उन तीनों को दादी ने हवेली में रहने की इजाज़त दे तो दी लेकिन भीतर ही भीतर वें दादाजी और चाचाजी से डर भी रहीं थीं,लेकिन उनकी अन्तरात्मा कह रही थी कि उन्हें उन तीनों की मदद जरूर करनी चाहिए इसलिए उस वक्त उन्होंने अपने दिल की आवाज़ सुनी....
और उधर जो लठैत तुलसीदास और किशोरी का पीछा करते हुए भगवन्तपुरा तक जा पहुँचा था,वो भी अब वहाँ से लौट आया था और फिर वो सीधा चाचाजी के पास पहुँचकर उनसे बोला....
"सरकार! उस हरामखोर वकील को भगवन्तपुरा वाले मकान से छुड़वा लिया गया है",
"छुड़ा लिया गया है,मतलब क्या है तेरा"?,चाचा ने हैरान होकर पूछा...
"हाँ! सरकार! वो भगवन्तपुरा से वापस आ गया है",लठैत बोला...
"ये क्या बकता है"?,चाचाजी गुस्से से बोलें...
"हाँ! सरकार! वो आजाद हो गया है,",लठैत बोला....
"लेकिन कैसें",चाचाजी ने पूछा...
"आपको भगवन्तपुरा वाले मकान में पहरा लगाना चाहिए था",लठैत बोला...
लठैत की बात सुनकर चाचाजी बोले....
"तू मुझे ज्यादा सलाह मत दे,पहले ये बता कि वो छूटा कैसें,उसके तो हाथ पैर बँधे थे और मुँह से आवाज़ ना निकाल पाएं इसलिए मुँह में कपड़ा भी ठूँसा था,लेकिन इन सबके बावजूद भी वो वहाँ से छूटा कैसें,इस बात की किसी को कोई खबर भी नहीं थी,ये बात मैं,तू और उस कलुवा के अलावा कोई चौथा भी नहीं जानता था,तो फिर इस बात की खबर और लोगों को कैसें मिली?
"हुजूर! ये बात तुलसीलता और किशोरी के अलावा और भी दो लोगों को पता थी और वें ही दोनों उस वकील को वहाँ से छुड़ाकर लाएँ हैं",लठैत बोला....
"अच्छा! तो तुलसीलता और किशोरी वहीं गई थीं लेकिन उन दोनों के अलावा आखिरकार वें दो लोग और कौन हैं",चाचा जी ने लठैत से पूछा....
"गुस्ताखी माफ़ हो हुजूर! वें और कोई नहीं ,आपके ही घर के सदस्य हैं",लठैत बोला...
"मेरे घर के सदस्य,ये कैसें हो सकता है भला?....हा....हा.....हा....",चाचाजी हँसते हुए बोले....
"हाँ! सरकार! वें और कोई नहीं छोटी ठकुराइन और सत्यव्रत बाबू हैं",लठैत बोला...
"क्या बकता है?,जुबान खींच लूँगा तेरी,तेरी हिम्मत कैसें हुई ऐसा कहने की",चाचाजी बोले...
"हुजूर! मैं सच कह रहा हूँ,मैंने अपनी इन्हीं आँखों से उन दोनों को उस भगवन्तपुरा के मकान के भीतर घुसते हुए देखा था",लठैत बोला...
"तो तूने उसी वक्त कुछ किया क्यों नहीं?", चाचाजी बोलें....
तब लठैत बोला.....
"गुस्ताखी माँफ हो हुजूर! क्योंकि छोटी मालकिन आपके घर की आबरु हैं,अगर जमाने को ये पता चल जाता कि छोटी मालकिन इतनी रात गए किसी गैर मर्द को उस मकान से दो देवदासियों के साथ छुड़ाने आई हैं तो फिर आपकी इज्ज़त पर बट्टा लग जाता हुजूर! आपके खानदान की इज्जत सरेआम नीलाम हो जाती,इसलिए उस वक्त मैं यही सब सोचकर चुप रह गया"
"ये बिलकुल ठीक किया तुमने",चाचाजी शान्त होकर बोले....
"गलती तो हम सबसे हुई है हुजूर! मुझे या कलुवा को वहाँ पहरेदारी के लिए रुकना चाहिए था",लठैत बोला....
"वो सब तो ठीक है लेकिन ये बताओ कि अब वो हरामखोर वकील कहाँ छुपकर बैठा है"?,चाचाजी ने पूछा...
"सरकार! मैंने उन सभी को आपकी हवेली में जाते हुए देखा था",लठैत बोला....
"हवेली में! उसकी इतनी हिम्मत कि वो हवेली में जाकर छुप गया",चाचाजी बोले....
"हुजूर! उसके पास कहाँ इतनी हिम्मत है,ये सब तो छोटी ठकुराइन की शह का नतीजा है,नहीं तो उसकी क्या मजाल जो वो हवेली में पनाह लेता",लठैत बोला....
"अच्छा तो पहले जनकदुलारी ने मेरे खिलाफ जाकर उसे भगवन्तपुरा के मकान से छुड़ाया और अब उसे हवेली में भी पनाह दे दी,ये उसने ठीक नहीं किया,इस गलती का उसे बहुत बड़ा खामियाजा भुगतना पड़ेगा",चाचाजी बोलें....
