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फादर्स डे - 44

लेखक: प्रफुल शाह

खण्ड 44

शुक्रवार -28/01/2000

सूर्यकान्त द्वारा आहूत सनसनी फैलाने वाली प्रेस कॉन्फ्रेन्स, पुलिस विभाग पर सार्वजनिक तौर पर लगाए गए आरोप, प्रशासन का सीधे-सीधे विरोध और आमरण अनशन की धमकी आज के समाचार पत्रों की सुर्खी थी।

शिरवळ और साई विहार के नाम पर लाखों पाठकों की नजरें गड़ी हुई थीं। परंतु साई विहार के आसपास भी कोई फटक नहीं रहा था। घर के टेलीफोन घंटी ने चुप्पी साध ली थी। एक कॉल आया, तो सबकी जान ऊपर-नीचे होने लगी। शामराव ने फोन उठाया।

“हैलो.... हो..हो...होय...बरोबर आहे....ओके।”

रिसीवर क्रेडल पर रख रहे शामराव की ओर सभी उत्सुकता से देखने लगे। शामराव ने धीरे से बताया,

“एक्सचेंज से फोन था। फोन ठीक से काम कर रहा है कि नहीं-पूछ रहे थे।”

स्कूल में कुछ शिक्षकों ने प्रतिभा की तारीफ की।

“आपके पति ने प्रशासन से खूब सफाई मांगी। किसी को तो हिम्मत दिखानी ही चाहिए थी। कब तक इनकी मनमानी सहन करते रहें?”

प्रतिभा थोड़ा सा मुस्कुराकर आगे बढ़ी ही थी कि तारीफ करने वाला एक शिक्षक बोला,

“लगता है इसके पति का दिमाग खिसक गया है। पुलिस पर डायरेक्ट आरोप लगाना ठीक है क्या? अपने पैर पर कुल्हाड़ी मार ली है इसके पति ने...”

“अब भोगेंगे और क्या?”

शिरवट गप्पबाजी अनलिमिटेड कंपनी मंदिर की सीढ़ियों पर बैठकर भांडेपाटील की प्रेस कॉन्फ्रेन्स पर बकवास करती बैठी थी। आगे क्या नाटक होने वाला है, इसकी उत्सुकता इस मंडली को लगी हुई थी। कटिंग चाय के ग्लास पर ग्लास गटके जा रहे थे। बीड़ी के बंडल फूंक-फूंक कर खत्म होने को थे। तंबाकू-चूने की पुड़िया इधर-उधर बिखरी जा रही थीं।

शिरवळ पुलिस चौकी में कामकाज हर दिन की ही तरह धीमी गति से चालू हो गया था। बीच-बीच में टेलीफोन की घंटी कर्कश आवाज में अपनी उपस्थिति दर्ज करा रही थी। इंसपेक्टर गंभीर चेहरे के साथ अपनी कुर्सी पर बैठे हुए थे। वो शांत थे, इसलिए बाकी लोग भी कुछ नहीं बोल रहे थे।

शामराव ने सूर्यकान्त को व्यवहारिकता समझाने की कोशिश की।

“इस तरह ज्यादा जीभ चलाना ठीक नहीं है। पुलिस जांच कानून कायदे के हिसाब से चलती है। वे लोग अपना काम करते हैं। इस तरह कठोर आलोचना करने के बाद आखिर में तो उनकी मदद से ही आगे काम करना है कि नहीं?”

विष्णु अपने बेटे की वेदना को अनुभव कर रहे थे। उसकी तीव्रता को महसूस कर रहे थे। फिर भी, सूर्यकान्त अपनी हद पार कर रहा है-ऐसा विष्णु को लग रहा था। उन्होंने सूर्यकान्त को फटकारते हुआ सुनाना शुरू किया,

“तुम्हें कितनी बार बताया है, अपनी मुंह बंद रखा करो। लगातार कहते रहता हूं अपनी ज़ुबान पर लगाम लगाओ। जीभ पर काबू न रखने की वजह से धंधे में भी कितनी बार नुकसान किया है...अरे सूर्या...थोड़ी सी भी अक्ल है कि नहीं तुम्हारे पास? कम बोला करो...तुम्हारी इस हीरोगिरी के कारण पूरे परिवार को भुगतना पड़ेगा अब। पानी में रहकर मगर से बैर करने के लिए तुमसे कहा किसने? बताई हुई बात को समझते ही नहीं। पुलिस वालों से न दोस्ती भली न दुश्मनी...अरे देवा...इस पागल की बकवास की सजा मेरे छोटे से संकेत को मत देना....”

उस पूरे दिन सभी लोगों की जान सूली पर लटकी रही। सबकी चिंता और परेशानियों को वैसा ही छोड़कर सूर्यदेवता अस्ताचल की ओर निकल पड़े। हर दिन की ही तरह आज भी शाम ठंडी हवा के कानों में अपने मंत्र फूंकने लगी थी। कहीं गरम चाय के ग्लास गप्पें हांक रहे थे तो कहीं भाप उगलती कॉफी वातावरण में मस्ती घोल रही थी। कहीं-कहीं यही शाम व्हिस्की के ग्लास में आइसक्यूब के साथ सरकती जा रही थी। शनिवार, रविवार, वीकएंड ईव गहराती जा रही थी....आफ्टर ऑल...चीयर्स

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शनिवार 29/01/2000

शिरवळ के तमाशा प्रेमी और गप्प दर्शन कंपनी के उत्साह पर पानी फिर गया था। सूर्यकान्त का एटम बम सुरसुरी में बदल गया था। वातावरण शांत था। साई विहार में सबने एकबारगी राहत की सांस ली कि प्रेस कॉन्फ्रेन्स के कारण कोई आफत नहीं आई। लेकिन फिर में मन के एक कोने में कहीं डर समाया हुआ था। किसी भी क्षण कुछ भी हो सकता है। सूर्यकान्त, रफीक़ मुजावार, संजय और विष्णु मर्डेकर चाय की चुस्कियां लेते हुए बैठे थे। रफीक़ मुजावार ने मौन तोड़ा...

