प्रेम गली अति साँकरी - 91 Pranava Bharti द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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प्रेम गली अति साँकरी - 91

91----

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सब लोगों का ध्यान पल भर में रमेश की पत्नी सुधा की ओर चला गया, स्वाभाविक था | उसकी गर्भावस्था के दिन पूरे होने को ही थे, सब जानते थे | उन दिनों अम्मा उसे अस्पताल न भेजकर संस्थान में ही डॉक्टर को बुलवाकर चैक करवाती रही थीं | डर था अम्मा को कोविड का!अब तो सब काफ़ी रिलैक्स होने लगे थे | अम्मा ने डॉक्टर से बात की और उन्होंने आश्वासन दिया कि खतरे की कोई बात नहीं थी | उनका अस्पताल रोज़ सेनेटाइज़ करवाया जाता है, खासकर डिलीवरी वाला व बच्चों का वार्ड और ऑपरेशन थियेटर !

अम्मा ने तुरंत इंतज़ाम करवाया, गाड़ी में रमेश और सुधा के साथ महाराज, उनकी पत्नी और बेटी जिसे सब गुड़िया कहकर भी पुकारते थे, वे भी गए | एक प्रकार से महाराज का सारा परिवार ही साथ था | सुधा की पहली डिलीवरी थी इसलिए सब ऊपर-नीचे हो रहे थे | पहचान वाला अस्पताल था और सारे डॉक्टर्स भी | लगातार डॉक्टर और स्टाफ़ के टच में रहीं | 

डॉक्टर ने अम्मा को बताया कि सुधा की डिलीवरी होने को तैयार है लेकिन कभी उसके प्रसव-पीड़ा बहुत अधिक होती है, जब डिलीवरी होने को होती है तब दर्द एकदम बंद होने लगते हैं | डॉक्टर उम्मीद कर रही थीं कि सुधा का स्वास्थ्य काफ़ी अच्छा था और उसके नॉर्मल प्रसव होना चाहिए लेकिन अब मुश्किल हो रही थी | 

भारत में आजकल इस मामले में डॉक्टर्स बहुत बदनाम हैं कि वे जान-बूझकर डिलीवरी नॉर्मल करने की जगह सिज़ीरीयन करते हैं जिससे उनके खासे पैसे बन जाएँ | इसलिए डॉक्टर ने कई बार कालिंदी यानि अम्मा से बात की | मैं अपने कमरे में विनोदिनी से कुछ सामान की छटनी करवाने आ गई थी लेकिन मन नहीं लगा | सुधा में ही दिमाग लगा था | इसलिए मैं विनोदिनी से कहकर अम्मा के पास आ गई | अम्मा डॉक्टर से ही बात कर रही थीं;

“डॉक्टर, ये डिसीज़न आपको लेना है | बस, दोनों सेफ़ रहें, इसका ध्यान आपको रखना है | हमारे रमेश का पहला बच्चा है | मैंने ही उसको यहाँ रहने के लिए कहा था, इसलिए मेरी ड्यूटी हो जाती है कि मैं उसका ध्यान रखूँ | ”अम्मा के स्वर में चिंता झलक रही थी और चेहरे पर भी !

“देखिए, कालिंदी जी ! आजकल हम डॉक्टर्स बड़े बदनाम हो गए हैं कि हम लोग नॉर्मल डिलीवरी की जगह सिजीरियन कर देते हैं | हमें इस केस में भी कुछ ऐसा ही लग रहा है कि लास्ट मोमेंट पर कहीं हमें सिजीरियन ही न करनी पड़े | हम अभी तो इंतज़ार कर रहे हैं लेकिन अगर ज़रूरत पड़े तो शायद डिसीजन लेना पड़े | ”

“डॉक्टर ! मैं आप सबको अच्छे से पहचानती हूँ | सब एक जैसे तो होते नहीं हैं | मेरा पूरा विश्वास है आप सब पर, आपका स्टाफ़ भी अच्छा है | बस, दोनों का ध्यान रखिएगा, बाकी भगवान पर छोड़ दीजिए | ”अम्मा ने डॉक्टर से कह तो दिया लेकिन खुद ऊँची-नीची होती रहीं | 

“चक्कर मारना है क्या अम्मा हॉस्पिटल?”मैंने अम्मा से पूछा | 

“क्या करूँ, समझ में नहीं आ रहा---”अम्मा ने कहा लेकिन मैंने देखा कि वे बहुत असहज थीं | 

