फादर्स डे - 76 Praful Shah द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
  • अनोखा विवाह - 10

    सुहानी - हम अभी आते हैं,,,,,,,, सुहानी को वाशरुम में आधा घंट...

  • मंजिले - भाग 13

     -------------- एक कहानी " मंज़िले " पुस्तक की सब से श्रेष्ठ...

  • I Hate Love - 6

    फ्लैशबैक अंतअपनी सोच से बाहर आती हुई जानवी,,, अपने चेहरे पर...

  • मोमल : डायरी की गहराई - 47

    पिछले भाग में हम ने देखा कि फीलिक्स को एक औरत बार बार दिखती...

  • इश्क दा मारा - 38

    रानी का सवाल सुन कर राधा गुस्से से रानी की तरफ देखने लगती है...

श्रेणी
शेयर करे

फादर्स डे - 76

लेखक: प्रफुल शाह

खण्ड 76

रविवार 17/05/2015

सूर्यकान्त ने अब लहू के पैरों का हिस्सा और मृतदेह के पैरों का हिस्सा ठीक से देखा। लैपटॉप की स्क्रीन पर दोनों फोटो को बार-बार ज़ूम करके देखा। पैर के प्रत्येक भाग को ज़ूम किया। एक भाग देखने के बाद दूसरे भाग को देखने की ओर भागा।

अचानक सूर्यकान्त ने टेबल पर अपनी हथेली को ठोका।

“कुछ तो गड़बड़ है। दोनों पैर, यानी लहू का और शव का पैर मैच नहीं हो रहे हैं।”

उसने पुलिस द्वारा की गई टिप्पणियों पर नजर दौड़ाई। अंकुश ढेकणे के कहे मुताबिक शर्ट और पैंट लहू के थे। शव की जेब में वोटर आईडी कार्ड और डायरी मिली थी। उम्र कैद का आरोपी पैरोल पर अपने घर जाता है। पैरोल खत्म करने बाद वापसी में अपने साथ डायरी और वोटर आईडी कार्ड क्यों ले जाता है? जेल में उनका क्या काम ? डायरी में लहू, अंकुश और उसकी बहन के मोबाइल नंबर के अलावा और क्या लिखा था, कोई और नंबर थे क्या, किसके नंबर थे? ये सभी सवाल अनुत्तरित थे। शव के कपड़ों में रुमाल, बनियान, अंडरवियर क्यों नहीं मिले? खूनी के पास रुमाल न होने की संभावना है, तो खूनी अपने साथ रुमाल भी लेकर जा सकता है...पर अंडरवियर कहां है? लहू अब उनतालीस साल का है, इतना बड़ा आदमी अंडरवियर क्यों नहीं पहनेगा? शव का सिर और दोनों हाथ कलाइयों से कटे होने के बावजूद कपड़ों पर खून का एक भी धब्बा क्यों नहीं था ? निश्चित ही कुछ गड़बड़ है, ऐसा सूर्यकान्त को लगने लगा।

उसके दिमाग में एक आशंका मजबूती से घूमने लगी कि लहू ढेकणे ने अपना नया खेल शुरू कर दिया है। मौत का खेल। भले ही लहू ने नया खेल चालू कर दिया हो, लेकिन मैं उसका खेल तमाम करके रहूंगा।

उसे संकेत का हंसता हुआ चेहरा नजर आने लगा। अचानक कोई संकेत के नाजुक गले के चारों ओर बूट की लेस घुमा रहा है और लहू गगनभेदी अट्टहास कर रहा है-उसे दिखने लगा। सूर्यकान्त का गुस्सा बेकाबू होने लगा। उसने दांत पीसे, मुट्ठी बांधकर विचार करने लगा। थोड़ी देर में उसने एक नंबर डायल किया। सामने रिंग जाने लगी। कॉल रिसीव किया गया।

“हैलो, मैं जो बता रहा हूं, ध्यान से सुनो।”

.......................................................