“पूरा मामला अब जगजाहिर हो चुका है। सब तरफ सनसनी पसर गई है इसलिए खुलकर कोई प्रतिक्रिया देने की बजाय अंदरखाने में कामकाज का तरीका बदला गया होगा। पुलिस पर दबाव तो बढ़ा ही होगा, इसमें कोई शंका नहीं।”

कोई कुछ नहीं बोला। सभी विष्णु मर्डेकर की तरफ देख रहे थे। वह चुपचाप चाय पी रहा था। उसके चेहरे पर कोई भी भाव नहीं था। घर के बड़े-बुजुर्ग ईश्वर से याचना कर रहे थे.. “हे भगवान,  संकट से बचाना अब...”

सूर्यकान्त टेरेस पर अकेले ही चहलकदमी कर रहा था। उसका गुस्सा बढ़ता जा रहा था। इतनी-इतनी कोशिशें कर रहा हूं, फिर भी नतीजा शून्य ही। कितने दिन यह नाटक चलने वाला है? इसी तरह चलता रहा तो मैं पागल हो जाऊंगा। वह तेजी से सीढ़ियां उतरते हुए नीचे आया। अपने बेडरूम में गया और धड़ाक से दरवाजा बंद कर दिया। अंदर से कुंडी लगाने की आवाज बाहर तक सुनाई पड़ी। विष्णु, शालन, शामराव, जनाबाई को कुछ सूझा नहीं। मन में डर समा गया। अंदर सूर्यकान्त अखबार की कतरनों को जल्दी-जल्दी पढ़ता जा रहा था। जहां जरूरी समझ रहा था, वहां अंडरलाइन कर रहा था और निशान लगा रहा था। बाहर सब लोगों की जान सांसत में पड़ी हुई थी।

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रविवार 30/01/2000

सूर्यकान्त ने सुबह-सुबह घर के सभी लोगों को पुकारा। मित्र मंडली को फोन करके तुरंत बुला लिया। नितिन भारगुडेपाटील, गुरुदेव बरदाडे, राजेंद्र तांबे, रवींद्र पानसरे, प्रेमभाई पटेल, विजय मळेकर और रफीक़ मुजावर भागते हुए साई विहार पहुंच गए। संजय और विष्णु मर्डेकर घर पर ही थे। विवेक और शेखर ने सबके साथ मीटिंग की। प्रतिभा ने कांदे पोहे और चाय के कप लाकर सबकी मेहमाननवाज़ी की। नाय-नाश्ते में किसी को भी रुचि नहीं थी। सूर्यकान्त ने सबसे चाय-नाश्ता करने का निवेदन किया। ये निवेदन मिश्रित आदेश है-सबको मालूम था। चाय-नाश्ता खत्म होते ही सूर्यकान्त ने सबके समक्ष अपना निर्णय स्पष्ट किया।

“अब इस केस में मैंने खुद ही कुछ करने का तय किया है। पुलिस अपने तरीके से, आदेशानुसार, अपनी क्षमता और समझदारी से अपनी जांच का काम करती रहेगी। उन्हें उनका काम उनके तरीके से करने दिया जाय। बीते कुछ दिनों में मैंने अपहरण के संबंध में कई खबरें पढ़ी हैं। उन घटनाओं का बारीकी से निरीक्षण किया है। अपराधी की कार्यप्रणाली समझने की कोशिश कर रहा हूं। मैंने तय किया है कि जिन-जिन स्थानों पर अपहरण का गुनाह हो रहा है, वहां मैं खुद जाकर उन स्थानों और घटनाओं की बारीकी से जांच करूंगा। संकेत को ले जाने वाला बेशरम हुआ और हमारी केस की ही तरह केस सामने आई तो हमें कुछ निशान मिल सकेंगे। कुछ सुराग मिल सकेंगे। सूत्र जुड़ते गए तो अपना का आसान हो जाएगा। जब तक संकेत का पता नहीं चल जाता, मैं चैन से नहीं बैठूंगा। ”

खुद के गुम हुए बेटे की खोज करने का फैसला ले चुके पिता का कोई भला क्यों विरोध करता? फिर भी कुछ निर्देश और सलाह सूर्यकान्त को दी गईं।

“देखो...कहीं भी अकेले मत जाना...अपने साथ किसी को अवश्य रखते चलना। ”

“किसी भी जिम्मेदारी को अपने सिर पर ओढ़ लेने से पहले अच्छी तरह विचार कर लेना चाहिए।”

“उन पुलिस वालों के पीछे अब और मत पड़ना, जो हुआ, बहुत हुआ।”

“हममें से किसी न किसी को अपने साथ लेकर निकला करना...”

अनुवाद: यामिनी रामपल्लीवार

©प्रफुल शाह

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