पौराणिक कथाये - 26 - सफला एकादशी व्रत कथा Devaki Ďěvjěěţ Singh द्वारा पौराणिक कथा में हिंदी पीडीएफ

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पौराणिक कथाये - 26 - सफला एकादशी व्रत कथा

एकादशी व्रत के नियम

साल भर में 24 एकादशी आती हैं। पद्म पुराण में एकादशी के व्रत के बारे में काफी वर्णन किया गया है। पुराण के अनुसार, जो व्यक्ति साल की 24 एकादशी का व्रत रखता है और वह भोग और मोक्ष का अधिकारी हो जाता है। साथ ही भगवान विष्णु की कृपा से परम पद को पाता है। पद्म पुराण के अनुसार, एकादशी व्रत के नियम के अनुसार, एकादशी से एक दिन पहले व्यक्ति को एक समय का भोजन त्यागना होता है। एकादशी के दिन शाम के समय फलहार किया जाता है। अगले दिन द्वादशी तिथि में सूर्योदय के बाद ही उपवास समाप्त होता है। एकादशी व्रत के प्रभाव से व्यक्ति जन्म और मरण के बंधन से मुक्त हो जाता है और सभी कार्य सिद्ध हो जाते हैं। साथ ही दरिद्रता भी समाप्त हो जाती है।


हर माह में एकादशी के दो व्रत होते हैं. एकादशी के व्रत के दिन भगवान विष्णु की पूजा की जाती है l मान्यता है कि पौष माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी का व्रत रखने से जीवन में सफलता प्राप्त होती है इसलिए इसे सफला एकादशी कहा जाता है

सफला एकादशी

पौराणिक कथाओं के अनुसार प्राचीन काल में चम्पावती नगरी में महिष्मान नामक एक राजा उसके चार पुत्रों के साथ रहता था l उसका सबसे बड़ा लुम्पक नाम का पुत्र महापापी और दुष्ट था lवह सदा ही पाप कर्मों में लिप्त रहता था। वह पूरे दिन मांस मदिरा का सेवन कर वैश्यावृत्ति में गुजार देता था। जुआं खेलना, वैश्यावृत्ति, ब्राम्हणों का अपमान करना और देवताओं की निंदा करना उसके लिए सामान्य हो गया था l आखिरकार एक दिन राजा महिष्मान ने अपने पुत्र के दुर्यव्यवहार से तंग आकर क्रोध में उसे राज्य से बेदखल कर दिया था l

राजा के डर के कारण उसका कोई भी मित्र या स्नेही उसे नहीं बचा पाया और वह जंगल में अपना जीवन व्यतीत करने लगा। नगर से बाहर निकाले जाने पर भी लुम्भक के स्वभाव में कोई परिवर्तन नहीं हुआ। उसने रात्रि के समय नगर में चोरी करना शुरू कर दिया। कई बार रात में लोगों ने उसे चोरी करते हुए पकड़ा, लेकिन राजा के भय के कारण उसे कोई कुछ ना कहता l लुम्पक जंगल में रहकर मांसाहार खा कर अपना जीवन यापन कर रहा था l


लुम्पक पापी ने अनजाने में पूरा किया सफला एकादशी व्रत


कहते हैं कि कभी-कभी अनजाने में भी प्राणी ईश्वर की कृपा का पात्र बन जाता है। ऐसा ही कुछ लुम्पक के साथ भी हुआ l एक बार भीषण ठंडी की वजह से वह रात में सो नहीं पाया l रातभर ठंड में कांपता रहा जिसके कारण वह मूर्छित हो गया l उस दिन पौष माह के कृष्ण पक्ष की दशमी तिथि थी l अगले दिन जब होश आया तो अपने पाप कर्मों पर पछतावा हुआ और उसने जंगल से कुछ फल इक्ट्‌ठा किए और पीपल के पेड़ के पास रखकर भगवान विष्णु का स्मरण किया l इस सर्द रात को भी उसे नींद नहीं आई वह जागरण कर श्रीहरि की आराधना में लिप्त था l ऐसे में अनजाने में उसने सफला एकादशी का व्रत पूरा कर लिया l


कार्यों में पाई सफलता


सफला एकादशी व्रत के प्रताप से विष्णु जी ने उसे समस्त पापों से मुक्त कर दिया और वह पुन: राज्य में पिता के पास रहने लगा l पिता ने सारी बात जानकर पुत्र लुम्पक को राज्य की जिम्मेदारी सौंप दी और वन में हरि भजन करने चले गए l लुंम्पक ने वृद्धावस्था तक शास्त्रानुसार राज किया और अंत में वन में जाकर विष्णु जी का पूजा, एकादशी व्रत के फल स्वरूप मोक्ष प्राप्त हुआ l मान्यता है कि सफला एकादशी का व्रत व्यक्ति के सारे कार्य सिद्ध कर देता है l