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आखरी मंजिल - भाग 2

वृद्ध आश्रम में आ कर मैने खुद को व्यस्त करने का भरपूर प्रयास किया, लेकिन रह रह कर बेटे और बहू का व्यवहार मेरे लिए नासूर बन गया। आश्रम के पुस्तकालय में बैठे कर अपना मन पुस्तकों में लगाया लेकिन नही। फिर मैंने यह भी सोचा, क्या होगा अतीत को सोच सोच कर।
अक्सर कोइ सेवा दार पूछ भी लेता,, बाबा आप बहुत ही परेशान रहते हैं क्या बात है,, लेकिन मै उन सबकी बातें सुन कर भी अनसुनी कर देता,, पूजा पाठ में भी मन लगाने का प्रयास करता लेकिन सब बेकार।
कभी कभी मै खुद से कहने लगाता, जरूर कोई कमी मुझ मे ही होगी जो बेटा बहु मेरे साथ निभा नही पाए।
अब मैं ख़ुद को आश्रम के माहौल में ढालने का प्रयास करने लगा और आश्रम के कामों में हिस्सा लेने लगा। मैं ख़ुद के बारे में सोच ही रहा था कि एक सेवा दार मेरे पास आया।
,, बाबा कल आश्रम का स्थापना दिवस है, आप अगर चाहें तो कोई स्पीच या कविता तैयार कर सकते है,,।
,, मैं कभी स्टेज पर गया नही हूं,,।
,, यहां बहुत से वक्ता कुछ न कुछ सुनाते हैं, आप भी कोशिश कर लेना,,। सेवा दार कह कर चला गया, मैं भी सोच में पड़ गया। आखिर कुछ सोच कर मैं अपने कमरे में आ गया और कागज कलम उठा कर लिखना शुरू कर दिया।
आज एक नियत समय पर प्रोग्राम शुरु हो गया, सभी वक्ताओं ने कुछ न कुछ सुनाया, जब मैनेजर ने मेरा नाम पुकारा तो मैं कंप कमपाते हुऐ पैरो से स्टेज तक आया और माईक को पकड़ कर
,, इस आश्रम के मैनजर साहब सहित सभी सेवा दार एवम इस आश्रम में आसरा पाए सभी वृद्ध जनों को मेरा प्रणाम अब मैं आप सबके सामने अपनी एक कविता जो शायद मेरे दिल का दर्द हो, रख रहा हूं।
आज एक सूखा पेड़ ही सही
कभी फलोंदार भी रहा होगा।
आज अंजान हर इक रीत से
कभी लोगों ने सामाजिक कहा होगा।
मै भी जमाने के साथ साथ कभी चला था
जैसे तुम्हें पाला लाड प्यार से
कभी मेरे माता पिता ने पाला था।
मैं मानता हूं कोई अहसान नहीं किया हमने
मगर बेवजह भी परेशान नहीं किया हमने।
मेरा क्या है चंद दिनों का मेहमान हूं
मै अब तो अपने लिए ही अपमान हूं।
नही चाहता तुम्हारे साथ भी ऐसा ही हो।
जो तुमने किया ठीक वैसा ही हो।
कहते कहते मेरी आंखो में आंसुओ की झड़ी लग गई, और मैं स्टेज से उतर गया, मौजूद सभी की आंखे भी भीग गई।मै अधिक समय तक वहां नही बैठ सका और अपने कमरे में आ गया। शाम को खाना भी नहीं खा सका।मैनजर सहित कई अन्य लोगों ने मुझे समझाया।
आज शरीर में कुछ थकान महसूस हो रही है, तभी कमरे के दरवाजे पर दस्तक हुईं,मैने दरवाज़े की ओर देखा, दरवाजे पर एक लगभग 60वर्षीय महिला खड़ी हुई है। मैं बिस्तर पर ही बैठ गया,
,, आप कौन , मैने आधे अधूरे शब्दों में कहा
,, जी, मेरा नाम सुधा है और मैं भी इसी आश्रम में रहती हूं करीब साल भर हो गया है, कल आपकी कविता सुन कर रात भर नींद नहीं आई,,।
,, आप अंदर आ जाओ,,। मेरे कहने के बाद सुधा कमरे में आ गई। और मेरे बिस्तर के पास स्टूल पर बैठ गई।
,, आप तो किसी ऊंचे परिवार से लगती हो,,।
,, जी, कभी थीं लेकिन आज, खैर छोड़ो मुझे लगता है कि आप का दुख मेरे दुख से बडा है,,।
,, जो बुजुर्ग इस आश्रम में रह रहा है, उन सबका दुःख बडा ही होगा वरना कौन है जो अपने बच्चों को छोड़ कर यहां रहने के लिए आए,,।
,, अगर आप बुरा न मानें तो एक बात कहना चाहती हूं,,।
,, हां हां कहो क्या कहना चाहती है आप,,।
,, क्या मै इस आश्रम से बाहर आपके साथ रह सकती हूं,,। सुधा के शब्दों ने मुझे हिला कर रख दिया।
,, हां हां क्यों नहीं,,।मैने हां करने में एक पल भी नही लगाया, मेरे हां करने के साथ ही सुधा की आंखे भीग गई।
,, यह आपने बहुत ही अच्छा सोचा, अगर बच्चें नही चाहते कि हम जिंदा रहें तो क्या हम जीना छोड़ दें,।
और अगले दिन मैंने सुधा को लेकर आश्रम छोड़ दिया,

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