हमारा क्या ...ना मायका ना ससुराल Shalini Gautam द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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हमारा क्या ...ना मायका ना ससुराल

मायके में बेटी से अक्सर ये कहतें सुना गया है कि पराए घर जाना है,जरा ढंग से रहा करो, ससुराल आती है तो उसे सबसे सुना पड़ता है कि पराये घर से आयी है,ढंग सीखकर नहीआयी ।
आज तक मैं ये नहीं समझ पायी कि दोनों घर में सीखने वाला वो ढंग कौन सा है ।
शादी से पहले हम मायके में परायी बना दी जाती हैंl और ससुराल पहुंचकर हम फिर से परायी ही कहलाती हैं।
जरा कोई ये तो बताये कि पूरी जिंदगी मायके और ससुराल के नाम लिखने वाली उस बेटी का अपना घर आखिर है कौन सा?
मायके में हमारी राय मायने नहीं रखती, ससुराल मैं हमें कोई पूछता नहीं है।
मायके में घूमने, फिरने,दोस्तों के साथ जाने की बात कहो तो कहते हैं कि पति के साथ घूमना।
ससुराल में यही बात दोहराए तो कहतें है कि मायके में घूमने फिरने में कमी रह गई थी क्या, अब आप ही बताये हमारा क्या...ना ससुराल ना मायका।

रो रो कह गयी वो विदा होते होते पापा से, कि मेरे लिए मायके के दरवाजे खुले रखना,
और बाप ने पलभर नहीं लगायी ये कहने में, कि ससुराल की देहलीज मौत केबाद ही पार करना।

मायके में जिन सपनों को पूरा करने के लिए बेटी इतना पढ़ाई करती है, ससुराल जाकर उन्हीं सपनों का अपने हाथों से दमन करती है।
सभी के साथ ऐसा नहीं है पर जिनके साथ भी ऐसा होता है वो मेरी बातों से सहमत होंगे।
पर सच कहु तो अगर मायका जैसा ससुराल हो जाये तो हर बेटी को एक ही जन्म में दो दो माँ मिल जाये और वह कभी पराई ना कहलाये। घर में जैसा प्यार उसे दिया जाता है वैसा ही दुलार उसे ससुराल में भी मिले।
भाई बहन का सा प्यार देवर नंद में मिले, माँ पापा का प्यार सास ससुर में मिले, अगर ये हो जाए तो उसका जीवन खुशियो से खिले।

हर माँ बाप का अरमान होता है कि उनके घर बेटी का जन्म हो पर शादी के बाद उसके साथ होने वाली व्यवहार को देखकर कोई नहीं चाहता कि बेटी का जन्म हो । बड़े ही पुण्य किए होते है जिस घर मे बेटी जन्म लेती है और पल भर नहीं लगता उसके मायके से ससुराल के सफर में।
अपने से पराये होने के सफर में,
नन्ही सी शरारती बेटी से जिम्मेदार बहु बनने के सफर में,
गोद में खेलने वाली को गोद मे खिलाने वाली बनने में,
चंचल सी चंचला को ग़मभीर होने में ।
समाज का दस्तूर बदल क्यों नहीं देते,बेटी को ना देकर बेटे को क्यों नही लेते, सारा त्याग बेटी ही क्यों करे और तब भी वो ही अपने जीवन को दूसरों के हाथों कठपुतली की तरह नाचने को क्यों छोड़ें।
जिस दिन मायके और ससुराल का ये फासला काम को जाएगा ससुराल भी बेटियों का मायका कहलायेगा।

आइए,
एक ऐसा समाज बनाये जहाँ ना बेटी परायी हो और ना बहु परायी कहलाये,
बेटी बहु दोनों ही दहेज के नाम पर सिर्फ संस्कार और प्यार बांधकर लाए,
जिससे वो घर आँगन को हमेशा खुशियो से भरे और कोना कोना महाकाय।
धन्यवाद