अन्धायुग और नारी--भाग(२१) Saroj Verma द्वारा महिला विशेष में हिंदी पीडीएफ

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अन्धायुग और नारी--भाग(२१)

वो लठैत तुलसीलता और किशोरी का पीछा करता हुआ अपने घोड़े से भगवन्तपुरा तक जा पहुँचा, वें दोनों हमसे पहले ही वहाँ पहुँच गईं थीं,क्योंकि किशोरी ने एक मोटे सेठ को फँसा रखा था और उसके पास मोटर थी और जब किशोरी ने उससे मिन्नत की तो उसने अपनी मोटर से दोनों को जल्दी ही भगवन्तपुरा पहुँचवा दिया, तुलसीलता और किशोरी उसी मकान के पास वाले मंदिर में चाची और मेरा इन्तज़ार करने लगी क्योंकि दादी ने बूढ़ी नौकरानी को यही कहकर भेजा था कि जब तक मैं और चाची वहाँ ना पहुँच जाए तो तब तक वें दोनों मकान के पास वाले मंदिर में हम दोनों का इन्तजार करें ,इसलिए वें दोनों वहीं रुककर हम दोनों का इन्तज़ार कर रहीं थीं.....
दोनों ने अपने ऊपर मोटा सा दोशाला ओढ़ रखा था जिससे कि कोई उन्हें पहचान ना सके और जैसे हमारा ताँगा उस मंदिर के नजदीक पहुँचा तो मैं ताँगें से उतरकर उन दोनों के पास गया, तब मैने देखा कि तुलसीलता और किशोरी दोनों ही दोशाला ओढ़े मंदिर की सीढ़ियों के किनारे पर दुबकी बैठीं हैं,रात थी इसलिए काफी अँधेरा था,लेकिन हमारे ताँगे पर लालटेन लगी थी और उसकी हलकी रोशनी से इतना उजाला तो हो ही रहा था कि मैं उन दोनों को भी पहचान सकूँ इसलिए मैनें दोनों को पहचान लिया और मैं उनके नजदीक जाकर बोला....
"तुलसीलता जीजी और किशोरी! तुम्हीं दोनों हो ना"!
मेरी आवाज़ सुनकर उन दोनों ने भी मुझे पहचान लिया तब किशोरी बोली...
"बड़ी देर लगा दी तूने,हम दोनों कब से तेरा इन्तज़ार कर रहे हैं"
"हाँ! जरा देर हो गई,रास्तें में बहुत अँधेरा था,इसलिए हम लोग थोड़ा धीरे धीरे आएं",मैंने कहा...
"अच्छा तो अब हम सब चलें उस मकान की ओर,ना जाने उदय का क्या हाल हो रहा होगा",तुलसीलता बोली....
"हाँ...हाँ...चलो,अब ज्यादा देर करना ठीक नहीं",मैंने तुलसीलता और किशोरी से कहा....
फिर हमने ताँगेवाले को वहीं रुकने को कहा और हम चारों ताँगेवाले की लालटेन लेकर उस मकान की ओर बढ़ चले,मकान मंदिर से ज्यादा दूरी पर नहीं था,इसलिए हम जल्दी ही वहाँ पहुँच गए,वहाँ जाकर देखा तो मकान के दरवाजे पर बड़ा सा ताला पड़ा था,इतनी रात गए अगर हम सब ताला तोड़ते तो बहुत आवाज़ होती जिससे गाँव के लोग जाग जाते और हमें चोर समझकर हल्ला भी मचाने लगते इसलिए हम सब मकान के भीतर जाने के लिए कोई और रास्ता खोजने लगें.....
हम चारों लालटेन लेकर मकान के पीछे गए तो हमने देखा कि वहाँ एक खिड़की खुली थी,जिस पर सरिये भी नहीं लगे थे,फिर हम सभी ने उसी खिड़की से मकान के भीतर जाने का सोचा और ईश्वर की कृपा से खिड़की ज्यादा ऊँची और सँकरी भी नहीं थी,हम सभी उसके भीतर आसानी से जा सकते थे,इसलिए हम एक एक करके सावधानी के साथ भीतर जाने लगें,सबसे पहले तुलसीलता भीतर पहुँची और उसने अपने हाथों में लालटेन थाम ली,फिर चाची खिड़की से भीतर पहुँची ,इसके बाद किशोरी और सबसे बाद में मैं भीतर पहुँचा,अब हम सभी मकान के भीतर थे और उदयवीर को खोज रहे थे......
