Dream to real journey - 6 books and stories free download online pdf in Hindi

कल्पना से वास्तविकता तक। - 6


नोट:-1. भाग पूरी तरह समझने के लिए आप सब पिछले भाग अवश्य पढ़ ले।

2. हमारे द्वारा इस कहानी में दिए गए सभी वैज्ञानिक तथ्य कल्पना मात्र हैं।

पिछले भाग में आपने पढ़ा कि उन सब को वो उल्टा झरना दिख जाता है और वो वहां से बस कुछ ही दूरी पर खड़े थे। अब आगे.....

उन सब के चेहरे पर झरने को देखकर एक अलग ही चमक आ जाती है, सब एक दूसरे की तरफ जीत से भरी मुस्कान से देखते हैं और फिर उस तरफ बढ़ जाते है, जहां उनकी मंजिल का रास्ता उनको ले जाने की कब से कोशिश कर रहा था।

"अरे ये तो सच में बेहद ख़ूबसूरत लग रहा है, अगर ये हमारी धरती पर होता तो शायद दुनिया का आठवां अजूबा होता।" झरने को एकटक निहारते हुए यूवी कहती है।

“सही कह रही है यार, मैंने आज से पहले ऐसा कुछ नहीं देखा, पता नहीं और क्या क्या छुपाए है ये दुनिया अपने अंदर।" कल्कि ने भी आँखों में चमक किये सामने देखते हुए कहा।

“सुंदर तो वो है, लेकिन समस्या ये है कि हम सब को सिर्फ उसको दूर से ही नहीं निहारना है, बल्कि उसके पास पहुंचना है और हालात देख कर लग नहीं रहा, कि हम वहां आसानी से पहुंच सकते हैं।"

नीचे की गहराई की तरफ देखते हुए नेत्रा कहती है। तब सबका ध्यान उस तरफ जाता है। वो रास्ता जितना छोटा लग रहा था उतना छोटा भी नहीं था, वो लगभग तीस फीट की ऊंचाई पर खड़े थे, अब पहले तो वहां सी नीचे उतारना ही उनको एक चुनौती लग रही थी।

तभी नित्य और ग्रमिल जो अब तक चुपचाप खड़े थे, उन तीनों को देख कर मुस्कुरा देते हैं। उन तीनों को इतना परेशान देखकर ग्रमिल नेत्रा से कहता है।

" शायद आप सब भूल गए हैं कि ये सब आप के लिए नया है हमारे लिए नहीं हम तो यहां तक बहुत बार गए हैं।

“हां सही कहा,और आप सबको ये जितना मुश्किल लग रहा है उतना मुश्किल भी नहीं है, उस तरफ देखिए आप, हम सबने वहां जाने के लिए भी छोटा सा रास्ता बनाया हुआ है।" नित्य एक किनारे की तरफ हाथ से इशारा करते हुए कहता है।

नेत्रा उस तरफ देखती है ,तो वहां से एक टूटा फूटा सा रास्ता उसको नजर आता है, वो भी उतना खास तो नहीं था लेकिन कहते हैं ना कि कुछ नहीं से थोड़ा सही,तो उन्हें वो रास्ता भी एक सुकून भरी राहत दिलाने के लिए काफी था। उसको देखने से लग रहा था मानो वो रास्ता वहां मौजूद पेड़ की लकड़ियों को काट कर बनाया गया था।

वो पांचों उस तरफ बढ़ जाते हैं। चलते चलते नेत्रा ग्रमिल से पूछती है।

” ग्रमिल, अच्छा एक बात बताओ।" नेत्रा ने अपने साथ चल रहे ग्रमिल की तरफ देखते हुए पूछा।

" जी पूछिए ।" ग्रमिल ने भी उसके साथ चलते हुए कहा।

" तुमने अभी कहा था कि तुम यहां पहले भी बहुत बार आ चुके हो, तो फिर तुम्हे तो ये रास्ता पहले से ही पता होगा, तो तुम क्यूं नहीं ले आए हमें यहां, मेरा मतलब हमें बड़े सूरज का पीछा करने की क्या जरूरत है।"

