प्यार की बातें - 3 - बड़े भैया SR Daily द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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प्यार की बातें - 3 - बड़े भैया

बड़े भैया
बड़े भैया ने घूर कर देखा तो स्मिता सिकुड़ गई. कितनी कठिनाई से इतने दिनों तक रटा हुआ संवाद बोल पाई थी. अब बोल कर भी लग रहा था कि कुछ नहीं बोली थी. बड़े भैया से आंख मिला कर कोई बोले, ऐसा साहस घर में किसी का न था. ‘‘क्या बोला तू ने? जरा फिर से कहना, ’’ बड़े भैया ने गंभीरता से कहा. ‘‘कह तो दिया एक बार, ’’ स्मिता का स्वर लड़खड़ा गया. ‘‘कोई बात नहीं, ’’ बड़े भैया ने संतुलित स्वर में कहा, ‘‘एक बार फिर से कह. अकसर दूसरी बार कहने से अर्थ बदल जाता है.’’ स्मिता ने नीचे देखते हुए कहा, ‘‘मुझे अनिमेष से शादी करनी है.’’ ‘‘यह अनिमेष वही है न, जो कुछ दिनों पहले यहां आया था?’’ बड़े भैया ने पूछा. ‘‘जी.’’ ‘‘और वह बंगाली है?’’ बड़े भैया ने एकएक शब्द पर जोर देते हुए पूछा. ‘‘जी, ’’ स्मिता ने धीमे स्वर में उत्तर दिया. ‘‘और हम लोग, जिस में तू भी शामिल है, शुद्ध शाकाहारी हैं. वह बंगाली तो अवश्य ही मांस, मछली खाता होगा?’’ ‘‘जी, ’’ स्मिता ने सिर हिलाया. ‘‘यह शादी नहीं हो सकती, ’’ बड़े भैया ने गरज कर कहा. ‘‘क्यों बड़े भैया?’’ स्मिता ने साहस जुटा कर पूछा. ‘‘क्यों, क्या दिखाई नहीं देता? एक उत्तर तो दूसरा दक्षिण. एक पूरब तो दूसरा पश्चिम. कहां है मेल इस में?’’ बड़े भैया ने डांट कर पूछा, ‘‘कैसे रह पाएगी उस वातावरण में?’’ ‘‘पर हम दोनों ने एकदूसरे से शादी करने का फैसला कर लिया है. क्या यह मेल नहीं है?’’ स्मिता ने दृढ़ता से उत्तर दिया. ‘‘अच्छा तो तू इतनी बड़ी हो गई है कि अपने फैसले स्वयं करेगी. लगता है तू अपने को विश्वसुंदरी समझने लगी है कि जो चाहे, कर लेगी, ’’ बड़े भैया ने व्यंग्य से कहा. स्मिता यह सोच कर चुप रही कि उत्तर देगी तो वे और भड़क जाएंगे. उन का टेप एक बार चालू होता है तो फिर बंद नहीं होता. कोई उत्तर न पा कर बड़े भैया ने पूछा, ‘‘और अगर मैं शादी की मंजूरी नहीं दूं तो?’’ ‘‘तो हम कोर्ट में शादी करेंगे, ’’ स्मिता का विद्रोह भड़क उठा. ‘‘शाबाश बेटी, ’’ भैया ने ताली बजाते हुए कहा, ‘‘तू ने मेरी इज्जत रख ली. अगर मैं शादी के लिए हामी भर देता हूं तो लोग हजार सवाल करेंगे. मैं जवाब देतेदेते थक जाऊंगा.’’ स्मिता को सहसा विश्वास नहीं हुआ कि बड़े भैया समर्थन कर रहे हैं या तीखा व्यंग्यबाण छोड़ रहे हैं. उन से किसी बात की, कभी भी उम्मीद की जा सकती थी. स्मिता दुविधा में पड़ गई. ‘‘अब क्या हुआ? चुप क्यों हो गई?’’ बड़े भैया ने डांट कर पूछा. स्मिता ने डरतेडरते कहा, ‘‘आप नाराज हो गए.’’ ‘‘हां, नाराज होने की बात ही है. अच्छी तरह से फै सला कर लिया है न? ऊंचनीच सब सोच लिया है न?’’ भैया ने कहा, ‘‘बाद में पछताएगी तो नहीं?’’ ‘‘जी नहीं, ’’ संक्षिप्त उत्तर दिया. ‘‘तो जाओ, कोर्ट में शादी कर आओ. मैं तुम दोनों को आशीर्वाद दे दूंगा, ’’ बड़े भैया ने भी अपना निर्णय सुना दिया. स्मिता का दिल डूब गया. स्वीकृति पा कर वह प्रसन्न नहीं हुई. हर लड़की की तरह वह भी वधू बन कर पूरी साजसज्जा और शृंगार के साथ विदा होने की अभिलाषा रखती थी. यह तो बिलकुल ऐसा ही होगा कि टिकट ले कर एक स्टेशन से दूसरे स्टेशन पर पहुंच गई. जब तक विद्रोह की स्थिति में थी, बहुत ऊंचाऊंचा सोचती थी और अब असलियत सामने आई तो दिल बैठ गया. सारे सपनों का रंग फीका पड़ने लगा. बड़े भैया 7 भाईबहनों में सब से बड़े थे और शायद इसीलिए यह नाम उन के व्यक्तित्व और ऊंचे दरजे के कारण उन के चेहरे पर चिपक गया था. मातापिता के गुजर जाने के बाद घर की सारी जिम्मेदारी उन के कंधों पर आ गई थी. 2 भाइयों की शादी तो पिता ने ही कर दी थी. मरने से पहले 2 बहनों की शादी तय कर दी थी. ये सब काम बड़े भैया ने ही किए हैं. इस बात की उन्हें प्रशंसा भी मिली. समय से तीसरी बहन की भी शादी कर दी. इसी समय उन की पत्नी का देहांत हो गया. उन की अपनी कोई संतान न थी. अब रह गई सब से छोटी बहन स्मिता, जो उन से 15 वर्ष छोटी थी. उन के बीच भाईबहन का नहीं, एक पितापुत्री का रिश्ता था. दोनों घर में अकेले थे क्योंकि अन्य बहनें ससुराल चली गई थीं और भाई अपनीअपनी नौकरियों पर अन्य शहरों में थे. स्मिता बड़े भैया से जितनी डांट खाती थी, उतना ही वह उन के सिरचढ़ी भी थी. कोर्ट की शादी से स्मिता धूमधाम की शादी से वंचित रही जबकि अनिमेष के परिवार वालों को लगा जैसे वे लोग धोखा खा गए. खाली हाथ, बिना दहेज की बहू के आने से उन की नाराजगी चेहरे पर एक बहुत बड़े मस्से की तरह दिखाई देने लगी. चूंकि अनिमेष ही अपनी कमाई से घर चला रहा था, इस कारण कुछ कहने का साहस किसी को न हुआ. ‘‘भाईसाहब, ’’ एक परिचित ने व्यंग्य से पूछा, ‘‘यह बेमेल शादी आप ने स्वीकार कैसे कर ली? कहां हम उत्तर भारत के, कहां वह बंगाली?’’बडे़ भैया ने कूटनीति का सहारा लेते हुए कहा, ‘‘भई, मेरी स्वीकृति का प्रश्न ही कहां उठता है? उन दोनों ने अपनी मरजी से कोर्ट में शादी कर ली तो मैं क्या कर सकता था? हां, आप को एक दावत न मिलने का दुख अवश्य होगा.’’ परिचित महोदय ने झेंप कर कहा, ‘‘मेरा मतलब यह नहीं था. पता नहीं कैसे निर्वाह करेंगे. आखिर उन दोनों की सांस्कृतिक पृष्ठभूमि तो बिलकुल अलग है न?’’ ‘‘सांस्कृतिक पृष्ठभूमि कुछ भी हो पर संस्कार तो सब के भारतीय ही हैं न. और फिर सारे विद्वान, जिस में आप भी हैं, कहते हैं न कि विवाह तो जन्म के साथ ही निर्धारित हो जाते हैं, ’’ बड़े भैया ने हंसते हुए आगे कहा, ‘‘मैं और आप क्या कर सकते हैं.’’ उन सज्जन का मुंह बंद हो गया. स्मिता ने दर्शनशास्त्र में एमए किया था और साथ ही बीएड भी कर लिया था. पहले एक स्कूल में और फिर एक अच्छे नामी कालेज में व्याख्याता के पद पर काम कर रही थी. अनिमेष दूसरे कालेज में वरिष्ठ व्याख्याता था. अकसर मिलतेजुलते रहते थे. एकदूसरे के प्रति आकर्षण ने अपना रंग जमाना शुरू कर दिया. अंत में शादी करने का भी इरादा कर लिया. दोनों परिवारों के विरोध का भी उन्हें आभास था, पर कोशिश यही थी कि शादी बिना किसी झंझट के हो जाए. बाकी देख लेंगे. आशा के विपरीत बड़े भैया ने कुछ नहीं कहा जबकि अनिमेष ने घर वालों ने कुछ समय तक असहयोग आंदोलन किया. शादी को लगभग 7 महीने हो चुके थे और ऊपरी तौर से सब की जीवनयात्रा सुचारु रूप से चल रही थी.