भरोसा - भाग 5 Gajendra Kudmate द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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भरोसा - भाग 5

भाग - ५
थोडी देर में वह इन्स्पेक्टर और उसके दोनो साथी वापस लौटकर आ गये. उन्होने चाची से कहा, “ माई वह अंधेरे का फायदा लेकर भाग गये. यह उनका रोजका हि है. आये दिन वह युं हि लोगो को लुटते है, हम भी परेशान हो गये है. आज मौका लगा था हात में लेकीन फिर से वह भागने में कामियाब हो गये.” उसके बाद फिर वह चाची से बोला, “ वैसे माई इतनी रात को तुम कहा से आ रही हो.” तब चाची ने उससे कहा, कि हम मांझी गाव से आये है, हम रामदिन को ढूढने आये है. फिर चाची ने बुधिया कि तरफ उंगली दिखाई और पुरी बात इन्स्पेक्टर को बताने लगी. पुरी बात सुनने के बाद वह बोला, “ माई इतने बडे शहर में सिर्फ नाम के सहारे कैसे उस आदमी को ढूडेंगे. उसका नंबर है क्या हा है और बुधिया नंबर कि चीट ढूढने लगी.” बदनसीबी से वह चीट भी उस लफंगे के साथ छीना झपटी में कही गिर गयी. वह इन्स्पेक्टर बोला, “ अरे राम वह भी खो गयी. देखता हुं आप लोगो का कुछ इंतजाम करना पडेगा.” कहते हुये वह फोन पर बात करने लगा. उतने में हि एक और गाडी स्टेशन के करीब आ गयी. उस में से एक साडी में एक औरत निकली. वह शायद किसी को छोडने आयी थी.
वह उतर कर सीधे स्टेशन के अंदर गयी और थोडे देर में बाहर आयी. बाहर आते हि वह चाची और बुधिया को देखने लगी. वह सोचने लगी इतनी रात को यह मां बेटी यहा क्या कर रही है और रो क्यो रही है. उसने देखा पुलिस भी खडी है, तो वह पुछ्ने चाची के करीब आने लगी. तभी उसकी नजर इन्स्पेक्टर पर पड गयी. वह औरत वही रुक गयी और इन्स्पेक्टर कि तरफ चली गयी. इन्स्पेक्टरने उसे देखा तो उसने फोन बंद कर दिया और वह आपस में बात करने लगे. शायद वह एक दुसरे को जानते थे. फिर दोनो चाची और बुधिया के पास आये और वह इन्स्पेक्टर बोला, “ ममता यह मां बेटी गाव से शहर आये किसी रामदिन को ढूढने. लेकीन इनके पास उसका न पता है एक फोन नंबर था तो कुछ लफंगे इनके साथ जबरदस्ती कर रहे थे उनका सामना करने के दौरान वह नंबर भी कही खो गया. दोनो भी अनपढ और शहर में बिलकुल अनजान. मुझे समझ नही आ रहा इनका रात भर रुकने का बंदोबस्त कहा करू. थाने में महिलाओ को रख नही सकते इस हि बात से मै परेशान हुं.” इसपर वह औरत बोली, “इसका सोलुशन है मेरे पास.” वह इन्स्पेक्टर बोला, “ क्या और कैसा बताओ, ममता .” फिर वह बोली, “ मै इन्हे अपने घर लेकर जाऊंगी.” “ ओह That’s Great Idea ! तुमने तो मेरे दिल का बोझ हलका कर दिया. Thank You ! इनकी अगर मदत कर दोगी तो मुझपर तुम्हारा बहोत अहसान होगा. ” वह बोली ऐसी कोई बात नही वैसे भी मै भी एक नारी और साथ हि साथ मै एक बेटी कि मां भी हुं और नारी का दुख दर्द मै भी जानती हुं. तुम कोई चिंता मत करो मै इनको लेकर जातो हुं. फिर वह औरत चाची से बोली, “ चलिये मां जी मेरे घर चलिये.” चाची बिना किसी हिचकीचाहट के गाडी में बैठकर जाने के लिये तयार हो गयी थी. क्यो कि ममता के मन को उसकी बातो से हि चाचीने पढ लिया था. साथ हि साथ चाची भगवान का धन्यवाद भी कर रही थी. वह जानती थी कि वह इन्स्पेक्टर और ममता भगवान के भेजे हुये दूत है जो उन्हे संकट से उबारकर सुरक्षित स्थान पर पहुचा रहे है.
गाडी स्टेशन से निकली और चाची और बुधिया ने हाथ जोडकर इन्स्पेक्टर का धन्यवाद किया. गाडी बढती गयी लेकीन बुधिया कुछ नही बोल रही थी. वह एकदम डरी सहमी बैठी थी. तभी चाची बोली, “ क्या हुआ बेटी, अब क्यो डर रही हो. अब तो हम सुरक्षित है.” तभी ममता बोली, “ देखो अभी आप दोनों को जरा भी घबराने जरुरत नही है.” आप जिसे ढूढने आये है मै उसको या उसके घर को ढूढने में आपकी पुरी मदत करूंगी. फिर ममता माहोल को हलका करने के लिये बुधिया और चाची के साथ इधर उधर कि हलकी फुलकी बाते करने लगी. देखते हि देखते वह तीनो ममता के घर पर पहोच गयी. गाडी घर के गेट के अंदर जैसे हि दाखील हुई, चिंकी भागते हुये मम्मी कहती हुई ममता कि ओर लपकी. जैसे हि ममता गाडी से उतरी उसे चिंकी को गोद में उठा लिया. चिंकी ने चाची और बुधिया को देखकर सवाल किया, यह दादी और दिदी कौन है. तब ममता ने कहा , “बेटा वह हमारे मेहमान है.” फिर चिंकी ने सवाल दागा, “आपके गाव से आये है ” ममता बोली, “ नही , किसी और गाव से.” फिर चिंकी का एक और सवाल, “ तो फिर पापा के गाव से.” तब ममता बोली, “नही मेरी अम्मा, पापा के भी गाव से नही.” चाची और बुधिया चिंकी के उस मासूम सवालो से अब तक उनपर जो बिता था उसकी कडवी यादे कुछ हद तक भूलने में कामयाब हो गये थे. ममता ने दोनों को एक कमरा खोलकर दिया और कहा, “ आप दोनों हाथ मुह धो लीजिये और खाना खाने के लिये आईये. खाना खाने के बाद दोनों चैन से अपनी निंद लीजिये जो करना है हम कल करेंगे सुबह.” चाची और बुधियाने हाथ मुह धोये और पेट भर के खाना खाया और चैन से दोनों दिन भर कि थकान भुलकर सो गयी.
शेष अगले भाग में .............