कल्पना से वास्तविकता तक। - 14 jagGu Parjapati ️ द्वारा कल्पित-विज्ञान में हिंदी पीडीएफ

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कल्पना से वास्तविकता तक। - 14



हर किसी को नापसंद करने की अक्सर कुछ न कुछ वज़ह होती है ,लेकिन पसंद कभी कभी कुछ सख़्श, कुछ बातें, कुछ लम्हे, कुछ जगह , यूँ ही बेवजह आ जाया करते है।

गोलक्षी मिशेल को बिलकुल भी पसंद नहीं करते थे उसकी वजह भी थी उन सबके पास क्यूंकि उसने उनसे उनकी आजादी छीन ली थी। लेकिन अब धीरे धीरे उन गोलक्षियों को पृथ्वीवासी और विथरपी वासी पसंदआने लगे थे, कोई ठोस वजह नहीं थी बस पसंद करने लगे थे। तभी तो वो गोलक्षी (मिशेल ) की बजाय उनका साथ देने को तैयार हो गए थे। वहीँ दूसरी और मिशेल को भी कोई गोलाक्षियों से कोई खास लगाव नहीं था ,लेकिन वो उनसे नफरत भी नहीं करता था, वो गोलक्ष को पसंद करता बस युहीं बेवजह।लेकिन उस से भी ज्यादा वो खुद को पसंद करता था, वो खुद से प्यार करता था सिर्फ और सिर्फ़ खुद से वो भी बेवजह ….

“क्लोन ?? वो भी नित्य का पर क्यों ?? आपने तो कहा था उसको मारना है तो फिर ??” बामी ने उत्सुकतावश मिशेल से पूछा।

“हाँ ,सही कहा मैं उसे पहले मारना चाहता था लेकिन अब नहीं , मैंने जितना उसके बारें में जाना, उस से मुझे उनकी शक्तिया काफी पसंद आई, तो मैंने सोचा क्यों ना उसकी शक्तियों को खुद के पास ही रख लिए जाये ना जाने कब काम आ जाएगी। “ मिशेल ने कुटिलता से हँसते हुए कहा।

“ आप तो जानते है न कि आप खुद के अंदर सिर्फ तीन क्लोन तक ही धारण कर सकते है , और ये आपका आखिरी क्लोन है..... ये सब तो चलो आप छोडो आपको पता है ना कि अगर आप उसका क्लोने खुद में धारण करते है तब आप...... “

“ बामी, तुम्हे क्या मैं बेवकूफ लगता हूँ, सब जनता हूँ मैं और अगर कुछ बोल रहा हूँ तो कुछ सोच समझ कर ही बोल रहा होऊंगा समझा ?? “ मिशेल ने बामी की बात बीच में ही काटते हुए थोड़ा गुस्से से कहा।

“ जी“ बामी ने थोड़ा डरते हुए कहा ,क्यूंकि वो जानता था कि गुस्से में मिशेल कुछ भी कर सकता है।

“ तो इसलिए अपना फालतू दिमाग चलाना बंद करो और जितना कहा है उतना काम करो। “ मिशेल ने भरपूर शांत भाव से कहा।

‘ जी “ बामी ने एक बार फिर से डरते हुए कहा, क्यूंकि बामी जानता था कि ये सिर्फ तूफान के पहले का सन्नाटा है। और तूफान कितना गहरा है उसका अंदाजा बामी से बेहतर और कौन लगा सकता था ,ये सोचते हुए बामी वहां से चला जाता है।

पिछला क्लोन मिशेल ने रेयॉन का बनाया था तब उसने पूरे गोलक्ष पर अपना कब्जा जमा लिया था।

और पहला क्लोन, वो पहला क्लोन भला बामी कैसे भूल सकता है..... बामी का मन आज बार बार अतीत में जा रहा था।. ......

वहीँ जहाँ बामी का भी एक हंसता खेलता परिवार हुआ करता था ,वो उसके दो भाई और उसके माता पिता सब कितनी ख़ुशी से एक छोटे से घर में रहते थे। कोई ज्यादा बड़ी बड़ी ख़्वाहिशें तो कभी थी ही नहीं उनमें से किसी की,,बस उसका बड़ा भाई ही था जो घर से दूर रहता था, बचपन से ही उसको चार दीवारें नहीं भाति थी, वो कभी कभी उन सब से मिलने घर आता था, उसके आने की सबसे ज्यादा ख़ुशी बामी को ही होती थी, क्यूंकि हमेशा ही उसका भाई जब भी घर आता था तो हमेशा बामी के लिए कुछ न कुछ लेकर ही आता था। घर में सब उसको जब भी मिलते तो हमेशा के लिए उस को उनके साथ रहने के लिए कहते थे, लेकिन उसको देखकर ऐसा कभी नहीं लगा था कि उसको घर वालों से कोई ज्यादा लगाव है. घर वालों से भी ज्यादा उसको ख़ुद के सपनो से लगाव था , उसको घर की चार दीवारों में घुटन होती थी। घुटन हो भी क्यों ना ? हमेशा से ही वो मुक्त वातावरण में रहता जो आया था।

