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फादर्स डे - 17

लेखक: प्रफुल शाह

खण्ड 17

मंगलवार, 30/11/1999

सूर्यकान्त ने जब पुलिस वालों को संकेत के अपहरण मामले में उसके साले शेखर के शामिल होने की संभावना पर बातचीत करते सुना है, वह बहुत परेशान और आहत महसूस कर रहा है। उसने अपनी भावनाओं को इंस्पेक्टर माने के समक्ष व्यक्त भी करने की कोशिश की।

“आप समझते क्यों नहीं? इस मामले में शेखर की भूमिका के बारे में विचार करके अपना समय बरबाद न करें। वह ऐसा काम कभी नहीं करेगा।”

“सर, आपने प्रेम विवाह किया था। आपके इस रिश्ते को लेकर कई लोगों का विरोध था। आपके परिवार ने आपको अपने घर से बाहर कर दिया था। क्या बदला लेने के मकसद से लड़की के परिवार वाले ऐसा नहीं कर सकते? ”

“बकवास। प्रेम विवाह पुरानी बात हो चुकी। दोनों परिवारों ने उस कड़वाहट को भुला दिया है। और शेखर तो संकेत को प्यार करता है।”

“हम इस बात को तभी साबित कर पाएंगे जब हमें संकेत या शेखर में कोई एक मिल जाएगा...मामा अपने भांजे से कितना प्यार करता है तभी मालूम हो पाएगा। आखिरकार, ये आपके बेटे की जिंदगी का सवाल है। हमें सच-सच बताएं, क्या आपके मन में भी शेखर के प्रति थोड़ा-बहुत संदेह तो है ही न?”

“बिलकुल भी संदेह नहीं। मुझे उसके चरित्र को लेकर जरा भी संदेह होता तो मैं उसे अपने घर में रहने की इजाजत नहीं देता न ही अपने साथ काम करने देता। कृपया समझने की कोशिश करें, वह संकेत का मामा है।”

“सर, राजा कंस ने भी अपनी बहन देवकी की सात संतानों को खत्म कर दिया था। और उसने आठवें कृष्ण को भी मारने का प्रयत्न किया था। कंस भी उनका मामा था। यदि ऐसी घटनाएं सतयुग में हो सकती हैं तो अब कलयुग में ऐसा होना क्या संभव नहीं?”

‘यह कलयुग है...कलयुग का कठिनतम दौर...’ जनाबाई खिड़की से सुदूर देखते हुए बड़बड़ा रही थीं। सौरभ उनके पास आया और उनसे लिपट गया। उसने रोना शुरू कर दिया। साई विहार में तनावपूर्ण वातावरण था, डर और चिंता व्याप्त थी। लगातार दो दिनों से चल रही मनहूसी ने इस बच्चे के आत्मविश्वास को जैसे कुचल कर रख दिया था। वह कई आगंतुकों से यह कहते हुए सुना कि परिवार वालों को अब सौरभ का ख्याल रखना चाहिए।

“दादी, क्या कोई मेरा भी अपहरण कर लेगा?”

“नहीं, मेरे बच्चे, बिलकुल नहीं। कोई भी तुम्हें नहीं ले जा सकता।”

“पर किसी ने संकेत का तो अपहरण किया है...”

“संकेत जल्दी वापस आ जाएगा...और..तुम्हारे साथ कुछ भी बुरा नहीं होने वाला। तुम्हारे दादाजी और मैं यहां तुम्हारा ध्यान रखने के लिए हैं न... ”

“क्या सही में संकेत वापस आ जाएगा?”

“हां, हां बिल्कुल, संकेत घर वापस आएगा। क्या तुम्हारी दादी तुमसे झूठ बोलेगी?”

दादी की बातें सुनकर सौरभ आश्वस्त हो गया। उसे लगा कि यह बात उसे पायल और पराग को भी बतानी चाहिए जिससे वे भी खुश हो जाएंगे।

‘संकेत बहुत खुश था। स्कूल जाने से पहले, वह बहुत प्रसन्न था। सामान्यतः सुबह उठने के लिए वह बहुत बहाने बनाता था। कल वह खुशी-खुशी उठा और आंखें खुलते साथ ही उसने मुझे गले से लगा लिया,’ प्रतिभा के दिमाग में पूरा घटनाक्रम चलचित्र की तरह याद आ रहा था। प्रतिभा सोच रही थी संकेत का यह लाड़ शायद स्कूल न जाने के लिए होगा लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। हां, उसने स्कूल के लिए तैयार होते समय जरूर कुछ नखरे दिखाए थे।

“आई आज यूनिफॉर्म नाही घालणार (मां आज मैं यूनिफॉर्म नहीं पहनूंगा)।”

“स्कूल जाने के लिए तुमको यूनिफॉर्म तो पहनना ही होगा।”

“नहीं, नहीं आज मैं नए कपड़े पहनकर स्कूल जाऊंगा। ”

“संकेत समझने की कोशिश करो।”

“आई, नवे कपड़े हवे मला”(मां, मुझे नए कपड़े ही चाहिए)

संकेत मान नहीं रहा था। प्रतिभा को अपने सुबह के कामकाज भी निपटाने थे। वह उसे समझाने में और वक्त जाया नहीं करना चाहती थी इसलिए उसने उसे नए कपड़े पहना दिए। संकेत उन्हें पहनकर बहुत खुश था। बेटे की खुशी देखकर प्रतिभा मुस्कुराने लगी। वह अपने नए कपड़े दिखाने के लिए अपने पिता, भाई और पायल-पराग की ओर भागा। इसके पहले कि वह अपना काम शुरू कर पाती, संकेत अपने जूते लेकर आ गया।

“आई मला हे बूट हवे।”(मां मुझे ये जूते पहनने हैं)

“तुम ये वाले जूते स्कूल में क्यों पहनना चाहते हो? जाओ, जाकर अपनी चप्पलें पहनो। मेरे पास अब इन कामों के लिए समय नहीं है।”

“नाही, मी बूटच घालणार...प्लीज आई।”( मैं बूट ही पहनूंगा, प्लीज मां)

संकेत की मधुर आवाज और मोहक चेहरे ने मां का दिल पिघला दिया। उसने उसके सिर पर थपकी दी और जूते पहना दिए। उसने जूतों के लेस बांध दिए। संकेत खुश हो गया और कसकर अपनी मां के गले लग गया।

“मुझे अभी घर के बहुत सारे काम निपटाने हैं। क्या तुम अब तैयार हो?”

“हां मां”

“तो अब तुम जाओ...”

इन शब्दों को याद करके प्रतिभा को कंपकंपी छूट गई। ‘संकेत ने नए कपड़े पहनने की जिद क्यों की थी? आखिर वह ऐसे शब्द कैसे बोल सकती थी...अब तुम जाओ?’

प्रतिभा कहां जानती थी कि बेटे को तैयार करते समय उसने जो कुछ कहा उसका पछतावा उसे जन्म भर रहेगा।

अनुवाद: यामिनी रामपल्लीवार

©प्रफुल शाह

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