बहुत समय पहले की बात है माता वैष्णो देवी की चढ़ाई बहुत कठिन हुआ करती थी.
छोटा सा रास्ता था.
लोगों की श्रद्धा बहुत ज़ायदा हुआ करती थी. जब मात रानी का धयान आटा
था मुझे कटरा जाने का
दिल करता था
एक दिन मैने अपने पति से कहा के मुझे कटरा
जाना है पति हाँ कहते रहे और तालते
रहे. आखिर मैंने उनको कहा ठीक है पुणे में भी मंदिर है हम वहां जाते है श्याम तक पति ने कटरा की टिकट कर दी
हम कटरा के लिए चल पड़े
जैसे ही हम विमान
से उतरे
मुझे अपना
थैला टूटा हुआ मिला किसी तरह एयरपोर्ट वालों ने मुझे अपना थैला दिलवा दिया
. जैसे ही हम एयरपोर्ट से बहार आए तो रास्ता पूरा सुनसान था हम हैरान हो गए तब पता चला रात को मूसलधार बारिश हो चुकी थी .कहीं कोई टैक्सी नहीं देख रही थी. तब धुर एक सरदार देखा उसने इशारे से पूछा कहां जाना है मैंने इशारे से दिकाया
दर्शन करने. वो जल्दी आ गया और हमें दर्शन करवाने ले गया तब तक श्याम हो चुकी थी मेरी बेटी को बुखार था टिप टिप बारिश हो रही थी तो हमने उस रात को होटल में रहने को सोचा और सवेरे दर्शन करने का फैसला लिया
दूसरे दिन बेटी का बुखार भी उतर गया और बूंदा बूंद बारिश हो रही थी हम दर्शन करने निकल गए
मेरे पति देव और बेटी घोडे से गए और मैं पैदल चल पड़ी
मौसम अच्छा था और मुझे चढ़ाई में कोई तकलीफ नहीं हुई जल्दी ही मैं अर्धकुवारी पहुंच गई बिटिया और पति भी वही मिल गए और खा रहे थे मैं जब तक दर्शन नहीं करती कुछ खाती नहीं हूं. मैंने उनसे कहा तुम जाओ मुझे टाइम लगेगा हम शांझी छत पे मिलेंगे थोड़ी ही आगे निकली जोरदार तूफान आया मूसलाधार बारिश हो रही थी और तेज हवा चल रही थी बारिश के मोटे मोटे
दाने पीठ में पत्थर के तरह लग रहे थे हवा ऐसे थी के पेछे दो कदम दकेल रही थी मुझे अपनी बेटी और पति की चिंता हो रही थी सोच रही थी कहीं घोड़ा गिर ना जाए . मैं पूरी तरह भीगी हुई थी। जो छोटी मोती दुखाने खुली हुई थी उनकी कुर्सिया कहां कहाँ से कहाँ तक उद राही थी रास्ते में कोई नहीं था मैं बस अकेले ढकके खाके चली जा रही थी। एक हवा का झोंका ऐसे आया के जैसे किसी ने मुझे धक्का दिया मैं वहां एक अस्पताल का कमरा था मैं सीधे वहां जा के पहुंच गई मैं वहां क्या देखती हूं के वहां बहुत सारे लोग हैं लेकिन सबको नीचे जाना था. मेरी हलत बहुत बुरी थी. कपड़े गीले थे .मैं बस रो रही थी के दर्शन कैसे होंगे पति और बेटी कैसे मिलेंगे चार पांच घंटे वहीं पे रोये जा रही थी . तभी अचानक एक महिला आई और माता के जयकारे लगाने लगी मैं थोड़ा शांत हो गई वह महिला ने मुझे कहा मैं ने आपके लिए पिठू कर दिया है आप बाहर जाओ वो आपको छोड़ देगा . मैं उस महिला के साथ बाहर आ गई कुछ कदम आगे सांझीछठ आया वहां
कोई नहीं था सांझीछठ के छपर्रे टूटे हुए थे टिप टिप बारिश हो रही थी
जैसे तैसे उसी महिला के साथ दूसरी महिलाएं भी आ गई मुझे थोड़ी राहत मिली .लेकिन मैं हैरान थी एक बात पे के महिला ने अपने पैर में सिर्फ एक चप्पल पहन रखी थी और दूसरे पैर में वह नंगे पैर थी मैंने उससे पूछा उसने कहा पानी में बह गया उसे कहा मेरा बेटा भी नीचे रहे गया है अचानक मुझे मेरा पिट्ठू मिल गया पिथू के मिलने पर महिलाओं से मेरा ध्यान हट गया . पिठू ने मुझे थोड़े ढके दे के आगे चल आया थोडा आगे जैसे तैसे चल कर जोह
