राम - रावण और मनुष्य जीवन - 1 संदीप सिंह (ईशू) द्वारा प्रेरक कथा में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
श्रेणी
शेयर करे

राम - रावण और मनुष्य जीवन - 1

आप सभी प्रेरक पाठकों को मेरा यानी संदीप सिंह (ईशू) का सादर प्रणाम।
विषय ने उद्वेलित किया तो इच्छा हुई कि कुछ लिखा जाए,

राम - रावण और मनुष्य जीवन
वैसे तो उपरोक्त सभी से आप बखूबी परिचित होंगे क्योंकि ये किसी भी प्रकार से परिचय के मोहताज नहीं है।
यह दुर्भाग्य है कि कुछ खाली मगज के सिरमौर जैसे संजय निषाद (निषाद पार्टी), स्वामी प्रसाद मौर्य (स पा) टाइप के बुद्धिजीवी जीवी यदा कदा अपना विषरूपी ज्ञान समाज मे अपनी सुर्खियों को लपेटने के लिए उगल देते है। अभी चंद दिनों पहले ही इन महानुभाव ने अपने राजनैतिक नशे की हालत मे, प्रभु श्री राम के अस्तित्व पर जिह्वा लड़खड़ा बैठे थे। मेरे अन्दर यही बड़ी बुराई है कि विषय के साथ आहत करने वाले लोग भी सम्मिलित हो जाते है, सो इन्हें भी लपेटते हुए चल पड़ता हूँ। खैर मुख्य विषय की ओर चलूँ वर्ना आप भी पढ़ना छोड़ कहीं और निकल लेंगे।
राम - मर्यादापुरुषोत्तम प्रभु श्री राम, भारतीय जनमानस के हृदय मे निवास करने वाले प्रभु श्री राम, सूर्यवंशी (इक्ष्वांकु /रघु वंशी) महाराज दशरथ और माता कौशल्या जी के ज्येष्ठ पुत्र, बहन शांता के अनुज, माता सीता के पति, लक्ष्मण ,भरत, शत्रुघ्न के बड़े भ्राता, हनुमान जी के इष्ट, रावण के संहारक, तुलसीदास जी के रामचरितमानस के मूल।
इनके जीवन से हमे कई प्रेरणादायक, जीवन हेतु उत्तम प्रसंग मिलते है। एक आज्ञाकारी पुत्र, उत्तम चरित्र, अच्छे भ्राता, पति, मित्र, शरणागत के रक्षक, धैर्यवान, भक्त वात्सल्य प्रभु, न्याय प्रिय राजा, क्षत्रियकुल श्रेष्ठ, एक आम मनुष्य सा जीवन,मर्यादित पुरुषों मे सबसे उत्तम।
ऐसा वृहद् व्यक्तित्व जिसका बखान मुझ जैसा तुच्छ निरीह मनुष्य क्या शब्दों मे व्यक्त कर पाएगा। (संजय निषाद जितना शिक्षित, बुद्धिजीवियों मे श्रेष्ठ और प्रकांड विद्धान भी नहीं हूँ मैं)
भगवान राम बचपन से ही शान्‍त स्‍वभाव के वीर पुरूष थे। उन्‍होंने मर्यादाओं को हमेशा सर्वोच्च स्थान दिया था। इसी कारण उन्‍हें मर्यादा पुरूषोत्तम राम के नाम से जाना जाता है। उनका राज्य न्‍यायप्रिय और खुशहाल माना जाता था। इसलिए भारत में जब भी सुराज (अच्छे राज) की बात होती है तो रामराज या रामराज्य का उदाहरण दिया जाता है।
एक तथ्य और कहना चाहूँगा, माँ कैकयी के सबसे प्रिय पुत्र थे रामचंद्र जी। यदि माता कैकयी ना होती तो शायद आज प्रभु राम भी गुमनाम ही होते।