" हां ये सच है कि मैं पहले भी बहुत बार यहां आ चुका हूं, लेकिन बिना सूरज के ये रास्ता किसी को याद नहीं रहता, आपने खुद भी देखा होगा कि यहां आने का रास्ता बहुत कठिन है,अगर कोई प्रयास भी करता है तो वो बीच में ही उलझ कर रह जाता है। इसलिए अगर कोई भी यहां आना चाहता है तो वो सूरज का ही इंतजार करता है।" ग्रमिल ने कहा।

“ ओह अच्छा।" नेत्रा ने कहा।

“लीजिए हम पहुंच गए।" नित्य ने सामने देखते हुए कहा।

"यार तुम सब आपस में ही बाते करते रहोगे या हमें भी बताओगे की क्या बाते चल रही है तुम सबके बीच।" कल्कि ने सर खुजाते हुए उन सबको देखा।

" हां सही कहा, ये नेत्रा खुद ही पता नहीं कौनसा डोरैमी गाती रहती है,हमें तो भूल ही जाती है कि हम भी साथ है।" युवी ने भी कल्कि की बात में अपनी बात जोड़ते हुए कहा।

“ कुछ बात नहीं कर रही मेरी मां, चलो तुम दोनों अब नीचे उतरना है।" नेत्रा ने हल्का सा जवाब देते हुए कहा।

" ईई ये कितना गन्दा रास्ता है, मेरे तो सारे कपड़े गंदे हो जाएंगे अगर हम यहां से गए तो,और बाप रे ये तो बहुत गहरा है।" युवी रास्ते की तरफ देखकर कहती है। जो वहां की सुनहरी मिट्टी में रंगा हुआ था।

"आहाहा, मेले छाले कपड़े गंदे हो जाएंगे, ओह फ़ैशन की देवी हम यहां किसी होटल में खाना खाने नहीं जा रहे हैं,जो तुझे यहां भी कपड़ों की पड़ी है l" कल्कि उसकी नकल करते हुए कहती है।

" तू ऐसे क्यूं करती है हमेशा,क्या गलत कहा मैंने? जो सच है तो है जब इसको पकड़कर हम नीचे उतरेंगे तो कपड़े तो गंदे होंगे ही,लेकिन नहीं तुझे तो हमेशा बस मुझे .."

" यूवी कल्कि तुम दोनों फिर से शुरू हो गई, तुम दोनों को तो बस लड़ने का बहाना चाहिए होता है।कितनी बड़ी हो गई हो दोनो फिर भी बच्चों की तरह लड़ती हो।" युवी की बात बिकग में काटते हुए नेत्रा उनको घर कर देखती है।

" यार मैं इसको कुछ थोड़ी कहती हूं ये खुद उल्टा उल्टा बोलती है मुझे" युवी चेहरा उतारते हुए कहती है।

" कल्कि सॉरी बोल यूवी को चल" नेत्रा ने युवी का उतरा सा चेहरा देखकर कल्कि से कहा।

" मैं क्यूं सॉरी बोलूं ,मैंने कुछ गलत थोड़ी कहा था।" कल्कि ने कंधे उचकाते हुए कहा।

" हूं कल्क ,बोला ना मैंने" नेत्रा उसकी तरफ थोड़े गुस्से से देखते हुए कहती है।

"सॉरी यश्वी जी" रूखेपन से इधर उधर देखते हुए कल्कि यूवी को कहती है।

" अब खुश ,अब चले ।" कल्कि हाथ जोड़ते हुए कहती है।

" हां चलो" युवी ने चहकते हुए कह।

"ग्रमिल यहां से नीचे उतरना कैसे हैं?" नेत्रा ने फिर से अपना ध्यान आगे लगाते हुए कहा।

