असमर्थों का बल समर्थ रामदास - भाग 27 ՏᎪᎠᎻᎪᏙᏆ ՏOΝᎪᎡᏦᎪᎡ ⸙ द्वारा जीवनी में हिंदी पीडीएफ

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असमर्थों का बल समर्थ रामदास - भाग 27

सत्वगुण लक्षण सार

इंसान की युद्ध करने की वृत्ति को तमोगुण माना जाता है। लेकिन वही युद्ध अगर सत्य के लिए, किसी की रक्षा के लिए, दुष्टों का संहार करने के लिए किया जाए तो यह सत्वगुण लक्षण माना गया है। अर्थात दूसरों की भलाई के लिए किया गया अव्यक्तिगत कार्य को बहुत महत्वपूर्ण माना गया है, फिर चाहे वह युद्ध ही क्यों न हो।

सत्वगुण शुद्ध गुण है यानी सत्वगुणी इंसान में कपट, ईर्ष्या आदि तरह के मन के विकारों की मिलावट नहीं होती। सत्वगुणी इंसान मननशील होता है। इसलिए उसका व्यवहार भी विवेकपूर्ण होता है। विकार रहित निर्मल मन को जब साधना का मार्ग मिलता है तो उसमें आत्मज्ञान जगता है | सत्वगुणी इंसान में ही संभावना है कि वह इससे आगे बढ़कर गुणातीत अवस्था प्राप्त कर सके। इसलिए अध्यात्म के मार्ग पर सत्वगुण का बड़ा महत्त्व है। अव्यक्तिगत प्रेम सत्वगुणी इंसान ही कर सकता है। दूसरों का मंगल करने की भावना से भरा यह इंसान दूसरों की खुशी में संतोष पाता है। सत्वगुण से भरा इंसान दुनिया में दुर्लभ है। जिसके जीवन में सत्वगुणी इंसान आता है, उसका जीवन स्वतः ही बदलने लगता है। सत्वगुण लक्षण बताते हुए समर्थ रामदास कहते हैं

* जिसकी उपस्थिति में प्रेम, आनंद, शांति की लहरें तरंगित होती हैं, वह सत्वगुणी है।

* जो अज्ञान का नाश करने में निमित्त बनता है, जिसकी संगत में परमार्थ का मार्ग सहज, सरल होता है, वह सत्वगुणी है।

* जो ईश्वर से प्रेम करते हुए अपना सांसारिक उत्तरदायित्व विवेक के साथ निभाता है, वह सत्वगुणी है।

* संसार में मिलनेवाले दुःख स्वीकार कर जो निर्मल वृत्ति से भक्ति में जीता है, वह सत्वगुणी है।

* जिसे परमार्थ करने में, अव्यक्तिगत जीवन जीने में आनंद आता है, वह सत्वगुणी है।

* जो दूसरों की मदद करने में सदा तत्पर रहता है, वह सत्वगुणी है।

* जिसे सीधा-सरल जीवन जीना पसंद है, वह सत्वगुणी है।

* जिसे दान-धर्म, शास्त्राध्ययन, सत्संग पसंद है, वह सत्वगुणी है।

* सत्संग में सुनी हुई बातें जो आचरण में लाता है, वह सत्वगुणी है।

* जो श्रेष्ठों का आदर करता है, वह सत्वगुणी है।

* जो सत्संग के लिए व्यवस्थाएँ करता है, सत्संग के लिए सदा तत्पर रहता है, वह सत्वगुणी है।

* जिसे सज्जनों की सेवा करना पसंद है, वह सत्वगुणी है।

* जो दास्यभक्ति करता है, (भक्ति में अपने आराध्य का दास बनना भी जिसे मंजूर है) वह सत्वगुणी है।

* जो सेवा के लिए तत्पर रहता है, वह सत्वगुणी है।

* जो ईश्वर के प्रति काया-वाणी-मन से समर्पित है, वह सत्वगुणी है।

* जो प्रतिष्ठा में बड़ा होते हुए सेवा में हीन कार्य करने के लिए भी तत्पर रहता है, वह सत्वगुणी है।

