वेद, पुराण, उपनिषद चमत्कार या भ्रम - भाग 16 Arun Singla द्वारा आध्यात्मिक कथा में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
श्रेणी
शेयर करे

वेद, पुराण, उपनिषद चमत्कार या भ्रम - भाग 16

शिष्य : जीवन जानने से क्या प्रयोजन है ?

गुरु : जीवन जानने की दो विधि, दो रास्ते है, एक है पद्धति है धर्म द्वारा जानना और दुसरी पद्धति है विज्ञान द्वारा जानना. धर्म जोड़ कर जानता है, और विज्ञान तोड़ कर जानता है. विज्ञान चीजों को तोड़ता है, आखिरी सीमा तक, यानी एटॉमिक यूनिट तक, विज्ञान तोड़ने से ही ज्ञान प्राप्त करता है. धर्म जोड़ता है, खंड को अखंड से अंश को विराट से. जैसे अगर एक फूल के बारे में जानना है तो विज्ञान फूल को हिस्सों में तोड़ेगा, इसमें कितनी मात्रा में खनिज हैं, कितना रसायन है, कितना पानी है, और तब बता सकेगा फूल किन किन किन अंशों का जोड़ है. धर्म कहता है, तोड़ने से फूल नष्ट हो जाएगा, वह फूल ही नहीं रहेगा, फुल को जानने के लिए फूल ही हो जाना होगा, अंश को विराट से जोड़ना होगा तब ही फूल को जान सकोगे .   

 

शिष्य सवाल करता है: आत्मा क्या है, परमात्मा क्या है?.

गुरु  व्याख्या करता है:  वो जो मनुष्य के भीतर जानने वाला है, साक्षी है, दृष्टा है, उसे आत्मा कहते है, कोई परमात्मा, ईश्वर इस आत्मा से अलग नहीं है, आत्मा ही जीव व् आत्मा ही परमात्मा है.

 

शिष्य फिर सवाल करता है, तो आत्मा और परमात्मा में अंतर  क्या है?

गुरु  जवाब देता है:  कोई अंतर, कोई भिन्नता नहीं है, जेसे बूंद बूंद के योग को सागर कहते है, वेसे ही एक अकेली बूंद जीव यानी आत्मा है, व् बूंदों का जोड़ सागर यानी परमात्मा है. शरीर की सीमाओं में जो बंधा है वह आत्मा है, और जो सीमाओं से परे सारे अस्तित्व में व्यापक है, वह परमात्मा है.

 

शिष्य फिर शिष्य करता है:  अगर दोनों एक है तो आत्मा परमात्मा से अलग ही केसे हुई, हम परमात्मा की खोज क्यों करते हैं ?.

गुरु  शंका का समाधान करता है: कि अगर सूर्य की धुप सोचे, वह आँगन में आकर बंध गई है, तो वह धुप का भ्रम है, इसी तरह आत्मा का यही भ्रम कि वह शरीर के बंधन में है, आत्मा को जीव बना देता है. बंधन टूटते ही, माया के स्वप्न से जाग्रत होते ही, फिर कोई भेद नहीं रहता, कोई खोज बाकी नहीं रहती.

 

इसे ऐसा समझो एक आदमी रात के अन्धेरें में एक गली से गुजर रहा है, और अँधेरे के कारण सड़क पर पडी रस्सी को वह सांप समझ लेता है, और सांप को मारने के उपाय खोजने लगता है, लाठी, डंडा तलाश करता है, उसे लाख समझाओ यह रस्सी है, वह नहीं मानेगा. अब वहां सुबह का प्रकाश हो जाता है, तो वह हंसता है, जान लेता है, यह तो रस्सी है वह नाहक सांप समझ कर दर रहा था . जिस दिन जीव भी अन्धकार स बाहर अता है,जाग्रत होता है, वह भी जान लेता है, खोजनेवाला और वह जिसे खोजा जा रहा था, दोनों एक ही हैं, जान लेता है सांप और रस्सी सदा से ही एक ही थी, वह कभी अलग हुई ही नहीं, बस अन्धकार के कारण भ्रम था. आत्मा और परमात्मा भी सदा से एक ही हैं, कभी अलग नहीं हुए, बस हम सो रहे है, स्वपन में हैं, बस जागृत होते ही हंसता है, दोनों एक ही हैं, कभी अलग हुए ही नहीं.

 

आगे कल ......भाग 17