अंतर्मन (दैनंदिनी पत्रिका) - 3 संदीप सिंह (ईशू) द्वारा प्रेरक कथा में हिंदी पीडीएफ

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अंतर्मन (दैनंदिनी पत्रिका) - 3

प्रिय डायरी " अंतर्मन",
यार डायरी बुरा मत मानना, पर ये संदीप भी ना... दुनिया भर की बातों को तुमसे साझा करता है ।
भला व्यस्त इंसान औरों के विषय मे, समाज के प्रगति के विषयों मे अपनी सहभागिता क्यों रखेगा। अपना दिमाग क्यों खपायेगा।
पर तुम्हें तो पता है कि, अपना संदीप बचपन से ही कागज कलम का घनिष्ट मित्र है, और आने वाले समय मे भी रहेगा।फिर भला अपने हृदय की बात घनिष्ट मित्र से क्यों ना साझा की जाए।
अंतर्मन के माध्यम से मुझे स्नेह प्रदान करने वाले प्रतिलिपि परिवार के सभी सम्मानित परिजनों को सादर प्रणाम, स्नेह और ढ़ेर सारा प्यार।
आज भी मैंने डायरी के इस पन्ने मे ऐसे ही विषय पर अपने विचार साझा करने जा रहा हूँ।

आज मैंने अरु जी की मार्मिक और वात्सल्यपूर्ण रचना पढ़ी, बहुत ही सुंदर रचना है उनकी लिखी कहानी " थाम लो हाथ", यकीन मानिये नन्ही सी बच्ची की सुनी और अपनेपन को पुकारती मौन आंखे विवश कर देंगी, और आप नजरे नहीं हटा पाओगे।
बाध्यता नहीं किंतु अनुरोध है कि एक बार Jindal "अरु " जी की यह रचना अवश्य पढ़े।

WhatsApp पर आज प्रवीण जी से भी लेखन और प्रतिलिपि पर विमर्श हुआ।
प्रवीण जी की मुझे फॉलो करने वाली पोस्ट के पश्चात प्रतिलिपि मंच के कई वरिष्ठ लेखकों ने मुझे फॉलो किया, आप सभी का हार्दिक आभार।
जैसा कि शीर्षक से विदित है कि, आज चर्चा का विषय है -


घरेलू हिंसा, झगड़ालू बहू, सास ससुर के अधिकार


हम सभी एक व्यवस्थित समाज मे रहने वाले समान्य नागरिक है। वैसे महान समाजशास्त्री और प्रख्यात दार्शनिक अरस्तू ने कहा है - "मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। "

हम जिस समाज मे रहते है, उठते बैठते, खाते पीते है। इसमे एक मूल ठहराव घर नामक स्थान होता है।


घर
"ईंट और सीमेंट से बने ढांचे को घर नहीं कहते हुजूर, बल्कि घर वो स्थान होता है, जिसमें रहने वाले बुजुर्गों और बच्चे के चेहरे पर मुस्कान हो। "