“चलो, चक्कर मारकर आते हैं | वैसे तो हम सब कर क्या लेंगे लेकिन आपको तसल्ली हो जाएगी | ”मैंने ड्राइवर को फ़ोन किया लेकिन उस समय कोई भी नहीं था | 

“चलिए न मैं ले चलती हूँ---”मैंने अम्मा से कहा और विनोदिनी से कहा कि मेरे कमरे से मेरी गाड़ी की चाबी ले आए | 

वह मेरे कमरे में जाने के लिए कमरे से बाहर निकली ही थी कि पहुँच गए उत्पल महाराज | 

“क्या बात है ! सुना, रमेश की वाइफ़ डिलीवरी के लिए गई है---”उसने चिंता से पूछा | 

“हाँ, सोच रहे हैं, चक्कर मारकर आते हैं | डॉक्टर से मिल आएं, उन सबको भी तसल्ली हो जाएगी | ”अम्मा ने कह दिया | मैं नहीं चाहती थी कि वह हमारे साथ चले लेकिन अम्मा की और उसकी बात हो गई और मैं देखती ही रह गई | 

“विनोदिनी ! आप मत लाइये चाबी, मेरी गाड़ी खुली ही है न | ” वह जैसे आया था वैसे ही पीछे मुड़कर चल दिया | अम्मा आराम से उसके साथ चल दीं | पापा उस समय अपने मुख्य ऑफ़िस में विज़िट करने गए हुए थे | 

“चलो अमी, चक्कर मार आते हैं, कुछ ज़रूरत पड़े तो देख लेंगे | ”अम्मा ने मुझसे कहा फिर आराम से उत्पल के पीछे चल दीं | 

“अरे, आओ अमी---”अम्मा ने फिर से मुझे पुकारा | 

जितना इस बंदे के साथ जाना एवायड करो, उतना ही वह करीब आता जाता है | मैंने एक लंबी साँस भरी और विनोदिनी से कहा कि वह अम्मा की ड्रेसिंग-स्पेस चैक करे इतनी देर में हम वापिस आ जाएंगे | 

बाहर निकले और उत्पल की गाड़ी की ओर बढ़े | वही फूलों वाला पेड़, उसके नीचे गाड़ी और उसका डाल हिलाना, वह कभी नहीं बदलता था | अम्मा के सामने और ऐसी परिस्थिति में भी नहीं भूला वह डाल हिलाना और हर बार की तरह मैं पेड़ के झरते फूलों से नहा गई | अम्मा के लिए वह गाड़ी के पीछे का दरवाज़ा खोल चुका था, बाद में दो कदम बढ़ाकर आगे का दरवाज़ा एक हाथ से मेरे लिए खोला और दूसरे से अपनी वही हरकत करके अपनी ड्राइविंग सीट की ओर बढ़ गया | अम्मा को उसकी हरकत का पता भी नहीं चला | मैं ऊपर से कुढ़कर रह गई , भीतर से मेरी धड़कन दौड़ने लगी थी | 

गाड़ी में हम सब चुप बैठे थे, उत्पल मेरी ओर चुपके से देख लेता, मैंने कुछ पता नहीं लगने दिया  | अम्मा का मन सुधा में पड़ा था | जल्दी ही हम अस्पताल पहुँच गए | 

जब हम अस्पताल पहुँचे महाराज का सारा परिवार बाहर बरामदे में ही दिखाई दे गया जहाँ प्रतीक्षारत लोग बैठते हैं | वह काफ़ी बड़ी जगह थी जिसमें बड़े करीने से चारों ओर कुर्सियाँ लगी हुईं थीं | जिन पर काफ़ी लोग बैठे थे | यह पूरे अस्पताल के लिए प्रतीक्षागृह था, सामने एक और कॉरीडोर था जहाँ ‘प्रसूति गृह’का बोर्ड लगा हुआ था और उससे भी आगे एक और दरवाज़ा दिखाई दे रहा था जिसके दरवाज़े बंद थे और जिसके ऊपर लाल बत्ती जली हुई थी | 

“क्या हुआ ?सब ठीक ?”अम्मा ने देखा, सबके चेहरों के रंग उतरे हुए थे | 

“क्यों इतने परेशान हो?” अम्मा ने पूछा | 

महाराज की पत्नी और बेटी रोने लगीं, महाराज भी गुमसुम से ही थे लेकिन रमेश ने बताया;

