Amma Mujhe Mana Mat Karo - Part - 1 books and stories free download online pdf in Hindi

अम्मा मुझे मना मत करो - भाग - 1

रामदीन अपने गाँव की एक सुंदर-सी लड़की वैजंती से प्यार कर बैठा था। वह हर रोज़ वैजंती के घर के सामने से निकलता; एक बार नहीं, कभी-कभी तो दो तीन बार भी। जब तक वैजंती उसे दिखाई नहीं देती वह उसे रास्ते के पीछे ही पड़ जाता। वैजंती भी धीरे-धीरे समझने लगी कि यह लड़का उसी के लिए इस तरफ़ के चक्कर लगाता रहता है। धीरे-धीरे वैजंती को भी उसका इंतज़ार रहने लगा। जब तक वह भी रामदीन को ना देख ले उसका मन शांत नहीं होता। एक अजीब-सी बेचैनी उसे परेशान करती रहती। अब रोज़-रोज़ के आने-जाने से रामदीन को इतना तो समझ आ ही गया था कि उसे ग्रीन सिग्नल मिल रहा है। वैजंती उसे देखते ही शरमा कर अंदर भाग जाती लेकिन अगले दिन उसी समय फिर से बाहर आकर बैठ जाती।

एक दिन वैजंती के पिता ने रामदीन पर नज़र पड़ते ही उसे आवाज़ लगाई, “ऐ लड़के इधर आ …”

रामदीन कुछ पल के लिए घबरा गया परंतु फिर निडरता के साथ चलता हुआ वैजंती के पिता के पास आकर खड़ा हो गया और पूछा, “क्या है काका आपने मुझे क्यों बुलाया?”

“इधर से रोज़ निकल कर कहाँ जाता है तू?”

रामदीन ने फिर उतनी हिम्मत से जवाब दिया, “नहीं काका कहीं नहीं जाता। केवल टहलने के हिसाब से ही घूमता रहता हूँ।”

 अनुभवी दीनानाथ सब कुछ समझते हुए भी अब उससे कुछ भी कहने में असमर्थ लग रहे थे। फिर भी उन्होंने बात को आगे बढ़ाते हुए पूछा, “क्या काम करते हो? अरे पहले यह तो बताओ तुम्हारा नाम क्या है?”

“मेरा नाम रामदीन है काका और पेशे से मैं कुम्हार हूँ। मेरी ख़ुद की एक छोटी-सी दुकान है। मैं मेरे चाक के साथ व्यस्त रहता हूँ और मटके, गमले तथा मिट्टी के बर्तन बनाता हूँ।”

“अच्छा-अच्छा पिताजी क्या करते हैं?”

“पिताजी इस दुनिया में नहीं हैं। सिर्फ माँ है मेरे साथ और वह मेरे काम में मदद करती है।”

“मेरी बेटी वैजंती से ब्याह करोगे?”

वैजंती के पिता दीनानाथ ने सब कुछ जानने के बाद उससे सीधा प्रश्न कर दिया और उसके जवाब का इंतज़ार करने लगे।

रामदीन के मन में पटाखे फूटने लगे। वह जो पूछना चाहता था, सामने से उस लड़की के पिता ने ही पूछ लिया। उसने अपने आप को और अपनी ख़ुशी को नियंत्रित करते हुए कहा, “काका मुझे माँ से पूछना पड़ेगा।”

दीनानाथ ने मुस्कुराते हुए कहा, “अच्छा तो मेरी गली के चक्कर लगाने की अनुमति भी ली थी क्या अपनी माँ से?”

रामदीन शरमा गया और जाने लगा। जाते-जाते वह बोला, “काका शाम को माँ को लेकर आऊंगा।”

वैजंती दरवाजे की ओट में छिपकर सब सुन रही थी। वह वहाँ से हटे उससे पहले उसके बाबा अंदर आ गए और उन्होंने वैजंती को देख भी लिया। वैजंती ने अपनी ओढ़नी का कोना मुँह में दबाया और शरमा कर वहाँ से भाग गई।

दीनानाथ तो काफ़ी दिनों से रामदीन का आवागमन और अपनी लाड़ली का इंतज़ार करना देख ही रहे थे। इसलिए वह तो सब जानते ही थे।

उसी शाम को रामदीन अपनी माँ पार्वती के साथ वैजंती के घर पर आ धमका। दीनानाथ अब तक अपनी पत्नी माया को सब कुछ बता चुके थे। वह भी ख़ुश थी। रामदीन और पार्वती के आते ही उन्हें आदर सत्कार से बिठाया गया।

 

रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)
स्वरचित और मौलिक
क्रमशः

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