Ram - Rawan aur Manushy Jivan - 3 books and stories free download online pdf in Hindi

राम - रावण और मनुष्य जीवन - 3

राम - रावण और मनुष्य जीवन - 3

मन के रावण का दहन
"ये कलयुग के रावण है, इनको कोई भान नहीं,
हर रोज न्योछावर होती सीता,इनको तनिक भी ज्ञान नहीं।"


अगर मनुष्य जीवन मे सभ्य समाज से इस रावण का दहन करना हो तो घटना पर गहराई से विचार करने पर कई सवाल उभर कर सामने आते हैं जैसे कि -
👤 हमारे समाज में यौन उत्पीड़न होते क्यों हैं?
👤 यौन उत्पीड़न होने का कारण क्या है ?
👤 यौन उत्पीड़न होने के लिए जिम्मेदार कौन है ?

मैं यह नहीं कहता कि यौन उत्पीड़न की समस्या एक बार के प्रयास से समाप्त हो जाएगी, किंतु मेरा मानना है यदि उपरोक्त प्रश्नों पर विमर्श करे तो मेरे मष्तिष्क मे कुछ तथ्य है जो मैं आपके साथ साझा करना चाहूँगा।

नैतिक शिक्षा की कमी - कहते है कि बचपन का बाल मन कोरे कागज की तरह होता है, उस समय उनके मन में ना तो कोई विचार होता है ना ही कोई भावना होती है ।
बच्चा जो सुनता है, जो पढ़ता है, जो देखता है। वही चीजें उसके मानसिक पटल पर अंकित हो जाती है।इसके साथ ही बच्चों पर माता पिता के संस्कार और परिवारिक माहौल का भी फर्क पड़ता है ।
अतः बच्चों मे नैतिकता हो इसके लिए सर्वप्रथम माता पिता का नैतिक होना, चरित्रवान होना और घृणित मानसिकता से मुक्त होना आवश्यक है।
गाली गलौज, भद्दे हास्य विनोद, शारीरिक व्यावहार, इत्यादि को त्यागना होगा। अच्छे चरित्रों के विषय मे बच्चे को जागरूक करना होगा।
बच्चों को केवल इसलिए शिक्षा देते हैं ताकि वह बड़ा होकर डॉक्टर इंजीनियर आदि बने और ज्यादा से ज्यादा पैसे कमा सके। हमे इस सोच को बदलना होगा कि बच्चों को पैसा छापने की मशीन बनाना है।
शिक्षा के साथ साथ नैतिकता का पाठ और अध्यात्म का ज्ञान भी आवश्यक है।
वर्ना बच्चों के अंदर मानवीय भावनाएं कैसे विकसित होगी।
जब मानवीय भावनाओं, मूल्यों का विकास ही नहीं होगा तो उसे इनके विषय महसूस कैसे होगा।
अतः घर, समाज के साथ साथ स्कूली शिक्षा पद्धति मे भी विषयों के रूप मे आध्यात्मिक और नैतिक शिक्षा को भी स्थान देना आवश्यक है।
अनुचित खान-पान का असर - आप विश्वास नहीं करेंगे, यौन उत्पीड़न के 80% मामलों मे नशा मुख्य कारक रहा है।
मादक पदार्थों मे शराब, ड्रग्स, गांजा, अफीम, चरस इत्यादि के सेवन से हमारे शरीर में यौन उत्तेजना बढ़ती है। इससे हमारा अपने शरीर और विचारों पर नियंत्रण नहीं रहता है। नशे मे विलुप्त चेतना से हमें पता ही नहीं चलता कि हम जो कर रहे हैं वह सही है या गलत और इसका परिणाम क्या होगा।
नशा आदमी की सोच को विकृत कर देता है। उसका स्वयं पर नियंत्रण नहीं रहता और उसके गलत दिशा में बहकने की संभावनाएं शत-प्रतिशत बढ़ जाती है। ऐसे में कोई भी स्त्री उसे मात्र शिकार ही नजर आती है।
यदि प्रशासन और कानून चाहे तो मादक पदार्थों पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगा दिया जाए।