"हुजूर! लेकिन अभी आप जल्दबाजी में कोई कदम ना उठाएँ,ऐसा ना हो कि कहीं कोई गड़बड़ हो जाए",लठैत बोला...
"लेकिन इसका फर्दाफाश तो करना पड़ेगा कि वो वकील मेरे घर में रह रहा है",चाचाजी बोलें....
"सरकार! एक बात कहूँ",लठैत बोला...
"हाँ! बोल",चाचाजी बोले...
"सरकार! आप भी उन लोगों के सामने ये नाटक करते रहिए कि जैसे आपको कुछ पता ही नहीं है,फिर देखिएगा सच्चाई अपनेआप बाहर आ जाएगी,वे लोग खुद ही आपके सामने अपनी पोल खोल देगें",लठैत बोला....
"लेकिन ये सब होगा कैसें"?,चाचाजी ने पूछा....
"बस! अब आप हवेली में ही रहिए,वहांँ से कहीं भी बाहर मत जाइए,फिर देखिएगा खुदबखुद सारी सच्चाई आपके सामने आ जाएगी",लठैत बोला....
"तो फिर ठीक है,मैं अभी हवेली जाता हूँ",
और ऐसा कहकर चाचाजी हवेली में चले आएं,उस समय भोर हो चुकी थी,सूरज अभी नहीं निकला था,चाचाजी सीधे गौशाला की ओर गए,जहाँ चाची थी,उस वक्त ग्वाला भैसों का दूध दुहने आता था,इसलिए चाची वहीं खड़े होकर सभी भैसों का दूध दुहने का इन्तजार कर रहीं थीं,गौशाला में पाँच भैसें थीं और उन सभी की देखभाल वो ग्वाला ही किया करता था,गौशाला की साफ सफाई का काम और भैसों के दाना पानी का इन्तजाम उसकी पत्नी झुमकी देखती थी,झुमकी पहले ही गौशाला की साफ सफाई करके वहाँ का गोबर हवेली के पीछे डाल चुकी थी और वहाँ बैठकर वो गोबर के कण्डे पाथ रही थी......
और इधर चाची दूध से भरी बाल्टियांँ एक एक करके रसोई में रखकर आ रहीं थीं,तभी चाचाजी भी गौशाला के भीतर पहुँचकर चाची से बोलें....
"जनकदुलारी! एक प्याली कड़क चाय पिला दो,सिर में बहुत तेज़ दर्द हो रहा है"
चाची चाचाजी की आवाज़ सुनकर चौंक गई क्योंकि वें उस समय पीठ करके खड़ी थीं और उन्होंने चाचा जी को गौशाला के भीतर आते नहीं देखा था फिर उन्होंने जैसे ही चाचाजी की आवाज़ सुनी तो उनसे बोलीं...
"तुम! आज बहुत जल्दी आ गए",
"हाँ! आ गया जल्दी,मेरे जल्दी आ जाने से तुम्हें कोई दिक्कत हो गई क्या?",चाचाजी गुस्से से बोले....
"भला मुझे क्या दिक्कत हो सकती है?",चाची बोली...
"तो फिर पूछ क्यों रही हो? जाओ चुपचाप चाय बनाकर लाओ",चाचाजी बोलें....
और फिर चाची ने दूध से भरी बाल्टी उठाई और रसोई की ओर चली गई,इसके बाद वें फटाफट चाचाजी के लिए चाय बनाकर ले आईं,चाचाजी ने चाय की प्याली अपने हाथ में पकड़ी और चाची से बोलें....
"मैं अपने कमरें में जा रहा हूँ,वहीं बैठकर आराम से चाय पिऊँगा और हाँ सुनो आज नाश्ते में कुछ ढंग का बना लेना, मैं इतने दिन बाद घर में नाश्ता कर रहा हूँ,वरना मुझे तो हमेशा दोपहर का खाना ही नसीब होता है"
"तो इसमें मेरी गलती है क्या? घर पर रात गुजारो तो हमेशा तुम्हें मनपसंद नाश्ता बनाकर दूँगीं,लेकिन तुम्हारे पैर तो घर में टिकते ही नहीं हैं",चाची बोली....
"सुबह सुबह मैं यहाँ तुम्हारे बकवास सुनने नहीं आया हूँ,अब शान्ति से चाय पीने दोगी या नहीं",चाचाजी बोलें....
"मैंने क्या तुम्हारा मुँह और हाथ पकड़ रखे हैं जो तुम चाय नहीं पी पा रहे हो",चाची बोली...
"मैंने घर में कदम रखें नहीं कि तुम बहस करना शुरू कर देती हो",चाचाजी बोलें....
"शुरुआत भी तो तुम ही करते हो",चाची बोली....
"मैं तो तुमसे बात क्या तुम्हारी शकल भी नहीं देखना चाहता,मनहूस कहीं की"
और ऐसा कहकर चाचा चाय की प्याली लेकर अपने कमरें में चले आए
क्रमशः....
सरोज वर्मा....