फादर्स डे - 63 Praful Shah द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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फादर्स डे - 63

लेखक: प्रफुल शाह

खण्ड 63

मंगलवार 18/07/2000

सुबह के साढ़े चार बज गए लेकिन अभी-भी लहू अपने मुंह से सच बोलने को तैयार नहीं था। उसी समय सातारा पुलिस की गाड़ी आकर रुकी। हुआ यूं कि लहू को लेकर निकली जीप और काली सुजुकी समुराई अंकुश को रास्ते में गच्चा देकर किसी और ही तरफ मुड़ गई थी इसलिए अंकुश ने जेजुरी पुलिस स्टेशन की तरफ दौड़ लगाई थी और पुलिस चौकी में पहुंचकर उसने रोना-धोना मचा दिया था कि सूर्यकान्त भांडेपाटील ने उसके भाई यानी लहू रामचन्द्र ढेकणे का अपहरण कर लिया है।  जांच-पड़ताल के नाम पर उनकी तरफ से हमें जब तब परेशान किया जाता है। और आज तो भांडेपाटील ने पूछताछ के लिए मेरे भाई का सीधे-सीधे अपहरण ही कर लिया है। पुलिस को शंका हुई कि अपहरण तो ठीक है, लेकिन आगे कुछ और भयानक घटने वाला है।

पुलिस ने फॉर्म हाउस में पहुंचते ही सूर्यकान्त को स्पष्ट शब्दों में आदेश दिया कि इस आदमी को हमें पुलिस स्टेशन ले जाना बहुत जरूरी  है। सूर्यकान्त ने पुलिस के सामने दो शर्तें रखीं। पहली-लहू को आप यहां से जबर्दस्ती ले जा रहे हैं-यह कबूल करना होगा। दूसरी-उससे जो कुछ भी पूछताछ होगी, जांच-पड़ताल होगी, वो मेरे सामने ही होगी। पुलिस ने उसकी दोनों शर्तें तुरंत मान लीं। जिस समय पूरा दलबल सुरेश कुंभार के फॉर्म से सातारा की ओर निकला उस समय साढ़े छह बज रहे थे। सूर्यकान्त, रफीक़ और विष्णु मर्डेकर ने नजदीक रह रहे हेड कॉन्स्टेबल रमेश देशमुख के घर जाकर फटाफट नित्यकर्म निपटाया और साढ़े सात बजे पुलिस चौकी में पहुंच गए। चौकी से फरमान जारी हुआ था इसलिए पूरा स्टाफ वहां पर मौजूद था।

साढ़े सात के आसपास सभी पुलिस अधिकारी सातारा क्राइम ब्रांच में पहुंच गए। लहू ढेकणे से जांच-पड़ताल की सही अर्थों में अब शुरुआत होनी थी। पुलिस ने लहू को आदेश दिया कि सभी कपड़े उतार दो। उसने केवल शर्ट उतारा। उसकी गर्दन पर कटने की वजह से या फिर गला दबने के कारण जख्म का निशान दिखाई दे रहा था।

लहू ने इस निशान के बारे में सच यह था कि जब वह अकेला रहता था तो उसने एक बार गले में काला धागा बांधकर आत्महत्या करने की कोशिश की थी, उसी वजह से ये लाल निशान दिखाई पड़ता है। लेकिन उसने बड़ी चालाकी से झूठ बोलना शुरू किया। सूर्यकान्त की ओर ऊंगली नचाते हुए बोला कि इस साहब ने मेरी रात में पिटाई की है, ये उसी का निशान है। सूर्यकान्त को समझ में आ गया कि मामला क्या है। उसने तुरंत पुलिस वालों को जवाब दिया कि हो सकता है इस आदमी ने आत्महत्या का प्रयास किया है। आपको इसकी तरफ से अभी और भी बहुत कुछ सुनने को मिलेगा।

इसी के साथ सूर्यकान्त ने भी नाटक शुरू कर दिया। पुलिस के सामने अपने दोनों हाथ जोड़कर विनती करने लगा,

“साहेब, लहू से जो कुछ पूछना है, पूछें लेकिन प्लीज उसे मारें नहीं। प्लीज उसे हाथ न लगाएं। हम सभी को हकीकत अच्छी तरह से मालूम है।अब केवल लहू के मुंह से उसे सुनना बाकी है, वह कबूली का जवाब दे दे, बस। जब हमें सबकुछ मालूम है तो फिर उसे मारने से क्या फायदा?”