" वो तो बहुत आसान है, आप अपना एक पांव यहां रखिए दूसरा यहां और इस वाली को अपने दोनो हाथों से पकड़कर नीचे की तरफ देखते हुए उतर जाइए।" ग्रमिल ने सामने हाथ से रास्ता बताते हुए कहा।

" ये तो बहुत मुश्किल लग रहा है।" नेत्रा ने घबराते हुए कहा।

" आप डरिए मत नेत्रा जी, मैं और नित्य आप सब की मदद करेंगे ना उतरने में, देखो पहले नित्य आपको नीचे जाकर दिखता है, फिर जैसे वो जाएगा उसी तरह आप सब भी चले जाना।"

ये कहते हुए ग्रमिल नित्य को इशारे से नीचे जाने के लिए बोलता है। नित्य उसके कहते ही, इतनी जल्दी जल्दी नीचे उतर जाता है, मानो कोई बंदर पेड़ की एक डाल से दूसरी डाल पर छलांग लगा रहा हो। वो तीनों उसको देखती ही रह जाती हैं।

" अरे इसमें कौनसी बड़ी बात है, यहां से तो मैं भी जा सकती हूं,देखो तुम सब।"

इतना कहते कहते कल्कि भी बड़ी आसानी से नीचे पहुंच जाती है। नेत्रा में भी कल्कि को नीचे देखकर हिमत्त आ जाती है,डरते डरते वो भी धीरे धीरे नीचे आ है। लेकिन यूवी का तो डर से गला सूखा जा रहा था, वो जाने के लिए नीचे देखती, फिर डर से अपने कदम पीछे हटा लेती। कल्कि और नेत्रा दोनो ही यूवी को नीचे से आवाज लगाना शुरू कर देती हैं।

" यूवी आ जाओ तुम भी बहुत आसान है कुछ नहीं होगा।"

" मैं नहीं आ रही तुम सब जाओ आगे, मुझसे नहीं होगा।" उपर से ही चिल्ला कर कहती है। यूवी का चेहरा उतर गया था। ग्रमिल उसको इस तरह से देख कर कहता है।

" बर्ले मयरू कस्ती, जोंटि आस्तू हो,मा सु।"( तुम डर क्यूं रही हो,बहुत आसान है, मैं हूं ना।)

ग्रमिल युवी से कहता है, यूवी ग्रमिल की तरफ देखती है लेकिन उसको कुछ भी समझ नहीं आता। फिर ग्रमिल उसको इशारे से समझाने की कोशिश करता है। वो बहुत हद तक समझ भी जाती है फिर वो भी उसको इशारे से ही ये बताने की कोशिश करती है कि उसको ऊंचाई से बहुत डर लगता है। ग्रमिल उसको फिर से बताता है कि कुछ नहीं होगा, लेकिन यूवी कुछ समझने को तैयार ही नहीं थी। वो वहीं नीचे बैठ जाती है। ग्रमिल पहले उसकी तरफ देखता है फिर नीचे जाने के लिए बने उस रास्ते की तरह, फिर अचानक से वो यूवी की तरफ बढ़ता है और उसका हाथ पकड़ कर उसको खड़ा होने को कहता है। यूवी हैरानी से आंखें फैला कर उसकी तरफ देखते हुए उठ जाती है। ग्रमिल उसको धीरे धीरे रास्ते की पास ले आता है, यूवी गर्दन को ना में हिलाकर उसको जाने से मना करती है। लेकिन ग्रमिल पहले खुद एक पांव नीचे रखता है और एक हाथ से यूवी को तथा दूसरे हाथ से लकड़ी को पकड़ कर रखता है। वो धीरे से यूवी को भी अपने साथ साथ नीचे कदम रखने का इशारा करता है, यूवी भी चुप चाप जैसा वो कहता है वैसे ही करती है और कुछ देर बाद वो दोनो नीचे पहुंच जाते हैं।यूवी अब भी ग्रमिल की तरफ एकटक देखे जा रही थी। जैसे ही ग्रमिल उसका हाथ छोड़ता है तो वो एकदम से अपनी पलकें झपकाती है, मानो किसी गहरे सपने से जागी हो, इधर उधर देखने के बाद वो ऊपर देखती हुए बोलती है।

