प्रेम विवाह - भाग 4 Rajesh Rajesh द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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प्रेम विवाह - भाग 4

विस्फोट की आवाज सुनकर आदित्य के दोनों भाई भाभियां शिवम शिवम की पत्नी आशा वहां मौजूद सब लोग और आदित्य के नौकर चाकर आदित्य के पीछे भाग कर उसके कमरे में पहुंचते हैं और मधु की मूर्ति को कमरे में चारों तरफ टुकड़ों में चूर चूर बिखरा हुआ देखकर सब लोग घबरा जाते हैं।

आदित्य के दोनों भाई भाभियां शिवम शिवम की पत्नी समझ जाते हैं कि इंदु की क्रोधित आत्मा ने क्रोध में आकर यह काम किया है लेकिन आदित्य नहीं समझ पा रहा था कि ऐसा कैसे हुआ है।

मधु की मूर्ति के आदित्य के कमरे में चारों तरफ टुकड़े बिखरे हुए देखकर आदित्य के दोनों भाई भाभियां बहुत घबरा जाते हैं, इसलिए वह शिवम उसकी पत्नी आशा को अपने कमरे में बुलाकर अशांत बेचैन इंदु की आत्मा से आदित्य को सुरक्षित रखने का उपाय सोचते हैं, आदित्य के सबसे बड़े भाई को दुनियादारी की बहुत अच्छी समझ और अनुभव था, उसने ऐसी अशांत आत्माएं वाली घटनाएं अपने जीवन में पहले कई बार देखी सुनी थी, इसलिए वह शिवम शिवम की पत्नी और अपनी पत्नियों छोटे भाई से कहता हैं कि "अब पानी सर से ऊपर निकल गया है, अब हमें जल्दी से जल्दी इंदु की बेचैन क्रोधित आत्मा की शांति के लिए एक बड़ी पूजा का आयोजन अपनी हवेली में करना होगा।"

अनुभवी समझदार आदित्य के बड़े भाई की यह बात शिवम उसकी पत्नी आदित्य की दोनों भाभियों और छोटे भाई को सही लगती है और आदित्य का सबसे बड़ा भाई इस बात के साथ यह भी कहता हैं कि "अभी आदित्य का दिमाग पूरी तरह तंदुरुस्त नहीं हुआ है, इसलिए हमें कोई भी बात या ऐसा कार्य नहीं करना है जो आदित्य के दिल दिमाग पर गहरी चोट पहुंचाएं, मधु की मूर्ति टूटने के बाद आदित्य पहले से ज्यादा दुखी रहने लगा है, इस समय भी आदित्य मधु की मूर्ति के टुकड़ों को अपने सीने से लगाकर बैठा हुआ है।"

आदित्य को इस दुख से निकलने के लिए आदित्य के दोनों भाई दूसरे दिन सुबह आदित्य के पास आकर कहते हैं "आदित्य तू दुखी मत हो मधु एक दिन तुम्हें जरूर मिलेगी इस काम में हम दोनों भाई और तुम्हारी दोनों भाभियां तुम्हारा पूरा साथ देंगे तुम इसी समय शिवम को फोन करके बुलाओ और मूर्तिकार से मधु की नई मूर्ति बनवाओ।"

मधु की नई मूर्ति की बात सुनकर आदित्य बहुत खुश हो जाता है और उसी समय शिवम को बुलाकर उसके साथ उस मूर्तिकार के घर जाता है, जिसने मधु की हूबहू खूबसूरत मूर्ति बनाई थी, परंतु दोनों दोस्त जब उस मूर्तिकार के घर पहुंचते हैं तो उसके परिवार वालों से उन्हें पता चलता है कि एक-दो दिन पहले ही उस मूर्तिकार ने अपने जीवन से दुखी होकर अचानक आत्महत्या कर ली है। आदित्य तो इस घटना को साधारण घटना समझ कर भूल जाता है, लेकिन शिवम समझ जाता है कि यह काम भी इंदु की अशांत बेचैन आत्मा का ही है।

आदित्य को निराश देखकर शिवम आदित्य से कहता है "तू चिंता मत कर मैं इससे भी अच्छे मूर्तिकार को जानता हूं।" यह सुनकर आदित्य खुश होकर शिवम के साथ उस मूर्तिकार के पास जाता है।