रावण - परम शिवभक्त, ऋषि विश्रवा (ऋषि पुलस्त्य ऋषि के पुत्र) और माता कैकशी (दैत्यराज सुमाली की पुत्री) के ज्येष्ठ पुत्र, कुंभकर्ण, विभीषण और सूर्पणखा के ज्येष्ठ भ्राता। परम ज्ञानी, प्रकांड विद्वान, महा पंडित रावण, असुर सम्राट रावण, ऋषि मुनि हंता रावण।
अपनी सेवा के एवज में कैकसी ने अपने पति ऋषि विश्रवा से वरदान मांगा कि उन्‍हें ऐसे पुत्रों का वरदान चाहिए जो देवताओं से भी ज्‍यादा शक्‍तिशाली हो और उन्‍हें हरा सके। कुछ समय बाद कैकसी ने एक अद्भुत बालक को जन्‍म दिया जो दस सिर और बीस हाथों वाला था।
कैकसी ने पूछा, इस बालक के इतने हाथ और सिर क्‍यों हैं? तब ऋषि ने कहा कि तुमने अद्भुत बालक मांगा था इसलिए ये अद्भुत है और इस जैसा कोई और नहीं है।
बाल्यकाल में ही रावण चारों वेदों का ज्ञात बन गया था। इसके अलावा उसने आयुर्वेद, ज्योतिष और तंत्र विद्या में भी महारत हासिल कर ली थी। कठोर तपस्या से कई शक्तियों को प्राप्त किया था। रावण ने।
मनुष्य - ईश्वर या अज्ञात परम शक्ति की सबसे उत्कृष्ट कृति मानव, मनुष्य, सबसे बुद्धिमान, गुणों मे श्रेष्ठ, जिज्ञासा और आवश्यकताओं के वशीभूत निरंतर नूतन खोजों मे व्यस्त, खुद की सुविधा के लिए प्राकृतिक छेड़छाड़ ही नहीं अपितु रत्नगर्भा की छाती को दिन प्रतिदिन छलनी करता ब्रह्मांड की सबसे उन्नत सभ्यता का स्वामी - मनुष्य। धरती के बाद अब अंतरिक्ष मे भी बाहें पसारती प्रवृत्ति की आधीन प्रजाति।
ईश्वर की इतनी अनुपम कृति जिसके अंदर आपको उपरोक्त उल्लेखित दोनों चरित्र (राम - रावण) का भव्य संगम मिल जाएगा।
अस्थिर चित्त, स्वार्थी, लोभी, कामी, निर्दयता की पराकाष्ठा ही नहीं अपितु स्नेह, समर्पण, प्रेम, पवित्रता, सामाजिकता, आदर्श, सशक्त, निष्ठा, वात्सल्य, परिवार प्रथा, उत्तम संरक्षण आदि गुणों से सुसज्जित मानव जाति।
एक मनुष्य मानव कहलाता है, और मनुष्यों का समुह ही समाज का निर्माण करता है।
इनके जीने, सोचने, कार्य करने, मानवता, चरित्र, प्रेम, क्रोध काम से मिश्रित जीने की ललक ही मनुष्य जीवन कहलाती है।
और यह मनुष्य जीवन अच्छे और बुरे स्वरुप मे विभक्त हो जाती है। किंतु कहलाती मनुष्य जीवन ही है। ये बात और है कि सभ्य और असभ्य समाज के रूप मे क्या चयनित करना है यह स्वयं इन्हें ही निर्धारित करना है किन्तु अच्छा हुआ तो स्वयं श्रेय चाहता है, बुरा हुआ तो विधि का विधान कह कर बड़ी ही चपलता से दोषी विधाता को ठहरा देता है।
यह तो था परिचय, अब चर्चा करते है विषय पर।
रावण का उदाहरण हम देते अवश्य है किन्तु वह आज के दुष्कर्मीयों की तरह नहीं था। अपनी बहन के नाक कान कटने से प्रतिशोध की ज्वाला मे जलता सीता जी का अपहरण किया था उसने। चूकिं बलशाली होने से भी मन अहंकारी हो जाता है।
किन्तु उस दैत्यराज ने सीता जी की अस्मिता और उनके साथ किसी भी प्रकार से गलत नहीं किया था।
यह उसका धैर्य और धर्म दोनों ही था।
राम जी जैसा मर्यादापुरुषोत्तम भाई हो तो, लक्ष्मण भरत शत्रुघ्न तो सभी हो सकते है।
किन्तु सोचने की बात यह है कि रावण तो अधर्मी था, पापी था, हर प्रकार से बुरा था। बावजूद इसके भी विभीषण को छोड़ उसके सभी परिजनों ने रावण का साथ ही नहीं दिया बल्कि प्राणों को भी न्यौछावर कर दिया।
कह सकते है कि रावण जैसा भाई हो तो भी कुंभकर्ण आदि जैसा भाई हो तो परिवार बिखर नहीं सकता। कितना समर्पण रहा होगा उन सभी मे।
दुर्भाग्यपूर्ण है कि आज आए दिन प्रिंट मीडिया (अखबार), टीवी, डिजिटल प्लेटफार्म, सभी जगह दुष्कर्म की ख़बरें।
आखिर हम मनुष्य इतने गिर गए कि 90 वर्ष की वृद्धा से अबोध बच्चियों तक से बर्बरतापूर्ण हैवानियत की ख़बरें आती है। कई केस तो ऐसे है कि छोटे लड़कों के साथ भी कुकृत्य की ख़बरें आती है।
क्यों.... आखिर क्यों....
ये कैसी मानसिकता है इस सभ्य समाज की।
इसी विषय पर मैंने एक कविता लिखी है जो निम्नांकित है, हालांकि आप मे से कई आदरणीय पाठकगण इसे प्रतिलिपि पर " मन का रावण " मे पढ़ चुके है।

" मन का रावण "
एक दिवस मनाने से कब,
मन का रावण मारा जाएगा,
सीता अब भी भयमुक्त कहाँ,
राम कहाँ तक आएगा।।
स्वप्न सरीखा राम राज्य ,
जाने कब वह क्षण आएगा,
प्रश्न हमेशा उठता मन मे,
क्या ये रावण भी जाएगा ।।
निर्भय सीता रह सके यहां,
क्या यह सम्भव हो पाएगा,
ना सत्ता ना सरकारें पुलिस प्रशासन,
खुद ना जागे फिर कौन जगायेगा ।।
विवश पिता बेटी का पूछे,
क्या कोई मुझे बतायेगा,
हे सभ्य कहलाने वालों क्या,
सच मे राज्य राम का आएगा।।
एक दिवस मनाने से कब,
मन का रावण मारा जाएगा,
सीता अब भी भयमुक्त कहाँ,
राम कहाँ तक आएगा ।।
✍🏻- संदीप सिंह (ईशू)


क्रमशः