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बंजारन चुड़ैल - भाग 2

फसल काटे खेत में गिरते ही शम्मी के हाथ से उसका बैग भी छूट कर दूर जाकर गिरता है और उसके हाथ कि हथेली में कांटे जैसी नुकीली लकड़ी बहुत अंदर तक घुस जाती है, जिससे वह दर्द से तड़प उठता है और उसके हाथ कि हथेली से टप टप करके लहू बहने लगता है, शम्मी रुमाल से हथेली के जख्म को बांधने के बाद अपनी जैकेट की जेब से सिगरेट कि डिब्बी निकाल कर उस डिब्बी से एक सिगरेट निकाल कर जलता है और हिम्मत करके अपने पास से सूखी कि लड़कियां घास फूस इकट्ठा करके आग जला लेता है।

और जब उसका ध्यान अपने पैर कि तरफ जाता है तो उसके पैर में पतंग कि डोर (मांझा) फांसी हुई थी, वह पतंग कि डोर को खींचता है, तो एक बहुत बड़ी पन्नी कि (पॉलिथीन) पतंग उसके साथ खींची चली आती है, उस पतंग में बच्चों को खुश करने के लिए पतंग बनाने वाले ने दो लाल सफेद रंग कि आंखे बना रखी थी।

पतंग को देखकर शम्मी को समझ आ जाता है कि जिसे मैं गिद्ध जैसा बड़ा उल्लू समझा कर डर दहशत कि वजह से मामा जी के गांव जाने की जगह उल्टा हाईवे कि तरफ भाग रहा था, वह उल्लू नहीं यह पन्नी कि पतंग थी और इस पतंग कि दो लाल सफेद रंग कि आंखों को मैं उल्लू कि आंखें समझ रहा था और पैर में इसकी डोर (मांझा) फांसी होने कि वजह से जब मैं चलता था, यह चलती थी और जब मैं रुकता था यह पतंग रुकती थी।

उल्लू मैंने इसे इसलिए समझा क्योंकि जब मैं कोलकाता के अस्पताल में नया-नया वार्ड बॉय की नौकरी पर लगा था, तो अस्पताल के स्टाफ ने मुझ से कहा था कि चौथी मंजिल मेडिसिन वार्ड में संभाल कर ड्यूटी करना क्योंकि चौथी मंजिल मेडिसिन वार्ड में रात को एक से तीन बजे के बीच एक उल्लू आता है, वह उल्लू उल्लू नहीं भूत है, लेकिन मैंने जितने दिन भी अस्पताल के मेडिसिन वार्ड में वार्ड बॉय कि पोस्ट पर काम किया मुझे वह उल्लू दिखाई नहीं दिया था।

फिर शम्मी अपनी हिम्मत स्वयं ही बढ़ाने के लिए अस्पताल कि एक दूसरी घटना को याद करता है, उन दिनों उसकी नाइट ड्यूटी मुर्दा घर में चल रही थी, एक रात एक अधेड़ आयु के बहुत मोटे आदमी कि लाश रोड़ एक्सीडेंट के बाद मुर्दाघर में लाई गई थी, उस रात मेरे साथी कर्मचारी ओंकार ने बहुत ज्यादा शराब पी रखी थी और जब वह मेरा साथी कर्मचारी ओंकार मुर्दाघर के अंदर किसी काम से गया तो मुर्दाघर के अंदर उस अंधेड उम्र के पुरुष कि लाश हवा में कमरे में इधर-उधर उड़ रही थी उस लाश को देखकर ओंकार भूत-भूत चिल्लाता हुआ मेरे पास आकर बेहोश हो गया था।

और जब मैं भाग कर सिक्योरिटी गार्ड डॉक्टर को बुलाकर लाया तो डॉक्टर ने हम सबको बताया कि शव के कान नाक को रूई डालकर अगर बंद ना करो तो शव में हवा भर जाती है और यही इस शव के साथ हुआ इसलिए यह है, शव कमरे में हवा भरने कि वजह से इधर-उधर उड़ने लगा और मानसून के मौसम कि वजह से आज रात कितनी तेज आंधी भी चल रही है इस वजह से भी शव में जल्दी हवा भर गई।

अस्पताल कि दोनों घटनाओं को याद करके शम्मी का भूत प्रेत का डर निकल जाता है और वह अपने आस पास से मोटा डंडा ढूंढ कर अंधेरे में अपने ननिहाल का रास्ता ढूंढने के लिए मशाल बनता है, मशाल में अपने बैग से रूई (डेवलप) निकाल कर लगता है और एक पैर के जूते का फीता निकाल कर मशाल को कसकर बांध लेता है जैसे ही वह मशाल को माचिस से तिल्ली निकाल कर जलने लगता है, तो उसके पास एक कुत्ता आकर खड़ा हो जाता है।

कुत्ते को देखकर शम्मी खुश हो जाता है कि बड़े बुजुर्ग कहते हैं कि कुत्तों को देखकर भूत प्रेत चुड़ैल भाग जाते हैं, कहीं कुत्ता उससे डर कर भाग ना जाए इसलिए शम्मी जो मिठाई का डिब्बा मामा मामी के घर देने के लिए लाया था, उस मिठाई के डिब्बे से एक बर्फी का पीस कुत्ते को खाने के लिए दे देता है।

