प्रेम गली अति साँकरी - 107 Pranava Bharti द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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प्रेम गली अति साँकरी - 107

107----

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कुछ तो था जो मुझे परेशान कर रहा था लेकिन पता नहीं क्या था?यह सब पता था प्रमेश के घर पर हैं, अम्मा-पापा यानि हम सब,मेरे हाथों में मंहगे रत्नजड़ित कंगन झिलमिला रहे थे | सामने प्रमेश और उसकी बहन भी थे, कुछ अजीब था लेकिन क्या? मस्तिष्क जैसे कुछ सोचने का काम कर ही नहीं पा रहा था | हँसी-खुशी खाना खत्म हुआ, सब आकर फिर से सुसज्जित सिटिंग रूम में बैठ गए|

“आज मेरा मनोकामना पूरा हुआ, जय देबी माँ, तुम्हारा ही सहारा है|”प्रमेश की दीदी ने जब हर बात में माँ को पुकारना शुरू किया तब मुझे कम से कम बहुत अजीब लगा | अम्मा-पापा अभी भी बैठे हुए मुस्करा रहे थे |

“क्या हुआ?”मैं शायद कुछ अधिक असहज थी|

“अरे ! तुम हमारे प्रोमेश का बैटर-हाफ़ बनने का वास्ते हाँ जो बोल दिया|”

“मैंने---? मैंने कब, कहाँ, किसको बोला ?”अचानक मैं हकला गई|

“अरे ! तुम बोला तबी तो हमने तुम्हारा मम्मी-पापा को बोलाया और तुमको अपना खानदानी कड़ा पहनाया|”

“हैं---मैंने कब बोला?और आपने ये खानदानी कड़े मुझे इसलिए दिए?”मैंने---?"

"मैंने?अपने कड़े चमकते हाथों को घुमा-फिराकर देखते हुए पूछा|

“मैंने----"

“हाँ,तुमने हाँ बोला तबी तो मम्मी-पापा आया?” प्रमेश की दीदी बिना झिझक बोले जा रही थीं|

“हाँ, बेटा अमी, तुमने हाँ बोला तब ही तो इन्होंने हमें यहाँ बुलाया|”पापा ने कहा|

मेरा सिर चक्कर खाने लगा| मैंने कब ‘हाँ’बोल दिया और मुझे ही पता नहीं है?ये क्या बबाल था?

“मैंने कब बोला?” मैंने फिर अपना प्रश्न दोहराया|“आपने बोला अमी,यहाँ दीदी को मिलने के लिए तबी मैंने दीदी को बताया कि तुम घर आने के लिए तैयार थीं|” प्रमेश की अभी तक बंद ज़बान खुली|

“अरे ! घर आना और रिश्ता पक्का कर लेने में फ़र्क नहीं है?”मैं किंकर्तव्यविमूढ़ थी|ये क्या तमाशा है?अभी तो मैं प्रमेश के बारे में इससे अधिक कुछ नहीं जानती कि प्रमेश सितार के बारे में बहुत पैशनेट है, वह एक बहुत अच्छा सितारिस्ट है| मैंने कड़े उतारने की चेष्टा की,क्या है यह सब ?अचानक मेरा दिल इतनी जल्दी से बैठने लगा जैसे अभी हार्ट फ़ेल हो जाएगा|

“ये क्यों उतार रहा है अमी ? ये हमारे प्रोमेश का अशुभ कोरना हय ?” प्रमेश की दीदी ने अचानक ज़ोर से कहा|

“क्या बात है अमी बेटा ? तुमने प्रमेश से बात नहीं की थी क्या?ऐसा क्या हो गया? हमें भी कुछ समझ में नहीं आया जब इन्होंने कहा कि तुम्हारी और प्रमेश की बात हो गई है और तुम इनके घर आ रही हो तब हमने भी सोचा कि तुम दोनों ने सोच लिया है|”अम्मा ने कहा | इस समय तक अम्मा-पापा कुछ असहज लगने लगे थे|

“तुम्हारी और प्रमेश जी की बात नहीं हुई थी क्या?” पापा ने भी अब मुझसे पूछा|

मेरे पास कुछ भी नहीं था कहने के लिए| मेरी आँखों में आँसु भर आए और मैं किसी भी बात का उत्तर देने में खुद को असमर्थ महसूस कर रही थी| कड़े मेरे लिए मानो जेल ले जाने वाले वो बंधन थे जिनकी चाबी सामने बैठी उस बंगालन ने अपने चाबी के गुच्छे में खोंसकर अपनी कमर में लटका ली थी|

“हम तो अमी को ये बी बोताया के यहाँ से आपका घर कितना पास हय ,शॉर्ट कट से?हैं न अमी?”

