अन्धायुग और नारी--भाग(३०) Saroj Verma द्वारा महिला विशेष में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
श्रेणी
शेयर करे

अन्धायुग और नारी--भाग(३०)

मिसेज थाँमस की बात सुनकर मैंने उनसे कहा....
"लेकिन आप मुझे चाँदतारा बाई के बारें में क्यों बता रहीं हैं",?
"क्योंकि भ्रमर का ताल्लुक चाँदतारा से है",मिसेज थाँमस बोलीं....
"मैं कुछ समझा नहीं",मैंने कहा...
"मेरे कहने का मतलब है कि भ्रमर चाँदतारा की बेटी है",मिसेज थाँमस बोलीं....
"ओह....तो ये बात है तभी वो मुझसे बात करने से कतराती थी",मैंने कहा....
"उसने मुझसे कहा था कि जिस रिश्ते के बीच में मेरी माँ के अतीत की काली परछाइयाँ आ जाएं तो उस रिश्ते को आगें बढ़ाने से अच्छा है कि पहले ही उसका अन्त हो जाएं,वो जानती थी कि जब तुम्हें पता चलेगा कि वो एक तवायफ़ की बेटी है तो तुम खुद ही इस रिश्ते को आगें नहीं बढ़ाना चाहोगे तभी उसने पहले ही तुमसे बात करने से मना कर दिया",मिसेज थाँमस बोली....
"उसने ऐसा कैसें सोच लिया कि मैं उसके साथ ऐसा करूँगा",मैंने कहा....
"क्योंकि तुम एक शरीफ़ खानदान से ताल्लुक रखते हो और वो किसी की नाजायज़ औलाद है", मिसेज थाँमस बोलीं...
"मुझे तो आपने ये बात बताकर बहुत बड़ी दुविधा में डाल दिया",मैंने कहा....
"इसका मतलब है कि वो अब तुम्हारे प्यार के काबिल नहीं रही",मिसेज थाँमस बोलीं....
"लेकिन मैंने ऐसा तो नहीं कहा",मैं बोला....
"उसे अपनाने से पहले एक बार जरूर सोच लेना क्योंकि ऐसी लड़की को तुम्हारे घरवाले कभी भी नहीं अपनाऐगें और अगर तुमने उसे अपना लिया तो समाज और अपने परिवार वालों से लड़ने के लिए तैयार रहना,समाज और उसके बन्धनों से अभी तुम रुबरु नहीं हो",मिसेज थाँमस बोलीं....
"लेकिन मैं भ्रमर का दिल भी नहीं दुखा सकता",मैंने कहा...
"तो फिर समाज से लड़ने के लिए तैयार हो जाओ",मिसेज थाँमस बोलीं....
"मुझे शायद वही करना पड़ेगा,क्योंकि मैं भ्रमर की नजरों में कायर साबित नहीं होना चाहता",मैंने कहा....
"एक बार अपने घर जाकर अपने परिवार वालों से बात करो,जब वें इस रिश्ते के लिए राजी हो जाएँ तो तभी बात आगें बढ़ाना",मिसेज थाँमस बोलीं....
"वें राजी ना भी हो तो भी मैं भ्रमर का साथ नहीं छोड़ूगा,किसी को धोखा देना मेरी फितरत में शामिल नहीं है" मैंने मिसेज थाँमस से कहा...
"तो फिर कमर कस लो बेटा! अब तुम्हें क्या क्या झेलना पड़ सकता है ये तुम्हें नहीं मालूम",मिसेज थाँमस बोलीं....
"अब जो होगा सो देखा जाएगा,जब ओखली में सिर दे ही दिया है तो फिर मूसलों से क्या डरना",मैंने कहा....
"शाबास! मुझे तुमसे ऐसी ही आशा थी",मिसेज थाँमस बोलीं...
और फिर उस दिन मैं भ्रमर से मिला और उससे कहा कि....
"मुझे माँफ कर दो,मैंने तुम्हें गलत समझा, मिसेज थाँमस ने मुझे तुम्हारी सारी सच्चाई बता दी है"
"आप भी मुझे माँफ कर दीजिए त्रिलोक बाबू! मुझे भी आपसे ऐसा व्यवहार नहीं करना चाहिए",भ्रमर बोली....
और उस दिन हम दोनों के बीच के सारे गिले-शिकवें दूर हो गए,मैं उसकी माँ चाँदतारा बाई से भी मिला और फिर उन्होंने मेरे पिता का और गाँव का नाम पूछा....