" अरे मैं मैं.. नीचे कैसे ? मैं तो उपर थी ना।"

" ओ मैडम दिमाग उपर ही रख आई क्या? अभी खुद ही तो नीचे आई हैं तू वो भी ग्रमिल का हाथ पकड़ कर।" कल्कि रूखे पैन से कहती है।

"क्या आ?,लेकिन मुझे कुछ भी याद नहीं है सच में" युवी दिमाग पर जोर डकार सोचते हुए कहती है।

" लो जी ये तो गई।" कल्कि ने दोनों हाथ पटकते हुए अजीब से लहजे से कहा क्यूनि वो अभी भी युवी से उसी पुराणी बात पर गुस्सा थी।

"एक मिनट रुक कल्कि तू……ग्रमिल यूवी को तो ऊंचाई से बहुत डर लगता है तो फिर वो तेरे साथ आने के लिए मान कैसे गई,और चलो मान गई तक तो ठीक है लेकिन अब उसको कुछ याद ही नहीं है।" नेत्रा ने कल्कि को चुप करते हुए ग्रमिल से पूछा।

" वो दरअसल हमने उनको बंधित कर दिया था, मतलब वो जब मैंने उनका हाथ पकड़ा था, तो उनके दिमाग से मैंने खुद को जोड़ दिया था। तो जो मैं उनके दिमाग से करवाना चाहता था वो आसानी से करवा सकता था,और जब उन्होंने मेरा हाथ छोड़ा तो वो सब भूल गई, क्यूंकि वो नीचे अपने नहीं मेरे दिमाग की वजह से आई थी, तो नीचे आने वाली बात बस मेरे दिमाग में है उनके दिमाग में नहीं।" ग्रमिल ने सहजता से अपनी बात को नेत्रा को समझते हुए कहा।

"ओह,तुम्हारा मतलब तुमने इसको……" नेत्रा कहते कहते बीच में ही रुक जाती है। फिर मन ही मन सोचती है। (रेयोन अंकल सही कहते हैं नासिन्न हमसे बहुत आगे हैं बस उन्हें खुद इस बात का नहीं पता है।)

" ए नेत्रा , कहां खो गई? और क्या बताया इसने ?" कल्कि नेत्रा के कंधे पर हाथ से हिलाते हुए पूछती है।

" हूं, हां ,कहीं नहीं,तुम्हे पता है ग्रमिल ने यूवी को कुछ समय के लिए हिप्नोटाइज किया था, इसलिए ही उसको कुछ याद नहीं है।" नेत्रा धीरे से उसके कान में बताती है।

"हें,क्या? सच में? यार ऐसे तो ये हमें भी कभी भी हिप्नोटाइज करके कुछ भी करवा सकते हैं।" कल्कि ने भी अपना डर जाहिर करते हुए नेत्रा की तरफ देखा।

"वही तो मैं सोच रही हूं कि ये चाहें तो हमसे कुछ भी करवा सकते हैं।" नेत्रा ने भी खोये से स्वर में कहा।

"हां यार, हमें बच कर रहना चाहिए इनसे" कल्कि ने भी कहा।

”तुम दोनों कबसे कान में क्या खुसुर फूसुर कर रही हो , मुझे भी बताओगी कुछ ?" युवी ने उनकी खुसुर फुसुर से झुंझलाते हुए कहा।

" वो वो हम ये बात कर रहे थे कि…."

" कि अगर आगे भी ऐसे ही ऊंचाई से आना पड़ा तो तू क्या सदमे में दोबारा अपनी यादाश खो देगी ?" नेत्रा ने कल्कि की बात बीच में ही काटते हुए कहा!

