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फादर्स डे - 46

लेखक: प्रफुल शाह

खण्ड 46

सोमवार 07/02/2000

सूर्योदय में अभी वक्त था। दड़बों में बंद आलसी मुर्गों ने बांग देना अभी शुरू ही किया था। सूर्यकान्त की पूरी रात जाग कर गुजरी थी। बीच-बीच में वह एकाध झपकी ले-लेता था। रात-भर जागने के कारण उसकी आंखें लाल-लाल हो गई थीं। अलसुबह फटाफट तैयारी करने के बाद सूर्यकान्त और रफीक़ ने एमएच 11-5653 में मीटिंग की। एक्सीलेटर पर पैर दबाया। साई विहार में हरेक प्रार्थना कर रहा था, ‘हे ईश्वर, आज अमजद शेख मिल जाए। संकेत सुरक्षित घर वापस आ जाए।’ इस बदमाश अपपाधी के पीछे डेढ़ महीने से भागदौड़ चल रही है और वह नालायम आदमी है कि पकड़ में ही नहीं आ रहा था।

जीप सातारा पुलिस चौकी में जाकर रुकी। चौकी से स्थानीय अपराध शाखा के इंसपेक्टर सदानंद बेलसरे, सब इंस्पेक्टर मोज़ेस लोबो और कॉन्स्टेबल रमेश देशमुख दूसरी गाड़ी लेकर सूर्यकान्त की जीप के पीछे निकले। सूर्यकान्त का इस बात पर जोर था कि सीधे गोवा जाने के बजाय बीच में शिंदेवाड़ी से सब कॉन्ट्रैक्टर को भी साथ लिया जाए। वैसा ही किया गया। अमजद शेख को पहचानने में आसानी होनी चाहिए इसलिए भी संबकॉन्ट्रैकर को साथ रखना आवश्यकत था। आधे-अधूरे पते के सहारे अमजद शेख को खोज पाना आसान काम नहीं था। रात्रि में एक लॉज में ठहरने का विचार किया गया। वहां से सबने गोवा में अपनी-अपनी पहचान वालों को फोन लगाकर जानकारी इकट्ठा करने की कोशिश की। आधी रात के बाद एक पता हाथ लगा।

सूर्यकान्त उत्तेजित हो बैठा। हाथ लगे पते की ओर तुरंत भागने की तैयारी करने लगा। वह जोश में आकर अमजद शेख तक तुरंत पहुंचना चाहता था। सबने उसे समझाया कि आधी रात को अपराधी को जरा भी इस बात की भनक लग गई तो उसके भाग जाने की आशंका को नकारा नहीं जा सकता। अंधेरे का लाभ उठाकर यदि वह कहीं भाग गया तो दोबारा उसका पता मालूम करना असंभव ही होगा। उस पर से यदि उसे पुलिस के होने की जरा भी भनक लग गई तो पूरे भारत भर में उसे कहां खोजेंगे? इस भागमभाग में यदि उसे संकेत के कारण कोई परेशानी होने लगी तो वह क्या कुछ कर बैठे, इसका भरोसा नहीं।

सूर्यकान्त ने तुरंत रवाना होने का इरादा बदल दिया। लॉज में पूरी रात उसकी आंखों में नींद का नाम नहीं था। शैतान अमजद शेख का चेहरा उसकी आंखों के सामने घूम रहा था। मासूम संकेत का सुंदर चेहरा उसकी नजरों से हटता ही नहीं था। एक पिता के दिल में द्वेष और वात्सल्य का द्वंद्व लगातार चल रहा था।

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मंगलवार 08/02/2000

सूर्यकान्त रात भर सुबह होने की प्रतीक्षा में बैठा रहा। मिले हुए पते से मालूम हो रहा था कि अमजद किराए से रह रहा था। उस घर में वह अपनी एक बहन और बहनोई के साथ रह रहा था। अमजद शेख बड़ी सहजता से उनके सामने आकर खड़ा हो गया।

बाईस-तेईस साल का गेहुंए रंग का, दुबला-पतला अमजद.. इस बदमाश ने मेरे संकेत को....सूर्यकान्त अपने गुस्से को काबू नहीं कर पा रहा था...उसके चेहरा कठोर हो गया...सूर्यकान्त जैसे ही अपनी मुट्ठियां भींचने लगा, रफीक़ ने उसका कंधा दबाकर उसे शांत किया।

