माता ने आँखे खोली Gunavathi Bendukurthi द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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माता ने आँखे खोली

माता ने आँखे खोली

 

डॉ. गुणवती बेन्दुकुर्थी 


सड़क के किनारे निर्मित माता के इस छोटे से मंदिर की शोभा, आज देखते ही बनती है। वर्षो पुराने दरारो भरे दीवारों की मरम्मत कराई जा चुकी है। मरम्मती दीवारों को रंगवा कर गेंदे के फूलों की मालाओं से सजाया गया है। मंदिर के भीतर से बाहर आ रही धूप अगरबत्ती की सुगन्धित महक और पुजारी के मुख से उच्चारित मंत्र ध्वनि ने आस-पास के वातावरण को अत्यंत अत्याधमिक और मनोहारी बना दिया है। मंदिर के परिसर पर भक्तों की लंबी कतार बनी है, जहाँ भक्त हाथों में पूजा की थाली लिये माता का दर्शन करने की प्रतीक्षा कर रहे है।

 

मेरे जीवन काल के बीते समय में यहां ऐसा उत्सव सा वातावरण मैने पहली बार देखा था। इन दृश्यों के बीच अचानक मेरी दृष्टि लम्बी सी कतार में खड़े, हाथों में पूजा की थाली लिये, माता दर्शन के अभिलाषी रहे पुलिस अधिकारी पर पड़ती है। 

 

मुझे स्मरण हो आया कि वह मंदिर के समीप बने पुलिस स्टेशन के अधिकारी है और दो दिन पहले बड़ी माँ इसी मंदिर में घटी घटना का रिपोर्ट दर्ज़ करवाने वहां गयी थी।

 

अधिकारी महोदय ने पूरा किस्सा सुना और सबसे पहले एक तिरस्कृत दॄष्टि से बड़ी माँ की ओर देख उनके बिना पूछे उन्हें उपदेश देते हुए कहा था कि-‘बड़ी माँ आपका पुराना ज़माना बीत चुका है आपका समय ही  कुछ अलग था, सब एक दूसरे पर विश्वास करते थे यहां तक की अजनबियों पर भी भरोसा  किया जा सकता था । पर अब सब कुछ बदल चुका है। आज हमें अपनों पर भी विश्वास करने के लिए बहुत कुछ सोचना पड़ता है, और आपने उन पर आँख बंद कर विश्वास कर लिया जिन्हें आप जानती तक नहीं है। मेरी माने तो आपके साथ जो हुआ अच्छा ही हुआ जिससे आपको एक सबक मिली है’। पुलिस अधिकारी की बातों ने बड़ी माँ के समक्ष संदिग्ध भरी परिस्थिति को उत्पन्न कर दिया था। वह मन ही मन रह - रहकर प्रश्न करने लगी कि क्या इस घटना के लिए मैं जिम्मेदार और दोषी हूँ? या इस घटना के परिणाम को भुगतने वाली पीड़िता!?। 

 

कहानी का आरम्भ उस मंदिर से होता है जिसकी रूपरेखा अब पूरी तरह से बदल चुकी है। यह बात उस पुराने मंदिर की है जो इस प्रदेश की स्थानीय माता के लिए मुख्य सड़क के किनारे बना था।  मंदिर की स्थिति एक वीरान खंडहर की भांति थी। मंदिर के  भीतर अन्धेरा और उस अँधेरे में मात्र एक माता का छोटा सा पट, माथे पर तिलक करने के लिए सिंदूर और मंदिर के द्वार पर बंधी घंटी के अलावा यहां कुछ नहीं था।

 

राह चलते राहगीर मंदिर के द्वार से ही माता का दर्शन कर आगे बढ़ जाते थे। बड़ी माँ भी अक्सर अन्य राहगीरों की भांति मंदिर के द्वार से ही माता का दर्शन कर आगे बढ़ जाया करती। दो दिन पहले बड़ी माँ ने मंदिर के द्वार से ही माता का दर्शन किया और अपनी आँखे बंद कर हाथ जोड़ मंदिर के द्वार पर खड़ी हो गयी। तभी मंदिर के भीतर से उनके समीप आ रही आवाज को सुन उन्होंने अपनी बन्द आँखे खोली, देखा उनके सामने दो युवक खड़े थे।

 

इससे पहले कि बड़ी माँ उनसे कुछ प्रश्न पूछती युवक ने उनसे कहा “बड़ी माँ आप वयस्क और सुलझी हुई महिला दिखाई पड़ती है, आप हमसे बेहतर जानती है कि इस  छोटे से मंदिर में कोई  पुजारी नहीं बैठते इसलिए विधि विधान से माता की पूजा करने जैसे महान कार्य में आपके सान्निध्य की आशा रखते है।” बड़ी माँ जैसी धार्मिक विचारों वाली महिला के लिए यह सम्मानीय अवसर था उन्होंने तुरंत उनकी बात मान ली और मंदिर के भीतर चली गयी। 

