भरोसा - भाग 1 Gajendra Kudmate द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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भरोसा - भाग 1

भरोसा भाग - १

सुबह का समय है, थंडी थंडी हवा चल रही है. चिडिया के शोर से सारा गाँव जाग गया है. सर सर आवाज के साथ बुधिया का आगमन हो गया है. हाँ! बुधिया, हमारी नायिका , हमारी यह कहानी एक गांव कि है. जहा एक छोटेसे घर में बुधिया रहती है. उस घर में वह अकेली हि रहती है. सुबह का वक्त है, बुधिया अपने घर के पिछवाडे आंगन में झाडू लगा रही है. तभी पडोसवाली चाची उसे पुकारती है, “ बुधिया ऐ बुधिया ! तभी बुधिया कहती है, हाँ चाची ! मै घर के पिछवाडे में हुं.” बोलते बोलते वह घर के आगे आ जाती है और कहती है, “हाँ चाची, बोलो कैसा हाल है?” चाची कहती है, “ अरे मेरा क्या हालचाल होगा, जैसा कल था वैसा हि आज भी है. वैसे मजे तो तुम जवान लोगो के होते है. हम बुढो को कोई पलटकर भी नही देखता है.” इतना कहकर दोनों जोर से हंस पडती है.
तभी चाची बुधिया से कहती है, “ रामदिन कि कोई खबर आयी के नही?” रामदिन बुधिया का पती जो शहर गया है काम करने के लिये. बुधिया कहती है, “ नही चाची, वह तो जब से गाव से गये है, तब से कोई खबर नही है. पिछले महिने फोन किये थे, तो कह रहे थे, बडे साहब छुट्टी नही दे रहे है. इसलिये गाँव आना नही होगा.” तभी चाची बौखलाकर कहती है , “ आग लगे ऐसी नौकरी को और भाड़ में जाये ऐसे साहब, जो खुद कि लुगाई को मिलने के लिये भी छुट्टी नही दे रहा है. कहा भरेगा इतना पाप हरामी कही का.” उपर से यह कम अकल रामदिन, क्या उसको भी कोई समज नही है क्या? शहर में नौकरी करने गया है. अच्छा ठीक है पेट भरने को गया है लेकीन लुगाई को तो साथ में लेकर जाना चाहिये. नालायक लुगाई अगर साथ नही रहेंगी तो बच्चा कहा से आयेगा. क्या वह भी गाववाले हि देंगे.” “ अरे अरे चाची ! क्या बोल रही हो?” बुधिया बोलती है. तभी चाची बोलती है, “ क्या मै गलत बोल रही हुं, जवान लडकी ब्याहकर पती के घर आयी और पती हि उसे अकेला छोडकर शहर में जाकर रह रहा है और लुगाई गाव में अकेली रहती है. दुसरे मर्द तो ऐसी औरत पर हमेशा नजरे गड़ाए रहते है. कभी उस लडकी के साथ कुछ उंच नीच हो जाये, तो वहा शहर में बैठे बैठे बच्चा उसके पास पहुंच जायेगा है के नही बोलो .”
तभी बुधिया बोलती है, “ किसकी इतनी हिम्मत है गाव में जो ऐसा करेगा, मेरी चाची नही मेरी मां है ना मेरे साथ.” कहकर चाची को गलेसे लगा लेती है. उसपर चाची उसको कहती है, “ चल झुठी !” तभी बुधिया कहती है, हाँ चाची ! तुम हि तो हो जो मेरा इतना ख्याल रखती हो और मेरा सहारा हो. तुम्हारे सहारे से हि तो मै यह जानलेवा अकेलापन झेल रही हुं. चाचाजी के जाने के बाद तुम भी अकेली थी और इनके शहर जाने के बाद मै भी अकेली. हम दोनों एकदुसरे का सहारा बनकर जी रहे है.” कहते कहते बुधिया कि आंखे छलक जाती है. चाची बुधिया को सांत्वना देती है और उसके आंसू पोछ्ते हुये कहती है, “ बेटा ! मुझे मेरे बारे में नही तेरे बारे में बुरा लगता है. तू अपना घर छोडकर पती के घर यहा यहां गाव में आयी. तू सुहागन होकर भी एक विधवा कि जिंदगी जी रही है, क्या जीवन का जहर पी रही है, मेरी बच्ची.” कहते हुये चाची कि भी आंखे भर आयी थी और वह दोनो भी एकदुसरे को गलेसे लगाकर रोने लगी.
तभी चाची स्थिती को संभालती है और कहती है, “ चूप हो जा बेटा ! युं रोने से जिंदगी नही कटेगी. उसके लिये काम करना पडेगा और पेट में कूछ डालना पडेगा.” उसके बाद बुधिया भी खुदको संभालते हुये बोलती है, हाँ चाची, सही कहती हो तुम.” तभी चाची उंची आवाज में कहती है, “ हाँ चाची कि बच्ची सिर्फ बकलोली हि करती रहोगी, या सुबह कि चाय भी पिलायेगी.” तभी बुधिया कहती है, हाँ चाची क्यों नही ! मुझे मालूम है मेरी चाची का आगमन होने वाला है. इस हि लिये मैने बढीया अदरकवाली चाय बनाकर रखी है. मै तो बस तुम्हारे आने का इंतजार कर रही थी. तुम आराम से बैठो मै चाय लेकर अभी आती हुं.” कहकर बुधिया घर के भीतर चली जाती है. थोडी देर के बाद चाय के दो कप लेकर बुधिया बाहर आकर कहती है, लो चाची गरमा गरम चाय.” और दोनों चाय पिते हुये गपशप करती है.

शेष अगले भाग में ................