Fathers Day - 25 books and stories free download online pdf in Hindi

फादर्स डे - 25

लेखक: प्रफुल शाह

खण्ड 25

सोमवार, 06/12/1999

जब सूर्यकान्त और संजय अपनी वैन में पहुंचे तो हाईवे पर जमा शिरवळ पुलिस दल और सातारा से पहुंची पुलिस टीम के साथ-साथ पुणे ट्रैफिक पुलिस के सदस्यों को देखकर दंग रह गए। सूर्यकान्त इस बात को लेकर भयभीत हो गया कि एक बार फिर इतने सारे पुलिस वालों को देखकर अपराधी नाराज या परेशान न हो जाए। हे भगवान, मेरे संकेत की रक्षा करना...

एक पुलिस वाला होकर भी संजय यह समझ ही नहीं पा रहा था कि आखिर पुलिस बल इतने कम समय में हाईवे पर पहुंच कैसे गया।

कुछ देर बाद वे समझ पाए कि यह सब कैसे हुआ।

जैसे ही सूर्यकान्त और संजय दूसरी बार फिरौती की रकम लेकर साई विहार से बाहर निकले, विष्णु और शामराव अपने बेटों की सुरक्षा को लेकर चिंतित हो गए। उन्हें लगा कि उनके बेटों की जान को धोखा हो सकता है। ‘उनके पास कोई पुलिस सुरक्षा नहीं है। अपराधी उन पर हमला कर सकता है।’ डरे हुए विष्णु ने शिरवळ पुलिस चौकी पर फोन लगाकर अपनी चिंता व्यक्त की। इंसपेक्टर माने मदद करने के लिए तैयार थे। वह उनका स्टाफ सातारा पुलिस बल के साथ तुरंत ही बॉबी कॉर्नर की ओर चल पड़े। लोकेशन की ओर बढञते हुए रास्ते में उन्होंने सोचा कि बुद्धिमानी इसी में है कि पुणे ट्रैफिक पुलिस को घटना के बारे में बता दिया जाए और उन्हें भी अपने साथ ले लिया जाए। उन्होंने सूर्यकान्त की वैन का नंबर पुणे ट्रैफिक पुलिस को दे दिया ताकि निशानदेही की प्रक्रिया में आसानी हो सके। ‘यदि रास्ते में ट्रैफिक हो और वे लोग समय पर लोकेशन पर न पहुंच सकें तो भी इससे आसानी होगी...’

सूर्यकान्त और संजय को इस बात का पता ही नहीं था कि पुलिस उनका पीछा कर रही है। पुलिस दल उनकी गाड़ी से बमुश्किल 15 मिनट ही पीछे था।

जैसे ही पुलिस ने दोनों भाइयों को देखा, सातारा स्थानीय अपराध शाखा के इंसपेक्टर सदानंद बेलसरे ने पूछा, “हमें वह जगह दिखाइए जहां आपने लाल ब्रीफकेस छोड़ा था।”

जैसे ही दोनों उसी पगडंडी पर दोबारा चलने लगे, उनके पीछे-पीछे पुलिस चल रही थी, उन्होंने सामने से एक स्कूटर को आते देखा। एक नौजवान उसे चला रहा था, वह मोटा था, उसने खाकी पैंट और एक सामान्य सा शर्ट पहन रखा था। यह अपहरण करने वाला या उसका साथी तो नहीं? वह उसी दिशा से आ रहा था, जहां पर ब्रीफकेस रखा गया था। यह विचार मन में आना स्वाभाविक ही था।

इंसपेक्टर बेलसरे ने सख्ती से पूछा, “तुम कौन हो?”

“मैं पुलिस वाला हूं। इस इलाके की पेट्रोलिंग करने की जिम्मेदारी मेरी है।”

वह सच कह रहा था। वह साळुंके था। उसके बहुत अधिक वजन के कारण उसके साथी उसे डोंगरे साळुंके पुकारते थे। उसका परिचय पत्र देखने के बाद शंका की कोई गुंजाइश ही नहीं थी। इस बंजर इलाके में हो रही किसी भी हलचल पर नजर रखना जरूरी था। अपराधियों को यह मालूम रहना चाहिए कि यह जगह उतनी निर्जन नहीं जितनी वे सोचते हैं या उनके लिए उतनी सुरक्षित है, जितनी वे सोचते हैं। साळुंके ने बताया कि उसने यहां कोई गतिविधि नहीं देखी।

उन्होंने साळुंके के मसले को सुलझाया ही था कि नई समस्या सामने आकर खड़ी हो गई। एक नहीं, बल्कि दो-दो। एक जवान दंपती उनके सामने से उसी दिशा से स्कूटर पर सवार होकर आ रहा था, जिस जगह पर उन्होंने ब्रीफकेस रख छोड़ा था। उनके पास लाल ब्रीफकेस था। यह काफी दिलचस्प हो सकता था कि अपहरण के पीछे इस दंपती का हाथ हो, आदमी ने बच्चे का अपहरण किया हो और औरत को उसकी देखभाल करने के लिए रखा हो।