शिवम मूर्तिकार को शुरू से सारी बात समझता है और फिर मूर्तिकार कहता है "आप चिंता ना करें आप जैसे-जैसे अपनी कल्पना से बताओगे मैं वैसे वैसे ही आपकी कल्पना के अनुसार नई मूर्ति तैयार करता जाऊंगा, लेकिन इस काम के लिए आपको कल सुबह आना पड़ेगा।"

मधु की नई मूर्ति बनने की खुशी में आदित्य शिवम के साथ खुशी-खुशी अपनी हवेली पर आ जाता है और दूसरे दिन सुबह शिवम का इंतजार किए बिना उस मूर्तिकार के घर पहुंच जाता है, आदित्य जैसे-जैसे मधु के बारे में बताता जाता है, मूर्तिकार आदित्य से मधु के बारे में सुनकर वैसे वैसे ही मूर्ति बनाता जाता है और मूर्ति पूरी तरह तैयार होने के बाद आदित्य शिवम को मूर्ति दिखाने के लिए अपने घर बुलाता है।

मूर्तिकार ने मूर्ति को रेशमी लाल रंग के कपड़े से ढक रखा था और मूर्तिकार जैसे ही मधु की मूर्ति का कपड़ा खींचकर मूर्ति आदित्य शिवम को दिखाता है तो मधु की मूर्ति को देखकर आदित्य और शिवम के हाश उड़ जाते हैं, क्योंकि उस मूर्ति का आधा चेहरा इंदु का था।

आदित्य खुद नहीं समझ पा रहा था कि ऐसा कैसे हुआ जब मैं आंखें बंद करके मूर्तिकार को मधु का चेहरा बता रहा था तो उस समय मधु के चेहरे के अलावा मुझे आंखें बंद करने के बाद कुछ भी नजर नहीं आ रहा था, यह आधा चेहरा इंदु का कैसे बन गया है।

दोनों को हैरान परेशान देखकर मूर्तिकार पूछता है? "क्या मेरी कारीगरी कला में कोई कमी रह गई है।"
तब शिवम कहता है "अपने आधा चेहरा मधु का बनाया है और आधा चेहरा हमारी स्वर्गवासी दोस्त इंदु का।"
स्वर्गवासी शब्द सुनकर मूर्तिकार के चेहरे कि रंगत उड़ जाती है। आदित्य मूर्तिकार को समझते हुए कहता है "इसमें आपकी कोई गलती नहीं है, क्योंकि इंदु का हम दोनों दोस्तों के जीवन में बहुत महत्व था, शायद अपनी प्रेमिका मधु की मूर्ति बनवाते वक्त मेरे मन में अपनी स्वर्गवासी दोस्त इंदु का चेहरा आ गया होगा, लेकिन कुछ भी हो अपने मूर्ति ऐसी बनाई है, जैसे मधु इंदु हमारे सामने खड़ी हो और एक्सीडेंट के बाद मेरा दिमाग भी कमजोर हो गया है, इसलिए कल से मेरा दोस्त शिवम मेरी प्रेमिका मधु की मूर्ति बनवाने आपके पास आया करेगा।"

परंतु शिवम को पता था कि इस घटना में ना आदित्य की गलती है ना मूर्तिकार की यह जो भी कुछ हुआ है यह सब अशांत इंदु की आत्मा ने किया है।

और दूसरे दिन से शिवम अकेले मूर्तिकार के पास आकर मधु की मूर्ति बनावत है और जब दुबार मधु की मूर्ति बनाकर तैयार हो जाती है तो मूर्तिकार पहले की तरह ही आदित्य शिवम को मधु की मूर्ति दिखाने के लिए बुलाता है और इस बार फिर मूर्तिकार लाल रंग का रेशमी कपड़ा मूर्ति के ऊपर से खींचकर आदित्य शिवम को मधु कि मूर्ति दिखता है तो इस बार मूर्तिकार का चेहरा मधु नहीं बल्कि मधु इंदु और शिवम की पत्नी आशा की तरह था।