इसी बीच सीआईडी के दो अधिकारी भी पुलिस चौकी में पहुंचे। एक दिन पहले ही संकेत अपहरण केस की जांच सरकारी तौर पर सीआईडी को सौंपी गई थी। सूर्यकान्त इस बात का गवाह था कि सातारा स्थानीय अपराध शाखा ने इस अपहरण मामले की जांच में बहुत भागदौड़ की थी। जमकर मेहनत की थी। इसलिए अब उनके ऊपर सीआईडी की एंट्री उसे बिलकुल अच्छी नहीं लगी। सातारा शाखा के लिए भी इस मौके पर सीआईडी का आने का मतलब था सारी मेहनत का श्रेय दूसरे के खाते में जाने जैसा था। वातावरण में निराशा छा गई थी। सूर्यकान्त ने रामराव पवार से कोई रास्ता निकालने की बात कही तो उन्होंने उसे सलाह दी,

“आपको अर्जी देनी होगी कि सातारा लोकल क्राइम ब्रांच की कार्रवाई संतोषजनक है इसलिए उनकी ओर से की गई जांच पड़ताल भी संतोषजनक है और सीआईडी की जांच की कोई आवश्यकता नहीं है।”

सूर्यकान्त इस आशय का आवेदन देने को तुरंत तैयार हो गया। पवार साहब ने उसकी अर्जी टाइप करवाई और उस पर सूर्यकान्त के दस्तखत करवाए। इस अर्जी के कारण संकेत सूर्यकान्त भांडेपाटील अपहरण मामले से सीआईडी की टीम तुरंत बाहर हो गई।

लेकिन, उधर लहू के झूठे नाटक चालू ही थे। या तो वह किसी सवाल का जवाब न देकर मौनी बाबा का अवतार धारण करके चुप बैठ जाता या फिर इस प्रकरण में उसे कुछ भी नहीं मालूम-यह कह देता था। या तो लहू बहुत बड़ा झूठा ‘कोल्डब्लडेड पर्सनाल्टी’ और बड़ा ही शातिर था या फिर लहू एकदम निर्दोष होने का नाटक करके खुद का बचाव करने की चाल चल रहा था।

पूछताछ का हाल ‘दिन भर चले अढाई कोस ’देखकर जांच प्रक्रिया में रामराव पवार ने प्रवेश किया। कुछ ही देर में जेजुरी पुलिस टीम भी पहुंच गई। साथ में लहू का भाई अंकुश भी था।

समझाना-बुझाना, फिर-फिर उलट-पुलट कर वही सवाल पूछना, मेंटल टॉर्चर, डराना-धमकाना-जब सब समाप्त हो गया तो पुलिस ने अपना अंतिम अस्त्र थर्ड डिग्री का प्रयोग किया, लेकिन वह भी लहू से कुछ नहीं उगलवा पाई। पुलिस की ढाई घंटे की कवायद के बावजूद लहू ने सच नहीं उगला। नालायक साला अपराधी होकर भी अपने गुनाह को कबूल नहीं कर रहा था, हरामखोर कहीं का।

सामान्य लोगों के मन में तो यही संदेह होगा कि लहू एकदम निर्दोष है और जांच एक बार फिर गलत रास्ते पर जा रही है। एक बार फिर नाव किनारे पर आकर डूबने वाली है। इसी शंका और हताशा के वातावरण में सूर्यकान्त अपनी जगह से उठा और अधिकारी रामराव पवार के पास जाकर बोला,

“अब मुझे एक चांस दें।”

........................

बुधवार 19/07/2000

एसपी पवार ने सूर्यकान्त को ऊपर से नीचे तक देखा। अनुभवी पुलिस अधिकारी अपने सभी पुलिसिया हथकंडे और थर्ड डिग्री का प्रयोग करके भी लहू का मुंह न खुलवा पाए और अपनी आंखों से ये सब देखकर भी सूर्यकान्त कह रहा है, ‘मुझे एक चांस दें।’

सामान्य परिस्थितियों में किसी व्यक्ति ने इस तरह की मांग की होती तो या तो उस पर हंसी आती या फिर गुस्सा। लेकिन रामराव पवार जानते थे कि सूर्यकान्त एक अलग आदमी है। उसे ईश्वर ने अलग मिट्टी से बनाया है। रामराव ने मंजूरी दे दी।

सूर्यकान्त ने लहू के सामने उसके भाई अंकुश को बुलाया। उसने लहू से पूछे गए सवालों में थोड़ा फेरबदल कर अंकुश से पूछना शुरू किया।

“तुम क्या काम करते हो? महीने की कितनी कमाई है?महीने भर खर्च करने के बाद कुछ पैसा बचता है क्या?”

