फादर्स डे - 28 Praful Shah द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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फादर्स डे - 28

लेखक: प्रफुल शाह

खण्ड 28

बुधवार, 08/12/1999

हर गुजरते दिन के साथ, भांडेपाटील परिवार के लिए जीवन का हिसाब समझ पाना कठिन होता जा रहा था। ऐसे कई अनुत्तरित सवाल थे जिन्होंने उनके खाते के हिसाब को बिगाड़ रखा था।

दूसरी तरफ, उस दिन श्रीमंत मालोजीराजे सहकारी बैंक का कैशियर जमा और निकासी का हिसाब लगाने में व्यस्त था। उसने 500 रुपए के नोटों के दो बंडलों और सूर्यकान्त द्वारा भरी गई पे-इन-स्लिप को देखा। उसने जैसे ही नोटों को उलट-पुलट किया, उसने नोटों के नंबरों पर नजर दौड़ाई तो वह चौंक पड़ा। इन नोटों बिलकुल वही नंबर थे जो सूर्यकान्त द्वारा दो दिन पहले बैंक से निकाले गए नोटों पर थे। कैशियर हक्का-बक्का रह गया। क्या सूर्यकान्त ने फिरौती नहीं दी? यदि यह सही था, तो फिर पूरे शहर में इतना झूठ क्यों फैलाया गया? इस अफवाह के पीछे की वजह क्या है?

बुधवार की सुबह थी। सूरज उगा, चिड़िया चहचहाने लगीं, मंदिर की घंटियां बजने लगीं, इस दिन भी वही सब हो रहा था, जो बाकी दिनों में होता आ रहा था। दुर्भाग्यवश, शिरवळ में सबकुछ वैसा ही नहीं था, खासतौर पर साई विहार में।

संकेत की एक हफ्ते से अधिक की अनुपस्थिति पूरे भांडेपाटील परिवार में चिड़चिड़ाहट, भ्रम और घुटन पैदा कर रही थी। विष्णु, जनाबाई, सूर्यकान्त, प्रतिभा, शामराव, शालन, विवेक, कुसुम, शेखर और संजय- इस दर्द से निपटने का सभी का अपना-अपना तरीका था। कभी-कभी सबसे आसान तरीका होता है दूसरों से अपने दर्द को छुपाना। हर कोई ऐसा दिखाना चाहता था कि वह सामान्य है। एकदूसरे को सांत्वना देने का यह उनका तरीका था। सोना, खाना और नहाना तो नियमित काम थे, जो नियमानुसार चल रहे थे। सौरभ, पराग और पायल एकदूसरे की तरफ देखकर स्थिति का अनुमान लगा रहे थे। वे समझ रहे थे कि उनका परिवार दुःखी है क्योंकि संकेत घर वापस नहीं आया है। रोज-रोज की इन दुःख भरी तंरगों का असर उनके व्यक्तित्व पर भी पड़ने लगा था। मासूम और खिलंदड़ बच्चों से अब वे परिपक्व और गंभीर वयस्क की तरह बन गए थे। यह परिवर्तन असहायता और निर्भरता के कारण आ गया था, लेकिन इसके लिए किया कुछ भी नहीं जा सकता था।

बैंक में, कैशियर ने सूर्यकान्त द्वारा जमा किए गए बंडल को लिया और उन्हें दोबारा देखा। उसे लगा कि उसने इस मामले में कोई बड़ा सुराग हासिल कर लिया है। उसने बड़ी सावधानी से उन बंडलों को दराज में रखा और ताला लगा दिया। चाबी को अपनी जेब में रख लिया, दो बार देखा कि ताला ठीक से लगा है या नहीं और फिर अपनी सीट से उठ खड़ा हुआ।

कैशियर अपने दोस्तों के साथ चाय पीने के लिए बैठ गया। हर कोई महसूस कर रहा था कि वह अच्छे मूड में है। उन्होंने उससे पूछा कि माजरा क्या है। कैशियर ने बड़ी ही धीमी आवाज में कहा जवाब दिया, “तीन दिनों पहले सूर्यकान्त भांडेपाटील एक लाख रूपए निकालने के लिए बैंक में आए थे। उन्हें यह रकम अपने बच्चे को छुड़ाने के लिए फिरौती के रूप में देनी थी। सारा गांव जानता है कि उन्होंने अपहरण करने वाले को पैसे दिए हैं। कल वह एक बार फिर उस रकम को बैंक में जमा करने के लिए आए थे।” कैशियर किसी रॉ या एफबीआई एजेंट की तरह बात कर रहा था।

अपनी हथेलियों पर तंबाकू मलते हुए सीनियर क्लर्क ने कैशियर से कहा, “सूर्यकान्त जाना-माना ठेकेदार और सफल व्यवसायी है। उसके पास घर पर और भी रकम रखी हो सकती है या किसी ने उसे पैसे दे दिए होंगे। वह पैसे जमा करने बैंक में आया था, इसमें ऐसी कौन-सी बड़ी बात हो गई?”

