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फादर्स डे - 23

लेखक: प्रफुल शाह

खण्ड 23

सोमवार, 06/12/1999

ड्राइवर सीट पर बैठा सूर्यकान्त और उसके दोस्तों की टीम को अपहरणकर्ता की डिमांड पूरा करने की जल्दबाजी थी। उनके पास फिरौती की रकम से भरा हुआ बैग था और वे तेजी से भागे जा रहे थे। अचानक, सूर्यकान्त चीखा और उनकी वैन एक झटके के साथ रुक गई। हर कोई चौंक गया। वे जानना चाहते थे कि आखिर हुआ क्या।

संजय, जो वैन में सूर्यकान्त की बगल में बैठा हुआ था, उसने बताया कि कोई जानवर उनकी वैन के सामने से भाग रहा था, ब्रेक न लगाते तो वैन के पहियों के नीचे आकर कुचल जाता। उसने सूर्यकान्त की ओर देखा, उसके जरा नजदीक गया और मुस्कुराने की कोशिश करते हुए कहा, “आता टेंशन घ्यायची आवश्यकता नाही। संकेत परत भेटणार आता।” (अब टेंशन लेने की आवश्कता नहीं है। हमें संकेत वापस मिलने वाला है।)

साई विहार में, भांडेपाटील परिवार में न केवल संकेत की वापसी के लिए, बल्कि सूर्यकान्त की सुरक्षा के लिए भी प्रार्थनाएं चल रही थीं। जनाबाई और प्रतिभा भगवान के फोटो के सामने बैठी हुई थीं। शालन उनके पास आई। उसने चुपचाप सास-बहू को एकसाथ बैठे हुए देखा। उसे संकेत के बचपन के दिन याद आ गए। ‘वह कितना प्यारा बच्चा था। जब वह बहुत छोटा था, एक बार मेरी गोद में लेटे-लेटे मेरे चेहरे को देखते हुए लगातार मुस्कुरा रहा था।’

सौरभ अपने छोटे भाई के आज रात को घर वापस लौटने की खुशी छुपा नहीं पा रहा था। ‘मैं उसके साथ ही सोऊंगा...कल मैं ही शे स्कूल छोड़ने के लिए जाऊंगा और मैं ही वापस भी लेकर आऊंगा... मैं अब उसे कभी-भी अकेला नहीं छोड़ूंगा...’

पायल और पराग अपने आसपास घट रहे घटनाक्रम को शांतिपूर्वक देख रहे थे। उन्होंने ज्यादा कुछ तो समझ में नहीं आ रहा था, पर सौरभ की खुशी देखकर वे समझ गए थे कि संकेत वापस आने वाला है।

शामराव बिना कुछ कहे ही विष्णु को सांत्वना दे रहे थे। संकेत विष्णु का पोता था, तो शामराव के लिए वह पोते जैसा ही था।

शिरवळ पुलिस और सातारा का स्थानीय पुलिस बल खंबाटकी घाट के टेलीफोन बूथ के पास पहुंच चुके थे। वे समझ नहीं पा रहे थे कि अपहरण करने वाले ने फिरौती वसूल करने के लिए आखिर इस जगह को ही क्यों चुना था। यह कोई सुनसान जगह नहीं थी, न बंजर जमीन और उसके लिए तो सुरक्षित भी नहीं थी। उनकी आते-जाते राहगीरों पर नजर पड़ी, लेकिन उन लोगों में अपहरण करने वाले से कोई मेल नहीं दिख रहा था। हालांकि सभी ने अलग-अलग जगहों पर बिखरकर अपनी पोजीशन ले रखी थी, फिर भी सबने टेलीफोन बूथ से ध्यान नहीं हटाया था।

सूर्यकान्त लोकेशन पर दोपहर 12.15 पर पहुंचा। वह वैन से बहुत अधिक आशाएं और एक लाख रूपयों से भरा ब्रीफकेस लेकर नीचे उतरा। उसे अपनी सुरक्षा की चिंता नहीं थी न ही पैसों की फिक्र थी। वह तो केवल संकेत की सुरक्षित घर वापसी चाहता था। उसके दोस्तों में से कोई भी वैन से नीचे नहीं उतरा, पर सभी उसे नीचे उतर कर जाते हुए देख रहे थे।