* जो नित्य नियम से जप, ध्यान, साधना करता है, वह सत्वगुणी है।

* जो अपनी वाणी से किसी को दुःख नहीं देता, वह सत्वगुणी है।

* जो अभिमान का त्याग करता है, वह सत्वगुणी है।

* जो देहबुद्धि का त्याग कर सदा ईश्वर के नामस्मरण में रत रहता है, वह सत्वगुणी है।

* जो माया के भ्रम से मुक्त है, विषयों के प्रति जिसके मन में वैराग्य भाव है, देह के प्रति जो अनासक्त है, वह सत्वगुणी है।

* जो संसार की आसक्ति से मुक्त होने के लिए परमार्थ के मार्ग पर चलता है, वह सत्वगुणी है।

* संसार से त्रस्त होकर भी जो भजन गा सकता है, वह सत्वगुणी है।

* संसार में मिलनेवाले आघातों का जो धैर्य से सामना करता है, जो सुख-दुःख दोनों में समत्व भाव से रहता है, वह सत्वगुणी है।

* जो कामनाओं के प्रति अनासक्त है, वह सत्वगुणी है।

* लोगों की रोक-टोक के बावजूद भी जो भक्ति मार्ग से नहीं टलता, वह सत्वगुणी है।

* जो अंतरप्रेरणा से चलता है (हृदय की सुनता है), वह सत्वगुणी है।

* जो दया-क्षमा-शांति से भरा है, वह सत्वगुणी है।

* * जिसने अपनी ज़ुबान पर (खाने में और बातों में) काबू पाया है, वह सत्वगुणी है।

* 'मन की चंचलता के बावजूद जो धीरज नहीं खोता, वह सत्वगुणी है।

* देह की पीड़ा के बावजूद जो साधना से नहीं हटता, वह सत्वगुणी है।

* जो श्रवण और मनन द्वारा आंतरिक शुद्धि प्राप्त करता है, वह सत्वगुणी है।

* जो अहंकार रहित है, निराशा से जो नहीं घिरता, वह सत्वगुणी है।

* जो विनम्रता से बात करता है, सदा मर्यादा में रहता है, वह सत्वगुणी है।

* जो दूसरों के दोष अपने पास ही रखता है, (सबको ज़ाहिर नहीं करता), वह सत्वगुणी है।

* जो अपने क्रोध पर नियंत्रण पाता है, हीन लोगों की हीन बातों का जो प्रत्युत्तर नहीं देता, वह सत्वगुणी है।

* विषय वासना में दौड़नेवाले मन को जो नियंत्रित करता है, इंद्रिय लालसाओं पर जो विवेक से काबू पाता है, वह सत्वगुणी है।

* जो दुष्टों के साथ समझदारी से काम लेता है, अपने निंदक पर भी जो उपकार करता है, वह सत्वगुणी है।

* जो सत्कर्म करता है, असत्कर्मों का त्याग करता है, वह सत्वगुणी है।

* जो कलह सुलझाने में मदद करता है, किसी को बंधन से छुड़ाने का कार्य करता है, वह सत्वगुणी है।

सत्वगुणी इंसान ईश्वर के नज़दीक होता है। भवसागर पार करने के लिए परमार्थ अगर नाव है तो सत्वगुण उसका केवट है। 'अहम् ब्रह्मास्मि' (स्वयं) का अनुभव सत्वगुण के साथ ही संभव है। लेकिन सत्वगुण में एक अलग ही विपत्ति है। सत्वगुणी को 'मैं आत्मज्ञानी हूँ, मैं सत्वगुणी हूँ, मैं आंतरिक आनंद का भोक्ता हूँ’ इस तरह का अभिमान जगने की संभावना होती है। इसलिए सत्वगुण से भी आगे, हर गुण के परे गुणातीत अवस्था प्राप्त करना ही अध्यात्म का असली लक्ष्य है।

जय समर्थ रामदास स्वामी 🙏