आज भी बहुत दिनों बाद बामी का बड़ा भाई घर आया था ,नतीजन बारह वर्ष के बामी के पावं आज फिर जमीन पर नहीं थे, क्यूंकि अबकी बार भी वो उसके लिए एक तोहफा लेकर आया था।

“ये ले छोटे “ उसने बामी की तरफ हाथ बढ़ाते हुए अपनी भारी आवाज में कहा।

बामी ने नजर भर कर अपने भाई को देखा ,क्यूंकि बहुत समय बाद वो अपने भाई को देख रहा था ,आखिरी बार जब उसने अपने बड़े भाई को देखा था तब वो उतनी ही उम्र का था जितनी उम्र का बामी अब खुद है लेकिन अब वो बड़ा हो गया था , अब उसका शरीर जवानो की तरह भरा फुला हुआ था, उसकी आँखें अब बड़ो जितनी बड़ी हो चुकी थी। क्यूंकि गोलक्षियो की सबसे बड़ी ताकत उनकी आँखें ही होती है, उनके मन में पनपते हर भाव क सिर्फ उनकी आँखों के अलग अलग रंग देखने मात्र से पहचाना जा सकता था ,और एक समय तक उनकी आँखों का आकार भी बढ़ता रहता है ,छोटे बच्चों की आँखें काफी छोटी होती है, जैसे की इस वक़्त बामी की थी।

“ये तो बहुत सूंदर है बड़े भाई “ बामी ने तोहफा अपने हाथों में लेते हुए कहा , वो तोहफे को बड़ी गौर से देख रहा था ,वो एक गोलक्षी सैनिक की तरह लगती हुई सी मूर्ति थी जिसकी आँखें चमक रही थी , और उस मूर्ति के हाथ में एक तेज चमकती तलवार थी। गौर से देखने पर उसे वो कुछ कुछ अपने बड़े भाई जैसी लग रही थी ,वही आँखें ,व्ही आँखों की चमक, वही हाथों के बढे हुए नाखुन ,और सबसे बड़ी बात उसकी आखिरी ऊँगली भी उलटी ही थी…. बिल्कुल उसके भाई की ऊँगली की तरह। बामी उसको देखकर बहुत खुश हुआ था कि अब भले ही उसका भाई साथ हो या ना हो लेकिन ये मूर्ति हमेशा उसके साथ रहेगी।

“तभी तो लेकर आया हूँ छोटे क्यूंकि मैं जानता था कि मेरे बामी को ये जरूर पसंद आएगी। “ उसने मुस्कुराते हुए उसके सर पर हाथ फिराते हुए कहा।

“ आप बहुत अच्छे हो बड़े भैया ,रुको मैं अपने सब दोस्तों को भी दिखा कर आता हूँ। “बामी की आँखें ख़ुशी से नीली हो गयी थी ,और वो ये कहते कहते ही ख़ुशी से उछलता हुआ वो मूर्ति लेकर उस पेड़ जैसे घर से बाहर चला जाता है।

उसका भाई और साथ में खड़े उसक माता पिता सब बामी को जाता हुआ देखते रहते है।

“ बिल्कुल ही पागल है ये लड़का तो “ उसके भाई ने उसको जाता हुआ देखकर मजाक के लहज़े से कहा।

“मैं तो बनाने वाली की ही शुक्रगुजार हूँ कि वो भोला है,क्यूंकि पागल है तभी अब तक हमारे साथ है, वरना दिमागदारों को किसकी पड़ी होती है, ये भी अगर समझदार होता तो कबका छोड़ चुका होता हम सबको तेरी ही तरह.. …. “ उसकी माँ ने उसपर एक तीखा व्यंग्य कसते हुए कहा। उसने एक बार को अपनी माँ की तरफ एक नीरस नजर से देखा। वो अपनी माँ का स्वभाव जानता था ,अक्सर उसको घर आने पर, हर बात के लिए कुछ ना कुछ ऐसा ही सुनने को मिलता रहता था।

