पौराणिक कथाये - 31- फल्गुन शुक्ल आमलकी एकादशी Devaki Ďěvjěěţ Singh द्वारा पौराणिक कथा में हिंदी पीडीएफ

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पौराणिक कथाये - 31- फल्गुन शुक्ल आमलकी एकादशी

आमलकी एकादशी फाल्गुन मास में मनाई जाती है इसलिए इसे फाल्गुन शुक्ल एकादशी भी कहा जाता है। साथ ही इसे रंगभरी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है

आमलकी एकादशी के दिन, भक्त आंवला के पेड़ का पूजन करते हैं। पौराणिक मानयताओं के अनुसार आंवले के पेड़ को भगवान विष्णु ने ही जन्म दिया था l ऐसा माना जाता है कि फाल्गुन की एकादशी वाले दिन स्वयं भगवान् विष्णु मां लक्ष्मी के साथ आमलकी के वृक्ष पर निवास करते हैं, इसलिये ऐसा माना जाता है कि इस दिन आमलकी के वृक्ष का पूजन, अर्चन और परिक्रमा करने से भगवान् विष्णु प्रसन्न होते हैं और अपने उपासक की सभी मनोकामनायें पूरी करते हैं। मान्यता है कि इस दिन आंवले के पेड़ के नीचे बैठकर नारायण की पूजा करने से एक हजार गौ दान के समान पुण्य की प्राप्ति होती है।


उड़ीसा राज्य में, इस एकादशी को 'सरबासम्मत एकादशी' के रूप में मनाया जाता है और भगवान जगन्नाथ और भगवान विष्णु के मंदिरों में भव्य उत्सव मनाया जाता है। ऐसा माना जाता है कि इस एकादशी वाले दिन भगवान् विष्णु का व्रत रखने वाले उपासक के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं। इसलिए इसे कुछ क्षेत्रों में 'पापनाशिनी एकादशी' के रूप में भी मनाया जाता है।

आमलकी एकादशी व्रत का महत्व
कहा जाता है कि आमलकी एकादशी के दिन आंवले का उबटन लगाना चाहिए और आंवले के जल से ही स्नान करना चाहिए। साथ ही इस दिन आंवले की पूजा करनी चाहिए। इसके अलावा इस दिन आंवला दान करने और खाने की भी सलाह दी जाती है।


आमलकी एकादशी की कथा- 1

कहते हैं कि भगवान विष्णु की नाभि से ब्रह्मा जी की उत्पत्ति होने के बाद ब्रह्मा जी के मन में जिज्ञासा हुई कि वह कौन हैं, उनकी उत्पत्ति कैसे हुई। इस प्रश्न का उत्तर जानने के लिए ब्रह्मा जी ने भगवान विष्णु की ताण्ड्य की। तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु जी ने ब्रह्मा जी को दर्शन दिए। विष्णु जी को सामने देखते ही ब्रह्मा जी की आंखों से आंसुओं की धारा बहने लगी। ब्रह्मा जी के आंसू भगवान विष्णु के चरणों पर गिरने लगे और उनके आंसुओं से आमलकी यानी आंवले का वृक्ष उत्पन्न हुआ। तब भगवान विष्णु ने ब्रह्मा जी से कहा कि आपके आंसुओं से उत्पन्न आंवले का वृक्ष और फल मुझे अति प्रिय रहेगा। जो भी आमलकी एकादशी के दिन आंवले के वृक्ष की पूजा करेगा उसके सारे पाप समाप्त हो जाएंगे और व्यक्ति मोक्ष प्राप्ति का अधिकार होगा। तभी से आमलकी एकादशी के दिन आंवले के पेड़ की पूजा की जाती है

एक अन्य कथा भी आमलकी एकादशी के संदर्भ में सुनी जाती है जो इस प्रकार से है।

आमलकी एकादशी- 2

पौराणिक कथा के अनुसार वैदिश नाम का एक नगर था, उस नगर में ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र रहते थे। वहां रहने वाले सभी नगरवासी विष्णु भक्त थे और वहां कोई भी नास्तिक नहीं था। उसके राजा का नाम था चैतरथ। राजा चैतरथ विद्वान थे और वह बहुत धार्मिक थे। उनके नगर में कोई भी व्यक्ति दरिद्र नहीं था। नगर में रहने वाला हर शख्स एकादशी का व्रत करता था। एक बार फाल्गुन महीने में आमलकी एकादशी आई। सभी नगरवासी और राजा ने यह व्रत किया और मंदिर जाकर आंवले की पूजा की और वहीं पर रात्रि जागरण किया। तभी रात के समय वहां एक बहेलिया आया जो कि घोर पापी था, लेकिन उसे भूख और प्यास लगी थी। इसलिए मंदिर के कोने में बैठकर जागरण को देखने लगा और विष्णु भगवान व एकादशी महात्म्य की कथा सुनने लगा। इस तरह पूरी रात बीत गई। नगर वासियों के साथ बहेलिया भी पूरी रात जागा रहा। सुबह होने पर सभी नगरवासी अपने घर चले गए। बहेलिया भी घर जाकर भोजन किया। लेकिन कुछ समय के बाद बहेलिया की मौत हो गई।

हालांकि उसने आमलकी एकादशी व्रत कथा सुनी थी और जागरण भी किया था, इसलिए वह राजा विदूरथ के घर जन्म लिया। राजा ने उसका नाम वसुरथ रखा। बड़ा होकर वह नगर का राजा बना। एक दिन वह शिकार पर निकला, लेकिन बीच में ही मार्ग भूल गया। रास्ता भूल जाने के कारण वह एक पेड़ के नीचे सो गया। थोड़ी देर बाद वहीं म्लेच्छ आ गए और राजा को अकेला देखकर उसे मारने की योजना बनाने लगे। उन्होंने कहा कि इसी राजा के कारण उन्हें देश निकाला दिया गया। इसलिए इसे हमें मार देना चाहिए। इस बात से अनजान राजा सोता रहा। म्लेच्छों ने राजा पर हथियार फेंकना शुरू कर दिया। लेकिन उनके शस्त्र राजा पर फूल बनकर गिरने लगे।

कुछ देर के बाद सभी म्लेच्छ जमीन पर मृत पड़े थे। वही जब राजा की नींद खुली तो उन्होंने देखा कि कुछ लोग जमीन पर मृत पड़े हैं। राजा समझ गया कि वह सभी उसे मारने के लिए आए थे, लेकिन किसी ने उन्हें ही मौत की नींद सुला दी। यह देखकर राजा ने कहा कि जंगल में ऐसा कौन है, जिसने उसकी जान बचाई है। तभी आकाशवाणी हुई कि हे राजन भगवान विष्णु ने तुम्हारी जान बचाई है। तुमने पिछले जन्म में आमलकी एकादशी व्रत कथा सुना था और उसी का फल है कि आज तुम शत्रुओं से घिरे होने के बावजूद जीवित हो। राजा अपने नगर लौटा और सुखीपूर्वक राज करने लगा और धर्म के कार्य करने लगा।