 

मंदिर के भीतर कुछ अँधेरा था, जहाँ  बड़ी माँ की दृष्टि आंशिक रूप से धुंधला रही थी, फिर भी बड़ी माँ ने खुद को स्थिर कर उन युवकों से पूजा सामग्री के विषय में बात करना चाहा पर उन युवकों ने उनकी बात पर ध्यान नहीं दिया और उन्हें अपनी आपबीती सुनाने लगे। एक युवक ने कहा कि “ हम मित्र इस प्रदेश में सोने का व्यापार करने आए है। माता का आशीर्वाद लेकर दुकान को खोलना चाहते है। इस कार्य की पूर्ति के लिए पंडित जी ने आज इसी मुहूर्त पर सोने का गहना चढ़ावा चढ़ाने को कहा था, किन्तु हम किन्हीं विपरीत परिस्थिति के रहते साथ रखा सोना घर छोड़ आए है।” 

 

इतना कह दोनों युवक चुप्पी बनाकर बड़ी माँ के पैर पकड़ लेते है , उनसे उनका एक सोने का गहना चढ़ावा चढ़ाने की याचना करने  लगते है। 

 

मंदिर का पवित्र स्थल और साथ ही धर्म,  पुण्य , मुहूर्त जैसे शब्दों को सुन बड़ी माँ अत्यंत भावुक हो गयी।मंदिर का आध्यात्मिक वातावरण और उनकी धार्मिक विचारधारा ने उनके भीतर आशंका, सन्देह  जैसे नकारात्मक विचारों को जाग्रत ही नहीं होने दिया था । उनका ह्रदय अलौकिक और पवित्र भावना से व्याप्त होकर उन युवकों को आशीर्वाद दे रहा था । अगले ही क्षण उन्होंने अपने गले में पहना सोने का मंगलसूत्र निकाल उसे रुमाल में लपेट माता के पट के सामने चढ़ावा  चढ़ा दिया।

 

उन्होंने अपने हाथों से युवाओं के माथे को तिलक किया था। पूर्ण निष्ठा भाव से माता की पूजा आरती समाप्त कर,अंत में सभी आँखे बंद कर हाथ जोड़ खड़े हो गए ।  

 

कुछ ही देर बाद बड़ी माँ  ने मंदिर के बाहर से कुछ चीखने चिल्लाने की आवाज़े सुनी। बड़ी माँ अपनी बन्द आँखे खोल देखती है कि अब वहाँ कोई युवक नहीं खड़े थे और रुमाल में लिपटा उनका सोने का वह मंगलसूत्र भी वहां से गायब हो गया था । बड़ी माँ ने मंदिर के द्वार से बाहर झाँका, उन्होंने देखा कि दोनों युवकों ने अपनी  मोटर बाइक शुरू कर दी है और वह उसपर बैठ  कुछ चीखते चिल्लाते वहां से फरार होने को थे। बड़ी  माँ ने  उन तक पहुंचने का असफल प्रयत्न किया ।बड़ी माँ ने अकेले ही परिस्थति का सामना किया और  हिम्मत जुटा मंदिर के निकट स्थित पुलिस स्टेशन जाकर रिपोर्ट दर्ज़ करवायी  जहाँ पुलिस अधिकारी से उन्हें निराशा ही मिली।

 

उस निराशाजनक परिस्थिति में उन्होंने घर जाने का निर्णय लिया ।घर जाने का रास्ता मंदिर से होकर जाता है बड़ी माँ उसी मार्ग आगे कदम बढ़ाने लगी। मार्ग वही था और सड़क भी वही, पर मंदिर और मंदिर के आसपास की जगह पूरी तरह से बदली दिखाई पड़ती थी। उनके आश्चर्य का ठिकाना न रहा, मंदिर के द्वार जो खुले और सूखे फूलों के तोरण से निस्तेज थे अब सुंदर त्ताज़े गेंदे के फूलों के तोरण से सजे थे। वह मंदिर जो पुजारी विहीन था अब पुजारी के मुख से उच्चारित मंत्र ध्वनियों से गूंज रहा था। मंदिर के भीतर से आ रही अगरबत्ती धूप की महक ने आस-पास के वातावरण को सुगंधित प्रवाह धारा में बहा दिया था।

 

