पौराणिक कथाये - 19 - शिवलिंग पर दूध चढ़ाने की पौराणिक और वैज्ञानिक मान्यतायें Devaki Ďěvjěěţ Singh द्वारा पौराणिक कथा में हिंदी पीडीएफ

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पौराणिक कथाये - 19 - शिवलिंग पर दूध चढ़ाने की पौराणिक और वैज्ञानिक मान्यतायें

शिवलिंग का दूध से रुद्राभिषेक करने पर समस्त मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं l सोमवार के दिन दूध का दान करने से चन्द्रमा मजबूत होता है l जल में थोड़ा सा दूध डालकर स्नान करने मानसिक तनाव दूर होता है और चिंताएं कम होती हैं l

शिवलिंग पर दूध चढ़ाने की पौराणिक कथा

चिरकाल में जब राजा बलि तीनों लोकों के स्वामी बन गए थे। उस समय स्वर्ग के देवता इंद्र सहित सभी देवी-देवताओं और ऋषि मुनियों ने भगवान विष्णु जी से तीनों लोकों की रक्षा के लिए याचना की। तब भगवान विष्णु जी ने उन्हें समुद्र मंथन करने की युक्ति दी। भगवान नारायण ने कहा कि समुद्र मंथन से अमृत की प्राप्ति होगी, जिसके पान से आप देवता अमर हो जाएंगे। कालांतर में क्षीर सागर में वासुकी नाग और मंदार पर्वत की सहायता से समुद्र मंथन किया गया। इस मंथन से 14 रत्न, विष और अमृत प्राप्त हुए थे।

समुद्र मंथन किया गया तो इस दौरान सबसे पहले हलाहल विष की प्राप्ति भी हुई। इस हलाहल की ज्वाला बहुत ही तीव्र थी। इस जहर की ज्वाला की तीव्रता के प्रभाव से सभी देव और देत्य जलने लगे। इस विष के कारण संसार का विनाश हो सकता था, परंतु किसी में भी उस विष को सहन करने की क्षमता नहीं थी। तब सभी भगवान शिव के शरण में गए। उस समय भगवान शिव जी ने तीनों लोकों की रक्षा हेतु विष पान किया था। जब भगवान शिवजी विष पान कर रहे थे, तो माता पार्वती शिवजी का गला दबाकर रखी थी। इस वजह से विष गले से नीचे नहीं आ सका और उनका कंठ नीला पड़ गया इस कारण उन्हें नीलकण्ठ भी कहा जाता है l

किंतु विष पान के चलते शरीर तपने लगा और भगवान शिवजी के गले में जलन होने लगा ।
उनके शरीर को तपन और जलन से बचाने के लिए देवताओं ने उनके ऊपर जल डालना आरंभ कर दिया, देवी गंगा पर भी इसका प्रभाव पड़ने लगा, लेकिन फिर भी उनके शरीर की तपन पर कोई ज्यादा प्रभाव नहीं पड़ा।

तभी सभी देवताओं ने उनसे दूध ग्रहण करने का निवेदन किया। दूध पीने से विष का असर कम हो गया और भगवान शिव के शरीर की तपन शांत हो गई। तभी से भगवान शिवजी को दूध चढ़ाने की प्रथा शुरू हुई l

भगवान शिवजी को दूध बहुत प्रिय है। यही कारण है कि भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए शिवलिंग पर दूध चढ़ाया जाता है।

शिवलिंग पर कच्चा दूध चढ़ाने के वैज्ञानिक कारण

शिवलिंग पर कच्चा दूध चढ़ाने के पीछे आस्था और प्रार्थना के अलावा वैज्ञानिक तर्क भी मौजूद हैं। विज्ञान की मानें तो शिवलिंग पर प्रवाहित होने वाला द्रव ऊर्जा में परिवर्तित हो जाता है।

दरअसल मंदिर में कई तरह के लोगों का आगमन होता है और यहां सकारात्मक के साथ नकारात्मक ऊर्जा भी समान रूप से जमा होती है और शिवलिंग पर लगातार दूध और पानी डालने से ऊर्जा का स्तर उच्च रहता है और यही कारण है कि जब हम मंदिर में प्रवेश करते हैं तब हम ऊर्जावान महसूस करते हैं।


हिंदू धर्म में अनेक परंपराओं को पालन किया जाता है। इन परंपराओं के पीछे वैज्ञानिक, मनोवैज्ञानिक या धार्मिक कारण होते हैं। ऐसी ही कुछ परंपराएं भगवान शिव के प्रिय महीने सावन में निभाई जाती है।

कारण 1: इस महीने में दूध पीने से होती हैं बीमारियां
आयुर्वेद के अनुसार, सावन में दूध से पीने से कई तरह की बीमारियां होने के खतरा बना रहता है, इसके पीछे का कारण है कि इस दौरान सूर्य की रोशनी सीधे पृथ्वी पर नहीं आ पाती, जिससे हमारी पाचन शक्ति मंद हो जाती है और दूध को पचाने के लिए पाचन शक्ति का मजबूत होना बहुत जरूरी है। साथ ही इस समय दूध पीने से कफ और गैस से जुड़ी परेशानी भी हो सकती है।

कारण 2: इस मौसम में विषैला हो जाता है दूध
सावन का महीना वर्षा ऋतु के दौरान आता है। इस मौसम में नमी के कारण सूक्ष्मीजीवियों जैसे विषाणु और जीवाणु की संख्या में अचानक वृद्धि हो जाती है। जो हरी सब्जियों और चारा आदि को विषैला कर देते हैं। जब ये घास गाय-भैंस खाती हैं तो इसका प्रभाव उनके दूध पर भी होता है। ये दूध पीने से सेहत पर इसका हानिकारक असर होता है। यही कारण है इस समय दूध और इससे बनी चीजों को खाने-पीने से बचना चाहिए।

कारण 3 : इसलिए चढ़ाते हैं शिवलिंग पर दूध
सावन में दूध न पीने से सेहत पर इसका बुरा असर हो सकता है, ये बातें हमारे विद्वानों ने सालों पहले जान ली थी तो इस दूध का क्या किया जाए ये सोचकर उन्होंने सावन में शिवलिंग पर दूध चढ़ाने की परंपरा बनाई। ताकि लोग धर्म का पालन भी कर लें और उनकी सेहत पर भी किसी तरह का कोई हानिकारक प्रभाव न हो। कुछ लोग शिवलिंग पर दूध चढ़ाने की परंपरा को गलत ठहराते हैं लेकिन इसके पीछे का कारण धार्मिक न होकर पूर्णत: वैज्ञानिक है।

भगवान शिवजी को प्रसन्न करने के लिए शिवलिंग पर दूध चढ़ाते समय इस मंत्र का जाप करें l

नमः शंभवाय च मयोभवाय च नमः शंकराय च मयस्कराय च नमः शिवाय च शिवतराय च।। ईशानः सर्वविध्यानामीश्वरः सर्वभूतानां ब्रम्हाधिपतिर्ब्रम्हणोधपतिर्ब्रम्हा शिवो मे अस्तु सदाशिवोम।।

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