अशिक्षा - यौन उत्पीड़न के अपराधों मे अशिक्षा (यौन शिक्षा) का भी बहुत बड़ा योगदान है। इसे समाज को जागरूक करने के लिए पाठ्यक्रम मे सम्मिलित किया जा सकता है। इससे भी बच्चों मे गलत भावनाओं का दमन होगा। यह शिक्षा का ही स्वरुप है कि ल़डकियों को माल, पटाखा, आइटम, फुलझड़ी, सेक्सी, मस्त, कंटीली आदि अभद्र संबोधनों से संबोधित किया जाता है, और चार नमूने खड़े हो कर दांत चियारते हुए खीस निपोरते (हंसते) रहते है।

लड़कियों का रहन सहन- कई लोग मेरे इस बिंदु को नारी विरोधी, पुरुषवादी मानसिक संकीर्णता करार देंगे किंतु पहले पढ़े फिर राय सुनिश्चित करें।
लड़कियों को खुद में आत्मविश्वास विकसित करना चाहिए क्योंकि वहशी दरिंदे ज्यादातर डरपोक लड़कियों को ही अपना शिकार बनाते हैं।
दुष्कर्मी ज्यादातर ल़डकियों के दब्बूपन, झिझक, डर, कमजोरी, बेवकूफी, खुल कर विरोध ना करने की आदत का फायदा उठाता है।
लड़कियों को चाहिए कि कहीं भी रहे अपने आसपास नजर रखे, हमेशा सावधान रहें, अगर कुछ भी गलत लगे तो डरने के बजाय घर के सदस्य को बताने की हिम्मत दिखाएं।
और आम समाज के लोगों को भी चाहिए कि हमारे आसपास किसी लड़की को इस तरह कोई परेशान करे तो मौन रहने के बजाय सुरक्षा और साथ दें।
लड़की को इस बात का ख्याल रखना होगा कि तुरंत किसी पर भी भरोसा नहीं करना चाहिए। कुछ हद तक बेवजह अंग प्रदर्शन, और फूहड़ पहनावे का भी दोष है। किंतु यह पुरुषों को भी ध्यान रखना होगा दोषी किसी के कपड़े नहीं बल्कि दरिन्दे की अवधारणा एवं मानसिक विकृति होती है।

मिडिया और संचार प्रौद्योगिकी का दुष्प्रभाव - भारत की समृद्ध और सबसे उत्कृष्ट संस्कृति और सभ्यता के विषय मे प्राचीन काल से ही प्रचलित है -

"यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते, रमन्ते तत्र देवता:"
जहां नारी की पूजा की जाती है, उसका सम्मान किया जाता है वहां देवताओं का वास होता है।


भारतीय समाज मे जहां एक ओर कन्या को भी देवी मान पूजा जाता है, जहां नारी (स्त्री) को देवी का स्थान दिया जाता है, दुर्भाग्यपूर्ण है कि हम ऐसे समाज में जी रहे हैं जहां स्त्रीयों को माल कह कर संबोधित किया जाता है।
किसी ने मीडिया का अविष्कार इसलिए किया था ताकि लोगों तक चित्र, वीडियो, और आवाज के माध्यम से किताबों की तुलना में जल्दी और बेहतर ज्ञान पहुंच सके।
नारी भोग की वस्तु है, यह जो मानसिकता हमारे समाज के दिमाग में बैठी हुई है,समाज के साथ साथ मीडिया की भी देन है ।
मीडिया और संचार प्रौद्योगिकी के ज्यादातर माध्यमों ने ज्यादा से ज्यादा पैसा कमाने के चक्कर में गंदी फिल्में, अश्लील गाने,और गंदी तस्वीरें दिखाकर हमारे बच्चों किशोरों और युवा वर्ग के लड़कों को बुराई की तरफ धकेल रही है । एक मोबाइल आज शिक्षा के साथ जीवन के सभी कार्यों के लिए आसान माध्यम हो गया है, किंतु मानसिक विकृति के राक्षस Porn Site मे मग्न रहते है।
ऐसे सभ्य समाज में बलात्कारी पैदा नहीं होगा तो क्या राम पैदा होगा ।
एक बात अवश्य कहना चाहूँगा कि जब तक हम अपनी मानसिकता , अपनी सोच नहीं बदलेंगे, तब तक सरकार चाहे कितना भी कठोर कानून बना दे बलात्कार की घटनाएं होती ही रहेगी।

