फादर्स डे - 73 Praful Shah द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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फादर्स डे - 73

लेखक: प्रफुल शाह

खण्ड 73

गुरुवार 26/02/2009

कराड में बरामद किया गया बच्चे के शव अंधेरी पुलिसस स्टेशन के कब्जे में दे दिया गया था। पहले दिन बुधवार को अंधेरी में रहने वाले बदनसीब माता-पिता अंकुश तुकाराम दलवी और मनीषा अंकुश दलवी के करुण रुदन ने अपने बेटे साहिल अंकुश दलवी का शव पहचान लिया था। साहिल का अपहरण हुआ था।

ये जानकारी पहले ही सूर्यकान्त तक पहुंच गई थी। सूर्यकान्तने साहिल अंकुश दलवी अपहरण-हत्या की घटना की पूरी जानकारी फोन पर लेना शुरू किया। उनका पता, अपहरण की तारीख, अंदाजन समय और वर्तमान में रह रहे घर के आसपास के पुलिस स्टेशनों की जानकारी।

घड़ी के कांटे भाग रहे थे। सूर्यकान्त अपना कामकाज छोड़कर नए लहू की खोज के पीछे दौड़ रहा था।

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शुक्रवार 27/02/2009

रात को तीन बजे सूर्यकान्त और प्रतिभा अपनी गाड़ी में अंधेरी पुलिस स्टेशन पहुंचे। एमआईडीसी पुलिस स्टेशन को पहले से ही जानकारी दी जा चुकी थी। साहिल के पिता अंकुश दलवी के अंधेरी पुलिस स्टेशन में सवाल जवाब की नियमानुसार कार्रवाई में व्यस्त होने के कारण राह देखने के अलावा और कोई चारा नहीं था। अंकुश दलवी जब फ्री हुए तो बहुत दुःखी और व्यथित थे लेकिन भावनाओं के आवेग में बहने से काम नहीं चलने वाला था। अपराधियों को भागने का रास्ता देने में कोई मतलब नहीं था। पुलिस ने सूर्रकान्त को जिस प्रकार का सहयोग किया था उसे देखकर अंकुश के लिए संदेह करने की कोई वजह नहीं थी। लेकिन बातचीत करने की उसकी इच्छा नहीं थी। अंकुश ने बताया कि उसकी पत्नी मनीषा दलवी अस्पताल में भरती है। प्रतिभा ने तुरंत कहा कि उसे मनीषा से मिलना है। एक मॉं, दूसरी मॉं को निश्चित ही धीरज बंधा सकती है। अंकुश को भी उसकी बात जंच गई। पुलिस स्टेशन से सब लोग अस्पताल में पुहंचे।

निजी अस्पताल, अंकुश की पहचान और मासूम बच्चे की हत्या-इन सभी बातों को ध्यान में रखते हुए साथ ही मनीषा को धीरज और हिम्मत देने के लिए कोई नहीं है, यह देखकर आधी  रात को अंकुश, प्रतिभा और सूर्यकान्त को मनीषा के पास भेज दिया गया। मनीषा ने इन लोगों को पहचाना नहीं, अंकुश ने झट से उनका संक्षेप में परिचय करवा दिया। उनके आने का कारण बताया, मनीषा को उनका वहां पहुंचना अच्छा नहीं लगा।

लेकिन परिस्थिति के सामने हताश अंकुश ने सूर्यकान्त को घटना के बारे में बताना शुरू किया। आंसू भरी आंखों और भरे हुए दिल से एक पिता की व्यथा बह निकली।

मंगलवार 03/02/2009 को सेंट जेवियर्स स्कूल की दूसरी कक्षा में पढ़ने वाला साहिल रोज की ही तरह सांईधाम सोसायटी की छठवीं मंजिल से निकलकर पहली मंजिल में रहने वाली मिसेज सरकार के घर सुबह ट्यूशन के लिए गया लेकिन उसके बाद वह घर लौटकर नहीं आया। मिसेज सरकार से जब पूछताछ की गई तो उन्होंने बताया कि साहिल ट्यूशन खत्म करके हमेशा की तरह घर वापस निकल गया था। चिंतातुर अंकुश दलवी ने उसी दिन अंधेरी एमआईडीसी पुलिस स्टेशन की ओर दौड़ लगाई और फरियाद लिखवाई। दूसरे दिन, बुधवार को अंकुश को फोन आया।