बड़ी माँ ने देखा कि मंदिर के बाहर भक्तों का जमावड़ा बना था। यहां खड़ी युवतियाँ सज -धज कर हाथों  में पूजा की थाली लिए यहां खड़ी थी। यहां दो चार पुलिस कर्मचारी भीड़ काबू करने में जुटे थे। बड़ी माँ भीड़ के बीच उनकी बातों को सुनने पहुंची ।मंदिर में कुछ देर पहले घटी घटना के बारे में सभी एक दूसरे से बातें  कर  रहे थे। उनका मानना था कि कुछ देर पहले मंदिर में देवी शक्ति से  चमत्कार हुआ था । सभी एक दूसरे को बताते जाते थे कि ‘सुनने में आया है कि अभी कुछ देर पहले देवी ने उनके चित्रपट पर बने चित्र में दिव्य शक्ति से अपनी आँखे खोली थी और भक्तों को दर्शन दिया था ।सुनने में यह भी आया है कि मंदिर में देवी का अलौकिक चमत्कार हमारे लिए शुभ दिन लेकर आएगा इसी कारण हम उनका दर्शन करने आये है। उनकी इन बातों को सुन बडी माँ स्तब्ध रह गयी। 

 

हालाँकि दूसरों के लिए यह सब एक रहस्य था, एक चमत्कार था। लेकिन  बड़ी माँ के लिए यह सब उनकी अपनी गाथा थी और एक ऐसी किताब थी जिसके पन्नों पर उनकी आपबीती थी जिसे लोग चमत्कार मान रहे थे।  इससे पहले की वहां खड़े लोगो को वह अपनी आपबीती बताती उन्होंने अपने मन के भीतर संग्राम कर रहे प्रश्नों की गुत्थी  सुलझाने का प्रयत्न किया । 

 

उन्होंने अपने उन  दिनों को याद किया जब वह गांव से पहली बार अपने परिवार सहित शहर आई थी। उनके पास रहने और खाने के लिए कुछ अधिक साधन नहीं था। वह अजनबी परिवार ही था जिसने उनकी सहायता कर उन्हे इतने बड़े शहर में बसने का प्रोत्साहन दिया था। उन्होंने विचार किया कि समय के साथ-साथ समाज बदला है , लेकिन प्रश्न यह उठता है कि क्या यह कटु सत्य नहीं की आज लोगों का रुखा व्यवहार गरीब और मुख्य रूप से आर्थिक तौर पर पिछड़े लोगों को प्रति,वृद्धों के प्रति, औरअधिक सख्त हो गया है? आज हमारी दृष्टि  प्रत्येक  के लिए  संदेह से भरी रहती है जिसके चलते हमें अपने भी पराये ही  लगते है और हम समाज में एक ऐसे निर्दयी वातावरण का निर्माण करने का दोष करते है जिसके चलते समाज में शिकारी अपराध की संख्या बढ़ती जाती है।

 

इन्ही विचारों की उधेड़बुन में बड़ी माँ की दृष्टि अनायास ही उन अबोध भक्तों पर पड़ती है जो इस बात से अनजान थे  कि भक्ति और धर्म के नाम उनके साथ छल हुआ है। सही अर्थ में वह उन पीड़ितों की श्रेणी में आते थे जिन्हे किसी ऐसे संक्रात्मक रोग ने संक्रमित कर दिया था जिसकी उत्पत्ति और लक्षणों के बारे में उन्हें कोई जानकारी नही थी। बड़ी माँ ने स्वयं से पूछा की  ‘क्या कभी इनके अंतर्मन में कोई तर्कयुक्त विचार उभरेगा जो इन्हे यथार्थ परिस्थिति से अवगत करा सकेगा ,या यह लोग उन दो युवकों द्वारा किये गए अनजान भावनात्मक धोखे से जीवन पर्यन्त पीड़ित ही रह जायेंगे ? दुःख की बात यह थी कि यहां जिस तरह के धार्मिक रूप का विस्तार हो रहा था वह वर्तमान समाज को ही नही बल्किआने वाली पीढ़ी के मध्य भी निःसन्देह अंधनिष्ठा युक्त भक्ति का तांडव रचने के लिए अपने पैर  पसार रहा था ।उन्होंने मन ही मन धीमे से फुसफुसाते कहा कि ‘मैं इनसे अलग हूँ, मैं ऐसी पीड़िता हूँ जो अपना रोग और उसका इलाज जानती हूँ।’  

 

बड़ी माँ के मुख पर हल्की सी मुस्कान थी । उनके मन का द्वंद अब शांत हो चला था। घर की ओर कदम तो बढ़ रहे थे पर अब उनके विचार करने और दुनिया देखने की दृष्टि बदल गयी थी ।उनकी अंतर्मन की आवाज़ ने उनकी  भीतर की आँखे खोल दिए थे  कि तभो दो युवक उनके समीप से मोटर बाइक पर बैठ उनके समीप से यही अफवाह फैलाते चीखते चिल्लाते चले जाते थे  कि  मंदिर में  “माता ने आँखे खोली है!” “माता ने आँखे खोली है!”