुश है। मेरे साथ जो हुआ वह हुआ लेकिन गोविंद के साथ कुछ बुरा नहीं होना चाहिए। प्रतीक और बुलबुल की बातें सुनकर उसे इतना विश्वास तो हो ही गया था कि बुलबुल विवाह के बाद उसके भाई के प्रति वफ़ादार रहेगी। बस भगवान करे वह अपने भूतकाल को वर्तमान और भविष्य पर हावी ना होने दे।
तभी निर्मला के कानों में बुलबुल की आवाज़ आई, “निर्मला जीजी आप जाग रही हो क्या? मैं अंदर आ जाऊँ?”
“हाँ-हाँ बुलबुल आओ ना।”
बुलबुल के अंदर आते ही निर्मला ने उसकी तरफ़ जब ध्यान से देखा तो उसे उसमें वह स्त्री दिखाई देने लगी जिसके कारण उसका घर टूट रहा है और उसका पति उससे अलग … दूसरे ही पल उसने अपने आप को संभाला। बुलबुल को देखकर उसे ये भी लग गया कि प्रतीक को ऐसी मॉडर्न लड़की चाहिए थी फैशनेबल और इंग्लिश बोलने वाली। आज फिर उसे अपनी पढ़ाई ना कर पाने का दुख सताने लगा।
तभी बुलबुल ने पूछा, “जीजी आज हम डिनर के लिए कहीं बाहर चलें?”
“नहीं बुलबुल, तुम और गोविंद चले जाओ। मेरी तबीयत ठीक नहीं है।”
“नहीं जीजी जाएंगे तो सब, वरना कोई नहीं। अच्छा जीजी आज मैं अपने हाथों का बना खाना आपको खिलाऊंगी।”
“ठीक है बुलबुल हम मिलकर बना लेंगे।”
बुलबुल के कमरे से बाहर जाते ही निर्मला ने सोचा, मैं बुलबुल को दोष क्यों दे रही हूँ, उसने तो गलती का एहसास होते ही उसका रास्ता बदल लिया और शादी भी कर ली। गलती तो प्रतीक की है, जिसे अब भी उसकी गलती का एहसास नहीं है। तभी तो बुलबुल से कह रहा था 'मैं अभी भी तैयार हूँ चलो मेरे साथ,’ कम से कम बुलबुल वैसी नहीं है।
दो-तीन दिन गोविंद और बुलबुल के साथ रहकर निर्मला अपने पापा मम्मी के पास गाँव आ गई। यहाँ आने के बाद उसे पता चला कि वह तो सच में प्रेगनेंट है। उसने अपनी सासू माँ कमला से तो बस यूं ही कह दिया था कि उसकी माँ का फ़ोन आए तो ऐसा कह देना कि वह प्रेगनेंट है और डॉक्टर ने आराम करने के लिए कहा है।
यहाँ आने के बाद उसकी माँ आरती ने कहा, “निर्मला अब तुम आराम करना। डॉक्टर ने कहा है ना तुम्हें आराम करने के लिए।”
“हाँ मेरी माँ मैं तो आराम कर लूंगी लेकिन तुम्हें भी अपना ख़्याल रखना है, कितनी पतली हो रही हो। हमारी देखरेख के लिए हम किसी को रख लेते हैं।”
“हाँ ठीक है बेटा, अब मुझसे भी ज़्यादा काम करते नहीं बनता, थक जाती हूँ। अरे तुझे बुलबुल कैसी लगी निर्मला?”
“बहुत अच्छी है माँ, सुंदर भी है, स्वभाव से भी अच्छी है। उसका चेहरा भी हमेशा ख़ुश दिखाई देता है।”
निर्मला ने अपनी माँ को तो ऐसा कह दिया परंतु उसके मन से यह डर जा ही नहीं रहा था कि यह राज़ यदि किसी को पता चल गया तब क्या होगा।
आरती ने फिर प्रश्न किया, “दामाद जी क्यों नहीं गए तेरे साथ गोविंद के घर उनसे मिलने। उन्होंने तो अभी तक गोविंद का घर भी नहीं देखा है।”
“कैसे आते माँ, वह टूर पर गए थे और गोविंद अभी-अभी तो शिफ्ट हुआ है। घर भी देख लेंगे और मिल भी लेंगे।”
बातें करते हुए दोनों माँ बेटी नींद की आगोश में चली गईं।
रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)
स्वरचित और मौलिक
क्रमशः