इससे पहले की पुलिस पूछताछ करती, साळुंके ने बताया, “मैं इन्हें जानता हूं। ये कोई अपराध कर ही नहीं सकते।” हर किसी को उस स्थान पर पहुंचने की जल्दी थी। साळुंके ने जो कहा, उस पर उन्होंने विश्वास कर लिया। किसी ने भी न तो स्कूटर के नंबर प्लेट की ओर देखने की ज़हमत उठाई, न ही उस पर लिखा नंबर नोट करने की।

सूर्यकान्त की नंबर प्लेट पर नजर तो पड़ी पर वह कुछ सोच पाता, वह उस ओर बढ़ चला जिस जगह पर उसने ब्रीफकेस रखा था। इस समय तक सूर्यकान्त के दोस्त भी वहां पहुंच चुके थे। सभी लोग उस इलाके में किसी सुराग या सबूत की तलाश में थे लेकिन उन्हें न तो ब्रीफकेस मिला, न पैसा न ही कोई आदमी और न संकेत ही।

सब लोग सिगरेट पैकेट, महिला के अंतःवस्त्र और प्लास्टिक बैग को वहीं छोड़कर वापस हाईवे की ओर चल पड़े। उन्होंने बॉबी कॉर्नर को पार कर आगे निकले। उन्होंने कात्रज और आसपास के होटल और लॉज में जांच-पड़ताल की। “क्या आपने किसी को एक छोटे बच्चे के साथ देखा है? क्या आपने किसी को लाल ब्रीफकेस के साथ देखा?” उन्हें कोई ठोस जवाब नहीं मिल पा रहा था। ऐसा लग रहा था कि अपराधी आया नहीं या फिर एक लाख रुपयों से भरा ब्रीफकेस लेकर गायब हो गया।

साई विहार में सभी लोग व्याकुल तो थे ही, पर आशान्वित भी थे। जनाबाई और शालन व्यग्रता से अपने पोते के साथ खेलने का इंतजार कर रही थीं। प्रतिभा की आंखें संकेत की फोटो पर टिकी हुई थीं। ‘उसकी कितनी खूबसूरत मुस्कान है। 15 अगस्त को, प्रभात फेरी में हिस्सा लेने के बाद संकेत तिंरगे के साथ भागता हुआ वापस आया था। वह टेबल पर खड़ा हो गया और तब तक नीचे नहीं उतरा जब तक उसकी फोटो नहीं खींच ली गई।’ प्रतिभा सोच रही थी संकेत के वापस लौटने के बाद वह उसकी बहुत सारी फोटो खींचेगी, जितनी वह चाहेगा। वह उसे एक बार फिर, बड़ों की तरह शपथ लेते हुए सुनना चाहती थी...भारत मेरा देश है...

“किडनैपर देश नहीं छोड़ेगा और कहीं नहीं जा सकेगा। आज नहीं तो कल, वह पकड़ा जरूर जाएगा। अब जबकि उसके पास पैसा आ गया है, वह उसे खर्च करना चाहेगा और पैसे खर्च करने के चक्कर में ही गलती कर बैठेगा।” इंसपेक्टर माने ने अपनी बात कही।

इंसपेक्टर माने के आशावादी दृष्टिकोण के उलट, इंसपेक्ट बेलसरे ज्यादा व्यवहारिक थे। उन्होंने सीधे कहा, “यह आदमी बहुत शातिर है। उसने ऐसे स्थान को चुना जहां ज्यादा आबादी नहीं है और गाड़ियों की आवाजाही भी नहीं है, लेकिन यह स्थान इतना भी निर्जन नहीं है कि उस पर नजर पड़ जाए। पुलिस दल और सूर्यकान्त के दोस्तों की टीम की मौजूदगी के बावजूद वो आया, ब्रीफकेस उठाकर फरार हो गया और किसी को पता भी नहीं चल पाया। सुबह भी उसे मालूम हो गया था कि वहां पर पुलिस मौजूद है इसलिए फिरौती के पैसे लेने नहीं आया। दोनों लोकेशन को देखकर मुझे लगता है कि या तो वह बड़ा अनुभवी अपराधी है या शातिर आदमी या फिर दोनों। इसने हमारे काम को और अधिक मुश्किल बना दिया है। थोड़ा हटकर विचार करना होगा। हमें अपराधी को पकड़ने के तरीके पर परंपरागत तरीके पर टिके नहीं रहना होगा।”

 

अनुवाद: यामिनी रामपल्लीवार

©प्रफुल शाह

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