फादर्स डे - 55 Praful Shah द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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फादर्स डे - 55

लेखक: प्रफुल शाह

खण्ड 55

शुक्रवार 05/06/2000

गुजरते हुए दिनों ने सूर्यकान्त और प्रतिभा को एक कठोर वास्तविकता को सहन करने, पचाने की ताकत प्रदान की थी। दोनों ने ही मन ही मन इस बात को स्वीकार कर लिया था कि अब संकेत का मिल पाना असंभव है। इतने छोटे बच्चे को खोजना वास्तव में बहुत कठिन है। यदि अपने नसीब में होगा तो किसी बालसुधार गृह या अनाथालय में संकेत होगा...हो सकता है जिंदा ...???? लेकिन इतनी भयानक आशंका शब्दों में व्यक्त करने ताकत और हिम्मत दोनों की ही जिव्हा में नहीं थी। इस पर एक और नई धमकी आ गई।

शाम के समय सूर्यकान्त सातारा से आठ किलोमीटर दूर स्थित नेलेकीडे गांव में कंस्ट्रक्शन साइट पर विजिट के लिए गया था। उसके साथ विष्णु मर्डेकर तो था ही। संकेत के गुमशुदा होने के बाद से सूर्यकान्त का व्यवसाय विवेक और शेखर ही संभाल रहे थे लेकिन इधर कुछ दिनों से सूर्यकान्त ने भी कुछ साइट्स पर विजिट देना शुरू कर दिया था। नेलेकीडे गांव में स्कूल की इमारत बनाने का काम चल रहा था। इस विजिट के बाद लौटते समय सातारा स्थानीय अपराध शाखा के पुलिस इंसपेक्टर लक्ष्मण पांडुरंग शेजवल से मिलने का कार्यक्रम था।

शाम को साढ़े छह बजे सूर्यकान्त निलेकीडे साइट से वापस लौटने लगा। जीप मुश्किल से डेढ़-दो मील तक पहुंची होगी कि सूर्यकान्त के मोबाइल की रिंग खनखनाई। मोबाइल से कनेक्ट किए हुए रेकॉर्डर को लाइन पर सेट करने के बाद सूर्यकान्त ने कॉल रिसीव किया।

..............

“तुझा पिल्लू पाहिजे ना? (तुमको बच्चा चाहिए है न?)”

इतना सुनते ही सूर्यकान्त एकदम भावुक हो गया। जीप रास्ते के एक किनारे पर खड़ी कर दी।

“तुम्हारा बेटा मेरे पास है। बच्चा वापस चाहिए हो तो एक लाख पंद्रह हजार रुपए दो। ”

“लेकिन मैंने तो तुम्हें एक लाख दिए हैं। फिर भी तुमने मेरा बेटा कहां लौटाया?”

“वो पैसे मैंने नहीं लिए। मुझे कुछ नहीं मालूम। अब यदि तुम्हें अपना बेटा चाहिए हो तो मुझे फिर से एक लाख पंद्रह हजार रुपए दो।”

“लेकिन मैंने तो तुम्हें पैसे दे दिए हैं।”

“मुझे कुछ नहीं मालूम। मुझे एक लाख दो। पंद्रह हजार रुपए उसको संभालने का खर्च...पैसे देने के बाद तुम्हारा बेटा लौटाऊंगा।”

सूर्यकान्त को अक्षरशः रोना फूट रहा था। उसने लगभग रोते-रोते ही कहा,

“ऐ...सुनो न...मुझे मेरे बेटे की आवाज तो सुना दो...”

“वो है मेरे पास...महाबलेश्वर में...तुम पैसे दो...तुम्हें बेटा देता हूं....बाकी कुछ विचार मत करो।”

सूर्यकान्त जानबूझकर बातचीत को लंबा खींचने की कोशिश कर रहा था ताकि कॉल ट्रेस करने में मदद मिल सके। लोकेशन की जानकारी मिल सके। बातचीत करते हुए एकाध जानकारी उससे हासिल की जा सके।

“अच्छा...ठीक है कहां दूं पैसे?”

“मैं तुम्हें कल फोन करूंगा।”

फोन कट गया। सूर्यकान्त अन्यमनस्क हो गया। पच्चीस-तीस सेंकेड्स के बाद उसका दिमाग ठिकाने पर आया। संकेत कहीं न कहीं है तो सही...अब वह निश्चित ही वापस मिल जाएगा। आस की इस किरण के साथ ही एक बात ध्यान में आ गई कि पहली बार अपहरण करने वाले की आवाज रेकॉर्ड करने में उसे सफलता मिली थी। ये एक बड़ा महत्वपूर्ण सुराग था। संकेत अपहरण केस का एक सबूत था जो कि आगे केस का फैसला करने में बहुत महत्वपूर्ण साबित होने वाला था।

यदि यही फोन छह महीने पहले आ जाता तो सूर्यकान्त ने तुरंत फोन करके घर पर यह खबर दी होती, लेकिन इस बार उसने घर पर न बताकर सीधे सातारा पुलिस सुपरिटेंडेंट रामराव पवार को फोन लगाया। पवार साहब पर सूर्यकान्त का पूरा भरोसा था। सुरेश खोपड़े के पद पर बदली होकर आए रामराव पवार सूर्यकान्त को पूरी तरह से मदद कर रहे थे। पद का चार्ज संभालते ही वह तुरंत शिरवळ पुलिस चौकी में मुलाकात करने आए थे। उसके बाद साई विहार जाकर सबसे भेंट की थी। उनकी एक बात सूर्यकान्त के मन को छू गई थी। पवार साहब ने सूर्यकान्त से कहा था,

“मेरी ओर से पूरी मदद आपको मिलेगी। हम निश्चित ही कुछ न कुछ खोज निकालेंगे...”