कमजोर कानून व्यवस्था - भारत की कानून व्यवस्था और न्याय प्रणाली काफी सुप्त है, ऐसा नहीं कि पुलिस प्रशासन कमजोर है। पुलिस प्रशासन कभी कमजोर नहीं रहा, कमजोर है तो समस्या से लड़ने की इनकी इच्छा शक्ति।
देश की कानून व्यवस्था की जितनी तारीफ की जाए उतनी कम ही है।
यौन उत्पीड़न (बलात्कार) की सूचना हुई नहीं की मीडिया की बांछें खिल जाती है, राजनैतिक दलों के अंगूठाटेक छुटभैये नेता अपने राजनैतिक हित के लिए अपने सुविधानुसार चुनावी फायदे के समीकरण सेट करने लगते है।
पुलिस वाले जांच रिपोर्ट में गड़बड़ी करके आरोपी को बचाने की कोशिश करते हैं। क्योंकि अपराध से ज्यादा अपराधी की आर्थिक मजबूती से अपनी जेब भरने मे परेशान होते है।
लंबी उठापटक के बाद जब प्रकरण न्यायालय मे जाता है फिर शुरू होता है सुनवाई की तारीखों का खेल (बजाय फास्ट ट्रैक कोर्ट मे सुनवाई करने के)।
केस कितने समय चलेगा यह निश्चित ही नहीं है, न्याय की उम्मीद मे परिजन चप्पलें घिसते घिसते बेघर होने के कगार पर पहुंच जाते है और अपराधी आराम से छुट्टे सांड जैसा घूमता रहता है।
प्रशासन और न्याय व्यवस्था का यही रवैय्या यौन पीड़िता का हर दिन मानसिक बलात्कार करता रहता है।
कई बेचारी तो यह बर्दाश्त नहीं कर पाती और मौत को गले लगा लेती है।

एकांत में गुंडों का अड्डा - पुलिस की आँख के नीचे सुनसान स्थानो पर नशेड़ी, गुंडे, आवारा लोगों का जमावड़ा।
एक तरीके से यह समाज और प्रशासनिक और न्याय व्यवस्था के असफलता का ही परिणाम होता है।
गांव और शहर के सूनसान खंडहरों की बरसों तक जब कोई सुध नहीं लेता है तब यह जगह आवारा और आपराधिक किस्म के लोगों की समय गुजारने की स्थली बन जाती है।

ऐसी जगह पुलिस और प्रशासन से दूर जहां इन लोगों के लिए 'सुरक्षित' होती है, वहीं एक अकेली स्त्री के लिए बेहद असुरक्षित। महिला के चीखने-पुकारने पर भी कोई मदद के लिए नहीं पहुंच सकता।
अपराधियों को ना तो कानून का डर होता है ना ही सजा का, इसलिए जब तक कानून व्यवस्था ठीक नहीं होगी तब तक अपराधी अपराध करते रहेंगे।

इसके लिए पुलिस को अपने दायित्वों का निर्वहन करना होगा, और इन दूरस्थ अड्डों, क्षेत्रों की सख्ती से जांच की मे तेजी लाना होगा ।
और कानून को नियमों और सजा को सख्त करने के साथ, शीघ्र न्याय प्रदान की व्यवस्था के अन्तर्गत फास्ट ट्रैक कोर्ट का गठन करना होगा।

(समाप्त)
✍🏻संदीप सिंह (ईशू)


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