पढ़ ही लीजिये...पुनः प्रसारण
इमली का पेड़
राजस्थान के रेगिस्तानी इलाके के उस गाँव में रस्ते के बीचों बीच खड़ा था वो इमली का पेड़। कोई नहीं जानता था कितना पुराना था वो पेड़, पर लोग कहते थे कि तीन पीढ़ियों से उस पेड़ को वैसा ही देख रहे हैं। पेड़ भी खूब इमलियाँ देता और ठंडी छाँव भी... बच्चों के लिए वो ख़ास आकर्षण था क्योंकि सबसे ज्यादा कच्ची पक्की इमली उन्हें भाती थी। उस पेड़ से कोई 100 मीटर की दूरी पर तरफ एक मंदिर बना था, एक तरफ एक मस्जिद बनी हुई थी।लोग मंदिर मस्जिद से आकर इमली के पेड़ के नीचे बैठकर सुस्ता लेते थे और गप्पें मार लेते थे, क्योंकि आस पास और कोई पेड़ नहीं था। गाँव के लोगों ने उस मिलकर उस पेड़ के नीचे एक चबूतरा भी बनवा दिया था।
सभी गाँव के लोग जो मंदिर मस्जिद आते थे उस चबूतरे पर बैठ ताश खेलते थे, सब कुछ ठीक चल रहा था, मंदिर का पुजारी और मौलवी भी उस खिलाड़ियों में शामिल होते थे। एक दिन ताश के खेल में एक झगड़ा हो गया, लड़ाई झगड़े से हाथापाई पर आ गई और हाथापाई से धार्मिक झगड़े पर, हिन्दू मुस्लिम तनाव हो गया और पत्थर बाजी तक हो गई।
कुछ दिनों में थोड़ा बहुत मामला शांत हुआ, पर अब इमली के पेड़ के नीचे ताश की टोलियाँ नहीं बैठती थी। अगर कोई मुस्लिम वहाँ बैठा होता तो हिन्दू नहीं बैठता था, और हिन्दू बैठा होता तो मुस्लिम नहीं बैठता था। हिन्दू सोचते थे ये इमली का पेड़ हमारा है, मुस्लिम उसको अपना मानते थे। त हिन्दू आपस में करते, पर सच्चाई किसी कोपेड़ को लगाने वाले उनके पुरखे थे कि प्रकृति।
एक दिन फिर से दोनों गुटों ने मिलकर उस पेड़ पर अपना अपना दावा किया, फिर झगड़ा हुआ पर इस बार नौबत हाथापाई तक नहीं पहुँची। दोनों गुट वहाँ से चले गए। मौलवी के घर मीटिंग हुई कि ये पेड़ हिंदुओ का है तो हम उस पेड़ को जल्द ही मौका देखकर काट देंगे। ठीक ऐसी ही मीटिंग पुजारी के घर पर भी हुई। इस मीटिंग को मौलवी के बेटे और पुजारी के बेटे ने सुना। उन दोनों को उस पेड़ से बहुत प्यार था, दोनों को ही क्यों गाँव के हर बच्चे को उस पेड़ से प्यार था, कितनी खट्टी मीठी इमलियाँ मिलती थी उन्हें वहाँ से।
दूसरे दिन बच्चे स्कूल में मिले, आपस में दोनों बच्चों ने इमली के पेड़ के काटने की योजना को एक दूसरे को बताया। इत्तेफ़ाक़ से उस दिन कक्षा में उन्हें पर्यावरण सरंक्षण वाला पाठ पढ़ाया गया। गुरुजी ने बताया हरा पेड़ काटना अपराध है और सरकार की बिना इजाजत के पेड़ नहीं काटा जा सकता, जबकि पुराने पेड़ जिनकी उम्र बहुत है वो तो सरकार पर्यावरण की सम्पत्ति घोषित कर सकती है और उसकी विशेष देखभाल व सरंक्षण करती है।
कोई पेड़ काटता है तो पर्यावरण विभाग और सरकार को इसकी शिकायत की जा सकती है, और पेड़ बचाया जा सकता है। बच्चों ने ये सुनकर एक दूसरे को देखा, दोनों ने खेल घण्टी में चर्चा की कि वो इस इमली के पेड़ को कटने नहीं देंगे, सरकार से शिकायत करेंगे, पर उन्हें तो सरकार को शिकायत करनी ही नहीं आती, उन्होंने तय किया कि गुरूजी से ही पूछते हैं।