“सीज़िरियन के लिए ले गए हैं—”वह भी काफ़ी उदास था | 

“हाँ, मेरे से डॉक्टर की बात हो गई थी | बहुत देर वेट की उन्होंने, जरूरी था सीज़िरियन !परेशान क्यों हो रहे हो? अभी खुशखबरी आ जाएगी | देखो, कितने साल पहले अमी सीज़िरियन से हुई थी, उन दिनों तो यह नॉर्मल भी नहीं थी, आजकल तो बहुत नॉर्मल है | चिंता मत करो | ”अम्मा ने उन्हें समझा ही रही थीं कि एक नर्स लाल बत्ती वाले कमरे में से निकलकर उस ओर से कहीं जाने के लिए गुज़री | 

“सिस्टर!कैसी तबियत है सुधा की? डिलीवरी हो गई ?”अम्मा ने उसे रोककर पूछा | 

“मैम ! अभी आती हूँ ---”कहकर वह जल्दी से वहाँ से निकल गई | 

सब लोग उसकी तरफ़ देखते रह गए, उनके चेहरों की घबराहट और बढ़ गई | 

“अरे !वह किसी काम से जा रही होगी, चिंता की कोई बात नहीं है | ”अम्मा ने उन्हें आश्वासन दिया | 

अम्मा उन्हें समझा ही रही थीं कि वह हाथों में कोई बॉक्स पकड़े आती दिखाई दी और बिना इधर-उधर देखे ऑपरेशन थियेटर की ओर चली गई | 

मैं और उत्पल एक ओर खड़े थे, ऐसे में बात करने के लिए भी कुछ नहीं था, न दस्तूर न ही मौका लेकिन एक अजीब सी स्थिति सी थी और कभी कभी हम यूँ ही चारों ओर दृष्टि घुमा रहे थे | 

“आप सबको बहुत बधाई हो, लक्ष्मी जी पधारी हैं—”नर्स ने बाहर आकर बताया | 

सबके चेहरों के तनाव दूर हो गए जैसे किसी ठंडी हवा का झौंका सा वातावरण को शीतलता से भर गया हो | 

“बहुत बहुत बधाई रमेश पापा बनने की, और तुम सबको घर में नए मेहमान के आने की---”अम्मा ने कहा | 

“कॉन्ग्रेचुलेशन्स रमेश---नए पापा—”मैंने और उत्पल ने भी बधाई दी | 

रमेश अम्मा के पैर छू रहा था, एक कोमल सी संवेदना उसके चेहरे पर छलक रही थी जैसे नए पापा के बनने की खुशी से ओतप्रोत उसका  चेहरा दमक रहा था | वह मेरे पास आया और मेरे भी पैर छूने के लिए नीचे की ओर झुका | मैंने बीच में ही रोककर उसे गले लगा लिया | 

“एक नए जीवन के दुनिया में आने से कितना बदलाव आता है जीवन में !”उत्पल धीरे से जैसे बुदबुदाया | 

मैं समझ नहीं पाई उसने क्यों यह बात कही होगी कि इतनी देर में महाराज ने आकर कहा;

“आप मैडम क्यों परेशान हुईं?”महाराज हाथ जोड़े खड़े थे | 

“अच्छा हुआ न, देखो मेरे आने के बाद लक्ष्मी जी आईं---”अम्मा ने हँसकर कहा | 

“अभी तो टाइम लगेगा सुधा को कमरे में जाने में---” अम्मा बोलीं फिर उन्होंने महाराज की ओर अपना चेहरा घुमाया;

“महाराज! बिल के बारे में चिंता मत करना---”अम्मा ने कहा | 

“आप लोगों के होते क्या चिंता मैडम, वैसे रमेश को भी आपने गृहस्थी के लिए तैयार कर दिया है | ”महाराज ने निश्चिंतता से बेटे को देखते हुए कहा | 

“वैसे, मैं भी यहाँ क्या करूँगा---”महाराज ने कहा | उन्हें अपनी रसोई की चिंता थी जबकि संस्थान में उनका असिस्टेंट तो था ही | वैसे यह ठीक ही था, अभी यहाँ सबके रहने की कोई ज़रूरत नहीं थी | तय हुआ कि सब घर चलें, रमेश अपनी पत्नी के पास रहेगा बाद में जिसको आना होगा, आ जाएगा | 

“मैं साहब के साथ आऊँगी बेबी को देखने---”अम्मा ने कहा और हम सब वहाँ से निकल आए | सुधा जिस गाड़ी में आई थी वाह गाड़ी भी वहीं खड़ी थी, वे सब उसमें आने वाले थे | महाराज रमेश से कुछ बात करने लगे थे और हम लोग वहाँ से रवाना हो चुके थे |