" हां, यही बात थी और कुछ भी नहीं ,और क्या बात करते हम हेंना??"कल्कि झूठा सा हंसते हुए कहती है।

"पक्का ना ?" युवी ने आँखे बड़ी करते हुए कहा ।

"हां पक्का यार , तू भी ना बस ………अब चलो आगे भी जाना है या यही खड़े रहने का इरादा है।" नेत्रा सबकी तरफ देखते हुए कहती है। सब उसकी बात सुनकर झरने की तरफ बढ़ जाते हैं जो वहां से लगभग सौ कदम की दूरी पर था।

"तू पागल है क्या ? तुझे तो पता ही है कि युवी कितनी डरपोक है और अगर उसको ये बात पता चल गई कि उसको हिप्नोटाइज किया था, तो वह तो आगे ही नहीं जाएगी इसलिए उसको यह बात मत बताना समझी।" कल्कि को धीरे से सिर पर हाथ से मारते हुए कहती है।

"ओह हां, ये तो मैंने सोचा ही नहीं था।ठीक है नहीं बताऊंगी।" कल्कि ने अपने सर पर अपना हाथ फेरते हुए कहा ।

"गुड अब चल।" नेत्रा कल्कि को आगे का रास्ता दिखाते हुए कहती है ।

वो पांचों थोड़ी देर बाद झरने के पास पहुंच जाते हैं। सच में वो झरना बहुत अलग था और जितना अलग था उतना ही खूबसूरत था, ऊपर की तरफ जाती हर बूंद ऐसी थी मानो किसी समुंदर से मोती खुद ब खुद उपर की तरफ जाने को लालायित हो उठे हों, और उनकी चमक धूप में रखी चांदी से भी कहीं ज्यादा अधिक लग रही थी। आस पास अलग अलग तरह के पेड़ अपनी आकृतियां बदलने की वजह से वहां के दृश्य को और भी मनमोहक बना रहा था। वो सब घूम घूम कर हर रंग को अपनी आंखों में कैद कर रहे थे।

"यहां तक तो आ गए हैं लेकिन जो हमें चाहिए वो कहां है ?" नेत्रा घूमते हुए चारों ओर देखते हुए कहती है ।

"अरे वो रियोन अंकल ने बताया तो था ना कुछ कि इसके नीचे है,जो देखने में थोड़ा चमकदार पत्थर जैसा लगता है।" युवी ने रेयॉन अंकल की बात याद करते हुए कहा.

"वो तो मुझे भी याद है यूवी,लेकिन उसको ढूंढे कैसे?" नेत्रा अब भी वहाँ की हर चीज को गहराई से देख रही थी.

"आपको वो जल्दी ही ढूंढना होगा नेत्रा क्यूंकि वो देखो ,वो अब वापिस जाने की तैयारी में हैं, इसके वापिस जाने से पहले हमें उसको ढूंढना ही होगा, क्यूंकि अगर अब ये चला गया तो हम चाहे उसको ढूंढ भी लें तब भी कोई फायदा नहीं होगा।"ग्रमिल बड़े सूरज की तरफ इशारा करते हुए कहता है।

" ओह हां , ये तो हम भूल ही गए थे कि उसपर रोशनी डालना भी तो जरूरी है। हमें जल्दी ही उसको ढूंढना होगा।" नेत्रा ने हड़बड़ाते हुए कहा.

" हम सब ऐसा करते हैं अलग अलग जगह ढूंढते हैं।और जिसको भी कुछ अलग सा मिले तो वो सबको बता देना।" कल्कि ने सबको सुझाव दिया.

"गुड आइडिया,चलो फिर सब अलग अलग हो जाओ,और अपने अपने तरीके से ढूंढो।" नेत्रा ने अँगूठा दिखाकर अपनी सहमति जताते हुए उसको देखा.