वह कुत्ता मिठाई सुंग कर खाने के बाद जब जबरदस्ती शम्मी की हथेली से बहते लहू को चाटने लगता है तो शम्मी अपना बचाव करने के लिए मशाल के मोटे से डंडे से उस कुत्ते को मार कर अपने से दूर भागता है, तेज मशाल का डंडा लगाते ही वह कुत्ता कुत्ते जैसे नहीं सियार (गीदड़) जैसे चिल्ला चिल्ला कर रोने लगता है और उसके तेज तेज चिल्लाते ही उसके साथी कुत्तों का झुंड वहां आकर शम्मी को घेर लेता है।

और जब मशाल जलाकर मशाल कि रोशनी में शम्मी ध्यान से देखता है, तो उसके होश उड़ जाते हैं, क्योंकि वह कुत्तों का झुंड नहीं था, बल्कि सियार (गीदड़ों) का झुंड था।

शम्मी उनसे अपनी जान बचाने के लिए वहां से अंधाधुंध भागना शुरू कर देता है और शम्मी के पीछे सियारों (गीदड़ों) का झुंड भी दौड़ने लगता है और जब उन सियारों (गीदड़ों) के झुंड को नीलगाय और उसका बच्चा नजर आते हैं, तो वह शम्मी का पीछा छोड़कर नीलगाय के बच्चे का शिकार करने उसके पीछे पड़ जाते हैं।

और तभी शम्मी को मशाल कि रोशनी में रेल कि पटरी नजर आती है।

उस रेल कि पटरी को देखकर शम्मी को याद आता है कि यह रेल कि पटरी तो मामा जी के गांव के पीछे से गुजर रही है और यहां आस-पास ही मामा जी के गांव का श्मशान घाट है और शमशान घाट के पास छोटा सा महादेव का मंदिर है।

फिर वह सोचता है आज कि रात मैं मंदिर के अंदर ही लेट बैठकर बिताऊंगा।

इसलिए शम्मी महादेव का मंदिर अपनी अधजली मशाल को दोबारा जलाकर ढूंढता है।

मंदिर इतना छोटा था कि उसे अपनी ननिहाल के गांव के लोगों पर बहुत गुस्सा आता है कि छ वर्ष में मंदिर कि कोई तरक्की नहीं हुई है, गांव के लोगों से इतना भी नहीं हुआ कि चंदा इकट्ठा करके ज्यादा बड़ा नहीं तो इतना बड़ा मंदिर तो बना ही देते जिसके कि एक आदमी तो इस जाड़े कि ठंड में सर छुपा कर रात काट लेता।

फिर वह सोचता है एक बार में सही सलामत मामा जी के गांव पहुंच जाऊं तो सबसे पहले मैं खुद मंदिर के लिए चंदा देकर महादेव के मंदिर के निर्माण कि शुरुआत करूंगा और फिर गांव का श्मशान घाट देखकर सोचता है कैसे लोग हैं, मामा जी के गांव के श्मशान घाट के नाम पर खाली मैदान छोड़ रखा है फिर अपने मन में कहता है मुझे कौन सा गांव में जिंदगी बितानी है, कुछ दिन ममेरी बहन कि शादी तक रुक कर वापस कोलकाता चले जाना है।

और अपने बैग से मिठाई का डिब्बा निकाल कर पहले मिठाई महादेव को चढ़ता है फिर दो पीस मिठाई के खाते ही उसे बचपन में नानी से सुनी यह बात याद आ जाती है कि नानी कहती थी कि दूध पीने के बाद अगर घर से बाहर जाओ तो चूल्हे की थोड़ी सी राख चाट लेनी चाहिए वरना बुरी आत्माएं चिपट जाती है, और फिर शम्मी सोचता है, मैं तो सफेद बर्फी खाकर श्मशान घाट के पास बैठा हुआ हूं, मुझसे तो आज कोई भूत चुड़ैल पक्का चिपटेगा।

फिर सोचता है भूत प्रेत होते तो मुझे अब तक इस वीराने में दिखाई दे जाते मैं इतने सालों से पोस्टमार्टम रूम मुर्दाघर में नौकरी कर रहा हूं, मैंने तो आज तक भूत प्रेत देखे नहीं शायद भूत प्रेत होते ही नहीं और फिर महादेव की मूर्ति कि तरफ देखकर सोचता है अगर भगवान है तो भूत चुड़ैल भी है।

और उसी समय श्मशान घाट से एक आवाज आती है "अकेला अकेला बर्फी खा रहा है, मैं दो दिन से यहां भूख प्यासा अपनी चिता के पास बैठा हुआ हूं मेरी तरफ ध्यान भी नहीं दे रहा मुझे भी दो पीस मिठाई के खिला दे बहुत तेज भूख लग रही है या तू भी मेरे जुआरी शराबी बेटे जैसा है, जो मुझे फूंक कर दो दिन से मेरी चिता की राख के पास चाय पानी खाना कुछ भी रखने नहीं आया है।"

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