सूर्यकान्त ने उसी क्षण उन्हें वचन दिया

“आपको मेरा पूरा सहयोग मिलेगा। मैं अपने और मेरे पूरे परिवार की सभी जानकारी आपके साथ बांटने के लिए तैयार हूं।”

पहली ही मुलाकात में शुभचिंतक लगने वाले पवार साहब को सूर्यकान्त ने सीधे सातारा स्थानीय अपराध शाखा के ऑफिस में फोन लगाया।

“साहब, सूर्यकान्त बोल रहा हूं। मुझे पहली बार अपराधी की आवाज की रेकॉर्डिंग मिली है। मैं आपके आसपास ही हूं। पंद्रह मिनट के अंदर आपके ऑफिस में पहुंचता हूं।”

बहुत दिनों के बाद सूर्यकान्त अच्छे मूड में था। और, वाकई वह पंद्रह मिनट के अंदर क्राइम ब्रांच में पहुंच गया। पवार साहब ने अपने दूसरे स्टाफ को भी बुला लिया। सदानंद बेलसरे, मोज़ेस लोबो, लक्षमण शेजवल को देखकर सूर्यकान्त को खुशी हुई। उसने सभी के सामने पवार साहब को फोन के बारे में बताया। इसके अलावा, यह भी बताया कि अब तक सभी फोन लैंडलाइन पर आए थे, ये पहला ही कॉल है जो उसके मोबाइल फोन पर किया गया है। सूर्यकान्त ने फोन की रेकॉर्डिंग पवार साहब को सौंप दी। रामराव पवार ने उसे बार-बार सुना।

सूर्यकान्त ने उन्हें यह भी बताया कि फिरौती के लिए पहले आए फोन के बाद काफी लंबे समय तक सबकुछ शांत ही था। अब फिर से ये नई हरकत शुरू हुई है। संकेत खोज प्रकरण में यह एक बात अच्छी है कि अपराधी की आवाज रेकॉर्ड करने में सफलता मिली है। पवार साहब सूर्यकान्त की ओर देखते रहे फिर धीमी आवाज में उससे पूछा,

“अब क्या करना चाहिए, आप ही बताएं?”

पवार साहब ने उस पर भरोसा किया है, यह जानकर सूर्यकान्त को बहुत अच्छा लगा। उसने जवाब दिया,

“मुझे अभी के अभी स्टाफ दीजिए।”

पवार साहब ने हामी भरी। जिस नंबर से फोन कॉल आया था उस पर री-डायल करके पता लिया गया। फोन पुणे के हड़पसर इलाके से किया गया था। सूर्यकान्त ने संभावना व्यक्त की कि अपराधी लोणंद-नीरा इलाके में हो सकता है। इसलिए फिरौती लेने के लिए पुणे के आसपास की ही कोई जगह वह चुनेगा-सूर्यकान्त ने अनुमान लगाया। पवार साहब ने स्टाफ को हुकुम दिया,

“गाड़ी निकालो और भांडेपाटील जैसा कहें, वैसा करो।”

ये आदेश देने के बाद पवार साहब ने चुपचाप बैठने के बजाय पुणे क्राइम ब्रांच के डीसीपी वर्मा को फोन लगाकर बताया, ‘इस मामले में सहायता करें। मेरा स्टाफ मदद के लिए हाजिर है। मामला हड़पसर-पुणे विभाग के अंतर्गत है इसलिए आपकी मदद की आवश्यकता होगी।’

वर्मा साहब ने भी सहायता के लिए तत्परता दिखाई।

सूर्यकान्त अपने साथ बेलसरे, लोबो, देशमुख,शेजवल, कदम और मर्डेकर को लेकर शिरवळ पहुंचा। यहां से उसने रफीक़ मुजावर को साथ लिया। रात को दस बजे के आसपास सभी पुणे पहुंचे। हडपसर का एसटीडी बूथ खोज निकाला। उस बूथ के करीब चालीस साल के मालिक से पूछताछ की, लेकिन उसे कुछ याद नहीं आ रहा था। रोज न जाने कितने ही लोग फोन करने के लिए आते हैं, वह भला कैसे याद रख पाता? लेकिन उसके रजिस्टर में किए गए फोन को चढ़ाया गया था। सभी उस रात को एक लॉज में जाकर ठहरे।

अनुवाद: यामिनी रामपल्लीवार

©प्रफुल शाह

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