दोबारा यह विचित्र घटना होने के बाद मूर्तिकार मधु की मूर्ति बनवाने से इन्कार कर देता है और उनसे कहता है "आप बिना मूल्य दिए इस मूर्ति को यहां से ले जाओ।" लेकिन आदित्य पहली और इस मूर्ति की पूरी कीमत मूर्तिकर को देकर मधु इंदु आशा के चेहरे वाली मूर्ति को छोटे टेंपो में रखकर शिवम के साथ नदी के किनारे पहुंचकर अपने दोस्त शिवम के साथ मिलकर मधु इंदु आशा के चेहरे वाली मूर्तियों को जैसे ही नदी में विसर्जित करने लगते हैं तो इंदु की आत्मा मूर्ति के होंठ हिलाकर आदित्य से कहती है "ऐसा मत करो मैं तुम्हारे बचपन की दोस्त इंदु हूं, मेरी मूर्ति को अपनी हवेली में लेकर चलो मेरा विश्वास करो आदित्य मधु के मिलने के बाद में तुम दोनों को हमेशा के लिए छोड़ कर चली जाऊंगी।" इंदु की आत्मा की इस बात को सच मानकर आदित्य शिवम के साथ मिलकर इंदु की मूर्ति को अपने कमरे में लाकर रख लेता है और शिवम बातों ही बातों में आदित्य को यह एहसास दिलाने की कोशिश करता है की मृत्यु के बाद इंदु तुम्हारे लिए बहुत खतरनाक हो गई है इंदु की अशांत आत्मा तुम्हें कभी भी नुकसान पहुंचा सकती है, इसलिए दोनों भाई भाभियां भी यह चाहते हैं कि इंदु की अशांत आत्मा को शांत करने के लिए हवेली में बड़ी पूजा की जाए।" किंतु आदित्य को पूरी तरह विश्वास था कि इंदु मुझे कभी भी कोई नुकसान नहीं पहुंचाएगी क्योंकि आदित्य को पता था कि इंदु उसे बचपन से बहुत पसंद करती है, इसलिए वह उल्टा इंदु की अशांत आत्मा के लिए पूजा की बात सुनकर अपने दोनों भाइयों भाभियों से बहुत नाराज होता है।

और एक रात 12:00 बजे आदित्य एक अनजान खूबसूरत लड़की के साथ अपनी बाइक पर हवेली से जैसे ही बाहर निकलता है तो बाइक स्टार्ट होने की तेज आवाज की वजह से आदित्य की छोटी भाभी नींद से जाग जाती है और वह एक खूबसूरत लड़की के साथ आदित्य को हवेली से बाहर जाने वाली बात अपने पति यानी कि आदित्य के भाई को बताती है आदित्य का भाई जब समझ नहीं पता कि आदित्य के साथ वह कौन लड़की थी और आदित्य इतनी रात को सर्दी के मौसम में ना स्वेटर ना जैकेट पहनकर गाड़ी की जगह बाइक से कहां गया है तो वह सबसे बड़े भाई भाभी को जल्दी से सारी बात बताता है कि भैया आदित्य आधी रात को न जाने किस लड़की के साथ बाइक से हवेली से बाहर गया है और शीत लहर इतनी ठंड के मौसम में गर्म कपड़े भी पहनकर नहीं गया है।"
"जल्दी से आदित्य को फोन करो।" सबसे बड़ा भाई कहता है आदित्य के मोबाइल की घंटी उसके कमरे से ही तेज तेज उनको सुनाई देती है, तो दोनों भाई भाभियां आदित्य के कमरे में जल्दी से जाकर देखते हैं तो आदित्य का मोबाइल फर्श पर पड़ा हुआ था और कमरे में मूर्ति के कदमों के फर्श तोड़कर गहरे गहरे निशान पड़े हुए थे।

यह देखकर आदित्य के दोनों भाई भाभियां समझ जाते हैं कि इंदु की आत्मा आदित्य को अपने साथ ले गई है।

आदित्य का बड़ा भाई आदित्य को ढूंढने से पहले शिवम को फोन करके सारी बात बताता है और शिवम से पता करता है कि जब इंदु जिंदा थी तो तब तुम तीनों दोस्तों की आस-पास घूमने की सबसे पसंदीदा जगह कौन सी थी तो शिवम बताता है "नदी के ऊपर जो अंग्रेजों के जमाने का पुल है, है हम उस पुल पर घंटों बैठकर बातें किया करते थे, इंदु की मौत के बाद से आदित्य और मैंने उस पुल पर जाना छोड़ दिया है।" "हम आदित्य को ढूंढने उसी पुराने पुल पर जा रहे हैं।" बड़ा भाई कहता
"भैया मैं भी पूल पर पहुंच रहा हूं।" शिवम कहता है
"ठीक है जल्दी पुराने पुल पर पहुंचो।" आदित्य का बड़ा भाई कहता है