सोमवार 18/05/2015

आशंका केवल सूर्यकान्त को ही नहीं थी, तो कोल्हापुर करवीर पुलिस स्टेशन के दयानंद ढोमे भी इसी दिशा में विचार कर रहे थे। पंद्रह साल जेल में बिताकर पैरोल पर छूटे लहू ने ऐसा क्या कर डाला कि कोई उसकी इतनी निर्मम हत्या कर डालेगा? कपड़ों पर खून का एक भी दाग नहीं है? लहू की पहचान साबित करने वाली कुछेक चीजों को छोड़कर एक भी अतिरिक्त चीज शव के पास बरामद क्यों नहीं हुई? अंकुश के मुताबिक लहू कभी भी दारू नहीं पीता था, फिर शव के पास दारू की बोतल कैसे? पोस्टमार्टम में स्पष्ट लिखा हुआ है कि मृत व्यक्ति ने खूब शराब पी रखी थी।

पक्के प्रमाण के लिए अंकुश ढेकणे और इस डीएनए के टेस्ट की आवश्यकता मालूम पड़ रही थी। पुलिस ने दोनों नमूने फोरेंसिक लैब में भेज दिए। इसी के साथ लहू के बारे में अधिकाधिक जानकारी जुटाने और हत्या प्रकरण का खुलासा करने के लिए पुलिस की एक खास टीम गठित की गई। क्योंकि कोल्हापुर पुलिस अधीक्षक और डॉक्टर मनोज कुमार शर्मा ने 16 मई की आधी रात को जानकारी दी कि बरामद शव लहू ढेकणे का न होकर लहू के कोल्हापुर इलाके में मौजूद होने का पता चला है। इस वजह से डॉक्टर शर्मा और सहायक पुलिस अधीक्षक अनिल देशमुख के मार्गदर्शन में विकास जाधव, शिवाजी खोराटे, राजी साडूरकर, सुनील इंग्वले और अमर अडसुळे का खास दल काम में जुट गया। पैरोल पर छूटने के बाद लहू कहां-कहां गया और उसने क्या-क्या किया-यह मालूम करना इस दल का मुख्य काम था। साथ ही आसपास के इलाकों से गुमशुदा हुए लोगों की जानकारी इकट्ठा करने का दूसरा महत्वपूर्ण काम भी शुरू हो गया था।

.......................

बुधवार 20/05/2015

लहू के भाई अंकुश ढेकणे ने शव को लेन से साफ मना कर दिया और कहा, “उसे गांव में ले जाकर क्या करूं? साहेब आप ही उसका अंतिम संस्कार कर डालें।” पुलिस ने लहू ढेकणे का अंतिम संस्कार कर दिया। इसका खुलासा होते साथ एक बड़े प्रकरण पर हमेशा के लिए परदा पड़ गया। सभी को लगने लगा कि नियति ने आखिर अपना उपयुक्त न्याय कर दिया।

सूर्यकान्त की मांग और पुलिस सतर्कता लहू ढेकणे की तलाश में थी। पैरोल पर छूटने के बाद कोलंबा जेल में वापस आने के बदले लहू भाग गया था। उसके बाद वह उचगाव, टेंबलेवाड़ी, विक्रमनगर इन इलाकों में भटकता पाया गया था। किराए की खोली में रहता था। चोरी की मोटरसाइकिल पर घूमता हुआ दिखता था। रूईकर कॉलोनी में कोई काम करने की खबर भी हाथ लगी थी। पाचगाव इलाके में, जहां से शव बरामद हुआ था, उस दिन लहू जैसा दिखने वाला आदमी टेंबलवाड़ी में दिखाई पड़ने की खबर मिली थी। अब पुलिस का संदेह विश्वास में बदल गया था। पुलिस के खबरी लहू को खोज रहे थे।

.......................