“पंद्रह लाख रुपए तैयार रखो नहीं तो तुम्हारे बेटे को मार डालेंगे।”

फोन करने वाले और कुछ न कहते हुए फोन काट दिया।

उसके बाद अपराधी शांत हो गया। पुलिस रूटीन काम करने लगी। 23 फरवरी 2009 को कराड कृष्णा नदी के किनारे रैग्जीन बैग में एक अनजान छोटे बच्चे का शव प्राप्त हुआ। इसकी पहचान करने के लिए पुलिस ने दलवी परिवार को बुलाया। साहिल का शव देखकर अंकुश और मनीषा के पैरों तले जमीन खिसक गई।

मनीषा वहीं पर गश खाकर गिर पड़ी। मुंबई पहुंचकर उसकी तबीयत और खराब हो गई, उसे तत्काल अस्पताल में भरती कराना पड़ा।

ये सब बताते हुए अंकुश दलवी सूर्यकान्त के सामने जोर-जोर से रोने लगा। प्रतिभा ने धीरे मनीषा का हाथ अपने हाथों में लिया। स्पर्श पाकर पल भर में ही मनीषा प्रतिभा की ओर झुकी और उससे गले लगकर बिलखने लगी। परिस्थिति के मारे दो दंपतियों को नियति ने आज एक जगह पर ला दिया था। दोनों दंपतियों को कभी न भर सकने वाला घाव दिया था नियति ने।

प्रतिभा ने मनीषा को ममता से अपनी बाहों में लेकर उसकी पीठ थपथपाने लगी तो सूर्यकान्त का प्रेमभरा हाथ अंकुश की पीठ पर एक बड़े भाई की ममता की तरह फिर रहा था। शब्दों में व्यक्त न हो सकने वाली वेदना ममता भरे स्पर्श और व्यथित आंसुओं के जरिए बहने लगी थी।

अंकुश आगे बोलने लगा।

“25/02/2009 को मोबाइल कॉल आया,

“सबकुछ किया है, तुझे जो करना है वो तू कर. तेरे साहिल को पश्चिम बंगाल में रखा है।”

अंकुश फिस से पुलिस के पास भागा। वहां मोबाइल की जानकारी देकर बाहर निकला उतनी देर में उसकी सूर्यकान्त और प्रतिभा से मुलाकात हो गई।

सूर्यकान्त ने कुछ विचार किया और डायरी में नोट करने लगा। इसके बाद अंकुश से सवाल पर सवाल करने लगा। मनीषा से भी बहुत कुछ पूछ लिया। डायरी में लिखना जारी था। अंकुश का व्यावसायिक जीवन, दोस्त-सहेलियां, परिवार, रिश्तेदारों के बारे में सवाल। अंकुश एक बिल्डर के पास नौकरी कर रहा था। इसलिए व्यवसाय संबंधी दुर्भावना की संभावना नहीं के बराबर थी।

सूर्यकान्त मुद्दे पर आया। अड़ोस-पड़ोस में कौन हैं? साई धाम में रहने वाले, वॉचमैन के बारे में सवाल चालू थे। इस पूरी जानकारी में दूसरी मंजिल में रहने वाले उमेश जाधव के बारे में सूर्यकान्त को कुछ अजीब लगा। चौबीस साल का उमेश जाधव। एक समय ऐसा था कि दलवी और जाधव परिवार के बीच बहुत अच्छे पड़ोसी संबंध थे। बिलकुल घर जैसे। कुछ समय बाद जाधव ने दलवी से कुछ नकद रकम उधार ली थी। उसने वह रकम न चुकाकर गड़प कर ली। इस कारण से दोनों परिवारों में कड़े शब्दों में बहस हुई और झगड़ा बहुत बढ़ गया। बीते तीन सालों से इन दोनों परिवारों में कोई संबंध नहीं था। एकदूसरे का मुंह तक नहीं देखते थे।