हाँ, वह सब तो ठीक था, बिलकुल बताया था लेकिन----मैं लेकिन में ही अटक गई थी| माना। मैं प्रमेश के साथ डेटिंग कर रही थी, डेटिंग क्या दो बार उसके साथ बाहर निकली और दो बार में ही उसके मुँह से शायद चार बार सुन लिया कि वह शादी से पहले रिलेशन बनाने में विश्वास नहीं रखता| जिसके साथ ज़िंदगी भर रहना हो, उससे कभी शारीरिक संबंध नहीं बनाने चाहिए---और उसके ही नहीं उसकी दीदी से भी कुछ ऐसे ही शब्द सुने थे| बिलकुल समझ में नहीं आ रहा था कि यह सब क्या था?

मुझे याद आया,मेरी एक दोस्त के भाई की शादी के लिए हम लड़की देखने गए थे,यह तब की बात थी जब हम कॉलेज में थे| मेरी दोस्त गुजराती थी और उसके भाई के लिए लड़की देखने जाने के लिए वह मुझे साथ ले जाना चाहती थी|वह गुजराती परिवार कुछ दिन पूर्व ही गुजरात से दिल्ली शिफ़्ट हुआ था और मेरी दोस्त वाणी को शक था कि उसकी होने वाली भाभी उनके परिवार में एडजस्ट हो सकेगी या नहीं? निश्चय किया गया था कि हम एक बार उस लड़की के घर जाकर उनका रहन-सहन और लड़की का व्यवहार तो देख लें|उसका भाई दिल्ली विश्वविद्यालय का कैमेस्ट्री में टॉपर था और जिस लड़की का रिश्ता उसके  लिए आया था, बताया गया था कि वह पोस्टग्रेजुएट थी| विषय याद नहीं था मुझे !

“चल न, तू अपनी गाड़ी में हमें लेकर चल,चुपचाप देखकर आते हैं|”उसने मुझसे कहा था और मैंने अम्मा से पूछने के बाद उसे हाँ कर दी| रविवार के दिन दोनों भाई-बहन संस्थान में आ गए और अम्मा के कहने के बावज़ूद भी हम ड्राइवर को साथ ले जाने के लिए तैयार नहीं हुए थे| कारण था कि वाणी और उसका भाई अनूप मेरे अच्छे दोस्त थे और हमारा मन था कि यदि हम सबको लड़की ठीक लगी तो हम उसको भी अपने साथ लेकर कहीं घूमने जाएंगे और आगे की बातें होती रहेंगी| गुजरात में वैसे भी काफ़ी स्वतंत्रता है इसलिए यदि लड़के-लड़की में कुछ बात बन जाती है तो हम उन्हें कहीं अकेले में छोड़ देंगे और हम दोनों कहीं फ़िल्म-विल्म देखने चले जाएंगे|

उन दिनों ऐसी बातों में बड़ा मज़ा आता था और डेटिंग के नाम पर युवाओं के दिल धड़कने लगते थे|हम तीनों उस गुजराती परिवार में गए और बड़ा अजीब सा इंप्रेशन लेकर आए| हुआ कुछ यूँ कि हम उस गुजराती परिवार में पहुँचे | हमें पानी के ग्लास दिए गए|लड़की ठीक-ठाक थी, वैसे अनूप के सामने तो उसका व्यक्तित्व हमें बहुत बौना ही लगा था लेकिन सबसे अजीब सी बात जो हुई वह यह थी कि लड़की बाहर आई और उसने चुटकी बजाकर हरेक के सामने पूछा –तमे शू लेशो ? चा---के कॉफ़ी---? उसने हम तीनों के सामने कुछ इस प्रकार चुटकी बजाई जैसे किसी बच्चे से किसी प्रश्न का उत्तर पूछने के लिए चुटकी बजाई जा रही हो कि –कम ऑन,जल्दी जवाब दो|

वाणी का परिवार भी गुजराती था लेकिन उसके पिता दिल्ली में एक बड़े महकमे में उच्च पदाधिकारी थे|ऐसे अजीब व्यवहार वाली लड़की का उस परिवार में ठीक से जम पाना मुश्किल ही था|इसलिए बात वहीं रुक गई लेकिन हम सबमें यह स्टाइल----चाय या कॉफ़ी ---और उसके बाद चुटकी बजाना,न जाने कितने समय तक मज़ाक का विषय बना रहा|

यह बार-बार कहना कि संबंध शादी के बाद ही बनाना है---बिलकुल असहज बना गया मुझे|मुझे चुटकी याद आ गई जैसे मेरे सामने चुटकी बजाते हुए पूछा जा रहा हो,’संबंध बाद में ही बनाना चाहिए न?”वैसे इन दोनों बातों में कोई समानता नहीं थी लेकिन न जाने मुझे क्यों वह बात याद आ गई थी|

“अभी जोलदी से डेट फिक्स कर लेना चाहिए---“प्रमेश की दीदी ने अम्मा से गले मिलते हुए कहा था और अम्मा-पापा बड़े अजीब बेचैन से हो रहे थे|वे घर आकर मुझसे बात करना चाहते थे|

“क्या सोच रही हो अमी?”मुझसे अम्मा ने पूछा |

मैं कुछ उत्तर नहीं दे पाई और कुछ देर बाद हम अपने घर की ओर चल दिए|