रफीक का स्पर्श पाकर सूर्यकान्त ने अपने गुस्से को रोका। अमजद शेख से तो बाद में निपट लूंगा, इस वक्त सबसे महत्वपूर्ण है संकेत को हासिल करना। सूर्यकान्त के मोबाइल फोन की घंटी बज रही थी। कल से ही घर वालों के फोन पर फोन आ रहे थे। एक ही जवाब दे-देकर वह परेशान हो गया था...कभी विष्णु भांडेपाटील उसे सलाह दे रहे थे, ‘ रात ही में जाकर उस बदमाश को पकड़ लो...’ तो उधर मां जनाबाई चिंतातुर थीं, कह रही थीं, ‘तुम अपनी फिक्र करो....संकेत के घर वापस लौटने के बाद ही मैं अन्न-जल ग्रहण करूंगी...’ प्रतिभा हिचकियां ले-लेकर बात कर रही थी... ‘ जैसे ही संकेत मिले मेरी उससे बात करवाना, आपको मेरी कसम है... ’

अमजद को खोजने के लिए और शांति से विचार करने के लिहाज़ से सूर्यकान्त ने अपना मोबाइल फोन साइलेंट मोड पर रख दिया था। ‘जिनका भी फोन आना है, आता रहे...आराम से जवाब दूंगा। ’

साई विहार में संकेत की घरवापसी के साथ-साथ एक और भी टेंशन तैयार था। सूर्यकान्त फोन क्यों नहीं उठा रहा है? कोई समस्या तो नहीं आ गई? कोई संकट तो खड़ा नहीं हो गया?

पुलिस और सूर्यकान्त गोवा में अमजद शेख तक पहुंच गए हैं और संकेत अपहरण कांड का मुख्य संदेहास्पद आरोपी पुलिस के कब्जे में आ गया है, यह खबर पत्रकारों तक पहुंच चुकी थी। क्राइम रिपोर्टर इस खबर को अपने-अपने तरीके से जानकारी हासिल करने के बाद बढ़ा-चढ़ा कर, पुरानी खबरों को इधर-उधर करके मसालेदार बनाकर मेजर क्राइम स्टोरी बनाने की कोशिश में लगे हुए थे।

अंततः, पुलिस अमजद शेख तक पहुंच ही गई। इस दुबले-पतले, ऊंचे-पूरे नौजवान को देखते साथ सूर्यकान्त के तन-बदन में आग लग गई। रफीक़ मुजावार ने राहत की सांस ली। सदानंद बेलसे, मोज़ेस लोबो और रमेश देशमुख के चेहरों पर जोश और खुन्नस का भाव उभर गया था।

लेकिन, अमजद शेख एकदम शांत था। पुलिस को देखकर उसे बहुत आश्चर्य हुआ। उसने सूर्यकान्त को तुरंत पहचान लिया। साथ में आए सब कॉन्ट्रैक्टर से दुआ-सलाम भी की। उसके चेहरे से डर बिलकुल भी झलक नहीं रहा था। सबको  लगा कि वह एक्टिंग अच्छी कर रहा है। पुलिस ने उसके भावनाशून्य चेहरे और निश्चिंतता की बिलकुल परवाह नहीं की। पुलिस का अनुभव था कि निर्मम गुनहगार इसी तरह भावनाशून्य रहते हैं।

बेलसरे ने कड़क आवाज में पूछा...

“संकेत किधर है?”

“कौन संकेत?”

“तू नहीं जानता संकेत को?”

“नहीं साहब, मैं नहीं जानता संकेत को।”

बेलसरे ने उसके बहन और बहनोई की तरफ देखा।

“देखो...सच बता दो...संकेत किधर है, नहीं तो तुम सबकी बारात निकालता हूं।”

बहनोई ने सवाल दोहराया,

“कौन संकेत?”

बेलसरे ने उसकी बहन की ओर जलती नजरों से देखा।

“सचमुच साहब...हम कुछ नहीं जानते जी...

बेलसरे को लगा कि इन सबको पुलिस चौकी में ले जाया जाए ताकि वहां के वातावरण को देखकर इस बदमाश को उसकी दहशत होगी। उन्होंने अमजद का हाथ जोर से पकड़ा और उसे खींचते हुए बोले...

“चल...चल मेरे साथ...मिलकर याद करते हैं संकेत कौन है?”

बेलसरे ने लोबो और देशमुख को इशारा किया। एक बहन के बाजू और दूसरा बहनोई की बाजू खड़ा हो गया। कुछ ही देर में स्थानीय पुलिसकर्मी अमजद के घर की तलाशी लेकर बाहर आ गए। उनके चेहरों से साफ जाहिर हो रहा था कि संकेत उस घर में नहीं था।

अनुवाद: यामिनी रामपल्लीवार

©प्रफुल शाह

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