उसके इतना कहते ही सब इधर उधर झुक झुक कर चारों ओर ढूंढना शुरू कर देते हैं।यूवी और ग्रमिल एक तरफ ढूंढ रहे थे,नित्य ,पीछे की तरफ था , उस से थोड़ी ही दूर कल्कि अपने हाथो से वहां की झाड़ियों जैसी घास को हटा कर देख रही थी। वहीं नेत्रा आगे की तरफ ढूंढ रही थी।थोड़ी देर बाद कुछ भी ना मिलने की वजह से, सब नाउम्मीदी के साथ इकठ्ठे हो जाते हैं।

"किसी को कुछ मिला क्या ?" नेत्रा ने सबसे पूछा.

सब एक साथ ना में गर्दन हिला देते हैं और उदास से वहीं से बस उस बहते झरने को देखते रहते हैं। नेत्रा झरने से थोड़ी ही दूर पहाड़ का सहारा लेकर खड़ी हो जाती है। निराशा उसके चेहरे से साफ झलक रही थी।

"भगवान जी आप ही हेल्प कर दो ,हम तो एक बार कोशिश कर चुके हैं ।ये मेरा नहीं आपके दो ग्रहों का सवाल है। कुछ तो इशारा कीजिए आप।" नेत्रा मन ही मन बुद्बुदा रही थी.

"नेत्रा तू फिर से परेशान है ?" कल्कि उसके पास आते हुए कहती है।

" नहीं तो किसने कहा,हम तो अपनी तरफ से कोशिश की है ना ,तो बस दोबारा ढूढते है और देखना अबकी बार वो मिल ही जाएगा।" नेत्रा ने उस से आँखें चुराते हुए कहा ।

" ओह अब मुझसे भी झूठ, अगर परेशान नहीं है तो फिर ये नाखून से मिट्टी क्यूं कुरेद रही हैं?" कल्कि उसके हाथ की तरफ आंखों से इशारा करते हुए कहती है, जिससे नेत्रा पहाड़ से मिट्टी खरोच रही थी।

" मैडम बचपन से जानते है तुझे, इतना तुझे खुद का नहीं पता जितना हमें तेरा पता है।" कल्कि फिर से अपनी बात पूरी करते हुए नेत्रा की तरफ देखती है ।

नेत्रा भी जब अपने हाथ की तरफ देखती है तब उसको पता चलता है कि वो परेशानी में कब से मिट्टी निकाल रही है। वो अपना हाथ नीचे कर लेती है। वो जैसे ही हाथ नीचे करती है तो कल्कि का ध्यान उस जगह पर जाता है, क्यूंकि जहां से नेत्रा सुनहरी मिट्टी को हटा रही थी ,वहां से कुछ अजीब सा रंग उभर आया था, जो धीरे धीरे पिघल कर नीचे गिर रहा था और उस जगह से मिट्टी लगभग पूरी तरह हट चुकी थी। जिसकी वजह से आसानी से अंदर देख पा रहे थे। कल्कि आंखो ही आंखों में नेत्रा को भी पीछे देखने के लिए कहती है। नेत्रा भी जब पीछे मुड़कर देखती है तो हैरान हो जाती है। कल्कि उन सबको भी आवाज देकर वहां पर बुलाती है। वो सब भी वहां बने उस छेद के अंदर देखने लग जाते हैं।
" इसका मतलब हमें इस पहाड़ की सारी मिट्टी हटानी पड़ेगी तब जाकर हम उस सुनहरी पत्थर तक पहुंच सकते हैं।" कल्कि ने हालातों हल्का सा अंदेशा लगाते हुए कहा।

" लेकिन पूरी मिट्टी अगर हटाने लगे तो बहुत समय गुजर जाएगा लेकिन हमारे पास इतना समय नहीं है, उस सूरज के यहां से जाने से पहले उसकी रोशनी इस पत्थर पर पड़नी चाहिए।" नेत्रा ने उदासी और जल्दी में कहा ।

" तो फिर अब? अब हम क्या करेंगे??" युवी ने भी मायूस सा चेहरा बनाते हुए कहा ।

" आइडिया ,तुम सब ऐसा करो कि सिर्फ इतनी मिट्टी हटाओ कि हम बस उस पत्थर को यहां से देख पाए।" कल्कि ने कहा ।