तब मैंने उन्हें बताया कि मेरे पिता का नाम मधुसुदन त्रिपाठी है और मेरे गाँव का नाम शंकरगढ़ है,मेरे पिता शहर में रहकर पढ़ाई करते थे,वें सरकारी नौकरी करना चाहते थे,चूँकि वें अपने पिता की इकलौती सन्तान थे इसलिए अपने पिता के स्वर्ण सिधारने के बाद गाँव की जमीन जायदाद सम्भालने के लिए फिर उन्हें मजबूरी में गाँव लौटना पड़ा,दादाजी के जाने के बाद माँ भी घर में अकेली पड़ गईं थीं और तब मेरे बड़े भइया का भी जन्म होने वाला था ,सो उनके पास गाँव वापस लौटने के सिवा और कोई रास्ता नहीं था.....
और जब चाँदतारा बाई ने मेरे पिता का नाम और गाँव का नाम सुना तो उनके चेहरे पर चिन्ता की रेखाएँ खिंच गईं,लेकिन वो उस समय मुझसे कुछ नहीं बोली.....
लेकिन मुझे बहुत अजीब सा लगा,ऐसा लगा कि जैसे भ्रमर की माँ चाँदतारा मेरे पिता से भलीभाँति परिचित हों,मन में आया कि पूछूँ कि क्या वें मेरे पिता को जानतीं हैं, फिर सोचा जाने दो कहीं वें कुछ गलत ना समझ बैठें और फिर मैं इस बारें में अपने पिताजी से बात करने के लिए अपने गाँव पहुँचा और पहले मैंने अपनी भाभी को बताया कि मैं किसी से प्रेम करता हूँ और उससे शादी करना चाहता हूँ,ये सुनकर मेरी भाभी बहुत खुश हुई और उन्होंने ये बात मेरी माँ से कही और मेरी माँ ने ये बात मेरे पिताजी को बताई......
ये सुनकर मेरे पिता जी भी बहुत खुश हुए और फिर वें माँ से बोले....
"उससे पूछो कि वो लड़की कौन है,ताकि लड़की के घरवालों से मिलकर हम उसका रिश्ता पक्का कर सकें",
तब बाबूजी के कहने पर मेरी माँ मेरे पास आकर बोली....
"तेरे बाबूजी तो राजी हैं इस विवाह के लिए,हमारे खानदान में ये पहला प्रेमविवाह होगा"
ये सुनकर मैं बहुत खुश हो गया और जब माँ ने मुझसे लड़की का नाम पूछा तो मैंने उन्हें बताया कि उसका नाम भ्रमरदासी है और तब उन्होंने पूछा कि उसके माता पिता कौन हैं और खानदान तो अच्छा है ना!
तब मैंने उनसे कहा कि....
"उसकी माँ का नाम चाँदतारा बाई है"
चाँदतारा नाम सुनते ही मेरी माँ बोलीं....
"चाँदतारा! कहीं ये वो तवायफ़ तो नहीं,जिसने सालों पहले मेरी जिन्दगी मुहाल कर रखी थी",
ये सुनकर मुझे झटका सा लगा और मैंने अपनी माँ से पूछा.....
"माँ! तुम कैसें चाँदतारा बाई को जानती हो"
"ये तुम मुझसे नहीं अपने बाबूजी से पूछो",
और ऐसा कहकर वें वहाँ से चलीं गई,माँ की बात सुनकर अब मुझे कुछ भी समझ नहीं आ रहा था कि अब मैं क्या करूँ,माँ तो मुझे उलझन में डालकर चलीं गईं और अब मैं अपने बाबूजी से कैसें पूछूँ कि वो चाँदतारा बाई को कैसें जानते हैं,मैं इसी उधेड़बुन में लगा हुआ था तभी भइया मेरे पास आकर बोलें....
"तेरी भाभी ने बताया कि तूने लड़की पसंद कर ली है",
"जी! भइया! लेकिन जब मैंने माँ को बताया कि उस लड़की की माँ का नाम चाँदतारा बाई है तो माँ बोली कि तुम उसके बारें में अपने बाबूजी से पूछो और अब मुझे समझ में नहीं आ रहा कि मैं क्या करूँ"?, मैंने भइया से कहा.....
"तुझे पता है कि तूने क्या किया है,तूने एक ऐसी औरत की बेटी को पसंद किया है जो हमारे खानदान के काबिल ही नहीं है",भइया बोले....
"मुझे मालूम है कि चाँदतारा बाई पहले एक तवायफ़ थी",मैंने भइया से कहा....
"और तब भी तू उसकी बेटी से शादी करने का इरादा रखता है",भइया बोले....
"लेकिन वो उसका अतीत था",मैंने कहा....
"और उसका अतीत हमारे खानदान पर कलंक लगाने लिए काफी है",
और ऐसा कहकर भइया बात पूरी किए बिना ही वहाँ से चले गए......

क्रमशः.....
सरोज वर्मा....