अंग्रेजों के जमाने के पूल के किनारे आदित्य की बाइक देखकर आदित्य के दोनों भाई भाभियां शिवम सब घबरा जाते हैं और आदित्य की दोनों भाभियां रोने लगती हैं सबके दिल में यह डर था कि कहीं इंदु चुड़ैल आदित्य की जान लेकर उसे अपने साथ तो नहीं ले गई है।

तभी नदी में सब को एक नौका दिखाई देती है उस नौका को इंदु चुड़ैल तेज तेज चप्पू मार मार कर चल रही थी और आदित्य नौका में गुमसुम पत्थर की मूर्ति जैसे बैठा हुआ था, सबको साफ पता चल रहा था कि इंदु अपनी इच्छा से आदित्य को कहीं लेकर जा रही है, नदी के किनारे कोई दूसरी नौका भी नहीं थी जिससे कि आदित्य के दोनों भाई और शिवम इंदु की नौका का पीछा करके आदित्य को बचाने की कोशिश करते इसलिए वह सब हाथ पर हाथ रखकर खड़े होकर चुपचाप इंदु को आदित्य को ले जाते हुए देखते रहते हैं और कुछ ही पलों में इंदु की आत्मा नाव के साथ आदित्य को लेकर गायब हो जाती है।

तभी शिवम कि पत्नी आशा का फोन शिवम के पास आता है कि "मेरे मायके के पड़ोस के गांव में बहुत बड़े सिद्ध तांत्रिक बाबा रहते हैं, मैंने अपने मायके से उनका मोबाइल नंबर लिया है, उनसे आदित्य के बड़े भैया की बात करवा दो, शायद वह इस समस्या का कुछ हल ढूंढ दे।" शिवम तुरंत तांत्रिक से आदित्य के बड़े भैया की बात करवाता है, तांत्रिक आदित्य के बड़े भाई की सारी बात सुनकर पूछता है? "आपके भाई आदित्य ने गले में कलाई में या हाथों की उंगलियों में किसी देवी देवता का लॉकेट या अंगूठी पहन रखी है।"
"हां हमारी कुलदेवी शीतला मां चौराहे वाली मसानी माता का मेरे भाई आदित्य ने गले में लॉकेट पहन रखा है।" आदित्य का भाई बताता है
"तो आप इसी समय शीतला मां चौराहे वाली मसानी माता से प्रार्थना करना शुरू कर दें कि वह अशांत आत्मा से आपके भाई की रक्षा करें और मैं इसी समय रेल पकड़ कर आपके पास पहुंच रहा हूं, मुझे तीन घंटे बाद अपने गांव के पास वाले दनकौर जंक्शन पर लेने आ जाना।" तांत्रिक कहता है

जैसे ही आदित्य का पूरा परिवार और शिवम शीतला माता मसानी माता की वही नदी के किनारे पूजा करना शुरू करते हैं तो कुछ ही घंटे बाद दोनों माता की कृपा से इंदु कि आत्मा की नाव उन्हें दिखाई देने लगती है और कुछ ही पलों में नाव नदी के किनारे आकर रुक जाती है, लेकिन जैसे ही आदित्य के भाई भाभियां और शिवम नाव के पास दौड़कर पहुंचते हैं, तो आदित्य तब तक इंसान से मूर्ति बन जाता है। और इंदु वहां से गायब हो जाती है आदित्य के दोनों भाई अपनी पत्नियों को रोने से चुप करवा कर तांत्रिक को फोन करके फिर सारी घटना के बारे में बताते हैं तब तांत्रिक कहता है "आप लोग घबराओ नहीं जिन लोगों को बड़े-बड़े तांत्रिको जादूगरों ने अपनी तंत्र विद्या से बकरा मुर्गा कबूतर आदि बना दिया था, में उनको भी वापस इंसान बना चुका हूं, लेकिन मुझे तुरंत ही अपनी पूजा शुरू करनी होगी इसलिए मैं आने वाले रेलवे जंक्शन पर उतर रहा हूं, आप लोग जल्दी से इस रेलवे जंक्शन पर मूर्ति बने आदित्य को लेकर पहुंचे।"
"आप जल्दी से रेलवे जंक्शन का नाम बताएं हम वहां पहुंच रहे हैं। आदित्य का बड़ा भाई पूछता है?
और रेलवे जंक्शन का नाम पूछ कर मूर्ति बने आदित्य को अपनी गाड़ी में रखकर रेलवे जंक्शन की तरफ चल देते हैं, लेकिन आदित्य की मूर्ति की लंबाई ज्यादा होने की वजह से गाड़ी का दरवाजा बंद नहीं हो पता है, गाड़ी में जगह कम होने की वजह से आदित्य की दोनों भाभियों को आदित्य के भाइयों को नदी के किनारे बने पुराने पुल पर ही छोड़ना पड़ता है, शिवम अपनी पत्नी आशा को फोन करके कह देता है कि दोनों भाभियों को जल्दी अपने साथ लेकर रेलवे जंक्शन पहुंचा।