गुरूजी ने उन्हें बताया कि सरकार के हेल्पलाइन नम्बर पर फोन करके या ईमेल के ज़रिए शिकायत की जा सकती है, और अगर ईमेल के साथ उस पेड़ की फोटो लगा दी जाए तो और भी ज्यादा अच्छा होगा। बच्चों ने कहा कि उनके पास फ़ोन तो नहीं है, गुरूजी ने दोनों बच्चों को अपना मोबाइल दिया और कहा जाकर उस इमली के पेड़ की तीन चार फोटो लेकर आओ ईमेल मैं कर दूंगा।
दोनों लड़के इमली के पेड़ की तीन चार फोटो ले आये, और गुरूजी ने उनसे एक लैटर लिखवाया की हमारे दादाओं के समय के एक इमली के पेड़ को हमारे गाँव के लोग काटना चाहते हैं, हम बच्चे इस पेड़ से बहुत प्रेम करते हैं, इस पेड़ को कैसे भी कटने से बचा लीजिये। उसके बाद गुरुजी ने उनके लिखे लैटर पर उन दोनों के हस्ताक्षर करवाये और फ़ोटो सहित वो लैटर पर्यावरण विभाग को ईमेल कर दिया।
पर्यावरण विभाग को जैसे ही मेल मिली उन्होंने तुरंत उस पर कार्यवाही की उन्हें पक्का यकीन हो गया था कि ये पेड़ बहुत पुराना है और अमूल्य है, दूसरे ही दिन पर्यावरण विभाग की टीम मीडिया और प्रशासन के साथ वहाँ आई, और पेड़ का मुआयना करने लगी।
गाँव के लोग चकित थे कि अचानक ये इमली के पेड़ के पास इतनी भीड़ कहाँ से आ गई, और कैसे आ गई, मौलवी और पुजारी अपने लोगों के साथ जो पेड़ काटने की साजिश रच रहे थे, चुपचाप वहाँ से खिसक लिए, पेड़ का मुआयना और जांच के बाद ये निष्कर्ष निकला कि ये पेड़ तो 180 साल पुराना है, इसे तो राष्ट्रीय धरोहर के रूप में सहेजना चाहिए, क्योंकि इतनी उम्र के पेड़ मिलना बड़ी बात होती है।
तुरन्त इस पर कार्यवाही हुई और पेड़ के चारों और की जगह का सीमांकन कर वहाँ पुलिस बल तैनात कर दिया गया, बच्चे बड़े खुश हो रहे थे उनका पेड़ बच गया था, दूसरे दिन अखबार में ये खबर छपी और सोशल मीडिया पर वायरल हो गई, वो खबर एक विदेशी पर्यावरण विद तक भी पहुँची वो भी दल बल के साथ वहाँ आया, अब तो वो गाँव और वो पेड़ सुर्खियों में आ चुका था, लोग उसे पेड़ को दूर दूर से देखने आने लगे थे।
पर्यावरण विभाग ने उस इलाके को संरक्षित कर उस जगह को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित कर रहे थे, उस फंड से ही मंदिर और मस्जिद पर भी खर्च कर चारदीवारी, हरी दूब, पेड़ और बैठने के लिए बेंचें लगवा दीं। दूर दूर से लोग दुर्लभ पेड़ को देखने आने लगे, और गाँव की आमदनी अचानक से बढ़ गई।
अब वो गाँव तरक्की कर रहा था, गाँव में सड़क और मूलभूत सेवाएँ उपलब्ध करवाई गईं। गाँव का नक्शा ही बदल गया था। अब कई बार मौलवी और पुजारी के लोग अपने अपने खेमें में ये चर्चा करते थे कि अच्छा हुआ उनका पेड़ काटने का मंसूबा पूरा न हुआ, वरना गांव में यूँ तरक्की न होती।
पर उनके सामने सवाल यही था कि अचानक से इस पेड़ के लिए ये लोग आए कहाँ से और ये सब हुआ कैसे। ये तो कोई न जान सका था पर जब भी लोग मंदिर मस्जिद आते उस पेड़ को धन्यवाद करते थे कि इस पेड़ ने गाँव की तकदीर ही बदल दी थी। बच्चे अपने किये गए काम के लिए बहुत खुश थे आखिर उन्होंने अपने प्यारे इमली के पेड़ को बचा लिया था।
संजय नायक "शिल्प"