Bunch of Stories - 5 - घर की याद Devaki Ďěvjěěţ Singh द्वारा प्रेरक कथा में हिंदी पीडीएफ

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Bunch of Stories - 5 - घर की याद

मृदुल और आध्या दो भाई बहन थे। मृदुल की उम्र 10 साल और आध्या की 6 साल थी । मृदुल बचपन से ही बहुत शरारती था इसलिए वो अक्सर ही डांट खाता था ।

जैसे-जैसे वह बड़ा होता गया उसकी शरारतें बढ़ती गई । वह रोज कुछ ना कुछ ऐसा करता जिसकी वजह से उसके माता-पिता उसे डांटते। अब तो हालात ऐसे हो गए थे कि उसकी शिकायतें आस- पड़ोस , और विद्यालय से भी आने लगी थी।

उसके माता-पिता उसे बहुत समझाते पर वह उनकी बात बिल्कुल भी नहीं सुनता। न ही अपनी पढ़ाई पर ध्यान देता जिस कारण उसके नंबर भी बहुत कम आने लगे थे ।

नंबर कम आने पर टीचर ने मृदुल को कॉपी में माता-पिता के हस्ताक्षर करवा कर लाने को कहा था, तो मृदुल ने माता-पिता की डांट से बचने के लिए खुद ही उनके नकली हस्ताक्षर कर के टीचर को दे दिया ।

लेकिन कक्षा मे उसका पढ़ाई के दिन प्रतिदिन गिरते स्तर के कारण एक दिन टीचर ने उसके पिता को विद्यालय बुलाया और उसके पढ़ाई के विषय में बात की तो उसके पिता टीचर की बातें सुनकर स्तब्ध रह गए ।

घर आकर उन्होंने गुस्से में उसे दो थप्पड लगा दिया और बोले पहले तो सिर्फ शरारत करते थे अब झूठ भी बोलने लगे । तुमने मेरा सिर शर्म से नीचे झुका दिया। रोज किसी न किसी से झगड़ा करके आते हो स्कूल हो या पड़ोस हर जगह तुम्हारी शिकायत ही सुननी पड़ती है । एकदम नालायक और बेशरम हो गए हो तुम।

उस दिन मृदुल को अपने पिता की यह सारी बातें बहुत बुरी लगती हैं और वो गुस्से में चुप चाप घर छोडकर चला जाता है ।

इधर शाम के आठ बज गए थे । अब उसकी माँ को उसकी चिंता होने लगी तो आस पड़ोस में ढूंढने चली गई उन्हें मृदुल कहीं नहीं मिला । पहले तो उन्होंने सोचा डांट पड़ी है तो किसी दोस्त के घर जाकर बैठा होगा क्योंकि पहले भी वह कई बार ऐसा कर चुका था फिर बाद में घर आ जाता था लेकिन आज तो नौ बज गए थे वह अभी तक वापस घर नहीं आया ।

उसके माता-पिता अब चिंतित होकर उसके सारे दोस्तों को फोन करके उसके बारे में पूछते हैं लेकिन उसका कहीं पता नहीं चलता है । अब उनका मन सशंकित सा हो गया था क्योंकि उसके विषय मे कहीं से कुछ भी पता नहीं चल रहा था।

उसकी माँ का रो रो कर बुरा हाल हो रहा था। पिता अंदर से बहुत दुःखी थे लेकिन वे भी अपने आंसुओ को छुपाकर खुद को मजबूत दिखा रहे थे ।

उन्होंने अपने मित्रों के साथ जहाँ सम्भव हो सके सब जगह उसकी तलाश की पर उसका कहीं कुछ पता नहीं चल रहा था । बाद में उन्होंने पुलिस में उसकी गुमशुदगी की खबर लिखा दी।

उसके माता-पिता को उसे डांटने का बहुत अफसोस हो रहा था l उसके घर छोड़कर जाने के ग़म में दो दिनों से उन्होंने ठीक से खाना तक नहीं खाया ।

पड़ोसियों के खाने की जबरदस्ती करने पर बार बार यही कहते,पता नहीं हमारे बच्चे ने कुछ खाया होगा या नहीं या कहीं रोड किनारे भूखा पड़ा होगा।
कहीं किसी के चंगुल में तो नहीं फंस गया ऐसी आशंका के बारे में सोच सोच कर और जोर जोर से रोने लगते ।

🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸

उधर दो दिन से मृदुल ने कुछ खाया नहीं था उसे भूखे पेट अपने घर, माता-पिता और छोटी बहन की बहुत याद आ रही थी ।

जब उससे भूख बर्दाश्त नहीं हुई तो हिम्मत करके एक दुकान वाले से खाने को माँगा ,
दुकानदार ने उससे पूछा - पैसे हैं ,मृदुल ने नहीं में सिर हिला दिया ।

दुकानदार ने उसे डाँट कर भगा दिया और बोला पता नहीं कहाँ कहाँ से भिखारी चले आते हैं । उसकी डांट सुनकर उसे बहुत बुरा लगता है और उसे घर की बहुत याद आती हैं।

जब उसे भूख बर्दाश्त नहीं होती तो वह होटल के बाहर कूड़ा वाले डिब्बे में से लोगों का जूठा निकालकर खाता है। तब उसे अपने माँ के हाथों की गर्मागर्म पराठे की याद आती हैं और सुबकने लगता।

लोग उसे भिखारी समझ कर मार कर भगाते, गालियां देते हैं तो उसे अपने पिता की याद आती, और सोचता - उसके पिताजी उसे कितना भी डांटते थे लेकिन जब वह रूठ जाता था तो वो उसे कैसे मनाकर खुद अपने हांथों से खाना खिलाते थे ।

अब उसे अपना घर छोडकर भाग आने का बहुत पछतावा हो रहा था। अन्धाधुन्ध में भाग तो आया था लेकिन घर वापस लौटने का रास्ता भी नहीं समझ आ रहा था। अब उसे अपने घर की याद आ रही थी वह अपने माता-पिता के पास वापस जाना चाहता था ।

🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸

तीसरे दिन मृदुल के पिता को उसके जैसे हुलिए की किसी बच्चे की खबर पता चलती है तो वे उसकी मां को लेकर तुरंत वहां पहुंचते हैं ।

सामने मृदुल को देखकर उसके माता-पिता दौड़ कर उसे गले लगाते हैं और खूब रोते हैं । मृदुल भी अपने माता-पिता के गले लग कर खूब रोता है ।

मृदुल की मां कहती है कि क्या हम दोनों तुम्हारी गलती पर क्या तुम्हें डांट भी नहीं सकते, इतनी छोटी सी बात पर क्या कोई घर छोड़ता हैं ?
देखो, कैसा हाल बना लिया है कहकर उसे रोते हुए चूमने लगती है ।

मृदुल भी रोते हुए कहता है, मां पिताजी आप मुझे माफ़ कर दो अब से आप डांटो या मारो ,मैं आप लोगों को छोड़कर कभी कहीं नहीं जाऊंगा । आज से मैं कोई शैतानी नहीं करूंगा, आपकी हर बात मानूंगा और मन लगाकर पढ़ाई करूंगा।

आप लोगों के बिना यहाँ मुझे बिल्कुल भी अच्छा नहीं लग रहा था, मुझे आप सबकी और घर की बहुत याद आ रही थी कह कर वह उनसे लिपट जाता है।

✍️🌹देवकी सिंह 🌹