" लेकिन उस से क्या होगा, हमें तो उस पर सूरज की रोशनी डलवानी है। और जब तक वह हमारे हाथ में नहीं होगा तब तक यह संभव नहीं है।" नेत्रा ने अपने दिमाग पर जोर डालते हुए कहा ।

कल्कि:-"मैडम, फिजिक्स कब काम आएगी , लॉ ऑफ रिफ्लेक्शन नहीं सुना क्या ??तुम बस मिट्टी हटाओ ,तब तक मैं और इंतजाम करती हूं, और जितना जल्दी हो सके उतना जल्दी करो।"

कल्कि के इतना कहते ही सब वहां से मिट्टी हटाने में लग जाते हैं। थोड़ी ही देर बाद उन सबको वहां से एक बहुत बड़े आकार का पत्थर नजर आता है, जो बिल्कुल सुनहरी तो नहीं था लेकिन उसका रंग पहचानना मुश्किल था। इधर कल्कि अपने बैग से कुछ ढूढने में लगी हुई थी। नेत्रा जल्दी-जल्दी कल्कि को बुलाती है। कल्कि उसको देखती है। फिर कहती है।

" परफ़ेक्ट,नेत्रा तू ऐसा कर तेरे जिस हाथ में कंगन है उस हाथ को बिल्कुल इस पत्थर के सामने कर।"

नेत्रा जिस तरह से कल्कि कहती है उस तरह से ही अपने हाथ को आगे ले आती है। सब चुपचाप कल्कि को देख रहे थे।कल्कि अपने हाथ में पकड़े हुए दो आईनों में से एक आईना नेत्रा के दुसरे हाथ में इस तरह से पकड़ा देती है कि उस पत्थर से जितनी रोशनी निकले उसका कुछ अंश नेत्रा के हाथ में डाले कंगन पर पड़ जाए। और दूसरे आईने को अपने हाथ में पकड़ कर वह सूरज से रोशनी को अलग-अलग एंगल से उस पत्थर पर डालने की कोशिश करती है। कुछ देर बाद दोनों आईने इस तरह से होते हैं कि पत्थर से आ रही रोशनी सीधी नेत्रा के हाथ में डाले कंगन पर पड़ती है! रोशनी के एक स्पर्श मात्र से ही नेत्रा के कंगन से एक अलग ही तेज उत्पन्न होना शुरू हो जाता है। वह रोशनी इतनी तेज होती है कि सबकी आंखें बंद होना शुरू हो जाती है नेत्रा सबको जोर जोर से उस कंगन को छूने के लिए कहती हैं। वह चारों उस कंगन के पास पहुंच चुके थे, लेकिन कल्कि के वहां से दूर होने की वजह से वह जल्दी ही उनके पास पहुंचने में असमर्थ थी। धीरे-धीरे कंगन की चमक बढ़ रही थी। उन सब ने उस कंगन को छू लिया था, बस कल्कि ही दूर खड़ी थी , उसको समझ नहीं आ रहा था कि वो क्या करें। फिर अचानक ही वह अपने पीठ पर टंगे बैग से पानी की बोतल निकालती है और भागते भागते उसका पानी उन सब की तरफ फेंकना शुरू कर देती है। रोशनी के साथ वह सब भी वहां से गायब हो चुके थे। शायद फिर से वो सब एक नए सफर पर पहुंच चुके थे।

तो दोस्तों अब आगे वो सब कौन सी नई चुनौतियों का सामना करने के लिए पहुंचे हैं यह तो आपको अगले भाग में ही पता चलेगा, तब तक के लिए इंतजार कीजिए…… और हां आप सब को यह भाग कैसा लगा हमें समीक्षा करके जरूर बताएं। आपकी समीक्षाओं का इंतजार रहेगा धन्यवाद।

By:-jagGu Shayra✍️☺️

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