पुलिस बल और सूर्रकान्त की टीम तो लोकेशन पर समय पर पहुंच चुकी थी, लेकिन अपहरण करने वाले और उसके साथियों का कोई अता-पता नहीं था।

हर किसी के मन में सही लोकेशन को लेकर संदेह था। घाट के पास एक आरसीसी बना हुआ था जिसका उपयोग टेलीफोन विभाग वाले वायर, यंत्र और अन्य चीजों को रखने के लिए करते थे। इसे इंस्पेक्शन के लिए भी उपयोग में लाया जाता था।

हाथ में लाल ब्रीफकेस और मन में साहस जुटा कर, सूर्यकान्त उस कमरे की ओर बढ़ा। पहला कदम बढ़ाते हुए वह बच्चे से मिलने के लिए उत्साहित हो गया, दूसरे कदम में वह अपहरण करने वाले की चाल को लेकर डर गया, तीसरे कदम ने उसके भीतर अपने लक्ष्य को हासिल करने की उमंग जागी पर चौथे कदम पर वह अपने आपको असहाय महसूस करने लगा। इन मिली-जुली भावनाओं के साथ, वह अपने बच्चे को बचाने के लिए आगे बढ़ा। उसे नहीं मालूम था कि कितनी जोड़ी आंखें उसका पीछा कर रही हैं। न ही इन आंखों को ही पता था कि कौन-किस पर नजर रखे हुए है।

सूर्यकान्त कमरे के पास पहुंच गया। वह लोकेशन को लेकर पूरी तरह से आश्वस्त नहीं था। अपने हाथ में ब्रीफकेस लिए हुए, वह अपहरणकर्ता को खोजने लगा। उसने नजदीक की एक टेकड़ी पर एक आदमी को देखा, जो हाथ हिलाकर उसे इशारा दे रहा था कि लोकेशन बिलकुल सही है। सूर्यकान्त ने ब्रीफकेस वहां पर रख दिया और उसके अगले इशारे का इंतजार करने लगा। अब, टॉम एंड जेरी का खेल अपने चरम पर पहुंचने को था। किसी ने एक पेड़ के पीछे से हाथ हिलाकर बताया कि उसे ब्रीफकेस मिल गया है। सूर्यकान्त के लिए यह उन पैसों की पावती नहीं थी जो उसने ब्रीफकेस में भरकर दी थी, बल्कि एक वचनपत्र था कि इसे पाकर उसका बेटे को सुरक्षित घर पहुंचा दिया जाएगा। वह वैन की ओर वापस लौटने लगा। उसके मन में एक क्षण के लिए भी यह विचार नहीं आया कि उसने अपने बेटे को छुड़ान के लिए इतनी बड़ी रकम अदा की है। वह भावुक हो रहा था, अपने बच्चे को छूना चाहता था।

अब, प्रतीक्षा का दौर शुरू हुआ। छिपे हुए पुलिस वाले ब्रीफकेस पर लगातार नजरें टिकाए हुए थे। एक की उंगली पिस्तौल के घोड़े पर तैयार थी, और दूसरा अपने साथियों के साथ अपराधी को पकड़ने के लिए तैयार था। कुलमिलाकर, सभी गुस्से और बदले की भावना से भरे हुए थे।अ

सूर्यकान्त अपनी वैन में वापस आ गया। वह चाहता था कि ब्रीफकेस अपहरण करने वाले तक पहुंच जाए। वह चिंतित था कि यदि उसने ब्रीफकेस समय पर नहीं उठाया तो उसके गलत हाथों में पड़ने की आशंका होगी। या फिर कोई जंगली जानवर ही उसे उठा ले जाएगा। लेकिन इन सबसे ऊपर, असली चिंता तो यही थी कि संकेत की रिहाई खतरे में पड़ जाएगी।

 

अनुवाद: यामिनी रामपल्लीवार

©प्रफुल शाह

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