सच्ची लॉटरी....
ये बहुत पुरानी बात है, 1989 की मैं जब कक्षा 6 में पढ़ता था। पापा सरकारी महकमें में थे। वो एक छोटा कस्बा था, हम एक सरकारी कॉलोनी में रहते थे। हमारी कॉलोनी से बिल्कुल जुड़ा हुआ एक खेत था, कॉलोनी के लगभग सभी लोग सब्ज़ियां और फल उसी खेत से लेते थे। खेत का मालिक था तुलसा राम वो उस वक़्त कोई 40 बरस का रहा होगा पर वो सब कॉलोनी वालों के तुलसा बाबा ही था, क्या महिलाएं क्या बच्चे और क्या बड़े सब उसे तुलसा बाबा ही कहते थे। उसका कॉलोनी वासियों से बड़ा प्रेम था, सावन में अपने खेत में वो झूला लगाता था, सारे बच्चे और महिलाएं उसके खेत में झूला झूलते थे।
मैं अक्सर तुलसा बाबा के खेत में मस्ती करने चला जाता था, तुलसा बाबा किसी को कभी डांटते नहीं थे, वो अक्सर कुछ न कुछ खाने को दे देते थे। मुझे वो सिंकडी पहलवान कहते थे क्योंकि मैं दुबला पतला था। तुलसा बाबा से मेरा लगाव बहुत ज्यादा था, इसलिए मेरा अधिकतर खेल का समय उनके खेत में ही बीतता था। उन दिनों एक लॉटरी का बड़ा सा कागज होता था जिसमें कुछ पर्चियां चिपकी रहती थीं। उन्हें 5 पैसे में खोला जाता था , मैं अक्सर वो लॉटरी दुकान पर देखा करता था , सबसे बड़ा इनाम 5 रुपये का था पांच का नया नकोर नोट सबसे ऊपर चिपका रहता था जो हमेशा मुझे ललचाता था। एक दिन मैंने 5 पैसे की लॉटरी खोली और किस्मत से वो 5 का नोट मेरी लॉटरी में निकल आया। मुझे तो यकीन ही नहीं हो रहा था, कि मेरी 5 रुपये की लॉटरी खुली है, पर वो नोट मैंने जेब में रख तो लिया पर समझ नहीं आ रहा था उस नोट का करूँ क्या।
घर में बता नहीं सकता था क्यूँ कि पापा को लॉटरी जुए से सख्त नफरत थी, वो 5 का नोट तो फेंकते ही साथ में मुझे कूट भी देते, तो मुझे एक ही आदमी दिखा जो मेरी इस मुसीबत में सहायता कर सकता था। "तुलसा बाबा"। मैं सीधा तुलसा बाबा के खेत में गया और उनको सारा माजरा बताते हुए 5 का नोट उनको थमा दिया , उनको सारा माजरा बताया और कहा कि मैं आपसे कभी 10 कभी 5 पैसे लेकर अपने ये 5 रुपये वसूल लूँगा। तुलसा बाबा ने वो 5 रुपये रख लिये और मुझे मीठा खरबूजा काटकर खिलाया। मैं तसल्ली से घर आ गया। शाम को पापा ने कहा उनका ट्रांसफर हो गया है और उन्हें स्टैंड रिलीव कर दिया गया है, अभी सामान पैक करना है सुबह 10 बजे ऑफिस की गाड़ी आकर ट्रेन में हमारा सामान रखवा देगी। ये सुनते ही मेरी तो जान ही निकल गई अब मेरे 5 रुपये का क्या होगा, मैंने सोचा कि कल तुलसा बाबा से सुबह ही जाकर 5 रुपए ले आऊंगा और कहीं छुपा कर रख लूँगा फिर कह दूँगा की मुझे सड़क पर पड़े हुए मिले हैं। चूँकि 5 रुपये उस वक्त एक अच्छी रकम थी। मुझे रात भर नींद नहीं आई, मुझे बस सुबह का इंतजार था ताकि मैं तुलसा बाबा से अपने 5 रुपये ला सकूं।
जैसे तैसे रात काटी सुबह 6 बजे ही उठकर मैं तुलसा बाबा के खेत की और भागा, वहाँ जाते ही मेरी जान निकल गई, तुलसा बाबा अपनी छकड़ा गाड़ी (बैल में जुती हुई गाड़ी) लेकर सब्जी और फल बेचने दूसरे गाँवों में चले गए थे। तुलसा बाबा जब भी छकड़ा गाड़ी लेकर जाते 3 या 4 दिन बाद ही लौटते थे। मैं मरे कदमों से घर आ गया था, मैं जानता था मेरे 5 रुपये डूब गए हैं और अब हम कभी यहाँ लौटकर नहीं आएंगे इसलिए मुझे वो रुपये अब कभी नहीं मिलने वाले थे। सालों गुजर गए थे पर मैं वो 5 रुपए और तुलसा बाबा दोनों कभी न भुला पाया।