शुक्रवार 22/05/2015

सूर्यकान्त और कोल्हापुर पुलिस के संदेह को सही साबित करने वाला एक फोन कॉल कोल्हापुर लोकल क्राइम ब्रांच के पुलिस ऑफिसर अनिल देशमुख के पास  आया। एक खबरी ने लहू जैसे दिखने वाले आदमी को देखने की खबर दी। देशमुख ने उस संदिग्ध व्यक्ति पर नजर रखने और उसकी एक-एक गतिविध पर लगातार ध्यान रखने का आदेश उस खबरी को दिया। शाम हो चली थी। खबरी नजर रखे हुए था। अधिक देर बरबाद करने का कोई मतलब नहीं था। उसी क्षण पुलिस का दल रवाना हो गया।

खबरी की जानकारी के हिसाब से पुलिस वैन कोल्हापुर रेल्वे स्टेशन पर आकर रुक। लंबे लंबे डग भरती हुई पूरी पुलिस टीम ने कोल्हापुर रेल्वे स्टेशन के भीतर प्रवेश किया। कुछ ही देर में प्लेटफॉर्म के दोनों तरफ ढलान पर, बीच में और फुटओवर ब्रिज पर पुलिस कर्मचारियों ने अपनी-अपनी पोजिशन ले ली। यात्री, उन्हें विदा करने पहुंचे रिश्तेदार, फेरीवाले, कुली और भिखारियों के मेले में एक खास आदमी को ढूंढ़ निकालना आसाम काम नहीं था।

उतने में लहू आता हुई दिखा। उससे थोड़ी दूरी बनाकर खबरी चल रहा था। प्लानिंग और अनुभव के आधार पर पुलिस दल उसी दिशा में धीरे-धीरे बढ़ने लगा। लहू का घेराव धीरे-धीरे होने लगा लेकिन वहां पर मौजूद पुलिस वालों पर लहू को रंचमात्र संदेह नहीं हुआ। अनिल देशमुख आगे आ रहे लहू के एकदम सामने आकर खड़े हो गए। लहू ने देशमुख की ओर देखा, देशमुख ने एक इशारा किया...पीछे से एक वजनदार हाथ लहू के कंधे पर पड़ा। कान में आवाज आई, “पुलिस”

कोई भी प्रतिक्रिया न दिखाते हुए लहू ने अनिल देशमुख से सिर्फ इतना कहा,

“चलिए।”

कोल्हापुर रेल्वे स्टेशन जैसी भीड़भाड़ वाली जगह से पुलिस लहू ढेकणे जैसे खतरनाक अपराधी को आसानी से पकड़कर ले जा रही थी। आश्चर्य सिर्फ इस बात का था कि लहू ने अपनी ओर से किसी भी तरह का प्रतिरोध न करते हुए, कोई भी भावना व्यक्त न करते हुए, निर्विकार भाव लेकर सहजता से चलता जा रहा था।

.........................

शनिवार 23/05/2015

सुबह-सुबह महाराष्ट्र भर के समाचार पत्रों के पहले पन्ने पर एक नाम चमका,

“लहू रामचन्द्र ढेकणे”

“खून करणारा आरोपी लहु रामचंद्र ढेकणे जेरबंद.” (खून करने वाला आरोपी लहू रामचन्द्र ढेकणे गिरफ्तार)

“कुख्यात गुंड खुनी लहु रामचंद्र ढेकणेला जिवंत पकडले.”(कुख्यात गुंडे खूनी लहू रामचंद्र ढेकणे को जिंदा पकड़ा)

“कुख्यात गुंड लहु रामचंद्र ढेकणेला हत्या प्रकरणात अटक.”(कुख्यात गुंडे लहू रामचन्द्र ढेकणे को हत्या प्रकरण में जेल )

“गुंड लहु रामचंद्र ढेकणे अजून जिवंत आहे.”( गुंडा लहू रामचन्द्र ढेकणे अभी जिंदा है)

“शीर नसलेला तो मृतदेह कोणाचा?”

अंग्रेजी हेडिंग-“Murderer Lahut Ramchandra Dhekne found alive. Arrested immediately.”

..................

पुलिस ने शांति की और आम नागरिकों ने निश्चिंतता की सांस ली। शिरवळ गांव में आनंद पसर गया। परंतु पुणे में सूर्यकान्त को एक बात समझ में नहीं आ रही थी कि दो मासूम छोटे बच्चों की हत्या करने वाले को जिंदा रखकर पोसने की जरूरत ही क्या? वह आगे तीसरे का खून करे, इसके लिए पोसा जा रहा है?