जब घर की बात आती है, तो जाहिर सी बात है संबन्ध और संबंधी भी है इसमे। अब इनके समुह को परिवार कहते है।
परिवार मुख्यतः दो प्रकार के होते है (भारतीय सामाजिक व्यवस्था मे) -
1- संयुक्त परिवार - ऐसे परिवार जिनमे बुजुर्गों के साथ ही कई भाइयों का परिवार एक ही छत के नीचे सामुहिक रूप मे रहते है।
2- एकल परिवार - ये वह परिवार होते है, जहां पति पत्नी और उनके बच्चे (कई बार वृद्ध माता - पिता)।
इसका प्रचलन वर्तमान मे बहुतायत देखा जा रहा है।
अब मुझ जैसे व्यक्ती ने एक परिवार और देखा है इसी सभ्य समाज मे , जिसके सदस्य इन्हीं उपरोक्त (12) परिवारो से तिरस्कृत होते है।
जिसे हिंदी मे वृद्धाश्रम और अंग्रेज़ी मे ओल्ड ऐज होम (Old Age Home) कहते है हम सभी शिक्षित और सभ्य लोग।
ज्यादा बड़ी बात तो नहीं कहूँगा, किंतु सच यह है कि हमारी भारतीय संस्कृति और सभ्यता मे इस नाम का कोई स्थान उल्लेखित नहीं मिलता। हमने इसे समाज मे कब कहां और कैसे, किससे प्रेरित हो कर अंगीकार किया यह शोध का विषय है।
किंतु मेरी समझ से यह भारतीय संस्कृति के मूल मंत्र "वसुधैव कुटुम्बकम" और समाज पर काला धब्बा है। बाकी समझ अपनी अपनी... अपने विचारों से समझने को स्वतंत्र है सभी देशवासी।
घर के देवी देवताओं को दुखी रख आप कितने ही तीर्थ, चारो धाम कर लें कोई फल प्राप्त नहीं होगा।
घर परिवार पर चर्चा तो हो गई। अब आते है मूल तत्व संबंध और संबंधी, वो पारिवारिक संचालन मे बेहद अहम है।
एकल और सामुहिक परिवार की ही प्रभुता से संबंध अपने उच्चतम स्तर पर पहुंच गए परिणाम ये कि कुछ बुजुर्गों को घर मे तिरस्कृत किया जाने लगा और कुछ घर के बुजुर्ग वृद्धाश्रम मे पहुंच गए।
शांत चित्त हो सहजता से व्यतित होते जीवन मे कठिन क्षण तब आते है, जब घर के लड़के की शादी हो जाती है।
यदि बहू समझदार मिली तो समझो जीवन खुशहाल होगा। वहीं बहू आते ही हड़कंप मचाने लगे, अलग रहने की जिद पकड़े, माता पिता को अपमानित करे, हर वक़्त, हर बात पर लड़ने को तत्पर मिले। तो फिर उस व्यक्ती, परिवार को तो ईश्वर ही सम्हाल सकता है। कम से कम घर को दड़बा बनाने वालो के बस का तो नहीं ही होगा।
जो माता पिता सारी जिंदगी, अपनी भूख, अपने सपने,अपनी खुशिया सब न्योछावर कर देते है। थकान, उदासी, गरीबी, खुद के शौक का भी गला घोट देते है अपनी औलाद के लिए।
वहीं बेटा, बीबी के साथ मिल कर माँ बाप को तिरस्कृत करते है। लब्बोलुआब ये कि इनको अपने बेटे मे राम और श्रवण कुमार जैसे गुण चाहिए।
एक लड़की जो खुद माँ बाप की लाडली होती है, वहीं बहू बनते ही सास ससुर को दुश्मन मानने लगती है।
जब संस्कारों ने आत्महत्या कर ली, लोगों मे सुधरने के बजाय केस बेतहाशा बढ़ रहे है।
सो कानून को महसूस हुआ कि इस पर ध्यान दिया जाए।
आज दिल्ली हाईकोर्ट ने एक अहम फैसले दिया।

इस केस का मामला कुछ इस तरह था...
पति पत्नी शादी के बाद से ही लड़ते झगड़ते रहते थे। इस रोज रोज की के झगड़े से बूढ़े सास ससुर बेहद परेशान थे। पति अलग परेशान था।
इससे परेशान बेटा किराये पर कमरा ले कर रहने लगा। परेशान माँ बाप उसे निकालना चाहते थे, पर बहू घर छोड़ने को तैयार नहीं थी।उसने प्रॉपर्टी पर दावा करते हुए केस कर दिया। ससुर ने संपति के हक मे केस कर दिया।
मामला कोर्ट मे पेश हुआ। मनन मंथन के बाद दिल्ली हाइकोर्ट के न्यायाधीश योगेश खन्ना जी ने यह फैसला सुनाया है।
घरेलू हिंसा के इस मामले में दिल्ली हाईकोर्ट ने अहम आदेश देते हुए कहा -
' झगड़ालू प्रवृत्ति की बहू को संयुक्त घर में रहने का कोई अधिकार नहीं है और संपत्ति के मालिक उसे बेदखल कर सकते हैं । '
इस केस के दो अहम प्रश्नों को कानूनन सहजता से समझते है।
यदि बहू को घर से निकाला गया तो वह कहां जाएगी?
उपरोक्त केस मे जब तक बहू तलाक नहीं लेगी, घरेलू हिंसा अधिनियम की धारा 19 (1)(F) के अनुसार बहू को ससुराल से निकाला जाता है, तो ससुराल वालो द्वारा बहू को रहने का दूसरा घर दिया जाएगा।
घरेलू हिंसा अधिनियम की धारा -19 के तहत संयुक्त घर मे "आवास का अधिकार" रहने का एक जरूरी अधिकार नहीं है । खासतौर से उन मामलों में ,जहां एक बहू अपने बुजुर्ग सास - ससुर के खिलाफ खड़ी हो ।
सास ससुर बहू को संपति से बेदखल कर सकते है?
इस केस के अंतर्गत कोर्ट ने बहू की अपील को खारिज करते हुए फैसला सास - ससुर के पक्ष में सुनाया ।
कोर्ट ने कहा- बुजुर्ग सास - ससुर को शांति से जीने का हक है । वो अपने सुकून के लिए घर से बाहर बहू को निकाल सकते हैं । संयुक्त परिवार में संपत्ति के मालिक बहू को संपत्ति से भी बेदखल कर सकते हैं ।

हमे घरों मे संबंधो को समझना होगा, परिवार के बुजुर्गों का सम्मान और देखभाल बहू का कर्तव्य है।
परिवार और रिश्तों पर आत्मनिरीक्षण की आवश्यकता है। परिवार मे खुशहाली ही इसकी औषधि है।
आज के लिए इतना ही....
शुभरात्रि अंतर्मन


✍🏻संदीप सिंह "ईशू"