और दरवाजा खोलकर गाड़ी चलाने की वजह से पुलिस वाले चेक पोस्ट पर गाड़ी को रोक लेते हैं मूर्ति में तस्करी (स्मगलिंग) का सम्मान होने के शक की वजह से एक पुलिस वाला जैसे ही लोहे की छोटी सी सरिया से मूर्ति के सर में मारता है तो मूर्ति का थोड़ा सा सर का हिस्सा टूटते ही उसमें से खून बहने लगता है, इस वजह से चेक पोस्ट पर खड़े सारे पुलिस वालों को शक हो जाता है की मूर्ति के अंदर यह तीनों किसी की लाश के टुकड़े करके छुपा कर लेकर जा रहे हैं, और वह इस कारण से आदित्य के दोनों भाइयों और शिवम को गिरफ्तार करके मूर्ति तोड़ने की तैयारी शुरू कर देते हैं।

आदित्य के दोनों भाई शिवम चीख चीख कर बताते हैं की मूर्ति टूटते ही आदित्य नाम के युवक की जान चली जाएगी, लेकिन चेक पोस्ट पर तैनात पुलिस वाले उनकी एक भी सुनने के लिए तैयार नहीं थे, तभी उनके भाग्य से वहां शम्मी पुलिस इंस्पेक्टर गश्त लगाते हुए कुछ पुलिस वालों के साथ आ जाता है और वह आदित्य के भाइयों की पूरी बात सुनकर आदित्य की मूर्ति का चेहरा देखता है तो वह समझ जाता है कि यह लोग सच कह रहे हैं, क्योंकि मधु ने जिस आदित्य का रंग रूप चेहरा बताया था, वह चेहरा मूर्ति से मेल खा रहा था, इसलिए शम्मी पुलिस इंस्पेक्टर सोचता है शायद यह मधु का ही आदित्य हो इसलिए वह मधु को फोन करके सारी बात बताता है और मधु को उस रेलवे जंक्शन पर बुलाता है, जिस रेलवे जंक्शन के पास वाले जंगलों में तांत्रिक तांत्रिक पूजा करने वाला था, यह वही रेलवे जंक्शन था जहां मधु आदित्य की पहली मुलाकात हुई थी।

उस रेलवे जंक्शन पर पहुंचते ही मूर्ति बने आदित्य को देखकर मधु फूट-फूट कर रोने लगती है मधु को बिलख बिलख कर रोता हुआ देखकर आदित्य की दोनों भाभियां मधु की मां मधु का छोटा भाई भी रोने लगता हैं।

लेकिन तांत्रिक के पूजा शुरू करने से पहले ही इंदु की आत्मा आदित्य को मूर्ति से इंसान बना देती है और वहां से जाते हुए आदित्य से कहकर जाती है "इस जन्म में तो मधु तुम्हारी पत्नी बनी है, लेकिन आदित्य अगले जन्म में तुमसे प्रेम विवाह मैं करूंगी।"

आदित्य मधु और वहां खड़े सब लोग नम आंखों से इंदु की आत्मा को विदाई देते हैं।

और तभी वहां रेलवे जंक्शन का स्टेशन मास्टर रेलवे पुलिस को लेकर सबको गिरफ्तार करने आ जाता है, क्योंकि वह सब रेलवे जंक्शन पर तांत्रिक पूजा करने की तैयारी कर रहे थे।

तब आदित्य किसी तरह रेलवे मास्टर को समझा बूझकर मधु की तरफ इशारा करके कहता है "मैं आज इस लड़की से प्रेम विवाह करूंगा, आपको आपके पूरे स्टाफ को परिवार सहित मेरे प्रेम विवाह का न्योता है।" समाप्त