“ क्या है, अरे इतने दिन बाद बच्चा वापिस लौटा है,और तुम आते ही उसपर बरस गयी हो ,कुछ तो लिहाज़ करो वक़्त का। “ बामी के पिता ने कहा।

सब सुनकर कुछ पल को वहां एक चुभने वाली शान्ति छा गयी ,और कुछ देर बाद बामी का भाई वहां से हवा में बने उस पेड़ से दूसरे पेड़ की दिशा में चला गया था , लेकिन उसके दिल की टिस वहीँ कहीं छूट गयी थी।

कई दिन ऐसे ही एक दूसरे से मन मुटाव ठीक करने और खुशियां बांटने में बीत गए थे। बामी अक्सर अपने भाई द्वारा दी हुई मूर्ति के साथ खेलता रहता था।

उस मूर्ति से बामी को धीरे धीरे एक अलग ही जुड़ाव महसूस होने लगा था। एक दिन वो उसके साथ खेल रहा था कि तभी उस मूर्ति की तलवार की धार, उसके नाजुक हाथ को एक घाव देते हुए निकल गयी । जब बामी ने अपने हाथ की तरफ देखा तो उसकी आँखें दर्द से काली पड़ चुकी थी। वो दौड़ता हुआ अपने भाई के पास गया जो अक्सर उनके दूसरे पेड़ रूपी घर में ही समय बीताता था। गोलक्षियों के घर सिर्फ बाहर से ही देखने में पेड़ जैसे लगते थे लेकिन अंदर तो मानो एक गुफ़ा से होते हुए वो पुरे आम घर जैसे ही लगते थे।

“भैया देखो ना ,इस मूर्ति ने क्या लिया मेरे साथ “बामी ने अपनी ऊँगली आगे करते हुए कहा , जिसपर तलवार के दिए घाव की वजह से वहां की त्वचा और ज्यादा मोटी हो गयी थी और उस जगह की त्वचा का रंग भी और ज्यादा गहरा हो गया था।

“ अरे ये कुछ नहीं हुआ है छोटे, ये देख ये धीरे धीरे अपने आप ठीक भी हो जायेगा ,मैंने इसको इस तरह सिर्फ़ तेरे लिए बनवाया है ताकि ये कभी मेरे छोटे को घाव नहीं दे सके । “ उसके भाई ने बामी की ऊँगली की तरफ इशारा करते हुए कहा। जब बामी ने देखा तो वहां की त्वचा वाकई ही अपने असली आकार और रंग को धीरे धीरे फिर से धारण कर रही थी। बामी रोमांच से उसको होते हुए देखता रहता है।

“अरे हाँ भैया, ये तो सच में ठीक हो गया है ,आप सच में सबसे अलग हो भैया “ बामी ने मुस्कुराते हुए कहा ,उसकी आँखें एक बार फिर से ख़ुशी से नीले रंग में चमक रही थी। उसका भाई भी उसको देखकर मुस्कुरा दिया।

अब भी बहुत बार बामी के शरीर पर कहीं नाकहीं उस मूर्ति की तलवार घाव देती ही रहती थी और बामी उत्सुकता से उसके बने घाव को भरते हुए देखते रहता था। बामी के भाई को भी उसके घाव की हर खबर रहती थी ,वो भी बस ये सब देखकर मुस्कुरा देता था।

.......

“बामी” किसी ने खोये हुए बामी के कंधे पर हाथ रखकर उसको आवाज देते हुए कहा।

बामी अचानक से ही अपनी पुरानी यादों से बाहर आता है ,जब अपनी आँखें उठाकर वो देखता है तो उसके सामने मिशेल खड़ा हुआ था।

“ कहाँ खो गया है तू , जो काम दिया है उसको ध्यान से कर ना “ मिशेल ने अपनी कर्कश आवाज में कहा।

“ जी बस वही कर रहा था मैं “ उसने तेजी से अपना काम करते हुए कहा।

बामी की नजरे झुकी हुई थी लेकिन उसकी आँखों का रंग लाल हो चूका था। क्यूंकि हर किसी को नापसंद करने की कोई न कोई वजह जरूर होती है।

क्रमशः
यह भाग आपको कैसा लगा हमें समीक्षा लिखकर ज़रूर बताइए....और कहानी पूरी होने तक बने रहिए आपकी अपनी जग्गू के साथ...मिलते हैं अगले भाग पर..!🤪

© jagGu prajapati ✍️