कुल तीन नृशंस हत्याएं करने वाला और दो बार जेल से फरार होने वाले अत्यंत खतरनाक अपराधी, समाज के कलंक को जिंदा रखने का कारण क्या है? सूर्यकान्त के मन में आता था कि अपनी खरीदी हुई लाइसेंसी रिवॉल्वर की सारी गोलियां सी नरपिशाच लहू ढेकणे के भीतर उतार दी जाएं।

लहू की गिरफ्तारी से पुलिस एक समस्या से मुक्त हुई तो दूसरी मुंह फाड़कर खड़ी हो गई। पुलिस ने अंकुश ढेकणे के बताए अनुसार जिस शव का लहू समझकर अग्नि दे दी थी, वह शव किसका था? वह मृत व्यक्ति कौन था? उसे किसने मारा? लहू ने तीसरा खून किया? आशंका है? फिरौती के लिए दो खून करने वाले लहू का इस व्यक्ति के साथ ऐसा क्या विवाद हुआ कि लहू ने उसके टुकड़े कर दिए?

..........................

रविवार 24/05/2015

लहू ढेकणे पुलिस के कब्जे में आने के बाद वह उन्हें बिलकुल परेशान नहीं करता था। जेल के अंदर भी किसी तरह की धूम नहीं मचाता था। पुलिस के साथ लुकाछिपी खूब खेलता था। खुद को जेल भर की पुलिस किस तरह खोजती फिरती है, यह खेल देखने में उसे बड़ा मजा आता था। एक बार पुलिस के हत्थे चढ़ने के बाद लेकिन वह आसानी से सबकुछ सही-सही बता देता था, ये उसका नियम था।

‘खतरनाक’ हत्याएं करने वाला लहू ढेकणे ‘चमत्कारिक’ तरीके से जेल की सींखचों के भीतर गया। दूसरे दिन मन में कोई किंतु-परंतु रखे बिना वह पुलिस को पूरी हकीकत सिलसिलेवार बताने लगा।

मई महीने शुरू होने से पहले कुछ तो करना है, लहू ने मन में ठान लिया था। इसके लिए ढेकणे उचगाव इलाके में पहुंचा। वहां के बीयरबार, परमिट रूम और देशी दारू के कट्टे के चक्कर लगाना शुरू कर दिया। लहू खुद कभी भी दारू को हाथ तक नहीं लगाता था। फिर भी दारू की दुकानों के चक्कर लगाता था। इसी बीच एक मोटरसाइकिल चुराई। बाजार जाकर कुछ खास सामान खरीद कर रखा था। लहू सुसज्ज था। उसको बस एक भन्नाट मौके की तलाश थी। आखिरकार उसने एक शिकार फांसा-दत्तात्रय पांडुरंग नायकुड़े।

कोल्हापुर के पास सरनोबतवाड़ी का रहने वाला दत्तात्रय पांडुरंग नायकुड़े मजदूरी का काम करता था। दैनिक मजदूरी पर निर्माणकार्य साइट पर सेंटरिंग का काम करता था। करवीर तहसील की सरनोबतवाड़ी की मनीषा कॉलोनी में उसका परिवार रहता था। परिवार में दत्तात्रय की पत्नी संजीवन, बेटा, बेटी और भाई प्रकाश एकसाथ रहते थे। दत्तात्रय की और दो बेटियों का विवाह हो चुका था और वे ससुराल में थीं।

दत्तात्रय पांडुरंग नायकुड़े मजदूरी के काम से आसपास के इलाकों में जाता था। वह दो-तीन दिनों तक घर में फटकता नहीं था। घर में वह कहता था,‘रोज-रोज आने-जाने में पैसा और समय भी खूब खर्च होता है और इस थके हुए शरीर से अब यात्रा भी नहीं होती।’ लेकिन वास्तविकता तो यह थी कि रोज शाम को उसे घर की बजाय दारू की दुकान अपने पास बुलाती थी। दारू...दारू..दारू...

 

अनुवाद: यामिनी रामपल्लीवार

©प्रफुल शाह