झरना
था उसका पानी मेरे सर बल में पर गिर
रहा था. मैं किसी तरह मंदिर तक पहुंच जाती हूँ पुजारी के अलावा मंदिर में कोई भी नहीं था किसी तरह वो महिलाए भी नहीं थी हर जगह बिजली कटौती थी पुजारी ने कहा नीचे जाने के सारे रास्ते बंद हो गए हैं रहने का बंदोबस्त है? क्यों के मेरे पति मेरे साथ नहीं थे मैं नीचे जाने का सोचा . पिथू
ने भी मुझे कहा आप ऊपर ही रूम कर दो हम कल सवेरे नेची जायेंगे
लेकिन मुझे नेची जाना था तो हम नेचे के लिए निकल पड़े . मैं ने टॉर्च खरीद लिया
रास्ते में पानी भरा हुआ था पेड़ भी गिरे हुए थे .हम जैसे तैसे रेंगते रेंगते गए.हम टॉर्च के सहारे चल रहे थे. जैसे ही टॉर्च की रोशनी राह पर पड़ रही थी क्या देखती हूं मैं के कुछ औरते मेरे आगे चल रही है. अँधेरे
में ऐसे चल रही थी जैसे उन्हें रास्ता पता हो . मैं ने पिठू से कहा थोड़ी रोशनी उन पर भी डालो जैसे वो ठीक से चल सके . आगे एक चाय की दुकान खुली हुई थी मैं ने सवेरे से कुछ नहीं पिया था या खाया था ठंडी से सुखद रही थी तो मैं ने चाय पीने का सोचा मैं ने उन औरतों से भी पूछा चाय पियो गे वो मेरे साथ आ गई क्या देखती हूं मैं के जो चूडिय़ां मैं ने माता पे चढ़ाई थी वही चूड़ियां उन औरतों ने पन्ही हुई थी मेरे मन में उत्सुकता हुई मैं ने उन से पूछा बहन आप ने ये चूड़ियां किधर से खरदी उसने उत्तर दिया हमें ये मंदिर में प्रसाद में मिला है मैं ने मन में सोचा चढ़ावा मैं ने किया और प्रसाद उनको मिला.चाय पेने के बाद हम आगे चल पड़े
उन पैसों की कोई बात नहीं कि चाय का कितना देना है उस तरह हम नीचे आ गए. होटल जाने के लिए कुछ सवारी चाहिए और सवारी जल्दी मिल गई मैंने उन औरतों से पूछा आप लोगों को कहीं छोड़ दूं उन्होंने कहा
नहीं हम यहीं पास में रहते हैं . उस समय पहली बार मैं ने
उस औरत की आंखों में चमक देखी बारिश का पानी टिप टिप उसकी आंखों से बह रहा है कुछ समझ में नहीं आया उन औरतों ने कहा फिर आना और मैं स्कूटर में चली गई .मेरे पति और बेटी खिड़की पर बैठे थे मुझे देखकर खुश हुए थकान के कारण मुझे नींद आ गई और अगली सुबह हम घर के लिए निकल पड़े.पति और बेटी को दर्शन नहीं मिले लेकिन वे खुश थे कि मैं सुरक्षित पहुंच गई घर पहुँच कर मैंने सबको अपना अनुभव बताया, सब मेरे पैर छूने लगे, मैं गई चौंक, वे सब बोले, माता
ने आपको दर्शन दिए फिर क्या हुआ रातों को नींद नहीं आई कई रातों को नींद नहीं आई यह सोचकर कि अरे हाँ वो औरतें कहाँ से आयीं और कहाँ चली गईं अगर उन्हें मंदिर में चूड़ियाँ मिलीं तो वे मुझसे आगे कैसे चल रहे थे और उन्हें दर्शन बाद में मिले होंगे उस महिला की चमकती हुई आंखें मेरे सामने आ रही थीं उन महिलाओं की आंखों की चमक हर बार अलग दिखती थी. जब मैं पिथू
से मिली तो वे औरतें कहाँ गईं उन महिलाओं ने कहा कि वे यहीं रहती हैं लेकिन आपको कुछ उन महिलाओं ने कहा कि वे यहीं रहती हैं लेकिन आपको कुछ सवारी
चाहिए ना यह सब सोचते हुए मैं कई रात सो नहीं पाया। आज भी मेरे रोंगटे खड़े हो जाते हैं