दो साल पहले मेरा मन कर गया कि बचपन के उस कस्बे में जाकर वो कॉलोनी और तुलसा बाबा से मिला जाए, वो मेरा कड़क 5 का नोट भी याद आ गया था, मैंने बच्चों से कह दिया हम सब घूमने जा रहे हैं । मैंने रस्ते में बीवी बच्चों को 5 रुपये वाली बात बताई तो वो नाराज हो गई, बोली 5 रुपये के लिए इतनी दूर ले आये। मैं अपनी कार लेकर पहुँच गया उस पुराने कस्बे में जहां मेरा बचपन कुछ हद तक बीता था सब कुछ बदल गया था वहाँ कस्बा अब शहर जैसा बन गया था पुराने समय के खाली मैदान बड़ी बड़ी इमारतों से भर गए थे। मैं अपनी कॉलोनी के पास जाकर खड़ा हो गया, मैंने देखा वहां सब तरफ नए घर बने थे कॉलोनी घिरी हुई थी पर तुलसा बाबा का खेत ज्यों का त्यों था , मैं रस्ता पूछकर तुलसा बाबा के खेत पहुंच गया क्योंकि पुराने सब खुले रास्ते आधुनिकता में बंद हो गए थे।
मैंने तुलसा बाबा को देखते ही पहचाना वो बड़ी मूछों वाला तुलसा बाबा बहुत वृद्ध हो चुका था और आँखों पर मोटा चश्मा चढ़ाए हुए एक चारपाई पर बैठा था, हुक्का उसके पास पड़ा था, मैंने पास जाकर उसके पांव छुए "मैंने पहचाना नहीं बाबू कौन हो आप।" तुलसा बाबा ने पूछा। मैंने कहा बाबा मैं सिंकडी पहलवान हूँ जो बचपन में पास वाली कॉलोनी में रहता था। उसने दिमाग पर जोर लगाया फिर उसने कहा अच्छा 5 रुपये वाले सिंकडी पहलवान मैंने कहा हाँ वही। मुझे राहत हुई कम से कम उसे मेरे 5 रूपये याद तो थे। खैर बाबा ने हमें खरबूजे खिलाए और अपने पास ही रात में रुकने का आग्रह किया। बच्चों को वो खुला वातावरण पसन्द आ गया हम वहीं रूक गए। रात को मैंने तुलसा बाबा से कहा, "बाबा मेरे 5 रुपए तो लौटा दो।" उसने कहा " सुबह बैंक चलना मेरे साथ ले लेना।" मुझे लगा बाबा मजाक कर रहा है 5 रुपये के लिए बैंक जाने का क्या काम है।
खैर हम सब सो गए , सुबह हमने कहा कि हम अब जाना चाहते हैं तो बाबा ने कहा अभी बैंक नहीं खुला बैंक चलकर आते हैं उसके बाद जाना। मैंने सोचा कि बाबा मजाक कर रहा है पर वो तो साढ़े नौ बजे ही बोला " चलो बैंक चलें।" मैं असमंजस में उसके साथ हो लिया। बैंक पहुंचने के बाद बाबा ने एक fd तुड़वाई उसकी रकम थी 4 लाख 39 हजार रुपये। मुझे हैरानी हुई 5 रूपये के लिए fd तुड़वा दी।
हम गाड़ी में आ बैठे बाबा ने बताया " सिंकडी पहलवान जब मैं छकड़ा गाड़ी लेकर लौटा तो तुम सब जा चुके थे मैंने सोचा तुम कभी तो आओगे पर नहीं आये , तुम्हें खरबूजे बहुत पसंद थे तो मैंने तुम्हारे 5 रुपए से खरबूजे के बीज लिए और तुम्हारे नाम की एक क्यारी अपने खेत में लगा दी बड़े अच्छे खरबूजे हुए , जितने के बेचे उसमें से अपनी जमीन का किराया और मजदूरी काटकर तुम्हारा हिस्सा रख लिया ।
फिर मैं हमेशा तुम्हारे नाम की क्यारियां लगाता रहा उसमें तुम्हारा पैसा ही लगाया , 25 साल तक तुम्हारे पैसे की खेती करता रहा, और तुम्हारे पैसे का हिसाब रखा , फिर मैंने काम करना बंद कर दिया , और उन तुम्हारे पैसों की fd करवा दिया । मेरे बेटे लालची हैं हमेशा कहते हैं कि वो नहीं आया तो ..... तो मैंने कह दिया मेरे जीते जी सिंकडी पहलवान नहीं आया तो मेरे मरने के बाद ये fd के पैसे तीनों भाई आपस में बाँट लेना ।
पर मुझे तुम्हारा इंतजार था , तुम आकर अपना पैसा ले जाओ , ताकि मैं एक बच्चे के कर्ज से मुक्त हो सकूं आखिर भगवान को जवाब भी तो देना है।"
मैं उस बूढ़े आदमी का चेहरा देखकर हैरान था कि ऐसे ईमानदार और सच्चे इंसान भी हैं इस दुनियां में जो 5 रुपये की अमानत को लाखों में बनाकर लौटा देते हैं , मैंने सोचा सच्ची लॉटरी तो आज लगी है । 5 के बजाय लाखों मिल गए , बाबा ने पैसे मेरे हवाले कर दिए और मैंने उन्हें 39 हजार ऊपर वाले दे दिए ।
उन्होंने पूछा ये किसलिए ? मैंने कहा, " ये मेरे मनी मैनेजमेंट के लिए मैनेजर साहब की तनख्वाह के।" ये सुनकर दोनों हँस दिए मैं बाबा के कदमों में झुक गया और उन्होंने उठाकर मुझे सीने से लगा लिया , मैंने गाड़ी बाबा के खेत की और बढ़ा दी। आते वक्त गाड़ी की पूरी डिक्की फलों और सब्जियों से भरी पड़ी थी हम सब बाबा के प्रति नतमस्तक थे।
संजय नायक"शिल्प"