अंकुश और पुलिस वालों को भी यह समझ में नहीं आ रहा था कि सूर्यकान्त ऐसे टुच्चे सवाल क्यों पूछ रहा है। इन बेमतलब सवालों का इस केस से क्या संबंध? फिर भी अंकुश, सूर्यकान्त के सवालों का अच्छे से और शांत तरीके से जवाब दे रहा था, इनमें सूर्यकान्त को रत्ती भर भी रुचि नहीं थी। इस क्रम में उसका सारा ध्यान लहू के चेहरे पर टिका हुआ था। वह लहू के चेहरे के बदलते हावभावों पर बाज की नजर टिकाए हुए था। पर लहू भी कहां कम था, निर्विकार भाव से बैठा हुआ था। उसके चेहरे की लकीरें एकदम सपाट थीं।

सूर्यकान्त ने पूछा,

“घर कौन चलाता है?”

“घर मैं ही चलाता हूं, दूसरा कोई विकल्प ही नहीं।”

“अंकुश, झूठ मत बोलो, घर लहू चलाता है।”

“गप्प हांकना बंद करें साहब।”

“गप्प? अरे तेरे भाई लहू ने तो अभी-अभी बताया कि घर के सारे खर्च वही उठाता है। घर लहू ही चलाता है। फिर तुम घर में बैठकर क्या करते हो, मुफ्त की रोटियां तोड़ते हो?”

“साहेब, लहू झूठ बोल रहा है। गांव भर को मालूम है कि घर की सारी जिम्मेदारी मेरे सिर पर है। सबकुछ मैं अकेले ही देखता हूं... ये लहू तो...”

“अंकुश, देख मुझे सब मालूम है। लहू ने संकेत और अमित के साथ क्या किया वो भी पता है। लेकिन हमें ये सब उसके मुंह से सुनना है और वो है कि कुछ बोल ही नहीं रहा है। पर ठीक है, हमारे पास भी कोई इलाज नहीं। अब हमें न चाहते हुए भी ऐसे कदम उठाने पड़ेंगे। हमने तुम्हारी मॉं और बीवी को यहां लाने के लिए तुम्हारे घर में पुलिस की गाड़ी भेज दी है। यदि अब भी लहू चुप रहा तो यहां सबके सामने मॉं और बीवी को निर्वस्त्र करना पड़ेगा। ”

इतना सुनते ही अंकुश घबरा गया। उसके चेहरे का सारा तेज काफूर हो गया। अपनी जगह से जैसे-तैसे उठा। दोनों हाथ पकड़कर अब विनती करने लगा,

“साहेब, मुझे केवल दस मिनट का समय दें। मैं लहू से बात करता हूं।”

कुछ भी बोलते हुए सूर्यकान्त और बाकी पुलिस वाले वहां से उठकर कुछ दूर जाकर बैठ गए। अंकुश सीधे लहू के पास पहुंचा। उसने धीमे-धीमे लहू को कुछ बताना शुरू किया। दोनों भाइयों में गरमागरम बहसबाजी हुई, ऐसा जान पड़ता था।

सभी पुलिस अधिकारी सूर्यकान्त की कृतज्ञतापूर्वक प्रशंसा कर रहे थे। लेकिन उसे इस प्रशंसा से कोई लेना-देना नहीं था। लहू, अंकुश से क्या कह रहा है इसे जानने के लिए सूर्यकान्त ने अपने कानों में पूरी जान लगा दी थी। उसकी नजरों के सामने संकेत दिखाई दे रहा था। माता-पिता, प्रतिभा, सौरभ सभी को हंसता-मुस्कुराता संकेत प्यार से गले लगा रहा है, संकेत को सुरक्षित पाकर परिवार के सभी लोगों की आंखों में खुशी के आंसू पोछ रहा है-ऐसे अनेक चित्र सूर्यकान्त की नजरों के सामने आ-जा रहे थे। संकेत, पायल और पराग हाथ में रिंग पकड़कर धमाल-मस्ती कर रहे हैं, घर का वातावरण संकेत के कारण प्रसन्नता से भरा हुआ है...अनजाने ही उसकी पलकें भीगती जा रही थीं, इस बात का उसे ध्यान नहीं था।

अनुवाद: यामिनी रामपल्लीवार

©प्रफुल शाह

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