रिश्ता चिट्ठी का - 3 Preeti द्वारा पत्र में हिंदी पीडीएफ

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रिश्ता चिट्ठी का - 3

प्रोफेसर!

कैसे हैं आप? वैसे ये सवाल केवल एक औपचारिकता लगती है, लेकिन ख़त बिना इस सवाल कुछ अधूरा सा जान पड़ता है ना! खैर, जब ठण्ड के मौसम में इतनी तकलीफ रहती है तो ध्यान रखना चाहिए ना! आवाज़ तक बैठ गयी आपकी।

ठण्ड का मौसम थोड़ा शैतान बनाने के लिए भी आता है मेरे समझ से। कहाँ गर्मी में हम सुबह शाम नहा कर तरों ताज़ा हुआ करते हैं। ध्यान देकर खाना खाते हैं। सब कुछ नपा तुला सा रहता है।
वहीँ ठण्ड में बिना नहाये भी काम चलता है ना (मेरा चल जाता है, मैं रोज़ नहीं नहाती। अब मज़ाक नहीं बनाइयेगा, बचपन से आदत है बाबा, नहा लूंगी तो बीमार पड़ जाउंगी ) कितना भी तला भुना खा लो सब हज़म!!! बस ठण्ड का मौसम मेरा पसंदीदा मौसम है अब तक आपको समझ आ गया होगा।

आज 2022 का आखिरी दिन है! "अंत भला तो सब भला" वाली कहावत मेरे लिए सार्थक हो गयी है। साल भर मैंने क्या किया, किसने ज़िन्दगी में कितनी उथल पुथल मचाई, ये सब कुछ मायने नहीं रखता अब.... मालूम है क्यों?

क्यूंकि साल का ये आखिरी महीना, इस महीने का ये आखिरी हफ्ता पूरे साल पर भारी पड़ चुका है। वजह है, आप!
बीते 5 दिनों में मैंने क्या क्या नहीं किया और करने लगी!! अब मैं गाने सुनती हूं, गाने का शौक़ था कभी अब गुनगुनाना फिर से शुरू कर दिया। मेरी सुबह कहाँ फीकी चाय से करती थी, अब chocos -doodh के साथ होने लगी है। मैं मुस्कुराने लगी हूं। आईने से दोस्ती होने लगी है अब। मेरा अक्स भी मेरी नज़र उतारना चाहता है, आँखें फिर से काजल लगा इतराना चाहती हैं।

सबसे बड़ी ख़ुशी मेरे माता - पिता के चेहरे पे नज़र आती है। मुझे नार्मल देखना उनके लिए नार्मल नहीं है। उनके लिए मैं फिर से छोटी सी उनकी बच्ची हो गयी हूं, जिसको ज़िद्द करते देख वो फुले ना समा रहे। पापा से एक बार 5-star chocolate क्या मांगी, एक पूरा डब्बा मिला है!! मम्मी ने साथ शॉपिंग चलने की ज़िद्द लगा रक्खी है।

मेरा दुख उन्हें उम्र से पहले उम्रदराज़ बना गया था, ये उनके मुस्कुराते चेहरों की झुर्रियों को देख समझ पायी मैं। अपने मन की जेल से आजादी मिलने के बाद जैसे अब होश आया है , वो भी आपके कारण!

कभी आपसे पूछा था की emotional dependecy बुरी है? और आपके जवाब ने स्तब्ध कर दिया था। इतनी सुलझी हुई सोच! वाकई प्रोफेसर कहलाने के हक़दार हैं आप।

कुछ ही पलों में नया साल दस्तक देने वाला है। 2022 की आखिरी चिट्ठी का अंत कुछ मधुर सा तो बनता है ना! लिखा है कुछ, मालूम है मुझे कि हक़ीक़त में अब मेरे लिए ना ऐसा करना मुमकिन है और ना ही कहना। मगर मेरे सपनों की दुनिया में मैं अब आज़ाद हूं, और अपने सुकून की हक़दार भी। ये पंक्तियाँ अधूरी हैं, शायद अधूरी ही रहेंगी मेरी ज़िन्दगी की तरह... लेकिन मेरे ख्वाबों की दुनिया में, जहाँ मेरा इश्क़ मुकम्मल भी है और आबाद भी; जो हमेशा रहेगा।

ये चंद शब्द आपको नज़र करती हूं.... गौर फरमाइयेगा....

तुम,मैं और मेरे सपने
अपनी एक अलग दुनिया

जिसमें तुम्हारी मोहब्बत पर सिर्फ मेरा हक़
और मेरी हर मुस्कुराहट की वजह तुम

तुम, मैं और मेरे सपने
अपनी एक अलग दुनिया

जहाँ मेरी शिकायतें भी,
तुमसे झूठ में रूठने का सिर्फ बहाना हैं
जहाँ तुम्हारी हर एक नाराज़गी
मुझे अपने और पास बुलाने का तरीका

तुम, मैं और मेरे सपने
अपनी एक अलग दुनिया

जहाँ वो चार लोग सिर्फ देख सकते हैं
हमें एक दूसरे का होते हुए
जहाँ हमें उनकी सोच का सामना नहीं करना
और अपनी मोहब्बत कुर्बान नहीं करनी

तुम मैं और मेरे सपने
अपनी अलग दुनिया.......

नये साल की शुभकामनायें प्रोफेसर! नया साल आपके जीवन में नयी खुशियां लाये😊

आपकी शुभकामनाओं के इंतज़ार में,
आपकी
Dr T
(31/12/2022)

(विक्स की गोली लो, खिच खिच दूर करो, if you know what i mean!!)