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सॉरी शोना


"हेलो तुम दुखी हो....?" आइशा ने अवनीश से पूछा।
"हाँ बहुत ज्यादा...!" बहुत ही भारी गले से अवनीश ने उत्तर दिया।
" सॉरी बाबू अब कभी नहीं कहूँगी कि मैं अब तुमसे कभी नहीं मिलूँगी। कभी बात नहीं करूँगी। मेरा शोना इसी कारण बहुत डिप्रेस्ड है ना..." आइशा ने बड़ा प्यार जताते हुए कहा ।
"नहीं...!" अवनीश का स्वर बड़ा रूखा था। फोन के दूसरी तरफ आइशा को जैसे झटका सा लगा। उसने आज ही अवनीश से झगड़ा किया था। गलती चाहे किसी की भी हो अगले दिन तक अगर आइशा फोन नहीं करती थी तो अवनीश ही सॉरी बोल देता था। लेकिन आज तीसरा दिन हो गया था और अवनीश ने उसे एक मैसेज तक नहीं किया था। ऊपर से उसका ये कहना कि आइशा की बातों से वो डिप्रेस्ड नहीं है, आइशा को हैरत में डाल गया। उसे लगा इस बार अवनीश उसकी बातों से कुछ ज्यादा ही क्षुब्ध है।
" तो और क्या बात हो गयी बाबू। why are you so upset shona...?" आइशा अवनीश पर अपना पूरा प्यार बरसा रही थी।
" तुम नहीं समझ सकती।"बोलकर अवनीश तुरंत ही चुप हो गया।
"बेबी तुम अपनी बातें मुझसे नहीं बताओगे तो और किसे बताओगे और कौन समझेगी तुम्हारी बातों को। मुझे पता है तुम मुझसे गुस्सा हो, लेकिन इसका ये मतलब नहीं कि तुम मुझसे बात ही नहीं करोगे। सच-सच बताओ ना तुम मेरी ही बात से दुखी हो ना...! मुझसे ही गुस्सा हो ना....?" अवनीश को मनाने के लिए आइशा का प्यार मुसलसल जारी था।
" नहीं आइशा... ये तो बहुत ही छोटी बात है यार। तुमने मुझसे कुछ कहा और मैं डिप्रेस्ड हो जाऊँ।" अवनीश की बात सुनकर आइशा की बेचैनी और बढ़ गयी उसे लगने लगा और कौन सी बात से अवनीश इतना परेशान हो गया कि पिछले तीन दिनों में उसने उसे एक कॉल तक नहीं किया।
" तो कौन सी बात है जो इतनी बड़ी है?" आइशा ने बड़ी उम्मीद से अवनीश से पूछा।
पहले तो उसने सोचा कि आइशा से मिलकर ही बात की जाए लेकिन फिर वो फोन पर ही बताने लग गया।
"यार पता है जब तुमने मुझे भला-बुरा कहा था ना तो सच में मैं बहुत दुखी था। मैं तुम्हारे पास से ज्यों ही गया चौराहे पर एक छोटा सा प्रोग्राम चल रहा था। मन को हल्का करने के लिए मैं वहाँ रुक गया। वहाँ जाने पर पता चला कि "कारगिल विजय दिवस" का जश्न मनाया जा रहा है। कुछ लोग स्टेज पर बैठे हैं और कुछ लोग रो भी रहे थे। पता है वो क्यों रो रहे थे...?"
फिर बिना आइशा का जवाब सुने अवनीश शुरू हो गया।
"वहाँ ना सिर्फ कारगिल बल्कि अब तक जितने भी आतंकी मुठभेड़ में शहीद हुए सैनिक थे उनके परिवार वाले आये हुए थे। उन वीर सैनिकों को श्रद्धांजलि दी जा रही थी। एक बूढ़े दंपत्ति के दोनों बेटे ही शहीद हो गए थे। कई विधवाएँ वहाँ स्टेज पर थीं। अपनी जवानी में ही एक शूरवीर की विधवा...सोचो उसपर क्या गुजरी होगी। और पता है, हालिया मुठभेड़ में शहीद एक सिपाही की प्रतिमा सम्मान के तौर पर चौराहे पर लगाई गई थी। उसकी बहन उस प्रतिमा को ही राखी बाँध रही थी। आइशा इतना सबकुछ देखने के बाद मुझे तो याद भी नहीं रहा था कि तुमने मुझे कुछ कहा है। मैं इंजिनियरिंग पूरा करने के बाद भी मिलिट्री ही ज्वाइन करूँगा। क्या पता मेरी गोली ही अपने किसी शहीद भाई के लिए बदले का काम कर जाए।"
अवनीश की बातें सुनकर आइशा कुछ बोल नहीं सकी और वो भी एक सैनिक और उसके परिवार की जिंदगी के बारे में सोचने लगी। अब उसे भी अपनी बात बहुत ही छोटी लगने लगी थी....

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