वेद, पुराण, उपनिषद चमत्कार या भ्रम - भाग 5 Arun Singla द्वारा आध्यात्मिक कथा में हिंदी पीडीएफ

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वेद, पुराण, उपनिषद चमत्कार या भ्रम - भाग 5

प्रश्न: मन्त्र का क्या अर्थ है ?

गुरु : मंत्र का शाब्दिक अर्थ है, मनन, चिंतन करना. किसी भी समस्या के समाधान के लिए, काफी चिंतन, मनन करने के बाद जो उपाय, विधि, युक्ति निकलती है, उसे एक सूत्र में पिरो देने को आमतोर पर मन्त्र कहते हैं.

वेदों में किसी भी यज्ञ, स्तुति, या अन्य कोई कार्य, करने की नियमपूर्वक व विस्तारपूर्वक विधि को, संक्षिप्त करके संस्कृत में मन्त्र रूप लिख दिया जाता था, यानी कोड भाषा में लिख दिया जाता था, (किसी भी वाक्य को नियमबद्ध करके संक्षित रूप से लिखने की विधि को कोड कहते हैं) ताकि उसे आसानी से याद किया जा सके. और भविष्य में जरुरत पड़ने पर उसको डिकोड कर दिया जाता था, यानी संक्षिप्त को विस्तार में परिवर्तित कर दिया जाता था, और इस तरह वेद मूल रूप से पीढ़ी दर पीढ़ी आगे पहुँच जाते थे.

 

वैदिक काल में मंत्र धर्म का अंश था, जहां धर्म जीवन जीने की एक शैली थी, वहां दैनिक जीवन मे प्रार्थना के शब्दों को मंत्र में ढाल दिया जाता था, और ऐसा विश्वास था, कि प्रार्थना करने से कार्य की सिद्धि होती है, तो प्रार्थना करना यानी मन्त्र का जाप करना, दैनिक जीवन का एक हिस्सा था.

प्राचीनकाल में बीमारी, महामारी या बारिश ना आने जैसी आकस्मिक विपतियों या घटनाओं का कारण भूत, पिशाच का प्रकोप या देवता की नाराजगी माना जाता था, और इसकी दूर करने के लिये मन्त्रों द्वारा पूजा, प्रार्थना, यज्ञ किये जाते थे. ओर वैद्य लोग बीमारी दूर करने के लिए ओषधि और मंत्र दोनों का साथ-साथ प्रयोग करते थे.

 

और यह तो हम जानते हैं, की जब तक डॉक्टर पर विश्वास ना हो तो ओषधी भी पुरी तरह से काम नही करती, तो विश्वास पैदा करने के लिए ओषधि को अभिमंत्रित किया जाता था, ओर रोगी को औषधी के साथ मन्त्र जाप करने को कहा जाता था, बीमारी तो ओषधी से ठीक होती थी, पर मन्त्र जाप करने से लोगों को लगता था देवता प्रसन्न हो गए हैं, इस तरह शारीरिक बीमारी औषधी से व् मानसिक बीमारी विश्वास से ठीक हो जाती थी. बाद में अज्ञानी व् धर्म को धंधा बनाने वाले लोगों ने मन्त्र का अर्थ ये समझाया कि मन्त्र किसी कार्य सिद्धि करने, या रोग दूर करने का गुप्त रहस्य है, और मन्त्र के जपने से देवी या देवता प्रसन्न हो कर कामना पूरी करते हैं.

आजकल कुछ नीम हाकिम, तांत्रिक, ओझा केवल मंत्र, तंत्र, टोने टोटके, काले जादू, झाडे के द्वारा ही रोगों का उपचार करते हैं, यही से इनकी रोटी चलती है, क्योंकि आधी बीमारियाँ तो शरीर में ना हो कर दिमाग में होती हैं, यानी वहम की होती हैं, तो झूठी बीमारी झूठे इलाज से ही दूर हो सकती, और झूठी बीमारी मंत्र तंत्र, टोने टोटके, काले जादू, झाडे से भी ठीक हो जाती है.

 

अब होता क्या है, बिमारी वगेरा से सभी लोग तो मरते नही, जो बच जाते हैं, वे समझते हैं, कि बीमारी मंत्र तंत्र, टोने टोटके, झाड़े से ठीक हो गई है, तो लोग इनके झांसे में आते ही रहते है, और इनका धंधा तो चलता ही रहता है, परन्तु लोगों का असली साधू संतों व् वैदिक ज्ञान, चिकित्सा से विश्वास उठता जा रहा है .


वेदों में बताया गया है की, मंत्र के जप से एक प्रकार की विद्युत चुम्बकीय (Electromagnetic) तरंगें उत्पन्न हो जाती हैं, जो समूचे शरीर में फैल कर अनेक गुना विस्तृत हो जाती हैं. और इससे उत्पन्न प्रकंपन, शरीर के सूक्ष्म तंत्रों तथा हार्मोन प्रणाली पर अपना गहरा प्रभाव डालते हैं जिससे उनकी सक्रियता बढ़ जाती है, इससे प्राण ऊर्जा की क्षमता एवं शक्ति में वृद्धि होती है,


अब वापिस हम अपने मूल विषय ऋग्वेद पर आते हैं, बीच में बार-बार कई शब्दों के अर्थ विस्तार में बताए जाते हैं, यह इसलिए है, क्योंकि आगे चल कर यह शब्द आपको बार-बार दिखाई देंगे, और जब तक आप इनके अर्थ ठीक तरह से नहीं समझ लेगें, इन शब्दों को आत्मसात नही कर लेंगे, तो बात ऊपर की ऊपर निकल जाएगी, तो जो लिखा गया है, आपको पढ़ने, समझने में कोई आनंद नहीं आएगा.


ऋग्वेद जारी है

आगे कल भाग … 6