जिंदगी यह है, जिंदगी वह है, जिंदगी हंसना है, जिंदगी रोना है, जिंदगी दूसरों के दुख बांटना है, जिंदगी अपनी खुशियां बांटना है, इस तरह की बहुत सारी बातें हमेशा हमारे मन में आती रहती हैं कि जिंदगी क्या है ? जिंदगी मात्र इन तीन अक्षरों का मेल नहीं है जिंदगी हमारी सोच से और हमारे अनुभव से बहुत बड़ी है। हमें अपनी जिंदगी के बारे में कई बार कुछ अच्छी गलत धारणाएं बन जाती हैं लेकिन मैंने अक्सर पाया है की मेरी धारणाएं अक्सर गलत हैं। मैं अपनी धारणाओं को आप सभी पाठकों तक पहुंचाना चाहता हूं आप सब इस सफर में कृपया मेरा साथ दें और मैं वादा करता हूं कि आप सब लोग भी मेरी इस यात्रा में सहयोगी होंगे हम साथ साथ चलेंगे । और निश्चित रूप से आप को भी इस सफर में उतना ही आनंद प्राप्त होगा जितना मुझे होगा तो चलिए चलते हैं हमारी पहली कड़ी की तरफ मेरी पहली धारणा की तरफ मेरी सबसे पहली धारणा है कि
जिंदगी , खुशी का नाम है !
जो लोग खुश रहते हैं वही जिंदगी जीते हैं मैं बचपन से ऐसा सोचता था कि प्र््र्् अमुक व्यक्ति के पास निश्चित रूप से इतनी दौलत धन दौलत है वह निश्चित रूप से खुश होगा और वही उसी की जिंदगी जिंदगी है लेकिन मैंने अपने जीवन में पाया कि हमारी किसी भी व्यक्ति की जीवन को सदैव खुशी के सहारे नहीं दिया जा सकता उसमें कष्ट दुख इत्यादि अयाचित रूप से ही आ जाते हैं और यह सभी के साथ हैं चाहे कोई गरीब हो अमीर हो अकेला हो तब मैं सोचता हूं की जो मेरी धारणा है वह कहीं ना कहीं गलत है इस धारणा को यथा उचित नहीं माना जा सकता क्योंकि केवल खुशी व्यक्ति के जीवन का एक आधार यह एक मंत्र नहीं हो सकती हमारे जीवन में पल पल कितने रंग आते और जाते रहते हैं कि संख्या हम नहीं बता सकते परंतु इतना कह सकते हैं कि अच्छे बुरे असंख्य रंग हमेशा हमारी जिंदगी में आते जाते रहते हैं हम किस रंग को अपनाते हैं हम किस रंग में रंग जाते हैं वह हमारी अपनी इच्छा और चुनाव होता है परंतु फिर भी इतनी बात तो निश्चित है की रंग आते और जाते रहते हैं यह रंग ही हमारी खुशी और दुख को प्रकट करते हैं कई बार हमारी खुशी हमारे लिए दुख का कारण बन जाती है जैसे आपने कई बार देखा होगा कि हंसते हंसते पेट में दर्द होने लगा आंखों से आंसू निकलने लगे तो कहीं ना कहीं सूक्ष्म रूप से ही सही लेकिन उसने हमें उस खुशी ने हमें दुख तो दिया अब केवल खुश रह लेना और खुशी से जीवन जीते रहना केवल यही सत्य नहीं है ना ही हम सदैव खुश रह सकते हैं क्योंकि इस संसार के भौतिक सुखों में तो अपार दुख छिपा है परंतु अलौकिक सुख की चाह में भी अनेक दुखों का सामना करना पड़ता है यदि किसी को अलौकिक सुख की अनुभूति हो भी जाती है तब भी उसे बनाए रखने या उस पथ पर आगे बढ़ जाने के लिए भी कई दुखो का सामना करना पड़ता है ।
अगले अंक में मिलते हैं एक और धारणा के साथ।