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शनिवार 28/02/2009

सूर्यकान्त ख्यालों के गर्त में डूब गया। उसने अंकुश से चार फरवरी को फिरौती के लिए आए फोन का समय पूछा। उमेश जाधव का मोबाइल नंबर लिया। सूर्यकान्त धड़ाधड़ फोन करते हुए किसी से एक ही विनती करते जा रहा था, “अर्जेंट काम है।”

कुछ ही देर में जानकारी मिली कि फिरौती का पहला फोन बोरीवली के एक एसटीडी बूथ से किया गया था। सूर्यकान्त ने बूथ का नंबर लिख लिया। उमेश जाधव के फोन का लोकेशन आश्चर्य में डालने वाला निकला। साहिल के अपहरण के दिन उमेश का मोबाइल लोकेशन स्वारगेट एरिया और उसके बाद कराड दिखा रहा था। 25 फरवरी को आए हुए दोनों नंबरों के आईएमई नंबरों से अपहरण के दिन की लोकेशन ली गई थी। शाम को कराड का नंबर किसका है, ये मालूम किया गया। कराड का नंबर उमेश देसाई के नाम पर था। रात को उसी नंबर की लोकेशन फिर से उमेश जाधव के घर की दिखा रही थी। इसका मतलब ही था कि उमेश पुणे से कराड जाकर फिर मुंबई लौटा था।

इतनी विस्तृत जानकारी जुटाने के लिए सूर्यकान्त को बहुत समय लग गया। तब तक पुलिस ने भी अपनी कार्यक्षमता को दांव पर लगाकर बहुत सारी जानकारी इकट्ठी कर ली थी। 01/04/2000 के दिन सूर्यकान्त और अंकुश ने अपनी जानकारी पुलिस को सौंप दी और सरकमस्टेंशियल एविडेंस के आधार पर संदेही आरोपी को गिरफ्तार करने पर जोर दिया। पुलिस को मिली जानकारी और सुर्यकान्त द्वारा की गई खोज में पूरी समानता थी इसलिए अब राह देखने का सवाल ही नहीं उठता था।

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शनिवार दिनांक 28/08/2009

साहिल अंकुश दलवी अपहरण हत्या प्रकरण में सूर्यकान्त, अंकुश और पुलिस को भी उमेश गणेश जाधव पूरी तरह से संदिग्ध लग रहा था। 02/04/2009 को पुलिस ने उमेश को हिरासत में लिया। उमेश ने आश्चर्य व्यक्त किया। आपने गलत निर्णय लिया है-इस तरह की खोखली दलीलें देने लगा। अपनी बेगुनाही साबित करने के लिए इधर-उधर की बातें कीं। तीन दिनों तक सवाल-जवाब करने के बाद पुलिस उमेश को कराड लेकर गई।

कराड के आसपास रहने वाले उमेश के संबंधियों के घर उमेश को लेकर पहुंचे। रात को साढ़े दस बजे उमेश अपने एक रिश्तेदार के घर पुलिस को ले गया। यहां से पुलिस को चकमा देकर उमेश जाधव भाग गया। स्मार्ट ऐसा कि जाते-जाते अपनी मौसी से बीस रुपए उधार भी ले गया।

पुलिस ने उमेश जाधव के फरार होने की जानकारी तुरंत ही कराड पुलिस को दे दी। दी गई जानकारी के मुताबिक पुलिस ने उमेश जाधव को इस्लामपुर इलाके से पकड़ा। वहां से उसे एमआईडीसी पुलिस स्टेशन लाया गया। उमेश जाधव के भागने के कारण किडनैपिंग हत्या प्रकरण की जांच कुछ दिनों के लिए रुक गई थी। 06/04/2009 को पुलिस ने उमेश को रिहा कर दिया।

अनुवाद: यामिनी रामपल्लीवार

©प्रफुल शाह

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