कैशियर उसकी तरफ देखकर मुस्कुराया और बोला, “तुम समझोगे नहीं। यही कारण है कि तुम्हें प्रमोशन नहीं मिल पाता। क्या तुम जानते हो कि वे एक लाख रुपए पहले कहां से निकाले गए थे? जो नोट निकाले गए, वही नोट जमा किए गए हैं। हां, वे वही नोट हैं।”

“तुम ऐसे कैसे कह सकते हो कि ये नोट वहीं हैं?”

“मैं कोई कच्चा खिलाड़ी नहीं हूं। तुम्हें लग रहा होगा कि मैं हवा में बात कर रहा हूं। नहीं। मैंने उन नोटों का नंबर नोट करके रखा था, जो उसने निकाले थे।जो निकाले गए, वही जमा भी किए गए। क्या अब तुम मामले को समझे? ”

“इसका मतलब है सूर्यकान्त ने अपहरण करने वाले को फिरौती की रकम नहीं दी? ”

चूंकि, संकेत अपहरण का मामला शहर की चर्चा का विषय बना हुआ था इसलिए अब यह नया सवाल जंगल की आग की तरह फैल गई। अपनी बात को सही साबित करने के लिए शिरवळ के लोग इस चर्चा को और अधिक मनोरंजक बनाने के लिए अपनी ओर से कुछ न कुछ जोड़ने लगे।

“पिछले दस दिनों से शिरवळ पुलिस और सातारा स्थानीय अपराध शाखा इस मामले की जांच कर रही है। ऐसा कैसे संभव हो सकता है कि उनकी जांच का कोई नतीजा न निकले? क्या कुछ गड़बड़ है?”

“क्या फिरौती के लिए कोई इतनी बड़ी रकम दे सकता है? एक लाख रुपए क्या कोई छोटी रकम है?”

“अपहरण करने वाला चार-पांच दिनों के लिए गायब हो जाता है। उसके बाद वह फिरौती मांगने के लिए प्रकट होता है। यह सब कुछ समझ पाना मुश्किल है। ”

“वह एक दिन में दो बार फिरौती के लिए फोन करता है। अपहरण करने वाले इतने मूर्ख नहीं होते कि उन्हें पुलिस का डर न हो। ”

“ अपहरणकर्ता पैसे लेने के लिए सुबह नहीं आया क्योंकि सूर्यकान्त के साथ पुलिस वाले थे, लेकिन शाम को वह पुलिस को बिना बताए जाता है, अपहरणकर्ता आता है, और रकम ले जाता है...क्या इसे समझा नहीं जा सकता है?”

“मैंने सुना है कि सूर्यकान्त को बिजनेस में नुकसान उठाना पड़ रहा है। उस पर बहुत सारा कर्ज है।”

“मुझे लगता है कि संकेत का किसी अनजान आदमी ने अपहरण नहीं किया है। सूर्यकान्त ने उसे अपने किसी परिचित के पास गुजरात भेज दिया है। यह सब उसने प्रचार के लिए किया है। वह राजनीतिक आदमी लगता है।”

“खैर, खून, खांसी, खुशी, बैर, प्रीति, मदपान। रहिमन दाबे न दबै जानत सकल जहान।”

“एक अच्छा तैराक उथले पानी में ही डूब जाता है, इसी तरह सूर्यकान्त जैसा अनुभवी योजनाकार पैसों के मामले में गलत नहीं हो सकता। उसे यह बात कैसे समझ में नहीं आई कि वह उन्हीं नोटों को जमा करने जा रहा है, जिन्हें उसने निकाला था।”

फेसबुक, ट्विटर और वाट्सएप जैसी आधुनिक तकनीकों से शिरवळ कोसों दूर था। इस छोटे-से शहर के लिए तो इधर-उधर से कही-सुनी बातें ही काम कर रही थीं। ये तीव्र, मुफ्त और खतरनाक भी थीं। और अब यह अफवाह भी साई विहार तक पहुंच ही गई। किसी को भी इन बातों पर भरोसा नहीं हो रहा था, लेकिन उन्हें विचार करने के लिए विषय तो मिल ही गया था। अचानक, उन्होंने सूर्यकान्त से दूरी बनाने का विचार कर लिया। तब, कोई हैरत नहीं कि वह अपने ही लोगों से दूरी महसूस करने लगा था।

 

अनुवाद: यामिनी रामपल्लीवार

©प्रफुल शाह

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