रिश्ता चिट्ठी का - 1 Preeti द्वारा पत्र में हिंदी पीडीएफ

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रिश्ता चिट्ठी का - 1

प्रोफेसर!

मौसम का मिज़ाज बदल रहा यहाँ! ठण्ड अपने पूरे शबाब पर है।
वहां मौसम के क्या हाल? गर्मी के कहर से छुटकारा मिला क्या?मौसम ने जितनी आहिस्ता करवट ली है उतनी ही आहिस्ता आहिस्ता मेरे जीवन में भी बदलाव हो रहे। कितना कुछ हो रहा इन दिनों, मेरे ख़ुद के लिए इन परिवर्तनों को अपना पाना नामुमकिन सा जान पड़ रहा।

जिन रिश्तों पर हमें खुद से भी ज़्यादा ग़ुमान हुआ करता है, अक्सर वही रिश्ते हमें ओंधे मुँह गिरने पर मजबूर कर देते हैं।
कुछ ऐसा आज मेरे संग भी हुआ, समझ नहीं आता अब कैसे उस रिश्ते को पहले जैसा मान दे पाऊँगी? कई बार हम अनजान लोगों को अपने जीवन में इतनी तवज्जो दे बैठते हैं कि ना चाहते हुए भी हमारी खुशियों की चाभी हम उन्हें। थमा देते हैं। उनका बदला हुआ व्यवहार कितना हमें चोटिल करने लगता है, ये हम ख़ुद भी समझ नही पाते।क्यूंकि कुछ तो बदल गया अंदर, जिसे कुछ भी करके पहले जैसा नहीं किया जा सकता अब। किसी भी रिश्ते में रहते हुए जब आत्मसम्मान की आहुतियां देनी पड़े तो समझ लेना चाहिए की वो रिश्ता अब ख़त्म हो चुका है।

वो फिल्मी डायलाग ना, " थप्पड़ से डर नहीं लगता, प्यार से लगता है " फिट बैठ जाता है यहाँ। इंसान शरीरिक कष्ट झेल के भूल जाने में सक्षम है लेकिन मानसिक चोट उसे कभी उभरने नहीं देती उस त्रासदी से जो उसने अकेले भोगी होती है।
कुछ ऐसा ही हो गया है। जिनके लिए सोचा था आजीवन मेरे अपने बनके रहेंगे उन्हीं से कुछ ऐसा सुनने को मिलेगा, सोचा ही नहीं था।
कोशिश भी कर लूँ तो वो शब्द अब मेरे ज़ेहन से मिटने नहीं वाले। सच कहूं? मुझे मन भी नहीं है शायद। अब लगता है जैसे एहसास तो मुझे भी बहुत पहले हो गया था इस दोस्ती के टूटने का, लेकिन मैं बस उसे स्वीकार नहीं करना चाहती थी। एक रिश्ते को मिल कर निभाने से वो खूबसूरत बनता है, वरना बोझ सा जान पड़ता है। कुछ ऐसा ही बोझिल था अंतर्मन मेरा। लंबे समय से ये इक तरफा दोस्ती निभाते निभाते थक तो मैं भी गई थी। अच्छा हुआ एक तरह से जो ये घटना घटी। एक धक्का लाज़मी था मुझे खुद को उस रिश्ते से उबरने के लिए जैसे।

अपने आत्मासम्मान को आहत नहीं करने दूंगी अब किसी को, ये बात गाँठ बाँध ली है आपकी! जो काम मुझे ख़ुशी देता है, उसका दुसरो के नज़र में सही या गलत होना अब मेरे लिए मायने नहीं रखता। मायने रखता है अब मेरा ख़ुद मुझसे बना ये नया रिश्ता!! जिसकी नींव आपने रक्खी है। कितना कुछ सीख लिया है और कितना कुछ सीखना बाकी है अभी आपसे। आपकी कही हर बात जैसे कितने अनुभवों का निचोड़ है, ऐसी जान पड़ती है।

वैसे चाय बनानी आती तो है ना आपको अदरक वाली? क्या पता किसी रोज़ मिल बैठे तो? आपको भी लगता होगा ना क्यों ही बताया आपने मुझे कि चाय आपको पसंद है!!!


आपके हांथों से बनी एक कप चाय पीने के इंतज़ार में।
आपकी Dr T!
(30/12/2022)