मकान भीतर से कैसा है ये चाची को बहुत अच्छी तरह से पता था क्योंकि वो पहले दादी के साथ वहाँ जा चुकीं थीं,वैसें उस मकान के बारें में तुलसीलता भी बखूबी जानती थी लेकिन उतना नहीं जितना की चाची जानतीं थीं,तुलसीलता तो वहाँ केवल एक रात ही रुकी थी,वो भी आगें वाले कमरें में,उसके साथ चाचाजी भी वहीं थे इसलिए वो पूरे मकान का ठीक से मुआयना नहीं कर पाई थी और अब हम सभी ने उदयवीर को खोजना शुरू किया, चाची और तुलसीलता आगें आगें थी और हम दोनों उनके पीछे पीछे ,फिर आखिरकार हम सभी ने उदयवीर को खोज ही लिया,उदयवीर को वें लोग भण्डारगृह में बाँधकर गए थे,वो एक चारपाई पर बँधा पड़ा था और उसके मुँह में कपड़ा ठूँसा गया था कि जिससे वो चीखकर किसी की मदद ना ले पाएँ....
फिर हम सभी ने मिलकर उसके बँधे हुए हाथ पैर खोले,उसके मुँह से कपड़ा निकाला,हाथ पैर खुलते ही वो बोला...
"बहुत प्यास लगी है,पहले पानी पिला दो",
वहीं भण्डारगृह में एक कोने में पानी से भरा मटका रखा था तो मैंने उसे उस मटके से लोटे में पानी भरकर दिया और वो एक साँस में ही सारा पानी पी गया,फिर तुलसीलता ने उससे कहा...
"अब जल्दी चलो यहाँ से,हम सभी तुम्हें लेने आए हैं",
"लेकिन तुमलोगों को कैसें पता चला कि मैं तुमलोगों को यहाँ पर मिलूँगा,",उदयवीर ने पूछा...
"ये सब बातें बाद में होतीं रहेगीं,पहले हमें यहाँ से निकलना चाहिए",चाची बोलीं...
"हाँ! ठकुराइन सही कह रहीं हैं",तुलसीलता बोली....
"हाँ! चलो! लेकिन अब हम सभी जाऐगें कहाँ"?,उदयवीर ने पूछा....
"तुम उसकी चिन्ता मत करो,जितनी जल्दी हो सके पहले हम सभी यहाँ से निकलने की कोशिश करते हैं",चाची बोलीं....
और फिर हम सभी उस मकान के पीछे वाली खिड़की से निकलकर बाहर आ गए और मंदिर के पास खड़े ताँगे पर जा बैठे,फिर क्या था ताँगेवाला ताँगा तेज तेज भगाने लगा जिससे कि हम सभी जल्दी से अपने गन्तव्य की ओर पहुँच जाएं,ताँगेवाला पूरी रफ्तार के साथ ताँगा भगा रहा था,काफी देर ताँगा भगाने के बाद आखिरकार उस ताँगेवाले ने हमें अपने गन्तव्य तक पहुँचा ही दिया,अब आधी रात से ज्यादा हो चली थी तो चाची तीनों से बोलीं....
"ऐसा करो तुम तीनों भी हमारे साथ हवेली चलो क्योंकि अब तुम तीनों की जान को खतरा हो सकता है,इतनी बड़ी हवेली है,तुम तीनों कहीं भी छुप जाना,वहाँ तुम तीनों महफूज़ रहोगे",
"लेकिन ठकुराइन! इससे आपको भी तो परेशानी हो सकती है,यदि आपके पति को ये पता चल गया कि आप मुझे भगवन्तपुरा से छुड़ाकर यहाँ लाईं हैं और आपने मुझे अपनी हवेली में पनाह दी है तो फिर तो वें आपकी दुर्दशा कर देगें",उदयवीर बोला....
"उदय! अब मुझे किसी का डर नहीं है और मैं कोई गलत काम थोड़े ही कर रही हूँ जो डरती फिरुँ",चाची बोली....
"लेकिन फिर भी ठकुराइन! एक बार और सोच लीजिए,क्योंकि ठाकुर साहब बड़े ही खतरनाक इन्सान हैं",तुलसीलता बोली....
"सोच लिया तुलसी!सब सोच लिया,ताउम्र डर डरकर ही तो जीती आई हूँ,लेकिन आज मौका मिला निडर बनने का तो तुम दोनों मुझसे ये मौका छीनने चले हो,फिकर मत करो मुझे कुछ नहीं होगा,अब मैं किसी भी हाल में तुम दोनों का साथ नहीं छोड़ूगी",चाची बोली...
"जब आप इतना कह रही हैं तो फिर हम तीनों आपके साथ ही चलेगें",किशोरी बोली....
और फिर आधी रात के वक्त हमारा ताँगा हवेली के पास आकर रुका,उस वक्त ना हवेली में दादाजी थे और ना ही चाचा जी,क्योंकि वें दोनों तो रात को हवेली में ठहरते ही नहीं थे,भोर होते ही नशे में धुत होकर हवेली आते थे,इसलिए हमारा रास्ता एकदम साफ था और हम हवेली के भीतर पहुँच गए,फिर हमने दादी को भी सारी बात बता दी और दादी ने भी उन तीनों को हवेली में ठहरने की इजाज़त दे दी....

क्रमशः....
सरोज वर्मा....