दशरथ पढ़ा लिखा वहीं तक था, जहाँ तक कि कुछ लिखा पढ़ सके। दशरथ का बचपन बहुत हिंज्यादा गरीबी में बीता था। गरीबी इतनी ज्यादा थी कि बहुत ही मुश्किल से परिवार का पेट भर पाता था। किसी दिन एक समय का खाना मिल पाता था तो कभी किस्मत की मेहरबानी रही तो तीनों टाइम पेट भर जाता था। दशरथ कभी यह सोच नहीं पाया था कि वो पढ़ भी सकता है इसलिए वो बचपन में बाप के साथ खेतों में काम करता था। बड़ा होने लगा तो बाप मर गया। पता नहीं कौन सी बीमारी से, शायद गरीबी वाली थी। खेत में मजदूरी कर के पेट पालना मुश्किल हुआ तो एक दोस्त की सलाह पर बीवी बच्चों के साथ दिल्ली का रास्ता नाप लिया। IHC में सफाई का काम मिल गया और दिल्ली की झुग्गियों में परिवार को पालने लगा। एकदिन IHC के STEIN AUDITORIUM में कुछ विशेष कार्यक्रम था। वैसे IHC में तो हमेशा ही कुछ-ना-कुछ विशेष होता रहता है। वो सफाई में लगा था कि तभी चार-पाँच महिलायें एकदम मॉडर्न पहनावे में अंग्रेजी में वार्तालाप करते हुए ऑडिटोरियम में घुसीं। वो फर्श देखता हुआ उस पर वाईपर चला रहा था। वो अपने काम को पूरी तल्लीनता के साथ कर रहा था,कि तभी एक मोहतरमा उससे जा टकराईं और उनके हाथ वाला एप्पल का नवीनतम मोबाइल सेट जमीन पर गिर पड़ा। शायद उन्हें भी पता था कि गलती शत-प्रतिशत उनकी है, फिर भी वो उस बेचारे पर बरस पड़ीं। "ठीक से देख के काम नहीं कर सकते तुम। जरा इधर-उधर भी देख लिया करो।" मोहतरमा अपना मोबाइल उठाते हुए चेहरा लाल करते हुए बोल रही थीं। व्यवस्थापक ने देखा तो उसने भी उसे डाँट पिलाई और मोहतरमा का गुस्सा शांत किया। कार्यक्रम पूरे आनंद के साथ देखने के बाद रात के 11 बजे जब सड़कें शांत हो चुकीं थीं, तो उन महिलाओं को घर जाते वक्त कार रेसिंग का खुमार चढ़ा। बस फिर क्या था! एक्सीलेटर पर पैर दिए सब बढ़ती जा रही थीं,कि अचानक उसी महिला की गाड़ी से एक बच्चा टकराया और हवा में कुछ दूर उछलने के बाद वापस जमीन पर। मोहतरमा घबराई और रफ्तार और तेज़ करते हुए सीधे घर पहुँच गयीं। वो लड़का दशरथ का 8 साल का बेटा था। उसकी झुग्गी के ठीक सामने सड़क पर नया सार्वजनिक शौचालय बना था। उसने कई बार अपनी झुग्गी में लगी TV में देखा था कि शौच शौचालय में ही करना चाहिए। वो शौच करने के लिए ही सड़क पार कर रहा था। गाड़ी देखकर वो सड़क किनारे ही खड़ा था फिर भी ये दुर्घटना घट गयी। जब कुछ देर तक वो वापस नहीं आया तो उसकी माँ उसे देखने बाहर निकली। सड़क पर उसे पड़ा देखकर वो यह भी नहीं जान पाई कि वो जिंदा है या मर चुका है। उसे उठाकर वो झुग्गी में ले आयी और दशरथ जहाँ काम करता था वहाँ फोन लगाने लगी। ऑफिस बन्द हो चुका था और सब अपने-अपने घर जा चुके थे। दशरथ भी अपनी साईकल से निकल चुका था। उसकी झुग्गी 15 किलोमीटर दूर थी। ऑफिस की घंटी बार-बार बजे जा रही थी...