यत्र पूज्यन्ते नार्यस्तु - भारत वर्ष - 2 संदीप सिंह (ईशू) द्वारा महिला विशेष में हिंदी पीडीएफ

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यत्र पूज्यन्ते नार्यस्तु - भारत वर्ष - 2

यत्र पूज्यन्ते नार्यस्तु - भारत वर्ष - 2

यह सती प्रथा ही नहीं बल्कि कई कुरीतियां (जिनमे प्रमुख अन्तर्जातीय विवाह - जो तब मजबूरी मे होते थे बाद मे स्वैच्छिक उसके उपरांत धोखे की प्लानिंग {सुनियोजित रूपरेखा} के अंतर्गत) मुगल काल के अत्याचारों के कारण स्थापित हुई थी। इसके विषय मे मैं आप सभी को प्रथम भाग मे ही बता चुका हूँ।

मुगल काल - यह काल को स्त्रियों की दृष्टिकोण में काला युग माना जाता है। इस समय में भारत देश पर आक्रांता मुसलमानों ने अपना आधिपत्य कायम कर लिया।

किन्तु अपने स्वाभिमान के लिए किए गए प्रयास को आज के तथाकथित बुद्धिजीवियों ने बड़ी सफाई से मूल तथ्य हटा कर मुग़लों का यशोगान करने (अपने राजनैतिक, आर्थिक, स्वार्थपूर्ण हितों के वशीभूत) का ही प्रयास किया।

यही वह मूल कारण रहा कि आज भारत के प्राचीन इतिहास मे अपनों का उल्लेख पाश्चात्य प्रभाव मे है, या तो धूमिल है।
उन्होंने हिन्दू स्त्रियों को जबरजस्ती धर्म परिवर्तन करवाया और उनके साथ ज्यादतियां शुरू कर दी। हिन्दुओं ने स्त्रियों पर अनेक प्रतिबंधात्मक निर्देशों लगने लगे।

इस काल में नारी की दशा दयनीय हो गई। उसे घर में गुलाम की तरह रखा गया। नारी को घर की चारदीवारी की कैद में रहने के लिए मजबूर किया गया । उस समय पर्दा प्रथा जोरों पर रही ।बाल विवाहों को प्रोत्साहन दिया जाने लगा।

उस समय की नारी को शिक्षा से वंचित रखा गया। मध्यकाल में स्त्रियों की स्वतंत्रता सब प्रकार से छीन ली गई और उन्हें जन्म से लेकर मृत्यु तक पुरूषों पर अधीन कर दिया गया।

इस युग में नारी को सेविका बनाकर शोषण किया जाने लगा। नारी को वेश्यालयों में बेचा भी जाता था।
मुगलों के आक्रमण से हिंदू समाज का ढांचा चरमरा गया था। वे परतंत्र होकर मुगल शासकों का अनुकरण करने लगे थे।


मुगलों और विदेशी आक्रांताओं के लिए नारी भोग विलास तथा वासना पूर्ति मात्र की वस्तु थी। इसी कारण नारी का कार्यक्षेत्र घर की चार दीवारी में सिमट कर रह गया था।

जिससे समाज में अशिक्षा, बाल-विवाह तथा सती प्रथा, पर्दा प्रथा का प्रचलन बढ़ा।इस प्रकार नारी मात्र दासी और भोग्या बन कर रह गई।

गोस्वामी तुलसीदास ने इस स्थिति का उल्लेख करते हुए कहा हैं कि -


कत विधि सृजि नारी जग माही.
पराधीन सपनेहुँ सुख नाही


आज के लेख मे भारत मे नारी की स्थिति को मैं तुलसी दास जी की ही रचना के माध्यम से बताने का प्रयास करूँगा।
तुलसीदास जी रचित रामचरित मानस में नारियों को सम्मान जनक रूप में प्रस्तुत किया है।
जिससे ‘यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते, रमन्ते तत्र देवता:’ ही सिद्ध होता है। नारियों के बारे में उनके जो विचार देखने में आते हैं उनमें से कुछ इस प्रकार हैं:-


धीरज, धर्म, मित्र अरु नारी।
आपद काल परखिए चारी।।
अर्थात धीरज, धर्म, मित्र और पत्नी की परीक्षा अति विपत्ति के समय ही की जा सकती है। इंसान के अच्छे समय में तो उसका हर कोई साथ देता है, जो बुरे समय में आपके साथ रहे वही आपका सच्चा साथी है। उसीके ऊपर आपको सबसे अधिक भरोसा करना चाहिए।

जननी सम जानहिं पर नारी ।
तिन्ह के मन सुभ सदन तुम्हारे ।।
अर्थात जो पुरुष अपनी पत्नी के अलावा किसी और स्त्री को अपनी मां सामान समझता है, उसी के ह्रदय में भगवान का निवास स्थान होता है।
जो पुरुष दूसरी नारियों के साथ संबंध बनाते हैं वह पापी होते हैं, उनसे ईश्वर हमेशा दूर रहता है।

(क्रमशः)

संदीप सिंह (ईशू)